Jharkhand Me Vibhinn Aapdaye
➧ झारखंड के 24 जिले किसी न किसी प्रकार की आपदा से ग्रसित है।
➧ झारखंड में प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों प्रकार की आपदाएं आती है:-
(ii) बाढ़
(iii) खनन दुर्घटना
(iv) औद्योगिक दुर्घटना
(v) हाथियों का आक्रमण
(vi) तड़ित (लाइटिंग)
(vii) जलवायु परिवर्तन
(viii) जंगलों में आग लगना
(ix) रसायनिक दुर्घटना
(x) भूकंप
(xi) जैव विविधता का ह्रास
सूखे की समस्या झारखंड में मुख्य है। भारतीय मौसम विभाग, नई दिल्ली के अनुसार, यदि किसी क्षेत्र में सामान्य से 25% कम वर्षा होती है। तो सामान्य सूखा, 25 से 50% तक कम वर्षा होने पर मध्यम सुखा और 50% से कम वर्षा होने पर गंभीर सुखा कहा जाता है।
➧ 2010 में राज्य के सभी 24 जिले सूखा प्रभावित थे। इस वर्ष 47% वर्षा कम हुई थी। जिस कारण दस लाख (10,00,000) हेक्टेयर भूमि में धान की खेती नहीं हुई थी।
➧ राज्य के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में सुखा कई बार आपदा का रूप धारण कर लेती है, जिसके परिणाम स्वरूप पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा तथा लोहरदगा जिलों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
➧ वर्ष 2010 में झारखण्ड राज्य गंभीर सूखे से प्रभावित रहा है। इस दौरान राज्य के 24 में से 12 जिले गंभीर सूखे की प्रकोप में रहे हैं। इन सभी जिलों में वर्षा का अनुपात औसत वर्षा के 50%में से भी कम रहा।
➧ उपाय:-
(ii) वाटर शेड का प्रबंधन
(iii) उचित फसलों का चयन
(iv) वृक्षों की कटाई को कम करना
(v) सिंचाई तकनीक को उन्नत बनाना
(vi) वर्षा जल का संग्रहण करना
(vii) तालाब का निर्माण
(viii) मवेशियों का प्रबंधन
(ix) मृदा संरक्षण तकनीक अपनाना
(x) शिक्षा एवं प्रशिक्षण
(xi) जल ग्रहण प्रणाली को बेहतर बनाना
➧ इसके लिए संबंधित क्षेत्र के लोगों को जागरूक तथा प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
बाढ़
➧ झारखंड राज्य में बाढ़ से 11 जिले प्रभावित होते हैं, जिसमें गोड्डा, साहिबगंज, दुमका और पाकुड़ सर्वाधिक प्रभावित जिले हैं। अन्य जिलों में देवघर, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, गुमला और हजारीबाग है।
➧ ये सभी जिले 2000 से 2014 ईस्वी के बीच कई बार बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।
➧ 2016 ईस्वी में गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ के अतिरिक्त भारी मानसूनी वर्षा के कारण उत्तरी कोयल नदी घाटी क्षेत्र में गढ़वा, पलामू और लातेहार जिले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।
➧ पलामू और गढ़वा जिला में बाढ़ का सबसे अधिक प्रभाव धान की फसल पर पड़ता है।
➧ 2008 ईस्वी में साहिबगंज आकस्मिक बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित जिला था।
➧ सर्वाधिक प्रभावित जिले राज्य के उत्तरी-पूर्वी हिस्से में स्थित है, जो गंगा अपवाह प्रणाली से जुड़े हैं।
➧ गंगा नदी द्वारा इस क्षेत्र में तटीय अपरदन के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 80 पर भी खतरा बना रहता है।
➧ रांची और जमशेदपुर जैसे नगरीय क्षेत्रों में नाले के बंद होने एवं अनियोजित नगरीकरण के कारण भी आकस्मिक बाढ़ की समस्या उत्पन्न होता है।
➧ राज्य में बाढ़ का प्रमुख कारण मानसूनी वर्षा द्वारा नदी के जल स्तर में वृद्धि होना है।
➧ बाढ़ के कारण राज्य में धान की फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप राज्य की खाद्यान व्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
➧ कुछ जिलों में बाढ़ आपदा का रूप ग्रहण कर लेती है जिसके कारण मकान, सड़क, पुल-पुलिया आदि क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
जंगलों में आग
➧ गर्मी के दिनों में झारखंड में जंगलों की आग एक सामान्य बात है, परंतु वन संपदा के लिए यह सर्वाधिक खतरनाक है।
➧ जंगलों में आग लगने की समस्या का एक प्रमुख कारण महुआ तथा साल के बीच संग्रहण है जिससे मुख्य रूप से मार्च और अप्रैल के महीने में यह घटना घटती है।
➧ पर्यटन के कारण भी आग लगने की समस्या उत्पन्न होती है।
➧ यह मुख्यत: उत्तरी-पश्चिमी तथा दक्षिणी भाग की समस्या है, जिससे 9 जिले प्रभावित है।
➧ इस जिलों में गढ़वा, पलामू, चतरा, लातेहार, हजारीबाग, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा और गुमला शामिल है।
➧ झारखंड राज्य में वनों की बहुलता है तथा इसमें शुष्क पतझड़ वन सर्वाधिक पाए जाते हैं। इन वनों में ग्रीष्म ऋतु में कई कारणों से लगने वाली आग कई बार भयावह हो जाती है तथा यह आपदा का रूप ग्रहण कर लेती हैं।
➧ जंगलों में लगने वाली आग को रोकने हेतु कानूनी, प्रशासनिक तथा जागरूकता के स्तर पर कार्य किया जाना आवश्यक है।
➧ जंगलों में आग प्रबंधन के लिए पर्यटन संबंधी कानून में सख्ती, गैर-कानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने की जरूरत है।
➧ अधिक आयु एवं परिपक्व वृक्ष की पहचान कर उसे काटकर नया वृक्ष लगाना चाहिए, क्योंकि परिपक्व वृक्ष की ज्वलनशीलता अधिक होती है।
➧जंगलों के अंदर सड़क मार्ग द्वारा के द्वारा वन को विभाजित करने से एक ओर की आग दूसरी और नहीं पहुंचती है। जंगलों के अंदर फायर टावर वॉच स्टेशन स्थापित करने की जरूरत है।
खनन दुर्घटना
➧ झारखंड में भारत का लगभग 38% खनिज संचित है। खनिजों खनन के समय में मानव कृत एवं प्राकृतिक दोनों प्रकार के आपदाएं उत्पन्न होती हैं।
➧ भारत के सबसे प्रसिद्ध कोयला खान झरिया कोल्डफील्ड में 1880 के दशक से आग लगी हुई है, जिससे आस-पास का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। रामगढ़ खदान भी आग की समस्या से जूझ रहा है।
➧ इसके अलावा खनन क्षेत्रों में मिट्टी के धँसाव हो जाने, जल जमा हो जाने के कारण भी जान-माल की क्षति संभावना बनी रहती है।
➧ खनन दुर्घटना से निपटने हेतु इन क्षेत्रों में कार्य करने वाले मजदूरों को प्रशिक्षित किये जाने के साथ-साथ खनन के धँसाव के समय त्वरित राहत प्रणाली को विकसित किए जाने की आवश्यकता है।
➧ साथ ही मजदूरों को खनन के दौरान उत्पन्न प्रदूषकों के प्रति जागरूक करते हुए मास्क के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।
तड़ित (लाइटिंग)
➧ ताड़ित झारखंड की एक प्रमुख आपदा है, जिससे प्रतिवर्ष अनेक व्यक्तियों एवं पशुओं की मौत होती है।
➧ वर्षा के दिनों में चमकती हुई बिजली का जमीन पर गिरना तड़ित या लाइटिंग कहलाता है।
➧ राज्य के 9 जिले इस आपदा से ज्यादा ग्रसित हैं, जिसमें पलामू, चतरा, लातेहार, कोडरमा, रांची, गिरिडीह मुख्य है।
➧ श्री कृष्णा लोक प्रशासन संस्थान (स्काईपा) द्वारा लाइटिंग से संबंधित आपदा से निपटने के लिए विशेष ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किया गया है।
➧ लाइटिंग से बचने के लिए मौसम खराब होने एवं भारी वर्षा के समय पेड़ के नीचे तथा बिजली के तार एवं खम्भे से दूर हट जाना चाहिए।
➧ इस समस्या से होनेवाली जानमाल की हानि को कम करने हेतु राज्य के लोगों को बचाव से संबंधित प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है।
हाथियों का आक्रमण
➧ हाथी झारखण्ड का राज्यकीय पशु है तथा इसकी संख्या काफी अधिक है है।
➧ राज्य में हाथी दुमका, दलमा, सारंडा, पलामू आदि के जंगलों में पाए जाते हैं। हाथियों का आक्रमण दिनों- दिन बढ़ता जा रहा है, जिसने एक गंभीर आपदा का रूप ग्रहण कर लिया है।
➧ हाथियों के आक्रमण का प्रमुख कारण ग्रामीणों द्वारा सुगंधित महुआ फूल का संग्रहण है, जिससे हाथी आकर्षित होकर आवासीय क्षेत्र की ओर चले आते हैं। साथ ही बांस के नवउदित कोपले भी हाथियों का मुख्य आहार है। अतः बांस रोपण सघनता वाले क्षेत्रों में भी इनका उत्पात आम है।
➧ साथ ही जनसंख्या वृद्धि एवं मानवीय गतिविधियों के कारण वनों के अत्यधिक कटाई होने से उनका प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है। नए घर, गांव एवं शहरों का फैलाव हुआ है।
➧ रेलवे लाइन, बिजली लाइन सड़क, माइन्स बनाने के कारण इनके पर्यावास खंडित हुए हैं, जिसके कारण भोजन एवं सुरक्षित आवास की कमी होने से भोजन की खोज में हाथी समूहों में जंगल से बाहर निकलते हैं और मानव बस्तियों पर आक्रमण करते हैं।
➧ यह समस्या मुख्य रूप से रांची, लातेहार, खूंटी, सिमडेगा, चतरा, हजारीबाग, सिंहभूम आदि जिलों की है। हाथियों को भगाने के लिए आग जलाने, मिर्च का गंद फैलाने या ढोल-नगाड़े पीटने का कार्य ग्रामीणों द्वारा किया जाता है।
➧ हाथियों के आक्रमण से बचाव हेतु सबसे पहले लोगों को जागरूक किए जाने की आवश्यकता है ताकि लोग हाथियों के प्राकृतिक आवासों में हस्तक्षेप करना बंद करें।
भूकंप
➧ भूकंप की दृष्टि से झारखंड राज्य को कम जोखिम वाले क्षेत्र में रखा जा सकता है।
➧ भूकंप संवेदनशीलता की दृष्टि से राज्य को जोन II, III और IV में रखा जा सकता है।
➧ जोन II के अंतर्गत राज्य के 7 जिले (रांची, लोहरदगा, खूंटी, रामगढ़, गुमला, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम) आते हैं।
➧ तथा जोन III के अंतर्गत राज्य के 15 जिले (पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़, और साहिबगंज) आते हैं।
➧ तथा जोन IV में गोड्डा तथा साहिबगंज का उत्तरी भाग अवस्थित है, जो सर्वाधिक भूकंप प्रभावित क्षेत्र हैं।
➧ जोन III के अंतर्गत 15 जिला तथा जोन II के अंतर्गत 7 जिला स्थित है। जोन II सबसे कम भूकंप प्रभावित क्षेत्र है।
आपदा प्रभावित जिलों की सं0 जिलों का नाम
1. सूखा - सभी 24 जिले सभी जिले प्रभावित।
2. बाढ़- 11 साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, पाकुड़, देवघर, धनबाद, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, गुमला, हजारीबाग, सरायकेला-खरसावां।
3. लाइटिंग - 9 पलामू, चतरा, लातेहार, कोडरमा, गिरिडीह, रांची, हजारीबाग, लोहरदगा दुमका।
4. जंगल में आग की घटनाएं - 9 गढ़वा, पलामू, लातेहार, चतरा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा, गुमला।
5. खनन- 9 लातेहार, रामगढ़, धनबाद, लोहरदगा, गिरिडीह, पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम, कोडरमा।
6. भूकंप जोन IV - 2 गोड्डा, साहिबगंज (उत्तरी विभाग)।
7. जोन III - 15 गोड्डा, साहिबगंज, गढ़वा, पलामू, चतरा, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, देवघर, दुमका, पाकुड़, जामताड़ा।
8. जोन II - 07 लोहरदगा, रांची, रामगढ़, खूंटी, गुमला, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम।
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