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Saturday, October 31, 2020

झारखण्ड के प्रमुख लोक नाट्य(Jharkhand Ke Pramukh Lok Natya)

झारखण्ड के प्रमुख लोक नाट्य

(Jharkhand Pramukh Lok Natya)

नाट्य

नाट्य झारखंड के लोकजीवन का अभिन्न अंग है 

यह नाट्य मांगलिक अवसरों, पर्व-त्योहारों के अवसरों पर कभी-कभी मनोरंजन के लिए आयोजित किए जाते हैं 
यह नाट्य लोक जीवन में रंग-रास का संचार करते हैं 

झारखंड की संस्कृति तथा लोकजीवन में लोकनाट्यों का एक अपना ही अलग महत्व  है 

यहां के लोकनाट्य  में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत,का अलग ही विशेष नज़ारा होते हैं 

यदि नहीं होते हैं तो वह है- सुसज्जित रंगमंच पात्रों का मेकअप एवं वेश-भूषा 


झारखंड राज्य में प्रचलित लोक नाट्य है 


जट-जटिन

जट-जटिन :- प्रत्येक वर्ष से लेकर कार्तिक माह तक पूर्णिमा अथवा उसके एक-दो दिन पूर्व अथवा पश्चात मात्र अविवाहिताओं द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट -जटिन के विवाहित जीवन को प्रदर्शित किया जाता है 

भकुली बंका

भकुली बंका :-  प्रत्येक वर्ष सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किए जाने वाले इस लोकनाट्य में जट- जटिन द्वारा नृत्य किया जाता है 

अब कुछ लोग स्वतंत्र रूप से भी इस नृत्य को करते हैं

इस लोकनाट्य में भकुली (पत्नी) एवं बंका (पति) के विवाहित जीवन को दर्शाया जाता है

सामा-चेकवा

सामा-चेकवा  :- प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के पूरे शुक्ल पक्ष में चलने वाले इस लोकनाट्य में पात्र तो मिट्टी द्वारा निर्मित होते हैं 

लेकिन उनकी तरफ से अभिनय बालिकाएं करती है 

इस लोक नाट्य में चार प्रमुख पात्र हैं :- सामा (नायिका ), चेकवा(नायक), चूड़का(खलनायक) एवं साम्ब (सामा का भाई) 

इस लोक नाट्य के अंतर्गत सामूहिक गीतों के माध्यम से प्रश्नोत्तर शैली में विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाता है 

यह लोक नाट्य भाई-बहन  के पवित्र प्रेम से संबंधित होता है  

किर तनिया

किर तनिया :- इस भक्ति पूर्ण लोकनाट्य में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति-गीतों के साथ भाव एवं श्रद्धा पूर्वक किया जाते हैं 

डोमकच

डोमकच :- इस अत्यंत घरेलू एवं निजी लोकनाट्य को मुख्यतः घर-आंगन परिसर में विशेष अवसरों तथा बारात जाने के बाद देर रात्रि में महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है

इस लोकनाट्य का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता है
 
क्योंकि इसके अंतर्गत हास् -परिहास् , अश्लील हाव-भाव एवं संवाद को प्रदर्शित किया जाता है

पुरुषों को इस लोकनाट्य को देखने की मनाही होती है
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Tuesday, October 27, 2020

भूमिज विद्रोह 1832-33 (Bhumij Vidroh-1832-33)

भूमिज विद्रोह 1832-33 (Bhumij Vidroh-1833-33)


➤भूमिज विद्रोह का आरंभ 1832 ईसवी में गंगा नारायण के नेतृत्व में हुआ।  

इसका प्रभाव बीरभूम और सिंहभूम  के क्षेत्र में रहा। 

यह विद्रोह बीरभूम राजा, पुलिस अधिकारियों, मुंसिफ नामक दरोगा तथा अन्य दिकुओ के खिलाफ 
भूमिजो की शिकायतों की देन था। 


साथ ही, इसके पीछे अंग्रेजों की दमनकारी लगान व्यवस्था से उत्पन्न असंतोष भी काम कर रहा था।  

भूमिज विद्रोह की विधिवत शुरुआत 26 अप्रैल 1832 ईस्वी को वीरभूम परगाना के जमींदार के सौतेले 
भाई और दीवान माधव सिंह की हत्या के साथ हुई।  

यह हत्या गंगा नारायण सिंह के द्वारा की गई। 

गंगा नारायण के जमींदार का चचेरा भाई था। 

दीवान के रूप में माधव सिंह काफी बदनाम हो चुका था। 

उसने कई तरह के करों को लगाकर जनता को तबाह कर दिया था।  

माधव का सिंह के खिलाफ गांगा नारायण ने भूमिजो को एक अभूतपूर्व नेतृत्व प्रदान किया।  

माधव सिंह का अंत करने के पश्चात गंगा नारायण की टक्कर कंपनी के फौज के साथ हुई। 
कंपनी की फौज का नेतृत्व ब्रैंडन एवं लेटिनेंट  तिमर के हाथों में था। 

कोल  एवं हो जनजातियों ने इस विद्रोह में गंगा नारायण का खुलकर साथ दिया।  

7 फरवरी 1833  को खरसावां के ठाकुर चेतन सिंह के खिलाफ लड़ते हुए गंगा नारायण मारा गया।  

खरसावां के ठाकुर ने उसका सर काटकर अंग्रेजी अधिकारी कैप्टन विलकिंग्सन के पास भेज दिया। 

गंगा नारायण के मारे जाने से कैप्टन विलकिंग्सन ने राहत की सांस ली। 


यद्यपि इस विद्रोह में गंगा नारायण के अन्तः पराय हुई ,किन्तु इसने यह स्पष्ट कर दिया था कि जंगल में परिवर्तन की आवश्यकता है। 

कोल की ही भांति भूमिज विद्रोह के बाद के बाद भी कई प्रशासनिक परिवर्तन लाने हेतु अंग्रेज विवश हुए। 

1833 ईस्वी की रेगुलेशन XIII  के तहत शासन प्रणाली में व्यापक परिवर्तन किया गया है।  

राजस्व नीति में परिवर्तन हुआ एवं छोटानागपुर को दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी का एक भाग मान लिया गया। 
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Monday, October 26, 2020

झारखण्ड का धरातलीय स्वरुप ( Jharkhand ka dharataliya swaroop)

Jharkhand Ka Dharataliya Swaroop

झारखण्ड का धरातलीय स्वरुप

झारखण्ड का धरातलीय स्वरुप

किसी क्षेत्र के धरातलीय स्वरूप को भौतिक स्वरूप, भौतिक विभाजन/ विभाग, भौगोलिक विभाजन, प्राकृतिक प्रदेश आदि भी कहा जाता है

जहां तक झारखंड के धरातलीय स्वरूप की बात है, तो इसमें छोटानागपुर के पठार का महत्वपूर्ण योगदान है 

यह पठार प्रायद्वीपीय पठारी भाग का उत्तर-पूर्वी खंड है

 इस पठार की औसत ऊंचाई 760 मीटर है

उल्लेखनीय है कि पारसनाथ की चोटी की ऊंचाई 1365 मीटर है

झारखंड के धरातलीय स्वरूप को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा जाता है

1- पाट  क्षेत्र / पश्चिमी पठार 
2 -रांची पठार
3 - हजारीबाग पठार 
    a) -उपरी हजारीबाग पठार 
    b) -निचली हजारीबाग पठार या बाहर पठार 
4 - निचली नदी घाटी एवं मैदानी क्षेत्र

1-पाट क्षेत्र

1 - पाट क्षेत्र या पश्चिमी पठार :- यह  झारखंड का सबसे ऊंचा भाग है (पारसनाथ पहाड़ को छोड़कर)

पाट  का शाब्दिक अर्थ है :- समतल जमीन 

क्योंकि इस भूभाग में अनेक छोटे-छोटे पठार हैं, जिसकी ऊपरी सतह समतल है इसलिए इसे स्थानीय भाषा में पाट क्षेत्र कहते हैं

इसका विस्तार रांची जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग से लेकर पलामू के दक्षिणी किनारा तक है
इससे पश्चिमी पठार भी कहते हैं 

यह भूभाग त्रिभुजाकार हैं, जिसका आधार उत्तर में तथा शीर्ष दक्षिण में है 

इस क्षेत्र का उत्तरी भाग ठाढ़ एवं निचला भाग दोन कहलाता है

इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 900 मीटर है

इस क्षेत्र में स्थित ऊंचे पाटो में नेतरहाट पाट (1180 मीटर), गणेशपुर पाट  (1171 मीटर) एवं जमीरा पाट (1142 मीटर) मुख्य है 

इस क्षेत्र में मैदान स्थित पहाड़ियों में सानू एवं सारउ पहाड़ी मुख्य हैं

इस क्षेत्र में अनेक नदियों का उद्गम स्थल है, जैसे:- उत्तरी कोयल, शंख, फुलझर आदि 

इस क्षेत्र की अधिकांश नदियां चारों तरफ की ऊंचे पठारों से निकलकर शंख नदी में मिल जाती हैं 

उत्तरी कोयल, शंख आदि नदियों से काट छांट अधिक हुआ है

➤बारवे का मैदान इसी पाट क्षेत्र में स्थित है जिसका आकार तश्तरीनुमा है

2-रांची पठार 

रांची पठार :-यह झारखंड का सबसे बड़ा पठारी भाग है 

पाट क्षेत्र को छोड़कर रांची के आसपास के निचले इलाकों को इसमें शामिल किया जाता है

इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 600 मीटर है

रांची पठार लगभग चौरस है 

इस चोरस पठारी भाग से कई नदियां निकलती है, जो पठार के किनारों पर खड़ी ढाल के कारण झरनों / जलप्रपातों  का निर्माण करती है 

इसमें बूढ़ाघाघ /लोधाघाघ , हुंडरू, सदनीघाघ, घाघरी , दशम  तथा जॉन्हा / गौतम धारा आदि प्रमुख हैं

3-हजारीबाग पठार

हजारीबाग पठार :- हजारीबाग पठार को दो भागों में विभाजित किया जाता है 



(a) ऊपरी हजारीबाग पठार :- रांची पठार के लगभग समांतर किंतु छोटे क्षेत्र में हजारीबाग जिले में फैले पठार को ऊपरी हजारीबाग पठार कहते हैं 

यह दोनों पठार कभी मिले हुए थे, लेकिन अब दामोदर नदी के कटाव के कारण अलग हो गए हैं

ऊपरी हजारीबाग पठार की समुद्र तल से ऊंचाई 600 मीटर है

(b) निचला हजारीबाग पठार/ बाह्य पठार :-  हजारीबाग पठार के उत्तरी भाग को निचला हजारीबाग पठार कहते हैं

➤यह झारखंड का निम्नतम ऊंचाई वाला पठारी भाग है

छोटा नागपुर पठार का बाहरी हिस्सा होने के कारण इसे बाह्य पठार भी कहते हैं

➤इस क्षेत्र की समुद्र तल से ऊंचाई 450 मीटर है

किसी क्षेत्र में गिरिडीह के पठार पर बराकर नदी की घाटी के निकट पारसनाथ की पहाड़ी स्थित है
जिसकी ऊंचाई 1365 मीटर है

इसकी सबसे ऊंची चोटी को सम्मेद शिखर कहा जाता है 

इसे अत्यंत कठोर पाईरोक्सीन ग्रेनाईट से निर्मित माना जाता है 

4 -निचली नदी घाटी एवं मैदानी क्षेत्र


4 -निचली नदी घाटी एवं मैदानी क्षेत्र :- झारखंड का यह भाग असमान नदी घाटियों एवं मैदानी क्षेत्र से मिलकर बना है 

इस भाग की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 150-300 मीटर है 
 
इस क्षेत्र में राजमहल की पहाड़ी स्थित है, जो कैमूर के पहाड़ी क्षेत्र तक विस्तृत है 

राजमहल की पहाड़ी का विस्तार दुमका, देवघर, गोड्डा ,पाकुड़ का पश्चिमी भाग एवं साहिबगंज का मध्यवर्ती व दक्षिणी भाग में है  

राजमहल की पहाड़ी 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है  

इस क्षेत्र में कहीं-कहीं छोटी पहाड़ियां मिलती है 

नुकीली पहाड़ियों को टोंगरी  एवं गुबंदनुमा पहाड़ियों को डोंगरी कहते हैं 

इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में बड़ी-बड़ी नदियों की घाटियां हैं  
जैसे :- दामोदर, स्वर्णरेखा, उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, बराकर,शंख, अजय, मोर, ब्राह्मणी, गुमानी एवं बासलोय इत्यादि 

इस क्षेत्र में स्थित कुछ नदियां ऊंचे पठारों से निकलकर अपना मार्ग तय करती हुई गंगा में अथवा स्वतंत्र रूप से सागर में जाकर मिलती है 
 
इस क्षेत्र में स्थित मैदानी क्षेत्र में चाईबासा का मैदान सबसे प्रमुख है
  
चाईबासा का मैदान पश्चिमी सिंहभूम के पूर्वी-मध्यवर्ती भाग में स्थित है
  
यह उत्तर में दलमा की श्रेणी, पूर्वी में दलभूम की श्रेणी, दक्षिण में कोल्हान की पहाड़ी, पश्चिम में सारंडा  एवं पश्चिमी-उत्तर में पोरहाट की पहाड़ी से घिरा है 
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Sunday, October 25, 2020

झारखंड ऊर्जा नीति 2011 (Jharkhand Urja Niti 2011)

झारखंड ऊर्जा नीति 2011(Jharkhand Urja Niti 2011)

➤राज्य के आर्थिक एवं संपूर्ण विकास के लिए ऊर्जा एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है

कृषि, औद्योगिक और व्यवसायिक क्षेत्रों में विकास के लिए उर्जा को सार्वभौमिक रूप से एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में स्वीकार किया गया है

बिना ऊर्जा के कोई भी बड़ा आर्थिक विकास संभव नहीं है

वर्तमान समय में ऊर्जा की अपर्याप्त उपलब्धता राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है

ऊर्जा की मांग प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है

झारखंड में प्रति व्यक्ति ऊर्जा की औसत खपत 552 यूनिट है, जिसकी आपूर्ति डी0 वी0 सी0 ,जुस्को एंड सेल से होती है

राष्ट्रीय औसत 720 यूनिट प्रति व्यक्ति से कम है

झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड  और तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड की स्थापित क्षमता 1390 MW जिसमे की 1260 MW ताप और 130 MW जल विद्युत् है 

झारखंड औद्यौगिक नीति का मुख्य उद्देश्य राज्य के विकास को  गति प्रदान करना है, ताकि झारखंड अन्य राज्यों के समक्ष खड़ा हो सके

➤यह झारखंड राज्य का सौभाग्य है कि यहां पर ताप आधारित ऊर्जा उत्पादन की संभावना काफी अधिक है 

प्रचुर मात्रा में कोल उपलब्ध होने के कारण झारखंड राज्य पावर हब बन सकता है

जहां से दूसरे राज्य को भी विद्युत का निर्यात किया जा सकता है

झारखंड ऊर्जा नीति का मुख्य उद्देश्य

झारखंड ऊर्जा नीति का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करना और विश्वसनीय गुणवत्तायुक्त, फिकायती शिकायती दर पर ऊर्जा की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है

झारखंड ऊर्जा नीति 2011 के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य है 

सभी घरों में 2014 तक विद्युत की आपूर्ति को सुनिश्चित करना 

ऊर्जा की कमी को पूरा करना 

उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना

विश्वसनीय एवं गुणवत्तायुक्त ऊर्जा की आपूर्ति उचित दर पर करना 

प्रति व्यक्ति विद्युत की उपलब्धता को 2017 तक 1000  यूनिट से अधिक करना 

बिजली के ट्रांसमिशन और वितरण क्षमता को दुरुस्त करना, ताकि विद्युत की आपूर्ति, क्षमता, गुणवत्ता को बढ़ाया और घाटे को कम किया जा सके 

पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन क्षमता को बढ़ाना  

वर्तमान विद्युत उत्पादक संयत्रों का नवीनीकरण करके उनके  उत्पादक क्षमता को बढ़ाना 

राज्य के सभी गांव एवं घरों का शीघ्र विद्युतीकरण कर उर्जा की आपूर्ति को सुनिश्चित करना 

झारखंड स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन को और अधिक मजबूत करना और उसके प्रशासनिक व्यवस्था को पारदर्शी बनाना  

➤विद्युत् ऊर्जा का  सक्षम तरीके से उपयोग एवं उसके संरक्षण को सुनिश्चित करना  

ऐसी संभावना है कि झारखंड ऊर्जा नीति 2011 राज्य के विद्युत समस्या को दूर करने में सक्षम साबित होगा 

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Saturday, October 24, 2020

झारखंड में वन प्रबंधन(Jharkhand Me Van Prabandhan)

Jharkhand Me Van Prabandhan

झारखंड में वन प्रबंधन

झारखंड में वन प्रबंधन का सबसे पहले प्रयास 1882/85 में जे0.एफ.हेबिट  द्वारा किया गया था 

इसी आलोक में तत्कालीन बंगाल सरकार ने 1909 में वनों की सुरक्षा के लिए एक समिति गठित की थी 

आजादी के पहले यहां पर 95% वन निजी थे जिनका सरकारी करण हुआ 

राज्य में 33% या उससे ज्यादा वन क्षेत्र बनाने के लिए वन प्रबंधन की आवश्यकता है

कार्य

राज्य में वनों के बेहतर प्रबंधन के उद्देश्य से 31 प्रदेशिक प्रमंडलों, 10 सामाजिक वानिकी प्रमंडलों एवं चार विश्व खाद्य कार्यक्रम प्रमंडलों का सृजन किया गया है, जिसके माध्यम से वनों एवं वन्य प्राणियों के प्रबंधन, संवर्धन एवं विकास का काम किया जाता है

दायित्व

झारखंड राज्य में वनों के प्रबंधन का दायित्व प्रधान सचिव/ सचिव, वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अतिरिक्त भारतीय वन सेवा, राज्य वन सेवा संवर्ग पदाधिकारियों, वनों के क्षेत्र पदाधिकारियों, वन परिसर पदाधिकारियों और वन उप परिसर पदाधिकारियों का है

वन विभाग में वनों के प्रबंधन, संवर्धन, संरक्षण और सुरक्षा तथा विकास योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु प्रधान मुख्य वन संरक्षक का पद स्वीकृत है

वनों के प्रबंधन एवं संरक्षण में व्यापक जनसभा सहभागिता सुनिश्चित करने के लक्ष्य से राज्य सरकार द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन संकल्प 2001 में यथा तथा संशोधित प्रतिपादित किया गया है, जिसके आलोक में 10903 संयुक्त वन प्रबंधन समितियां गठित की गई है एवं वनों के विकास एवं संरक्षण हेतु योजनाओं के क्रियान्वयन करने के लिए राज्य के सभी प्रदेशिक वन प्रमंडल में 35 वन विकास अभिकरण का गठन एवं निबंधन कार्य पूरा किया गया है

वन प्रबंधन के लिए कार्य किये जा रहे हैं 

राज्य में 9,00,000 (लाख) हेक्टेयर से ज्यादा भूमि बंजर है 

इस भूमि पर वन रोपण का कार्य किया जा रहें है

वन  प्रबंधन प्रशिक्षण के लिए रांची में बिरसा कृषिविश्वविद्यालय से सम्बद्ध वानिकी कॉलेज में एक वानिकी संकाय स्थापित की गई है

दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत झारखंड के 3424 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन रोपण का लक्ष्य रखा गया है

राज्य में कई  स्थाई  पौधशालाओं की स्थापना की गई है

शहरी वानिकी के माध्यम से राज्य के नगरों में वृक्षारोपण किया जा रहा है

सामाजिक वानिकी से ग्रामीण जनसंख्या की वनों पर निर्भरता कम कर उसकी आवश्यकता की पूर्ति कराने का काम भी किया जा रहा है

वन समितियां गठित कर वन क्षेत्रों के प्रबंधन एवं संरक्षण कार्य किए जा रहे हैं 

निजी वन भूमि पर वृक्षारोपण के लिए मुख्यमंत्री जनवन योजना की शुरुआत की गई है 

बॉस  वृक्ष रोपण पर विशेष बल दिया जा रहा है 

राज्य में 116 स्थाई नर्सरी को और अधिक उन्नत बनाया जा रहा है 

जंगली जानवरों के आक्रमण से किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर ढाई लाख रुपया दिया जाएगा 

ग्रामीणों के आय के साधन बढ़ाने हेतु सेल्फ हेल्प ग्रुप एवं ग्राम वन प्रबंधन समितियों  के माध्यम से पलाश एवं कुसुम के पौधों पर लाह  उत्पादन हेतु निशुल्क प्रशिक्षण, प्रयुक्त होने वाले मशीन एवं टूल्स तथा लाह कीट सुलभ कराया जा रहा है

ई-गवर्नेंस के तहत विभागीय वेबसाइट तैयार की गई है ताकि सूचनाएं तुरंत उपलब्ध हो सके 

वेबसाइट का नाम फॉरेस्ट डॉट झारखंड डॉट गवर्नमेंट डॉट इन है 

जनसाधारण में प्रकृति के प्रति लगाव उत्पन्न करने, विशेषकर उन्हें वन्य प्राणियों एवं संरक्षित क्षेत्रों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए संरक्षित क्षेत्रों तथा इनके बाहर उपयुक्त वन क्षेत्र में एनवायरमेंटल फ्रेंडली सस्टेनेबल तरीके से इको-टूरिज्म को प्रोत्साहित करने के लिए इको टूरिज्म नीति, 2015, अक्टूबर, 2015 में अधिसूचित की गई है

अधिसूचित वन भूमि, गैर-वन भूमि पर मुख्य रूप से स्थल विशिष्ट वनरोपण  योजनाएं,भूसंरक्षण योजना, जल्दी बढ़नेवाले पौधे की योजना, तसर वन रोपण, शीशम वनरोपण के लिए वित्तीय वर्ष 15-16 में 6900 लाख का बजट उपबंध स्वीकृत है

पथ -तट रोपण सह वानिकी योजना के अंतर्गत आम नागरिकों को स्वच्छ ,स्वास्थ्य कारक एवं आराम देह वातावरण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सड़कों के किनारे, सरकारी परिसरों तथा स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी कार्यालयों, पहाड़ियों इत्यादि पर उपयुक्त छायादार/ फलदार/ फूलदार /इमारती कास्ट/अन्य  सौंदर्य कारक प्रजातियों का वृक्ष रोपण किया जा रहा है

स्थाई पौधशाला एवं सीड् आर्चड्स  योजनान्तर्गत मुख्य रूप से बॉस गोबियन वृक्षरोपण हेतु औसतन 5 से 8 फीट लंबे पौधे तैयार किए जा रहे हैं

वन प्रबंधन में संयुक्त वन प्रबंधन की नीति एक सफल और उपयोगी नीति है ,जो वनों के प्रति आम नागरिकों में उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करती हैं 

झारखंड में वन संवर्धन और प्रबंधन की विधिवत  शिक्षा के लिए रांची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध वानिकी कॉलेजों में वानिकी संकाय स्थापित है

झारखंड में प्राकृतिक संसाधनों को बेहतर प्रबंधन के लिए वन अभिलेखों एवं वन सीमाओं का डिजिटलाइजेशन एवं जियोरेफरेंसिंग करने की योजना है

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Friday, October 23, 2020

झारखंड में वन नीति(Jharkhand Me Van Niti)

झारखंड में वन नीति

(Jharkhand Me Van Niti)


स्वतंत्र भारत के प्रथम वन नीति 1952 में बनी थी

1952 से 1988 के बीच वनों का इतना विनाश हुआ कि वनों और उनके उपयोग पर एक नई नीति बनाना आवश्यक हो गया

पहले की वन नीतियों का केंद्र केवल राज्य का सृजन था

1980 के दशक में स्पष्ट हो गया कि वनों का संरक्षण उनके अन्य कार्यों के लिए भी आवश्यक है, जैसे मृदा और जल व्यवस्थाओं के संरक्षण के लिए, जो पारितंत्र को सुरक्षित रखने में सहायक होते हैं

इनमें स्थानीय निवासियों के लिए वनों से प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं के उपयोग की व्यवस्था भी होनी चाहिए

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 1988 ईस्वी में राष्ट्रीय वन नीति की घोषणा की गई

भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुसार किसी प्रदेश के कुल क्षेत्रफल के 33 पॉइंट 33 प्रतिशत भाग पर वन का विस्तार होना चाहिए

झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 29 पॉइंट 61 प्रतिशत भाग पर वन है

राज्य में वन क्षेत्र को 33% से अधिक करने के लिए झारखंड सरकार ने वन नीति बनाई है


1) प्रत्येक गांव में एक वन समिति होगी, जिसमें गांव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य होगा 

2) राज्य में 200 वन समितियों का गठन किया गया है

3) ग्रामीणों की आवश्यकता अनुसार वृक्षारोपण किया जाएगा

4) वन उत्पादों को सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीद की जाएगी

5)  वनों की सुरक्षा का भार ग्रामीण और वन विभाग दोनों के ऊपर होगा
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Thursday, October 22, 2020

जनजातीय सुरक्षा एवं विकास संबंधित संवैधानिक प्रावधान (Janjatiye Suraksha Aur Vikas Sambandhit Sanvaidhanik Pravadhan)

जनजातीय सुरक्षा और विकास संबंधित संवैधानिक प्रावधान

(Constitutional Provisions Related To Tribal Security And Development)






जनजातीय सुरक्षा संबंधी प्रावधान 

अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा से संबंधित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 16(4), 19(5), 23,29, 46, 164(1) ,330, 332, 334, 335, 338, 339(1), 5वी अनुसूची में दिए गए हैं  

अनुच्छेद 15(4) :- सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षणिक हितों का विकास

अनुच्छेद 16(4) :- पदों वह सेवाओं में आरक्षण

अनुच्छेद 19(5) :-संपत्ति में जनजातियों के हितों की सुरक्षा

अनुच्छेद 23 :- मानव के दुर्व्यवहार और बाल श्रम का प्रतिषेध 

अनुच्छेद 29 :- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण 

अनुच्छेद 46 :- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य कमजोर वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि

अनुच्छेद 164(1) :- कुछ राज्यों में (जिसमें झारखंड भी शामिल है) जनजातियों के कल्याण के लिए एक मंत्री भी नियुक्त 

अनुच्छेद 330 :- लोकसभा में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों को सुरक्षित रखा गया है

अनुच्छेद 332 :- राज्य की विधान सभाओ  में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का रिज़र्व 

अनुच्छेद 334 :- स्थानों के आरक्षण एवं विशेष प्रतिनिधित्व का (60) वर्ष के पश्चात न रहना 

अनुच्छेद 335 :- सेवाओं एवं पदों के लिए अनुसूचित जातियों  एवं अनुसूचित जनजातियों के दावे 

अनुच्छेद 338 :- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग

अनुच्छेद 339(1) :- राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन एवं अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के संबंध में रिपोर्ट देने के लिए राष्ट्रपति द्वारा आयोग की नियुक्ति

पांचवी अनुसूची :- अनुसूचित क्षेत्रों में एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के बारे में उपबंध

जनजातीय विकास कल्याण संबंधी प्रावधान 

अनुसूचित जनजातियों के विकास (कल्याण) से संबंधित प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 275 एक एवं 340 दो में दिए गए हैं 

अनुच्छेद 275(1) :-  कुछ राज्यों को संघ से अनुदान 

अनुच्छेद 339(2) :-  दो  केंद्रीय कार्यपालिका द्वारा राज्यों को अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए उपयुक्त कार्यक्रमों को लागू करने का निर्देश



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Tuesday, October 20, 2020

झारखंड में नगर प्रशासन (Municipal administration in Jharkhand)

झारखंड में नगर प्रशासन

(Municipal administration in Jharkhand)


नगर प्रशासन

झारखंड राज्य के शासन-प्रशासन में नगरीय प्रशासन की भूमिका शहरी क्षेत्रों का चयन सुनियोजित विकास स्थानीय संसाधनों  का अधिकतम लाभ हेतु उपयोग, स्वास्थ्य व्यवस्था, लोक सेवाओं का निरूपण आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराने की होती है


नगर निगम

नगर निगम 10 लाख से अधिक लेकिन 20 लाख से कम जनसंख्या वाले शहरों में नगर निगम का गठन होता है

नगर निगम झारखंड में रांची, धनबाद, देवघर, हजारीबाग, चास एवं रामगढ़ में नगर निगम स्थापित है

नगर परिषद

नगर परिषद का गठन सन 1922 में ही हो गया था जो कई संशोधनों के बाद वर्तमान रूप में आया है

नगर परिषद क्षेत्र की आबादी 5,00,000 लाख से 10,00,000 लाख के बीच होती है

 इसके 4 अंग होते हैं 

1 -परिषद 
2 -समिति
3 -अध्यक्ष /उपाध्यक्ष 
4 -कर्मचारी

नगर परिषद के सदस्यों की संख्या राज्य सरकार निर्धारित करती है

2016 ईस्वी में झारखंड में नगर परिषद की कुल संख्या 18 है 

इसमें 80% सदस्य निर्वाचित होते हैं

 शेष को मनोनीत किया जाता है

वाडो में विभाजित नगर परिषद के प्रत्येक वार्ड का एक पार्षद (कौंसलर) होता है

नगर परिषद के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अवैतनिक होते हैं 

प्रमुख कार्यपालक अधिकारी व उसके सहायक राजस्व, स्वास्थ्य, जल अभियंता, लेखपाल, कनिष्ठ अभियंता, कर दरोगा और अन्य कर्मचारी होते हैं

नगर परिषद के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

पेयजल की आपूर्ति ,हैंडपंपों की स्थापना और रख रखाव

 जन्म और मृत्यु का पंजीकरण व प्रमाण पत्र निर्गत करना

प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना और शिक्षा-व्यवस्था 

नगर के सभी मकानों के नंबरों का निर्धारण करना

सार्वजनिक सड़कों एवं गलियों पर प्रकाश-व्यवस्था करना 

नगर की नालियों का निर्माण, रख रखाव और सफाई करना 

सार्वजनिक स्थलों एवं पार्क आदि की साफ सफाई करना 

मच्छर,कीड़ों आदि के प्रकोप की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाना 

स्वस्थ संबंधी कार्य, अस्पतालों का रख-रखाव और सफाई आदि करना 

पेयजल की स्वच्छता बनाए रखने के लिए कुआँ और हैंडपंपों का रखरखाव

 इसके अतिरिक्त नगरीय प्रशासन में क्षेत्रीय विकास पदाधिकारी, उन्नयन न्यास और नगर पंचायत भी संबंधित क्षेत्र के  सवर्गिन  विकास, उसकी नागरिक सुरक्षा, सुविधाओं और शक्तियों और नागरिक अधिकारों के तहत कार्य करते हैं

झारखंड राज्य में क्षेत्रीय विकास परिषद अभी केवल रांची में ही कार्यरत हैं 

इसके कार्यों में भी सड़क,बिजली ,पानी आदि की समुचित व्यवस्था करना है

उन्नयन न्यास भी इन्हीं कार्यों को करते हैं 

नगर पंचायत 5000 से 10000 की आबादी वाले क्षेत्र में गठित होते हैं

यह व्यवस्था उन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित की जाती है

जो शहरीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने लगते हैं 

ऐसे समय में नगर पंचायत योजनाबद्ध विकास के साथ बिजली, पानी, सड़क और स्वच्छता के कार्य संपादित करती है

झारखंड में 15 नगर पंचायत है

छावनी बोर्ड

 यह उन शहरों में स्थापित किया जाता है जहां सैन्य छावनी होती है

 यह भारत के प्रतिरक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करते हैं 

इनकी कार्यप्रणाली नगरपालिकाओं के समान ही होती हैं

राज्य सरकार का इन छावनी बोर्ड पर कोई नियंत्रण नहीं होता है 

झारखंड राज्य में एकमात्र छावनी बोर्ड रामगढ़ में स्थापित है 

इसके अतिरिक्त दो अधिसूचित क्षेत्र समिति और एक नगर पालिका जुगसलाई  है
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Thursday, October 15, 2020

Padma Awards

Padma Awards:



  • These awards were introduced in 1954.
  • The award is being given to deserving individuals for their exceptional services in their chosen fields like Sports, Art, Social work, Civil Services, Literature & Education, Public Affairs, Science & Technology, Trade & Industry.
  • The names of the awardee are announced every year on Republic Day.
  • The Padma Awards have been given every year except three times: 1977, 1980, 1993-1997.
  • If someone is a recipient of a lesser degree of the Padma Awards, they can be awarded a higher degree of the award only after five or more years since the last conferment.
  • The awards are rarely given posthumously, but exceptions can be made if the case highly deserves.
  • There ought to be an element of public service in the achievements of the person to be selected. It should not be merely on the basis of excellence in any field, but it should be based on excellence plus.
  • Government servants including those working in PSUs, except doctors & scientists, are not eligible for these awards.

  • Padma Vibhushan: For exceptional & distinguished service (Second Degree Honour)
  • Padma Bhushan: For distinguished service of a high order (Third Degree Honour)
  • Padma Shri: For distinguished service (Fourth Degree Honour)
Padma Vibhushan:
  • It is the second-highest civilian award given by the Republic of India.
  • Those privileged to get the award are given a citation certificate & a medal, which has a lotus flower in the middle & the words "Desh Seva", embossed on the observe.










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Tuesday, October 13, 2020

Awards Given By Government of India- Current affairs-English

Awards Given By Government of India

Awards & Honours are given both at individual & group level as a token of appreciation or recognition for extraordinary work. The government of India gives several honors every year to those who have achieved outstanding merit in their field.

Bharat Ratna:

Fig: Bharat Ratna (Peepal leaf-shaped medal)

  • The title Bharat Ratna literally means "Jewel of India" & it is the highest civilian award bestowed by the Republic of India.
  • It was first given in 1954.
  • Although this award was originally given to those artists who had outstanding achievements in art, science, literature & public service, in 2011, the criteria were expanded to include "any field of human endeavor".
  • The Prime Minister of India makes the recommendations to the President of India who chooses not more than three people in a particular year for the award.
  • Although no money is given to the awardees, those who are chosen are given a peepal leaf-shaped medal & a certificate (sanad).
  • According to the Indian Order of Precedence, those who are given Bharat Ratna are seventh.
  • The award can not be used as a prefix or suffix to the recipients' name, in terms of Article 18(1) of the Indian Constitution.

Some of the prominent awardees are as follows:

1954: First Awardees
  • C. Rajagopalachari= Freedom fighter & last Governor-General of India.
  • Dr. C.V Raman= Physicist
  • Dr. S.Radhakrishnan= Philosopher as well as first Vice-President & second President of India.
  • Jawaharlal Nehru= Freedom fighter, writer & first Prime Minister of India.
1955:
  • Bhagwan Das= Freedom fighter, philosopher & educationist.
  • M.Visvesvaraya= Civil Engineer, Statesman, Diwan of Mysore.
1957:
  • Govind Ballabh Pant= Freedom fighter, Chief Minister of Uttar Pradesh & Home Minister of India.
1958:
  • Bidhan Chandra Roy= Physician, politician & social worker.
  • Purushottam Das Tondon= Titled as "Rajarshi", an independent activist & politician.
1962: 
  • Dr. Rajendra Prasad= Jurist, freedom fighter & first President of India.
1966: First Posthumous awardee
  • Lal Bahadur Shasti= Freedom fighter & second Prime Minister of India.
1971:
  • Indira Gandhi= Third Prime Minister of India.
1980:
  • Mother Teresa= Social worker, founder of Missionaries of Charity & a Catholic nun.
1987:
  • B.R. Ambedkar= Crusader against untouchability, Chief Architect of Indian Constitution.
  • Nelson Mandela= Gandhi of South Africa.
1997:
  • Dr. A.P.J.Abdul Kalam= Scientist & 11th President of India.
1999:
  • Prof. Amartya Sen= Economist.
2014:
  • Sachin Tendulkar= Cricketer.
  • C.N.R Rao= Chemist & Scientist.
2015:
  • Madan Mohan Malviya= Scholar & Educational Reformer.
  • Atal Bihari Vajpayee= Prime Minister of India for three times.
2019:
  • Pranab Mukherjee= 13th Prime Minister of India.
  • Bhupen Hazarika= Singer, Lyricist, Musician from Assam.
  • Nanaji Deshmukh= Social Activist.



  


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Sunday, October 11, 2020

Jharkhand Me Panchayati Raj Vyavstha Part-4(Panchayati Raj system in Jharkhand)


झारखण्ड में पंचायती राज व्यवस्था PART-4

(Panchayati Raj system in Jharkhand)


जिला परिषद

जिला परिषद पंचायती राज व्यवस्था का तृतीय एवं सर्वोच्च स्तर है 

जिला परिषद की स्थापना जिला स्तर पर होती है 

जिला परिषद का वही नाम होता है, जो उस जिला का होता है, जैसे :- रांची जिला परिषद हजारीबाग जिला परिषद आदि

गठन

झारखंड में जिला का गठन जिला परिषद के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचित सदस्यों (प्रति 50000 की जनसंख्या पर एक सदस्य का चुनाव), जिला क्षेत्र से निर्वाचित सभी प्रमुखों, विधायकों (विधान सभा के सदस्य) एवं सांसदों  (लोक सभा एवं राज्य सभा के सदस्य) से की जाती है

जिला परिषद का प्रधान 'अध्यक्ष' कहलाता है

 उसकी सहायता के लिए एक 'उपाध्यक्ष' होता है

अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष के उम्मीदवार प्रत्यक्ष निर्वाचित सदस्यों में से होते हैं, तथा उन्हीं के मतों से बनाए जाते हैं

 उप विकास आयुक्त (डिप्टी डेवलपमेंट कमिश्नर-डी0 डी0 सी0 ) जिला परिषद का पदेन सचिव होता है

पदाधिकारी

सर्व प्रमुख अधिकारी - अध्यक्ष उपाध्यक्ष :- प्रत्येक जिला परिषद का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होता है
 जिनका निर्वाचन जिला परिषद के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से करते हैं

अध्यक्ष राज्य सरकार द्वारा भी पदच्युत किया जा सकता है

अध्यक्ष जिला परिषद का प्रधान अधिकारी होता है

 वह जिला परिषद की बैठक बुलाता है और उसकी अध्यक्षता करता है 

वह राज्य सरकार को जिला परिषद के कार्यों के संबंध में सूचित करता है तथा हर वर्ष जिला परिषद के सचिव के कार्यों का प्रतिवेदन जिला अधिकारी के पास भेजता है 

वह प्रखंड एवं पंचायत समिति के कार्यों पर भी निगरानी रखता है

 अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उसके सभी दायित्वों का निर्वहन करता है

सचिव उप विकास आयुक्त :- उप विकास आयुक्त जिला परिषद का पदेन सचिव होता है

 वह अध्यक्ष के आदेश पर जिला परिषद की बैठक बुलाता है तथा सभा की कार्यवाही का प्रलेख रखता है

वह जिला परिषद का प्रमुख परामर्शदाता होता है और सभी समितियों में समन्वय स्थापित करता है

जिला परिषद के कार्य

जिला परिषद के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं 

1- परामर्शकारी  कार्य :- जिले में विकास कार्यों और सरकार द्वारा जिला परिषद को सौपे गए कार्यों के क्रियान्वयन संबंधी मसलों पर सरकार को परामर्श देना 

2- वित्तीय कार्य :- पंचायत समितियों के बजटों  का परीक्षण करना और उनको स्वीकृति देना तथा संघ व राज्य सरकार द्वारा आवंटित निधियों को पंचायत समितियों में वितरित करना

3- समन्वय और पर्यवेक्षण कार्य :- जिले के प्रखंडों द्वारा तैयार विकास योजनाओं का समन्वय और पर्यवेक्षण करना 

4- नागरिक सुविधा संबंधी कार्य :- सड़कें, पुल, पुलिया, पार्क, जलापूर्ति और सर्वाजानिक भवन इत्यादि का निर्माण तथा उनका रख-रखाव करना

आकाशवाणी से ग्रामीण प्रसारण व सामुदायिक केंद्रों की देखभाल करना 

स्थानीय प्राधिकरण से संबंधित आवश्यक सांख्यिकीय आंकड़ों का संग्रहं करना इत्यादि 

5- कल्याण सम्बन्धी कार्य :- हटो की स्थापना, मेले तथा त्यौहारों का आयोजन, पुस्तकालय, दवाखाना, सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार नियोजन केंद्र की स्थापना और उसका संचालन, अकाल और विपदा के समय राहत कार्य की व्यवस्था करना

सभी स्तर के विद्यालयों तथा तकनीकी व औद्योगिक विद्यालयों की स्थापना, विस्तार, निरीक्षण और उनका रखरखाव सुनिश्चित करना

6- विकास संबंधी कार्य :- पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों के कार्यों की देखभाल करना और प्रखंडों में विकास योजनाओं, परियोजनाओं तथा अन्य कार्यक्रमों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना

जिला परिषद की आय के स्रोत 

जिला परिषद की आय के तीन प्रमुख स्रोत है

1- राज्य सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान-निधि

2- विकास कार्यों के लिए राज्य सरकार द्वारा आवंटित निधि तथा 

3- भूमिकार और अन्य उपकर स्थानीय करों में हिस्सा

जिला परिषद जिला स्तर पर 

सर्वप्रमुख अधिकारी :- अध्यक्ष / उपाध्यक्ष 

सचिव  :- उप विकास आयुक्त (डी0 डी0 सी0) 

सदस्य

निर्वाचित सदस्य :- प्रति 50 हजार की आबादी पर एक सदस्य का चुनाव

पदेन सदस्य :- जिला स्तर से जिला क्षेत्र से निर्वाचित सभी प्रमुख

सह सदस्य :- जिला क्षेत्र से निर्वाचित विधायक (विधानसभा के सदस्य) तथा जिला क्षेत्र से निर्वाचित संसद (लोक सभा एवं राज्य सभा के सदस्य)

स्थाई समितियां 

स्थाई समिति (अध्यक्ष-अध्यक्ष) 

वित्त,अंकेक्षण  व योजना समिति (अध्यक्ष-अध्यक्ष)

सामाजिक न्याय समिति (अध्यक्ष-उपाध्यक्ष)

शिक्षण एवं स्वास्थ्य समिति (अध्यक्ष-कोई  एक सदस्य)

कृषि एवं उद्योग समिति (अध्यक्ष -कोई  एक सदस्य)


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Environmental Pollution - UPSC

Environmental Pollution

  •  A substance that causes an undesirable change in the physical, chemical or biological characteristics of the natural environment is known as pollution
  • Although there are some natural pollutants such as volcanoes, pollution generally occurs because of human activity. 
  • Biodegradable pollutants, like sewage, cause no permanent damage if they are adequately dispersed.
  • Non-biodegradable pollutants, such as lead (Pb), maybe concentrated as they move up the food chain.
  • At present, Air Pollution- associated with basic industries such as oil refining, chemicals, iron and steel, and coal, as well as with internal combustion engine- is probably the principal offender, followed by water, and land pollution.
  • Other forms of environmental pollution include noise and the emission of heat into waterways, which may damage aquatic life.
  • Present-day problems of pollution include acid rain and the burning of fossil fuels to produce excessive carbon dioxide.
There are four types of environmental pollution which have been described briefly in the following:
  • Air Pollution
  • Water Pollution
  • Soil and Land Pollution
  • Noise Pollution

Air Pollution: 

Fig: Air Pollution
  • The presence in the Earth's atmosphere of man-caused or man-made contaminants may adversely affect the property, or lives of plants, animals, or humans.
  • Commonly air pollution includes CO2, CO, Pb, NOx, O3 (Ozone), SOx, and smoke.
  • The tremendous increase in vehicles during the last three decades in the country has increased air pollution, especially in large cities.
  • Consequently, the urban population is suffering more by cough, nausea, irritation of the eyes, and various bronchial and visibility problems.
  • Because of the emission of CO2, CO, NOx, and suspended particles of lead (Pb) and heavy metals, the urban environment is more polluted than the rural environment.
  • The air pollution is the main cause of many of the disease and ailments.
Air pollution has to lead the increase in the incidence of some of the disease like;
  • Cough, shortness of breath, bronchitis, cold and fatigue, bronchopneumonia, lung infection, infection & anemia, high blood pressure, nervous system, emphysema, angina pectoris, fatal arrhythmia or myocardial damage, coronary damage, coronary disease, cancer in the kidney, testis, brain, stomach, lung, respiratory tract bladder & uterus, leukemia & problems associated with gastro-intestinal & liver damage.
Fig: Coronary Artery Disease (CAD)


  • Reduction in vehicular emission
  • Improvement in the quality of diesel and petroleum
  • Use of alternate sources of fuel e.g., CNG (Compressed Natural Gas) & LPG (Liquid Petroleum Gas)
  • More use of public transport
  • Improved vehicular technology
  • Mass awareness
Fig: Air Pollution Scrubber


Water Pollution:

Water is one of the most important requirements for human survival. Clean water is necessary for health & human development. Water pollution has been defined as the alteration of the physical, chemical, & biological properties of water, which may cause harmful effects on human & aquatic life. Unfortunately, over 70% of the available water in India is polluted. 
Fig: Water Pollution


The main causes of water pollution are:

Urbanization: 

  • The unplanned growth of urban centers, especially inevitably lead to huge quantities of domestic and industrial waste. 
  • The high energy consumption in urban places gives rise to large quantities of waste-water, sewage, and domestic trash. 
  • The inadequate development of sewerage disposal has polluted most of the rivers, lakes, ponds, and wells.
  • Municipal water treatment facilities in India are not up to the international standard.
  • The quality of water is poor in the urban areas, especially in the unauthorized colonies & slums.

Industrialization:

  • The industrial waste consists of chemicals, detergents, metal & synthetic compounds, besides the solid waste & garbage.
  • These pollutants are generally discharged in rivers.
  • Consequently, most of the rivers, lakes, ponds, and wells in India are polluted by industrial wastes.

Withdrawal of Water:

  • The water of most of the rivers is utilized for irrigation, industries, & domestic purposes.
  • In the plain areas, generally, the rivers contain little water during the winter & summer seasons.
  • What flows into the rivers is the water merging from small streams & drains carrying untreated sewage & effluent.
  • Each river must contain a minimum discharge throughout the year to maintain its ecology.

Application of Plants Protection Chemicals:

  • After the introduction of High Yielding Varieties in the agricultural landscape, the use of chemical fertilizers, insecticides & pesticides has increased substantially.
  • These inputs can be used with success only in the areas where controlled irrigation is available. In fact, these chemicals have changed the soil chemistry. 
  • The use of insecticides has killed the useful bacteria in the soil as well as the fertility-enhancing earthworms.

Ground-Water Quality:

  • The underground water is largely consumed for irrigation, drinking, and industrial purposes.
  • The underground water is being polluted by the heavy application of chemical fertilizers, plant protection chemicals, infiltration of contaminated water, & waste disposal.
  • Once polluted, underground water may remain in hazardous conditions for decades or even for centuries.
Fig: Ground-water quality

Consequences of Water Pollution:
  • Consumption of polluted water is a major cause of poor health in India. 
  • The polluted water causes diseases like cholera, dysentery, diarrhea, jaundice & tuberculosis.
  • Children, especially in the urban slums & rural areas are the worst affected.

Soil & Land Pollution:

Fig: Soil & Land Pollution
  • Soil is the life support system of mankind. Soil becomes polluter either due to the misdeed of man or at times by the environmental hazards.
  • The main factors of soil & land pollution are soil erosion, excessive use of chemical fertilizers & plant protection chemicals.
  • Soil is also polluted by liquid & solid wastes from urban & industrial areas, forest fires, water-logging, related capillary processes, & mining wastes.
  • The soil pollution can be reduced by a judicious application of chemical fertilizers, insecticides, & pesticides.
  • The urban & industrial effluents can be used for irrigation after proper treatment.

Noise Pollution:

Fig: Noise Pollution
  • Noise is one of the important forms of atmospheric pollution.
  • It may be defined as the state of discomfort & restlessness caused to humans by unwanted high-intensity sound.
  • Noise pollution has increased in India considerably with the increase in urbanization & industrialization.
  • The automobiles, factory machines, & loudspeakers at the religious places are the main noise pollutants.
  • Noise pollution leads to impairment of hearing.
  • It also results in mental tension, blood pressure, heart disease, irritation, fatigue, & stomach trouble.
Noise pollution can be reduced by:
  • Locating the noise-producing industries away from the residential areas
  • Replacement of old machinery
  • Minimum use of horn
  • Improvement in rail tracks, &
  • To educate the younger generation about the adverse consequences of noise pollution.










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