Padha Panchayat Shasan Vyavastha
➧ यह उराँव जनजाति के परंपरागत शासन व्यवस्था है।
➧ झारखंड में उराँव जनजाति का प्रवेश 13वीं सदी में मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियारुद्दीन खिलजी के साथ हुआ था।
➧ उराँव ने मुंडा शासन व्यवस्था को ही अपने क्षेत्र में लागू किया, जिसे पड़हा शासन व्यवस्था के नाम से जाना जाता है। उराँव जनजाति द्वारा खेती के लिए बनाई गई उपयुक्त भूमि भुईंहरी कहलाती थी तथा इस गांव का मालिक भुईंहर कहा जाता था।
➧ उराँव में पारम्परिक शासन व्यवस्था के निर्धारण हेतु पहले दीवान होते थे, जो धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों को देखते थे। बाद में पहान के सहयोग हेतु मह्तो का पद बना। इस तरह आरंभ में पहान और महतो गांवों के अनुभवी लोगों के माध्यम से पंच-पद्धति द्वारा ग्रामीण व्यवस्था का संचालन करते थे।
➧ उराँव में कहावत है - 'पाहन गांव बनाता है, महतो गांव चलाता है'।
➧ पड़हा शासन व्यवस्था का स्वरूप इस प्रकार होता है:-
➧ ग्राम स्तर पर :- उराँव के गांवों में 1 ग्राम पंचायत का गठन किया जाता है और इस ग्राम पंचायत के संचालन हेतु निम्न अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है:-
(i) महतो :- भुईहर गांवों में धर्मेश (सूर्य देवता) के बाद सबसे बड़ी शक्ति का स्रोत ग्राम पंचायत थी, जिसका प्रधान महतो कहलाता था। यह गांवों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का रक्षक था।
➧ अखरा, सासन आदि के सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी पर थी। महतो गांव के सभी प्रशासनिक कार्य करता था, इसलिए इससे स्वतंत्र प्रधान कहा गया।
(ii) पहान :- यह गांवों में धार्मिक-अनुष्ठान, पर्व-त्यौहार, शादी-विवाह आदि का कार्य कराते थे तथा इसके बदले उन्हें कर मुक्त जमीन दी जाती थी, जिसे पहनाई भूमि कहते थे।
➧ यह पद हमेशा किसी शादी-शुदा व्यक्ति को ही दिया जाता था।
(iii) मांझी :- महतो की मदद के लिए इनकी नियुक्ति की जाती थी। यह महतो के पंचायती आदेशों को लोगों तक पहुंचाने का कार्य करता था।
(iv) बैगा :- यह पहान का सहयोगी है तथा इसका मुख्य कार्य ग्रामीण देवता की पूजा कर उसे शांत कराना है।इसे वैद्य भी कहा जाता था।
➧ पड़हा स्तर पर :- उराँवों में कई गांव को मिलाकर (5, 7, 12, 21 या 22) एक अन्तग्रामीण पंचायत का गठन किया जाता था, जिसे पड़हा पंचायत कहते थे।
➧ यह पंचायत दो या दो से अधिक गांवों के बीच के विवादों का निपटारा करता था तथा यह पंचायत निम्न, मध्य और उच्च तीन श्रेणी में विभाजित था।
➧ पहले निम्न पंचायत में किसी विवाद को प्रस्तुत किया जाता, यहां निर्णय न हो तो मध्य पंचायत में विवाद को भेजा जाता था और यहां भी निपटारा न हो तो उच्च पंचायत में लोग अपील करते थे।
➧ पंचायत की कार्यवाही में पुरुष और महिला दोनों भाग लेते थे। यह उराँवों के मुख्य प्रशासनिक इकाई थी।
➧ पड़हा स्तर के मुख्य अधिकारी निम्न थे :-
(a) पड़हा राजा :- यह पड़हा पंचायत का प्रमुख होता है तथा उन मामलों का निपटारा करता है, जो महतो द्वारा नहीं किया जा सकता या फिर महतो ने उस मामले को पड़हा राजा के पास स्थानांतरित कर दिया हो।
(b) पड़हा दीवान :- पड़हा पंचायत में यह प्रमुख न्यायिक अधिकारी होता है, जो सुप्रीम कोर्ट की तरह कार्य करता है।
➧ यह सभी पड़हा राजाओं के ऊपर होता है तथा उनके बीच समन्वय स्थापित करता है, जिस मुद्दे पर पड़हा राजा निर्णय नहीं ले पाते, उससे पड़हा दीवान के पास स्थानांतरित कर दिया जाता था।
➧ उराँवों की परंपरागत शासन व्यवस्था से जुड़े अधिकारी में कर लेने का प्रचलन नहीं था। प्रशासनिक दायित्व निभाने वाले अधिकारियों को इसके बदले कर मुक्त विशेष भूमि प्रदान की जाती थी। जैसे :-
(1) पड़हा राजा को दी गई मंझियास भूमि कहलाती थी।
(2) पाहन को दी गई भूमि पहनाई भूमि कहलाती थी।
(3) महतो को दी जाने वाली भूमि महतोई भूमि कहलाती थी।
(4) पहान के सहायता हेतु दी गई भूमि पनभरा भूमि कहलाती थी।
उराँवों की पंचायत की बैठक में महिलाएं भी भाग लेती थी, जबकि मुंडा की पंचायत बैठक में महिलाएं शामिल नहीं की जाती थी।
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