Friday, January 29, 2021
Jharkhand Paryatan Niti-2015 (झारखंड पर्यटन नीति- 2015)
Thursday, January 28, 2021
Jharkhand Niryat Niti-2015 (झारखंड निर्यात नीति-2015)
झारखंड निर्यात नीति-2015
(Jharkhand Niryat Niti-2015)
➤इस नीति का मुख्य बिंदु इस प्रकार है:-
Wednesday, January 27, 2021
Jharkhand khady prasanskaran niti 2015 (झारखंड खाद्य प्रसंस्करण नीति 2015)
झारखंड खाद्य प्रसंस्करण नीति 2015
(Jharkhand Khady Prasanskaran Niti 2015)
➤इस नीति के अंतर्गत मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :-
Monday, January 25, 2021
Jharkhand Ki Shaikshanik Sansthan Part-2 (झारखंड की शैक्षणिक संस्थान Part-2)
Jharkhand Ki Shaikshanik Sansthan Part-2
झारखंड की शैक्षणिक संस्थाओं की सूची
➤रांची विश्वविद्यालय, रांची (स्थापना : 12 जुलाई 1960 ईस्वी)
➤सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय, दुमका (स्थापना : 1992 ईस्वी)
➤विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग (स्थापना : 12 सितंबर 1992 ईस्वी)
➤बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची (स्थापना: 1956 ईस्वी तथा 26 जून 1980 को विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ)
➤कोल्हन विश्वविद्यालय, चाईबासा/पश्चिमी सिंहभूम (स्थापना: 12 अगस्त, 2009 ईस्वी)
➤नीलाम्बर- पीतांबर विश्वविद्यालय, मेदिनीनगर/पलामू (स्थापना : 17 जनवरी 2009 ईस्वी)
➤नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची (स्थापना: 2010 ईस्वी)
➤रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय रांची, रांची (स्थापना : 2016 ईस्वी)
➤बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद (स्थापना : 13 नवंबर, 2017)
➤श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची।
➤विश्वविद्यालय के समकक्ष शिक्षण संस्थान:-
➤आई आई टी (इंडियन स्कूल ऑफ माइंस), धनबाद (स्थापना : 1926 ईस्वी)
➤बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, मेसरा/रांची (स्थापना : 1955 ईस्वी)
➤हिंदी विद्यापीठ, देवघर ।
➤केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, माण्डर/रांची (स्थापना : 2010 ईस्वी)
➤विधि विश्वविद्यालय, बीआईटी मेसरा/रांची (स्थापना : 2010 ईस्वी)
➤झारखंड राय विश्वविद्यालय, झारखंड (निजी)
➤साईंनाथ विश्वविद्यालय, (निजी)
➤द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर् फाइनेंशियल एनालिस्ट ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, रांची (निजी)
➤एमिटी यूनिवर्सिटी (निजी)
➤AISECT (एस आई एस सी टी) यूनिवर्सिटी (निजी)
➤प्रज्ञान इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (निजी)
➤YBN यूनिवर्सिटी, रांची (निजी)
➤अरका जैन यूनिवर्सिटी, सरायकेला (निजी)
➤स्थापित होने (प्रस्तावित)अन्य विश्वविद्यालय:-
➤सरला बिड़ला विश्वविद्यालय, रांची (निजी)
➤स्पोर्ट्स विश्वविद्यालय, रांची
➤वूमेन्स यूनिवर्सिटी, जमशेदपुर।
➤इंजीनियरिंग कॉलेज
➤बिरसा इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी सिंदरी/धनबाद (स्थापना : 1949 ईस्वी)
➤नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी आदित्यपुर/ पूर्वी सिंहभूम (स्थापना :1960 ईस्वी तथा 27 दिसंबर 2000 में डीम्ड यूनिवर्सिटी घोषित)
➤बिरला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी मेसरा/रांची (स्थापना 1955 ईस्वी)
➤फैकेल्टी आफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, रांची।
➤आर. वी. एस. कॉलेज आफ इंजीनियरिंग, जमशेदपुर।
➤डी. ए. वी. इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग, डालटेनगंज।
➤कैम्ब्रिज इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, रांची।
➤चिकित्सा महाविद्यालय
➤केंद्रीय मनोचिकत्सा संस्थान, राँची (स्थापना :1918 ईस्वी)
➤राँची तंत्रिका मनोचिकत्सा एवं सम्बंद्ध विज्ञान संस्थान, राँची (स्थापना : 1925 ईस्वी)
➤राजेंद्र चिकित्सा महाविद्यालय, राँची (स्थापना : 1960 ईस्वी)
➤एम्. जी. एम्. चिकित्सा महाविद्यालय,जमशेदपुर। (स्थापना : 1964 ईस्वी)
➤पाटलिपुत्र चिकित्सा महाविद्यालय,धनबाद (स्थापना : 1974 ईस्वी)
➤हजारीबाग चिकित्सा महाविद्यालय, हजारीबाग (स्थापना : 2019 ईस्वी)
➤विधि महाविद्यालय
➤गिरिडीह लॉ कॉलेज, गिरिडीह
➤छोटानागपुर विधि महाविद्यालय, राँची (स्थापना : 1955 ईस्वी)
➤राजेंद्र विधि महाविद्यालय, हज़ारीबाग़ (स्थापना : 1977 ईस्वी)
➤धनबाद लॉ कॉलेज, धनबाद (स्थापना: 1976) ईस्वी
➤इमामुल हाई खान लॉ कॉलेज, बोकारो।
➤झारखंड लॉ कॉलेज, तिलैया/कोडरमा।
➤कॉपरेटिव लॉ कॉलेज, जमशेदपुर।
➤नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, राँची।
➤होम्योपैथिक महाविद्यालय
➤होम्योपैथिक महाविद्यालय रांची।
➤योगदा सत्संग होम्योपैथिक कॉलेज, रांची।
➤होम्योपैथिक कॉलेज एंड हॉस्पिटल, मिहिजाम/दुमका।
➤सिंहभूम होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (स्थापना: 1953 ईस्वी)
➤महत्वपूर्ण केंद्र प्रशिक्षण और शिक्षण केंद्र
➤पुलिस प्रशिक्षण केंद्र, हजारीबाग (स्थापना: 1912 ईस्वी)
➤श्री कृष्ण लोक प्रशासन प्रशिक्षण संस्थान राँची (स्थापना: 1952 ईस्वी)
➤ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट, राँची (स्थापना: 1953 ईस्वी)
➤नेतरहाट आवासीय विद्यालय, नेतरहाट (स्थापना: 1954 ईस्वी)
➤तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र राँची (स्थापना: 1963 ईस्वी)
➤सैनिक स्कुल, तिलैया (स्थापना: 1963 ईस्वी)
➤सीमा सुरक्षा बल प्रशिक्षण केंद्र एवं स्कुल ,मेरू/ हजारीबाग (स्थापना: 1966 ईस्वी)
➤इंदिरा गांधी आवासीय विद्यालय, हजारीबाग (स्थापना: 1984 ईस्वी)
➤झारखण्ड न्यायिक अकादमी,राँची (स्थापना: 2002 ईस्वी)
➤परमाणु ऊर्जा केंद्रीय विद्यालय, तुरामडीह/पश्चिमी सिंहभूम (स्थापना: 2006 ईस्वी)
➤झारखंड पॉलिटेक्निक संस्थान
➤राजकीय पॉलिटेक्निक, राँची
➤राजकीय महिला पॉलिटेक्निक,राँची
➤राजकीय पॉलिटेक्निक,खुटरी / बोकारो
➤राजकीय महिला पॉलिटेक्निक बी.एस.ल./बोकारो
➤राजकीय पॉलिटेक्निक धनबाद
➤राजकीय पॉलिटेक्निक भागा, धनबाद
➤राजकीय पॉलिटेक्निक, दुमका
➤राजकीय महिला पॉलिटेक्निक, जमशेदपुर
➤राजकीय पॉलिटेक्निक आदित्यपुर/सरायकेला-खरसावाँ
➤राजकीय पॉलिटेक्निक, लातेहार
➤राजकीय पॉलिटेक्निक,कोडरमा
➤राजकीय पॉलिटेक्निक सरायकेला-खरसावाँ
➤राजकीय पॉलिटेक्निक, निरसा, धनबाद
➤झारखंड के निजी पॉलिटेक्निक संस्थान
➤अलकबीर पॉलिटेक्निक, मांनगो/जमशेदपुर
➤के. के. पॉलिटेक्निक, धनबाद
➤सेंटर फॉर बायोइनफॉर्मेटिक, रांची
➤प्रमुख् प्रबंधन संस्थान
➤जेवियर लेबर रिसर्च इंस्टीट्यूट (एक्स एल आर आई), जमशेदपुर (स्थापना : 1949 ईस्वी)
➤ज़ेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विस, रांची
➤प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान, रांची
➤बिड़ला प्राद्यौगिकी संस्थान, रांची
➤भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) राँची शाखा, रांची
➤झारखंड के प्रमुख अनुसंधान केंद्र और प्रयोगशालाएं
➤भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान, राँची (स्थापना :1925 ईस्वी)
➤केंद्रीय ईंधन अनुसंधान संस्थान, जलगोड़ा (स्थापना : 1947 ईस्वी)
➤केंद्रीय खनन अनुसंधान संस्थान, धनबाद (स्थापना: 1948 ईस्वी)
➤राष्ट्रीय धातु विज्ञान प्रयोगशाला, जमशेदपुर।
➤केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची।
➤केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, रांची।
➤कुष्ठ रोग अनुसंधान केंद्र, रांची।
➤रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर फॉर आयरन एंड स्टील, रांची
➤जनजातीय शोध अनुसंधान संस्थान, रांची (स्थापना: 1953 ईस्वी)
➤मृदा शोध एवं अनुसंधान संस्थान, हजारीबाग।
➤चावल अनुसंधान केंद्र, हजारीबाग।
➤पशु चिकित्सा महाविद्यालय
➤रांची भेटनरी महाविद्यालय ,रांची (स्थापना: 1964 ईस्वी)
➤रांची कॉलेज ऑफ भेटनरी एण्ड एनीमल हसबैंड्री राँची।
➤झारखंड के प्रमुख पुस्तकालय
➤प्रमंडलीय पुस्तकालय, हजारीबाग (स्थापना: 1922 ईस्वी)
➤राज्य पुस्तकालय, दुमका (स्थापना: 1952 ईस्वी)
➤राज्य पुस्तकालय रांची स्थापना (स्थापना: 1953 ईस्वी)
➤राज्य पुस्तकालय धनबाद स्थापना (स्थापना: 1956 ईस्वी)
➤राज्य पुस्तकालय चाईबासा, (स्थापना: 1957 ईस्वी)
➤राज्य संग्रहालय, रांची स्थापना (स्थापना: 1972 ईस्वी)
➤अन्य संस्थान:-
Thursday, January 21, 2021
Prachin kal me Jharkhand (प्राचीन काल में झारखंड)
Prachin Kal Me Jharkhand
1) मौर्य काल
➤मगध से दक्षिण भारत की ओर जाने वाला व्यापारिक मार्ग झारखंड से होकर जाता था।
अत: मौर्यकालीन झारखंड का अपना राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक महत्व था।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
➤कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस क्षेत्र को कुकुट/कुकुटदेश नाम से इंगित किया गया है।
➤कौटिल्य के अनुसार कुकुटदेश में गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित थी।
➤कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने आटविक नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी।
➤जिसका उद्देश्य जनजातियों का नियंत्रण, मगध साम्राज्य हेतु इनका उपयोग तथा शत्रुओ से इनके गठबंधन को रोकना था।
➤इंद्रनावक नदियों की चर्चा करते हुए कौटिल्य ने लिखा है कि इंद्रनावक की नदियों से हीरे प्राप्त किये जाते थे।
➤इन्द्रनवाक संभवत: ईब और शंख नदियों का इलाका था।
अशोक
➤अशोक के 13वें शिलालेख में समीपवर्ती राज्यों की सूची मिलती है, जिसमें से एक आटविक/आटव/आटवी प्रदेश (बुंदेलखंड से उड़ीसा के समुद्र तट तक विस्तृत) भी था और झारखंड क्षेत्र इस प्रदेश में शामिल था।
➤अशोक का झारखंड की जनजातियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण था।
➤अशोक के पृथक कलिंग शिलालेख-II में वर्णित है कि - 'इस क्षेत्र को अविजित जनजातियों को मेरे धम्म का आचरण करना चाहिए, ताकि वे लोक परलोक प्राप्त कर सके।
➤अशोक ने झारखंड में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित नामक अधिकारी को भेजा था।
2) मौर्योत्तर काल
➤मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में अपने-अपने राज्य स्थापित किए।
➤इसके अलावा भारत का विदेशों से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ जिसके प्रभाव झारखंड में भी दिखाई देते हैं।
➤सिंहभूम
➤सिंहभूम से रोमन साम्राज्य के सिक्के प्राप्त हुए हैं ,जिससे झारखंड के वैदेशिक संबंधों की पुष्टि होती है।
➤चाईबासा
➤चाईबासा से इंडो-सीथियन सिक्के प्राप्त हुए हैं।
➤रांची से कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र कनिष्ठ के प्रभाव में था।
3) गुप्त काल
➤गुप्त काल में अभूतपूर्व सांस्कृतिक विकास हुआ अतः इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।
➤हजारीबाग के मदुही पहाड़ से गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं।
➤झारखंड में मुंडा, पाहन, महतो तथा भंडारी प्रथा गुप्तकाल की देन माना जाता है।
➤समुद्रगुप्त
➤गुप्त वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक समुद्रगुप्त था। इसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है।
➤इसके विजयों का वर्णन प्रयाग प्रशस्ति (इलाहाबाद प्रशस्ति) में मिलता है। प्रयाग प्रशस्ति के लेखक हरीसेंण है। इन विजयों में से एक आटविक विजय भी था।
➤झारखंड प्रदेश इसी आटविक प्रदेश का हिस्सा था। इससे स्पष्ट पता होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में झारखंड क्षेत्र उसके अधीन था।
➤समुद्रगुप्त ने पुन्डवर्धन को अपने राज्य में मिला लिया, जिसमें झारखंड का विस्तृत क्षेत्र शामिल था।
➤समुद्रगुप्त के शासनकाल में छोटानागपुर को मुरुण्ड देश कहा गया है।
➤समुद्रगुप्त के प्रवेश के पश्चात झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया।
➤चंद्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य'
➤चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रभाव झारखंड में भी था।
➤इसके काल में चीनी यात्री फाह्यान 405 ईस्वी में भारत आया था। जिसने झारखंड क्षेत्र को कुक्कुटलाड कहा है।
➤मुदही पहाड़ हजारीबाग जिले में है जो पत्थरों को काटकर बनाए गए चार मंदिर। सतगांवा कोडरमा मंदिरों के अवशेष (उत्तर गुप्त काल से संबंधित) हैं। पिठोरिया रांची पहाड़ी पर स्थित कुआं तीनों गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेष हैं।
4) गुप्तोत्तर काल
➤शशांक
➤गौड़ (पश्चिम बंगाल) का शासक शशांक इस काल में एक प्रतापी शासक था।
➤शशांक के साम्राज्य का विस्तार संपूर्ण झारखंड, उड़ीसा तथा बंगाल तक था।
➤शशांक अपने विस्तृत साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए दो राजधानी स्थापित की:-
➤प्राचीन काल में शासकों में यह प्रथम शासक था जिसकी राजधानी झारखंड क्षेत्र में थी।
➤शशांक शैव धर्म का अनुयाई था तथा इसने झारखंड में अनेक शिव मंदिरों का निर्माण कराया।
➤शशांक के काल का प्रसिद्ध मंदिर वेणुसागर है जो कि एक शिव मंदिर है। यह मंदिर सिंहभूम और मयूरभंज की सीमा क्षेत्र पर अवस्थित कोचिंग में स्थित है।
➤शशांक ने बौद्ध धर्म के प्रति असहिषुणता की नीति अपनाई,जिसका उल्लेख हेन्सांग ने किया है।
➤शशांक ने झारखंड के सभी बौद्ध केंद्रों को नष्ट कर दिया। इस तरह झारखंड में बौद्ध- जैन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म की महत्ता स्थापित हो गई।
➤हर्ष वर्धन
➤वर्धन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हर्षवर्धन था।
➤इसके साम्राज्य में काजांगल (राजमहल) का कुछ भाग शामिल था।
➤काजांगल (राजमहल) में ही हर्षवर्धन हेनसांग से मिला। हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में राजमहल की चर्चा की है।
➤अन्य तथ्य
➤हर्यक वंश का शासक बिंबिसार झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहता था।
➤नंद वंश के समय झारखंड मगध साम्राज्य का हिस्सा था।
➤नंद वंश की सेना में झारखंड से हाथी की आपूर्ति की जाती थी। इस सेना में जनजातीय लोग भी शामिल थे।
➤झारखंड में दामोदर नदी के उद्गम स्थल तक मगध की सीमा का विस्तार माना जाता है।
➤झारखंड में 'पलामू' में चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
➤कन्नौज के राजा यशोवर्मन के विजय अभियान के दौरान मगध के राजा जीवगुप्त द्वितीय ने झारखण्ड में शरण ली थी।
➤13वीं सदी में उड़ीसा के राजा जयसिंह ने स्वयं को झारखंड का शासक घोषित कर दिया था।
Wednesday, January 20, 2021
Jharkhand Karmchari Chayan Aayog (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग)
झारखंड कर्मचारी चयन आयोग
(Jharkhand Karmchari Chayan Aayog)
➤जिसके प्रथम अध्यक्ष भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्ति अधिकारी सी.आर. सहाय थे। इसका मुख्यालय रांची में है।
➤इस आयोग का गठन झारखंड कर्मचारी चयन आयोग अधिनियम 2008 के अंतर्गत किया गया है।
➤आयोग
➤आयोग राज्य सरकार के अधीन वर्ग 'ग' के सभी पदों एवं वर्ग 'ख' के अराजपत्रित सभी सामान्य/प्रावैधिक/अप्रवैधिक सेवाओ/संवर्गों के पदों पर जिन पर आंशिक या पूर्ण रूप से सीधी नियुक्ति का प्रावधान हो अथवा राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित पदों पर नियुक्ति हेतु अनुशंसा करती है।
➤अध्यक्ष
➤अध्यक्ष :- राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अखिल भारतीय सेवा/अन्यून पंक्ति के कार्यरत या सेवानिवृत्त एक पदाधिकारी।
➤सदस्य
➤सदस्य :- राज्य सरकार द्वारा नियुक्त 37400-67000/- ग्रेड पे-8700 (अथवा समय-समय पर यथा पुनरीक्षित समरूप वेतनमान प्रत्येक सदस्य को देय) से अन्यून वेतनमान के कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त अखिल भारतीय सेवा/सेना के दो पदाधिकारी होते हैं।
➤कार्यकाल
➤कार्यकाल:- आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपने पदग्रहण की तारीख से सामान्यत: 5 वर्ष की अवधि तक होता है।
➤मुख्यालय
➤मुख्यालय :- आयोग का मुख्यालय रांची में स्थित है। यह कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग आयोग का प्रशासी विभाग है। इसका संचालन नामकुम स्थित कार्यालय भवन से होता है।
➤चयन
➤चयन :- राज्य सरकार के पूर्णनुमोदन से आयोग, विभिन्न सेवाओं/ पदों के लिए चयन की प्रक्रिया का संचालन करता है।
➤आयोग के कार्यकाल और आयोग के कार्य संपादन में होने वाले संपूर्ण व्यय राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
➤आयोग, विभिन्न परीक्षाओं/ चयन के आयोजनों के लिए अभ्यर्थियों से शुल्क प्राप्त कर सकेगा जो आयोग द्वारा राज्य कोषागार में जमा किया जाता है।
➤आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षाओं के जरिए
1) प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी
2) प्रखंड कल्याण पदाधिकारी
3) सहकारिता प्रसार पदाधिकारी
4) सचिवालय सहायक
5) अंचल निरीक्षक
6) श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी
7) प्रखंड कृषि पदाधिकारी
8) सहायक अनुसंधान पदाधिकारी
9) पौधा संरक्षण निरीक्षक
10) संख्यांकी सहायक
11) मतस्य प्रसार पर्येवेक्षक
12) वरीय अंकेक्षक
13) उद्योग विस्तार पदाधिकारी
14) भूतात्विक विश्लेषक, पदों पर नियुक्ति की अनुशंसा करती है।
➤इसके अतिरिक्त इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा से लेकर
1) राजस्व कर्मचारी,
2) अमीन
3) पंचायत सचिव
4) निम्नवर्गीय लिपिक आदि की नियुक्ति की अनुशंसा की जाती है।
➤आशुलिपिकीय सेवा के अंतर्गत
1) आशुलिपिक
2) सहायक जेलर
3) कनीय अभियंता,
4) सिपाही
5) फायर स्टेशन पदाधिकारी
6) उत्पाद अवर निरीक्षक,
7) उत्पाद सहायक अवर निरीक्षक आदि की नियुक्ति भी आयोग की अनुशंसा पर की जाती है।
Tuesday, January 19, 2021
Jharkhand Ki Vit Vyavastha(झारखंड की वित्त व्यवस्था)
झारखंड की वित्त व्यवस्था
(Jharkhand Ki Vit Vyavastha)
➤भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में
विकास के दो चरण होते हैं:-
➤ये दोनों क्षेत्र मिलाकर ही अर्थव्यवस्था को प्रगति प्रदान करते हैं।
➤स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने आर्थिक नियोजन को अपनाया।
➤इसका अर्थ यह था कि राज्य उत्पादन वितरण तथा उपभोक्ता के स्तर तथा तरीकों को निर्धारण करने में सक्रिय भूमिका निभाते हुए निजी संपत्ति तथा बाजार की संस्थाओं की कद्र भी करेगा।
➤हमारे संविधान ने बाजार को अपना कार्य करने की स्वतंत्रता दी है लेकिन साथ ही इसने राज्य को बाजार की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने का अधिकार भी दिया है।
➤1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य किया जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थितियां भारत के लिए अनुकूल होती गई ।
➤राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तथा संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही झारखंड की वित्त व्यवस्था भी संचालित होती है।
➤बजट प्रक्रिया
➤भारतीय संविधान की धारा 202 के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय ब्यौरा प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है, जिसे वार्षिक वित्तीय वितरण भी कहा जाता है। इसे सामान्यतः बजट कहा जाता है।
➤बजट पेश किया जाना
➤बजट पर चर्चा
➤चर्चा के लिए समय तय करना
➤बजट पर सामान्य चर्चा
➤अनुदान मांगों पर चर्चा एवं मतदान
➤कटौती प्रस्ताव
➤लेखानुदान
➤सांकेतिक अनुदान
➤विनियोग विधेयक
➤अध्यक्ष की शक्तियां
➤राज्यों के राजस्व स्त्रोत
Monday, January 18, 2021
Jharkhand Ki Chitrakala (झारखंड की चित्रकला/चित्रशैली)
Jharkhand Ki Chitrakala
➤झारखंड की जनजातियों में चित्रकला उनकी भावना के उद्गार का एक माध्यम है।
➤जनजातियों की कला का प्रेरणा स्रोत उनके आस-पास का प्राकृतिक वातावरण है।
➤जनजातियों के चित्रकला एवं शिल्पकला उनकी सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों संस्कृति आदि को प्रतिबिंबित करती है।
➦सोहराय चित्रकला
➤सोहराय जनजातियों की एक प्रसिद्ध स्थानीय चित्रकला शैली है।
➤यह उनके प्रसिद्ध पर्व सोहराय से जुड़ी शैली है।
➤इस कला में जंगली जीव-जंतुओं, पक्षियों और पेड़-पौधों को अंकित किया जाता है।
➤यह चित्रकारी वर्षा ऋतु के बाद घरों की लिपाई-पुताई से प्रारंभ होता है।
➤इस चित्रकारी में कला के देवता प्रजापति या पशुपति का चित्रण मिलता है तथा पशुपति का सांड की पीठ पर खड़ा चित्रण किया जाता है।
➤'मंझू सोहराई' तथा 'कुर्मी सोहराय' इस चित्रकला की दो प्रमुख शैलियाँ हैं।
➤यह चित्रकला हजारीबाग जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है।
➤सोहराय और कोहबर चित्रकला को 2020 में (भौगोलिक संकेतक) प्रदान किया गया है।
➤यह झारखंड में किसी भी श्रेणी में प्राप्त होने वाला प्रथम जी आई टैग है।
➤इसके लिए सोहराय कला विकास सहयोगी समिति, हजारीबाग द्वारा आवेदन दिया गया था।
➦जादूपटिया चित्रकला
➤यह संथाल जनजाति की सर्वाधिक मशहूर लोक चित्रकला शैली रही है, जो अब लगभग समाप्त हो चुकी है।
➤यह शैली संथालों की सामाजिक, धार्मिक, रीति-रिवाजों और मान्यताओं को उकेरती है।
➤इन चित्रों की रचना करने वाले को संथाली भाषा में जादो कहा जाता है।
➤जादो (चित्रकार) एवं पटिया (कागज या कपड़ा के छोटे-छोटे टुकड़े) को जोड़कर बनाए जाने वाला चित्र फलक है।
➤इस चित्रकला में कागज के छोटे-छोटे टुकड़े को जोड़कर निर्मित 15 से 20 फीट चौड़े पटो पर चित्रकारी की जाती है।
➤प्रत्येक पट पर 4 से 16 तक चित्र बनाए जाते हैं।
➤इसमें चित्रकारी हेतु मुख्य रूप से लाल, हरा, पीला, भूरा और काले रंगों का प्रयोग होता है।
➤इसमें बाघ देवता और जीवन के बाद के दृश्यों का चित्रण किया जाता है।
➤यह चित्रकला दुमका जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है।
➦कोहबर चित्रकला
➤यह फारसी शब्द कोह (गुफा) तथा हिंदी शब्द वर (दूल्हा अथवा दंपति) से मिलकर बना है, जिसका सामान्य अर्थ है- गुफा में विवाहित जोड़ा।
➤यह चित्रकारी विवाह के मौसम में जनवरी से जून महीना तक की जाती है।
➤इसमें घर-आंगन में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में पेड़-पौधों, फूल-पत्तों आदि का चित्रण किया जाता है।
➤बिरहोर जनजाति इस कला में निपुण मानी जाती है।
➤इसमें सिकी (देवी) का चित्रण मिलता है।
➦गूंज चित्रकला
➤गूंज कला में पशुओं, वन्य तथा पालतू जानवरों एवं वनस्पतियों की तस्वीरें बनाई जाती हैं।
➤इस चित्रकला के माध्यम से संकटग्रस्त जानवरों को रीति-रिवाजों में दर्शाया जाता है।
➦पईत्कार चित्रकला
➤यह चित्रकारी आमदुबी (सिंहभूम) गांव में अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसके कारण इस गांव को पईत्कार का गांव भी कहा जाता है।
➤इसे झारखंड का स्क्रॉल चित्रकला भी कहते हैं ।
➤यह प्राचीन काल से झारखंड में विद्यमान है। कि माना जाता है कि इसकी शुरुआत सबर जनजाति द्वारा की गई थी।
➤इससे भारत का सबसे पुराना आदिवासी चित्रकला माना जाता है।
➤चित्रकला गरुड़ पुराण में भी मिलती है।
➤झारखंड के अतिरिक्त यह चित्रकला बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में भी लोकप्रिय है।
➤इस चित्रकला के माध्यम से जनजातियों द्वारा विभिन्न कहानियों तथा स्थानीय रीति का वर्णन किया जाता है।
➤इसके माध्यम से जीवन के बाद होने वाली घटनाओं का वर्णन किया जाता है।
➦राणा तेली एवं प्रजापति चित्रकला
➤इन तीन चित्रकलाओं का प्रयोग उक्त तीन उपजातियों द्वारा किया जाता है।
➤इस चित्रकला में पशुपति (भगवान शिव) को पशुओं एवं पेड़-पौधों के देवता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
➤इस चित्रकला में धातु के तंतुओं का प्रयोग किया जाता है।
Sunday, January 17, 2021
jharkhand ke lokgeet (झारखंड के लोकगीत)
झारखंड के लोकगीत
Jharkhand Ke Lokgeet
➤जनजातीय लोकगीतों में सुख-दुख, हर्ष-विषाद और खुशी-निराशा की झलक मिलती है।
➤आकर्षक, उत्कंठा, वेदना, आनंद, सुनहरे अतीत की याद, जातीय आदर्श के पालन का आह्वान आदि इनके गीतों के मुख्य विषय होते हैं।
➤जनजातियों लोकगीतों को दो भागों में विभाजित किया जाता है।
➤पहला :-महिलाओं के द्वारा गाए जाने वाले लोकगीत, जैसे:- जनानी , झूमर, डोमकच, झूमता, अंगनई, वियाह , झांझइन इत्यादि।
➤दूसरा :- पुरुषों का लोकगीत जिसमें सभी प्रकार के गीत सम्मिलित हैं।
➤अन्य लोकगीतों में संस्कारगीत, गाथागीत, बीजमैल, सलहेस, दोना भदरी, पर्वगीत , ऋतुगीत, पेशागीत, जातीयगीत आदि प्रमुख हैं।
➤संथालों लोकगीतों की संख्या बहुत अधिक है।
➤मौसम के अनुसार संथाली गीतों में दोड, लागेड़े ,सोहराई, मिनसार , बाहा , दसाय ,पतवार आदि प्रमुख है।
जनजाति लोकगीत
संथाल:- ⧪दोड (विवाहित संबंधी लोकगीत)
⧪विर सेरेन (जंगल लोकगीत)
⧪ सोहराय, लगड़े ,मिनसार, बाहा, दसाय,
पतवार, रिजा, डाटा, डाहार,मातवार
भिनसार, गोलवारी, धुरु मजाक, रिंजो, झिका आदि।
मुंडा:- ⧪ जदुर, (सरहुल/बाहा पर्व से संबंधित लोकगीत)
⧪ गेना व ओर जदुर( जदुर लोकगीत के पूरक)
⧪अडन्दी (विवाहित संबंधी लोकगीत)
⧪जापी (शिकार संबंधी लोकगीत)
⧪जरगा, करमा ।
हो:- ⧪वा (बसंत लोक गीत)
⧪ हैरो (धान की बुवाई के समय गाया जाने वाला लोकगीत)
⧪नोम नामा ( नया अन्न खाने के अवसर पर
गाया जाने वाला लोकगीत)।
उरांव:- ⧪ सरहुल (बसंत लोक गीत)
⧪ जतरा (सरहुल के बाद गाया जाने वाला लोकगीत)
⧪ करमा (जतरा के बाद गाया जाने वाला लोकगीत)
⧪ धुरिया, अषाढ़ी, जदुरा , मट्ठा आदि।
प्रमुख लोकगीत व उनके गाए जाने के अवसर
लोकगीत गाए जाने का असर
झांझइन :- जन्म संबंधी संस्कार के अवसर पर स्त्रियों
द्वारा गाया जाता है।
डइड़धरा :- वर्षा ऋतु में देवस्थानों में गाया जाता है।
प्रातकली :- इसका प्रदर्शन प्रात:काल किया जाता है।
अधरतिया:- इसका प्रदर्शन मध्य रात्रि में किया जाता है।
कजली :- इसका गायन वर्षा ऋतु में किया जाता है।
टुनमुनिया , बारहमास तथा झूलागीत
स्थानीय संगीत के प्रकार है जो कजली की
ही श्रेणी में आते हैं।
औंदी:- यह गीत विवाह के समय गाया जाता है।
अँगनई :- यह स्त्रियों द्वारा गाया जाता है।
झूमर:- इस गीत को विभिन्न त्योहारों
(जैसे :- जितिया, सोहराई, करमा आदि) के अवसर
पर झूमर राग में गाया जाता है।
उदासी तथा पावस :- यह नृत्यहीन गीत है उदासी गर्मी के समय तथा
पावस वर्षा के शुरू में गाया जाता है।
Friday, January 15, 2021
Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1(छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908)
Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1
➤इस अधिनियम में कुल 19 अध्याय और 271 धाराएं हैं।
➤अध्यायों का संक्षिप्त विवरण :-
💥अध्याय-1 में (धारा -1 से धारा-3 तक)
➤धारा -1 संक्षिप्त नाम तथा प्रसार:-इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम 'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम', 1908 है।➤इसका प्रसार उत्तरी छोटानागपुर और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में होगा ।
➤भूस्वामी :- वह व्यक्ति जिसने किसी काश्तकार को अपनी जमीन दिया हो।
➤काश्तकार:- वह व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन भूमि धारण करता हो तथा उसका लगान चुकाने का दायी हो।
➤काश्तकार के अंतर्गत भूधारक, रैयत तथा खुंटकट्टीदार तीनों को शामिल किया गया है।
➤लगान :- रैयत द्वारा धारित भूमि के उपयोग या अधिभोग के बदले अपने स्वामी को दिया जाने वाला धन या वस्तु।
➤जंगल संपत्ति :- के अंतर्गत खड़ी फसल भी आती है।
➤मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी से अभिप्रेत है, मुंडारी-खुंटकट्टीदार का हित।
➤भूघृति (TENURES):-भूधारक का हित। इसके अंतर्गत मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी नहीं आती है।
➤स्थायी भूघृति :- वंशगत भूघृति।
➤पुनग्रार्हय भूघृति :- वैसे भूघृति जो परिवार के नर वारिस नहीं होने पर, रैयत के निधन के बाद पुनः भूस्वामी को वापस हो जाए।
➤ग्राम मुखिया :- किसी ग्राम या ग्राम समूह का मुखिया। चाहे इसे मानकी, प्रधान, माँझी या अन्य किसी भी नाम से जाना जाता हो।
➤स्थायी बंदोबस्त (परमानेंट सेटेलमेंट):- 1793 इसमें बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संबंध में किया गया स्थायी बंदोबस्त।
➤डिक्री (DECREE) :- सिविल न्यायालय का आदेश।
💥अध्याय-2 में कश्तकारों के वर्ग (धारा- 4 से धारा- 8 तक)
➤खुंटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत OCCUPANCY RAIYAT)
➤धारा - 5 भूधारक :- ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी या दूसरे की जमीन खेती कार्य के लिए धारण किए हुए हैं एवं उसका लगान चुकाता हो।
➤धारा -6 रैयत :- रैयत के अंतर्गत वैसे व्यक्ति शामिल है, जिन्हें खेती करने के लिए भूमि धारण करने का अधिकार प्राप्त हो।
➤धारा -7 खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत :- वैसे रैयत जो वैसे भूमि पर अधिभोग का अधिकार रखते हों, जिसे उसके मूल प्रवर्तकों या उसकी नर परंपरा के वंशजों द्वारा जंगल में कृषि योग्य भूमि बनाई गई है, उसे खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत कहा जाता है।
➤धारा -8 मुंडारी-खुंटकट्टीदार :-वह मुंडारी जो जंगल भूमि के भागो को जोत में लाने के लिए भूमि का धारण करने का अधिकार अर्जित किया हो, उसे मुंडारी-खुंटकट्टीदार कहा जाता है।
Thursday, January 14, 2021
Pragaitihasik Kal Me Jharkhand (प्रागैतिहासिक काल में झारखंड)
प्रागैतिहासिक काल में झारखंड
(Pragaitihasik Kal Me Jharkhand)
प्रागैतिहासिक इतिहासिक
➤प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
1) पुरापाषाण काल
2) मध्य पाषाण काल
3) नवपाषाण काल
1) पुरापाषाण काल:-
2) मध्य पाषाण काल:-
➤नवपाषाण काल का कालक्रम 10,000 ईसवी पूर्व से 1,000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है।
➤ इस काल में कृषि की शुरुआत हो चुकी थी।
➤इस काल में आग के उपयोग करना प्रारंभ कर चुके थे।
➤झारखंड में इस काल में अवशेष रांची, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं।
➤छोटानागपुर प्रदेश में इस साल के 12 हस्त कुठार पाए गए हैं।
➤नवपाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है
1) ताम्र पाषाण काल
2) कांस्य युग
3) लौह युग
1) ताम्र पाषाण काल:-
➤इसका कालक्रम 4,000 ईस्वी पूर्व से 1000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है।
➤यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल तथा हड़प्पा पश्चात काल तीनों से संबंधित है।
➤पत्थर के साथ-साथ तांबे का उपयोग होने के कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा जाता है।
➤मानव द्वारा प्रयोग की गई प्रथम धातु तांबा ही थी।
➤झारखंड में इस काल का केंद्र बिंदु सिंहभूम था।
➤इस काल में असुर,बिरजिया तथा बिरहोर जनजातियां तांबा गलाने तथा उससे संबंधित उपकरण बनाने की कला से परिचित थे।
➤झारखंड के कई स्थानों से तांबा की कुल्हाड़ी तथा हजारीबाग के बाहरगंडा से तांबे की 49 खानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
2) कांस्य युग:-
➤इस युग में तांबे में टिन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था तथा उससे बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
➤छोटानागपुर क्षेत्र के असुर (झारखंड की प्राचीनतम जनजाति) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्य युगीन औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है।
3) लौह युग:-
➤इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
➤झारखंड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को लौह युग से निर्मित औजारों का प्रारम्भकर्ता माना जाता है।
➤असुर तथा बिरजिया जनजातियों के जनजातियों ने उत्कृस्ट लौह तकनीकी का विकास किया।
➤इस युग में झारखंड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्यों से भी था।
➤झारखंड में निर्मित लोहे को इस युग में मेसोपोटामिया तक भेजा जाता था,जहां दश्मिक में इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था।
Jharkhand Me Sanchar Vyavastha (झारखंड में संचार व्यवस्था)
Jharkhand Me Sanchar Vyavastha
(झारखंड में संचार व्यवस्था)
➤झारखंड में संचार के मुख्य साधन:- डाक तार, रेडियो, दूरभाष, दूरदर्शन तथा समाचार पत्र-पत्रिकाएं हैं।
➤राज्य में आकाशवाणी के पास केंद्र है :- रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर, मेदिनीनगर व चाईबासा।
➤इसके मुख्य केंद्र - रांची और जमशेदपुर में है।
➤झारखंड में अभी ऑल इंडिया रेलवे स्टेशन के 13 केंद्र हैं। इसके मुख्य केंद्र - रांची एवं जमशेदपुर में ।अन्य आकाशवाणी के स्थानीय रेडियो स्टेशन (एल आर सी) है :- हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, मेदनीनगर ,चाईबासा, चतरा ,देवघर,गढ़वा, घाटशिला, गुमला।
➤राज्य में दूरदर्शन का प्रथम केंद्र 1974 (छठी पंचवर्षीय योजना) रांची में स्थापित किया गया।
➤वर्तमान में मेदनीनगर (डालटेनगंज) तथा जमशेदपुर में भी दूरदर्शन केंद्र कार्यरत हैं।
➤राज्य में केवल 26 पॉइंट 8% (जनगणना 2011) घरों में टीवी है। यह अखिल भारतीय औसत (47. 2%) से बहुत कम है।
➤झारखंड में टीवी कवरेज पूरे भारत के औसत कवरेज का आधा है।
➤राज्य में इंटरनेट का प्रचलन भी बहुत कम है। यहां प्रति एक लाख आबादी पर इंटरनेट कनेक्शनो की संख्या 151 है, जो कि राष्ट्रीय औसत 1919 से काफी कम है।
➤राज्य में आधुनिक पत्रकारिता का आरंभ जी0 एल0 चर्च, रांची के द्वारा 1 दिसंबर 1872 से 'घर-बंधु' नामक पत्रिका प्रकाशित होने के साथ हुआ।
➤झारखंड का पहला दैनिक 'राष्ट्रीय भाषा' 1950 से प्रकाशित होना शुरू हुआ।
➤15 अगस्त 1963 से सप्ताहिक रांची एक्सप्रेस का प्रकाशन आरंभ हुआ।
➤वर्तमान झारखंड में कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रहे हैं।
➤झारखंड में कुल डाकघरों की संख्या 3094 है, जो प्रति एक लाख लोगों पर डाकघरों की संख्या 1 पॉइंट 06 है, जबकि भारत में यह संख्या 1.50 है।
➤आधारभूत संरचना के क्षेत्र में संचार सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।
➤राज्य प्रशासन ने संचार व्यवस्था के महत्व को देखते हुए इसे सुदृढ़ करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
➤झारनेट:-
➤झारनेट :- सरकार द्वारा 'झारखंड स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क' (Jharkhand State Wide Area Network) की स्थापना 2005-06 में की गई।
➤वर्तमान में झारनेट से सभी जिला मुख्यालयों, 45 अनुमंडल एवं 264 प्रखंडों में कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई गई है।
➤ई-ऑफिस:-
➤ई-ऑफिस:- झारखंड सरकार ऑफिस को पेपरलेस करने के उद्देश्य से ई-ऑफिस web-application झारखंड के सरकारी विभागों में कार्यों के अनुरूप कस्टमाइज तथा विकसित किया गया है।
➤इस परियोजना हेतु सूचना प्रौद्योगिकी एवं ई-गवर्नेंस विभाग नोडल विभाग है तथा जैप -आई टी क्रियान्वयन अभिकर्त्ता (Implementing Agency) है।
➤जैप -आई टी का गठन 29 मार्च 2004 को किया गया है
➤ई-मुलाकात :-
➤ई-मुलाकात :- यातायात के लागत, ईंधन, व्यय शुल्क इत्यादि में व्यय को कम करने के लिए ई-मुलाकात की प्रणाली विकसित की गई है।
➤इसमें वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई की जाती है।
➤ई-प्रोक्योरमेंट :-
➤ई-प्रोक्योरमेंट:- राज्य में विभिन्न प्रकार की निविदाओं की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए पांच लाख और इससे ऊपर की निविदाओं के लिए वर्तमान में 39 विभागों द्वारा प्रोक्योरमेंट की व्यवस्था अपनाई गई है।
➤झारखण्ड स्टेट डाटा सेंटर:-
➤इसका निर्माण त्रिस्तरीय संरचनात्मक और क्लाउड आधारित है।
➤राज्य में स्टेट डाटा सेंटर 1 अगस्त 2016 से कार्यरत है मेसर्स ऑरेंज को सौंपा गया है।
➤इसके संचालन की देख-रेख एन.आई.सी. द्वारा गठित दल द्वारा की जाती है, जबकि ऑडिट का कार्य डेलोंइट द्वारा किया जाता है।
➤सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया(STPI):-
➤सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया:- झारखंड राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को उत्कृष्ट स्तर की आधारभूत संरचना प्रदान करने के लिए इस पार्क की स्थापना की जा रही है।
➤इसके उद्देश्यों को पूरा करने हेतु जमशेदपुर एवं सिंदरी में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ़ इंडिया का निर्माण कार्य शुरू हो गया है।
➤इस कार्य के लिए 'जफ्रा' को परामर्शी (Consultant) के रूप में नियुक्त किया गया है।
➤एम्.एस.डी.जी.
➤एम्.एस.डी.जी.:- राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार की सहायता से इस परियोजना की शुरुआत की गई है।
➤इसमें आम नागरिकों की सुविधा के लिए दस्तावेजों को अपलोड किया गया है तथा आठ प्रकार के ई-फॉर्म्स को शामिल किया गया है।
➤कॉमन सर्विस सेंटर
➤कॉमन सर्विस सेंटर :- राज्य में 4460 ग्रामीण क्षेत्र एवं 233 शहरी क्षेत्र में कॉमन सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है।
➤राज्य की 4562 ग्राम पंचायतों में एक-एक प्रज्ञा केंद्र स्थापित एवं संचालित किए जा रहे हैं।
➤पेमेंट गेटवे
➤पेमेंट गेटवे :- झारखंड सरकार द्वारा नागरिकों को सुगम, संवेदनशील, पारदर्शी और कठिनाई रहित सेवा उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था वर्ष 2013 से की गई है।
➤इसका मुख्य उद्देश्य है कि नागरिक अपना कर, शुल्क अथवा सेवाओं के लिए उपेक्षित भुगतान भी घर बैठे या निकटतम प्रज्ञा केंद्रों इत्यादि के माध्यम से कर पाएं।