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Monday, May 31, 2021

Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-1 (झारखंड की आदिम जनजातियां Part-1)

Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-1

Mal Paharia

➧ माल पहाड़िया एक आदिम जनजाति है जिसका संबंध प्रोटो और ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है
➧ रिजले के अनुसार इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है
 रसेल और हीरालाल के अनुसार यह जनजाति पहाड़ों में रहने वाले सकरा जाति के वंशज हैं

झारखंड की आदिम जनजातियां Part-1

➧ बुचानन हेमिल्टन ने इस जनजाति का सम्बन्ध मलेर से बताया है 
इनका संकेन्द्रण मुख्यत संथाल परगना क्षेत्र में पाया जाता  है परन्तु यह जनजाति संथाल क्षेत्र के साहेबगंज को छोड़कर शेष क्षेत्रों में पायी जाती है 
➧ इनकी भाषा मालतो है जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है 

➧ समाज एवं संस्कृति

➧ इस जनजाति में पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय सामाजिक व्यवस्था पाई जाती है 
 इस जनजाति में गोत्र नहीं होता है
➧ इस जनजाति में अंतर विवाह की व्यवस्था पाई जाती है
इस जनजाति में वधु -मूल्य (पोन या बंदी)  के रूप में सूअर देने की प्रथा है क्योंकि सुअर इनके आर्थिक और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है 
➧ इस जनजाति में अगुवा (विवाह हेतु कन्या ढूंढने वाला व्यक्ति) को सिथ सिद्धू या सिथूदार कहा जाता है
➧ इस जनजाति में वर द्वारा सभी वैवाहिक खर्चों का भुगतान किया जाता है
➧ इनके गांव का मुख्य मांझी कहलाता है, जो ग्राम पंचायत का प्रधान भी होता है
➧ इस जनजाति ने माघ माह में माघी पूजा तथा अगहन माह में घंघरा पूजा की जाती है
➧ यह जनजाति कृषि कार्य के दौरान खेतों में बीज बोते समय बीचे आड़या नामक पूजा (ज्येष्ठ माह में) तथा फसल की कटाई के समय गांगी आड़या पूजा करती है
➧ बाजरा के फसल की कटाई के समय पुनु आड़या पूजा की जाती है 
➧ करमा, फगु और नवाखानी इस जनजाति के प्रमुख त्यौहार है    

आर्थिक व्यवस्था

➧ इनका मुख्य पेशा झूम कृषि, खाद्य संग्रहण एवं शिकार करना है 
➧ इस जनजाति में झूम खेती को कुरवा कहा जाता है  
➧ इस जनजाति में भूमि को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है 
➧ ये हैं - सेम भूमि (सर्वाधिक उपजाऊ), टिकुर भूमि (सबसे कम उपजाऊ), डेम भूमि (सेम व् टिकुर के बीच) तथा बाड़ी भूमि (सब्जी उगते हेतु प्रयुक्त)
➧ इस जनजाति में उपजाऊ भूमि को सेम कहा जाता है

धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके प्रमुख देवता सूर्य एवं धरती गोरासी गोसाईं है 
➧ धरती गोरासी गोसाईं को वसुमति गोसाई या वीरू गोसाईं भी कहा जाता है
➧ इस जनजाति में पूर्वजों की पूजा का विशेष महत्व दिया जाता है 
➧ इनके गांव का पुजारी देहरी कहलाता है

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