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Saturday, May 22, 2021

Santhalo Ka Udbhav Aur Vikas (संतालों का उद्भव और विकास)

Santhalo Ka Udbhav Aur Vikas

➧ संतालों  के उद्भव और विकास के संबंध में अनेक गीत एवं कहानियां मिलती हैं 

➧ संतालों  का जन्म हिहिड़ी-पिपीड़ी देश में हुआ है 

➧ हिहिड़ी-पिपीड़ी एक देश है जहां मनुष्य के प्रथम पूर्वज पिलचु पहड़ाम और पिलचू बूढ़ी रहे थे

संतालों का उद्भव और विकास

➧ दोनों की उत्पत्ति हंस और हंसिनी (हांस-हांसली) के अण्डे  हुई थी और उन्हीं दोनों ने मानव वंश की नींव डाली 

 पिलचु दंपति के 7 पुत्र एवं पुत्र 7 पुत्रियां  जन्म ली थी। 

 7 (सात) पुत्र  का नाम "सेंदरा, सांदोम, चारे, माने, आचारे, डेला और लेटा" थे। 

➧ 7 (सात) पुत्री का नाम  "छीता, कापरा, हिसी, डुमनी, दानगी, पुङ्गी और नायन" थी 

➧ जब ये लोग जवान हुए तो इन्होने अनजाने में विवाह सम्बन्ध स्थापित किये थे। कालांतर में जब मनुष्यो के जीवन में पाप समावेश होने लगा तो मरांग बुरु (ठाकुर) जी को अत्यंत क्लेश एवं दुख दर्द अनुभव हुआ, तब ठाकुर ने 7 दिन 7 रात अग्नि की वर्षा की थी 

➧ अग्नि वर्षा में 1 जोड़ी (जुड़ी पुरुष-स्त्री)  "हाराता पहाड़" की गुफा में छुपी हुई थी . 

➧ उन्हीं के वंशज "होड़" अर्थात मनुष्य कहलाया

 जब इनकी वंशज अधिक बढ़ गए तब इन्होंने हाराता से सासाड. बेडा (लोहित सागर) गए थे

➧ सासाड. बेड़ा में ये लोग 12 (बारह) गोत्र में विभाजित हुए थे

 हांसदा:, मारडी, सोरेन, हेम्ब्रम, टुडू , किस्कू, बास्के , बेसरा , चौड़े, पांवरिया, गोंडवार, मुर्मू। 

➧ सासाड. बेड़ा से जारपी दिसोम, आयरे दिसोम, क़ांयडे दिसोम, और चाम्पा दिसोम गाये थे 

➧ जब ये चाम्पा दिसोम में गये तो उन्होनें गोत्रों के अनुसार सामाजिक कार्य विभाजित किये थे।  

(i) किस्कू -रापाज 

(ii) मुर्मू -ठाकुर 

(iii) हेम्ब्रम -कुंवर 

(iv) सोरेन -सिपाही 

(v) मारडी- किंसाड़ 

(vi) हांसदा -पुरुधूल  

(vii) टुडू -मादाड़िया 

(viii) बेसरा -गायनाहिया 

(ix) बास्के -बेपारिया

(x) पावरिया -ओझा  

(xi) चौड़े -सुसारिया 

(xii) गोंडवार-सुसरिया। 

➧ चाम्पागाड़ में ये लोग बहुत दिनो तक रहे थे

➧ यहां इन्होंने विभिन्न दिशाओं में काफी प्रगति किए थे। यहां रहते-रहते इन्होंने अपनी-अपनी राज्य की स्थापना की थी 

➧ 12 गोत्रों के अनुसार अलग-अलग किले बनाए थे  

(i) हांसदा के लिए कुटामपुरीगाड़

(ii) मुर्मू के लिए चाम्पागाड़ 

(iii) किस्कू के लिए कोंयडागाड़ 

(iv) सोरेन के लिए चाईगाड़ 

(v) हेम्ब्रम के लिए खैरीगाड़  

(vi) मारडी के लिए बदोलीगाड़

(vii) टुडू के लिए लुईबाड़ीलुकुयबाड़ीगाड़ 

(viii) बेसरा के लिए बिनसारियागाड़

(ix) बास्के के लिए हारवा लोयोड. 

(x) पावरिया के लिए बामागड़ 

(xi) चौड़े के लिए कोडेगाड़ 

(xii) बेदिया के लिए होलोडगाड़ 

 इसके बाद इन्होंने तोड़े पुखरी, एयायनाई (सात नदी), गाड़ नाई , सिर दिसोम, सिकार दिसोम होते हुए "सान्त" अर्थात सिलदा परगना प्रदेश में आये थे सान्त प्रदेश में इन्हें संताल कहलाया 

 विकास के क्रम में संतालों के साथ अनेक घटना घटी है उन घटनाओं को ताजा रखने के लिए 'पर्व त्योहारों' में,  भित्ति चित्रों में, कृषि कार्य से संबंधित औजारों आदि में विभिन्न प्रकार के चित्रों अंकित करते हैं

➧ संतालों का उद्भव और विकास से संबंधित लोकगीत, लोककथा, लोककहानी, लोकगाथा , लोकसंगीत, मुहावरे, लोकोक्तियां, लोरी, पहेलियां आदि पाए जाते हैं 

➧ यह सब मौखिक रूप से युगों से संताली लोक जीवन में चले आ रहे हैं 

➧ जिससे संतालों का उद्भव और विकास का पता चलता है सहायक पुस्तकें :-

1. टुडू मांझी रामदास 'रेस्का'- खेरवाड़ बांसों धोरोम पुथी,1882  

2. टुडू डॉ. कृष्ण चंद्र - सानताड़ी होड़ साँवहेंत कथा, 2008  

3. स्क्रेफसरुड एल. ओ. - मारे हापड़ामको रेया: काथा, 1887

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