Jharkhand Ke Pramukh Mandir
झारखंड के प्रमुख मंदिर
➤छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा)
➤यह मंदिर रामगढ़ जिला में अवस्थित है।
➤यह दामोदर नदी और भेड़ा (भैरवी) नदी के संगम पर स्थित है।
➤इसकी प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में है तंत्रिकों के लिए तंत्र-साधना हेतु इसे उपयुक्त स्थल माना जाता है।
➤यहां शारदायी दुर्गा उत्सव में मां की महानवमी पूजा सबसे पहले संथाल आदिवासियों के द्वारा प्रारंभ की जाती है और इन्हीं के द्वारा प्रथम बकरे की बलि दी जाती है।
➤इस मंदिर में देवी काली की धड़ से अलग सर वाली मूर्ति स्थापित है जिस कारण इसे छिन्नमस्तिका कहा जाता है।
➤यह मूर्ति शक्ति के तीन रूपों-सौम्या, उग्र और काम में से उग्र रूप को प्रतिनिधित्व करती है।
➤देवी की छिन्न मस्तक मानव मस्तिक की चंचलता का प्रतीक है।
➤देवी के दाएं और बाएं डाकिनी और शाकिनी विराजमान है।
➤देवी के पैरों के नीचे रती-कामदेव को दर्शाया गया है जो कामनाओं के दमन का प्रतीक है।
➤छिन्नमस्तिका मंदिर को वन दुर्गा मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि 1947 ईस्वी तक यह मंदिर घने वनों के बीच स्थित है।
➤देवड़ी मंदिर (राँची)
➤यह मंदिर तमाड़ से 3 किलोमीटर दूर देवड़ी नामक ग्राम में स्थित है।
➤यहां 16 भुजा देवी की मूर्ति है।
➤देवी की मूर्ति के ऊपर शिव की मूर्ति है तथा अगल-बगल में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और गणेश की मूर्तियां हैं।
➤परंपरा के अनुसार इस मंदिर में सप्ताह में 6 दिन पाहन और एक दिन ब्राह्मण पुजारी पूजा करते हैं।
➤जगन्नाथ मंदिर (राँची)
➤इस मंदिर की स्थापना 1691 नागवंशी राजा ठाकुर ऐनी शाह के द्वारा की गई थी।
➤यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर यहां भी 100 फीट ऊंची मंदिर का निर्माण किया गया है।
➤रथ यात्रा के समय यहां विशाल मेला लगता है।
यह मंदिर रांची के क्षेत्र में जगह-जगह नाथ स्थित है।
➤कौलेश्वरी मंदिर (चतरा)
➤मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर चतरा में स्थित है।
➤मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर 1575 फुट की ऊंचाई वाले कलुआ पहाड़ पर स्थित है।
➤कोल्हुआ पहाड़ तीन धर्मों हिंदू, बौद्ध और जैनों का संगम स्थल है।
➤यहां ।जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव,पार्शवनाथ आदि की प्रतिमाएं स्थापित है।
➤कई मंदिरों के समूह को कालेश्वरी का मंदिर कहा जाता है।
➤यहां पशु बलि दी जाती है और मेले का आयोजन होता है।
➤मां भद्रकाली मंदिर (इटखोरी चतरा)
➤यह मन्दिर चतरा जिला में चौपारण से 16 किलोमीटर की दूरी पर इटखोरी प्रखंड के भदौली गांव में स्थित है।
➤इस मंदिर में भद्रकाली की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
➤यह मूर्ति शक्ति के रूप तीन रूपों -सौम्य, उग्र व काम में से सौम्य रूप का प्रतिनिधित्व करती है।
➤यह एक ही शिलाखंड से तराशी गई मूर्ति है, जो साढ़े चार फीट ऊंची, ढाई फीट चौड़ी और 30 मन भारी है।
➤संभवत यह मंदिर पालकाल में (पांचवी-छटवीं शताब्दी) स्थापित की गई थी।
➤यह सहत्रीलिंगी शिवलिंग भी है, जिसमें एक 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उकेरे गए हैं।
➤मंदिर परिसर में ही कोठेश्वरनाथ स्तूप है, जिसके चारों ओर भगवान बुद्ध की मूर्तियां अंकित है।
➤इसके ऊपर 4 इंच लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा है, जिसमें हमेशा 3 इंच पानी बना रहता है।
➤कुंदा का किला (चतरा)
➤यह किला चेरों का था, जो चतरा जिले के कुंदा नामक स्थान पर स्थित है,अब यह खंडहर हो चुका है।
➤इस कीले की मीनारें मुगल शैली से निर्मित है।
➤किले के प्रांगण में एक कुआं है, जहां सुरंगनुमा रास्ता था।
➤बैद्यनाथ मंदिर(देवघर)
➤इस मंदिर का निर्माण गिद्दौर राजवंश के दसवें राजा पूरणमल द्वारा कराया गया था।
➤शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक मनोकामना लिंग बैद्यनाथ धाम देवघर में स्थापित है।
➤इस मंदिर के प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं।
➤ये हैं - वैद्यनाथ, पार्वती, लक्ष्मीनारायण, तारा, काली, गणेश, सूर्य, सरस्वती, रामचंद्र, देवी अन्नपूर्णा, आनंद भैरव, नीलकंठ, गंगा, नरदेश्वर, राम-लक्ष्मण-सीता, जगत जननी, काल भैरव, ब्रह्म, संध्या गौरी, हनुमान, मनसा शंकर, बगुला माता काली के मंदिर।
➤यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
➤अकबर के सेनापति मानसिंह द्वारा यहां पर निर्मित एक मानसरोवर तालाब है।
➤मंदिर के गर्भगृह के शिखर पर अष्टदल कमल के बीच में चंद्रकांत मणि है।
➤यहां भगवान शिव के शिखर पर पंचशूल स्थापित है।
➤युगल मंदिर(देवघर)
➤यह मंदिर भी देवघर में है।
➤इसे नौलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है इसका निर्माण में ₹900000 खर्च हुए थे।
➤तपोवन मंदिर (देवघर)
➤यहां भगवान शिव का एक मंदिर है।
➤यहाँ गुफाएँ हैं ,जिसमें ब्रह्मचारी लोग निवास करते हैं।
➤कहा जाता है कि कभी माता सीता ने यहां तपस्या की थी।
➤बासुकीनाथ धाम (दुमका)
➤बासुकीनाथ धाम दुमका से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
➤बैद्यनाथ धाम आने वाले प्राय: प्रत्येक तीर्थयात्री यहां आए बगैर दिन और अपनी यात्रा पूरी नहीं मानता।
➤बासुकीनाथ की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है ,समुन्द्र मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी और बासुकीनाथ को रस्सी बनाया गया था।
➤बासुकिनाथ मंदिर को 150 वर्ष बताया जाता है, जिसका निर्माण बासकी तांती ने कराया था, जो हरिजन जाति का था।
➤शिवरात्रि के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है।
➤महामाया मंदिर (गुमला)
➤रांची-लोहरदगा-गुमला मार्ग में लोहरदगा से 14 किलोमीटर दूर गम्हरिया नामक स्थान में 1 किलोमीटर पश्चिम में हापामुनी नामक गांव में महामाया का मंदिर स्थित है।
➤इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा गजघंट ने 908 ईस्वी में करवाया था।
➤इस मंदिर में काली मां की मूर्ति स्थापित है।
➤यह एक तांत्रिक पीठ है।
➤इस मंदिर का प्रथम पुरोहित द्विज हरिनाथ थे।
➤टांगीनाथ मंदिर (गुमला)
➤यह मंदिर में मझगांव की पहाड़ी पर स्थित है।
➤टांगी पहाड़ पर शिवलिंग के अलावा दुर्गा,भगवती, लक्ष्मी ,गणेश, अर्धनारीश्वर, विष्णु, सूर्यदेव, हनुमान आदि की मूर्तियां हैं।
➤ये मूर्तियां प्राचीन शिल्पकला के सुंदर नमूने हैं।
➤मुख्य मंदिर का नाम टांगीनाथ अथवा शिव मंदिर है।
➤मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग के अलावा आठ अन्य शिवलिंग भी है।
➤हल्दीघाटी मंदिर (गुमला)
➤यह मंदिर गुमला जिले के कोराम्बे नामक स्थान में स्थित है।
➤यहां का पहला शासक कोल तेली राजा था।बाद में यहाँ रक्सेल आये।
➤यह स्थान नागवंशी राजा तथा रक्सेल के लिए हल्दी घाटी के समान माना जाता है।
➤कोरमबे में वासुदेव राय का मंदिर है।
➤वासुदेव राय की काले पत्थरों से निर्मित आकर्षक मूर्ति प्राचीन परंपरा का प्रतीक है।
➤मां योगिनी का मंदिर(गोड्डा)
➤यह मंदिर बराकोपा पहाड़ी पर स्थित है।
➤मान्यता है अनुसार मां-सीता का दाहिना जांघ यहां गिरा था।
➤यहां मां की प्रतिमा के रूप में जाँघ की आकृति का शैल अंश है।
➤भक्तजन यहां लाल वस्त्र चढ़ाते हैं।
➤इस मंदिर के समस्त निर्माण खर्चों का वहन श्रीमती चारुशिला देवी ने किया था।
➤श्री बंशीधर मंदिर (गढ़वा) :-
➤यह मंदिर नगर उंटारी में राजा के गढ़ के पीछे स्थित है।
➤इस मंदिर की स्थापना 1885 में की गई थी।
➤यहां राधा कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
➤सूर्य मंदिर (बंडू)
➤रांची-टाटा मार्ग पर बुंडू के नजदीक इस मंदिर की स्थापना की गई है।
➤यह मंदिर सूर्य के रथ की आकृति में बनाया गया है।
➤इसका निर्माण संस्कृति-विहार, रांची नामक एक संस्था ने किया है।
➤मंदिर की खूबसूरती के संबंध में स्थानीय साहित्यकारों ने इसे 'पत्थर पर लिखी कविता' कहा है।
➤बेनीसागर का शिव मंदिर (पश्चिमी सिंहभूम)
➤इस मंदिर का निर्माण काल 602 से 625 के बीच बताया जाता है।
➤संभवत:गौड़ शासक शशांक द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ था।
➤यहां से छठी शताब्दी की 33 छोटी-बड़ी मूर्तियां मिली हैं, जिसमें हनुमान, गणेश और दुर्गा की प्रतिमाएं प्रमुख है।
➤शिवलिंग के साथ शिलालेख भी यहां से प्राप्त हुए हैं।
➤उग्रतारा मंदिर नगर
➤यह मंदिर लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड मुख्यालय से लगभग 9 किलोमीटर दूर पर नगर गांव (मंदाकिनी पहाड़) में अवस्थित है।
➤इस मंदिर की प्रसिद्ध एक सिद्ध तंत्रपीठ के रूप में दूर-दूर तक व्याप्त है।
➤मंदिर में लगभग 2 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर पहाड़ी पर एक मजार है।
➤यह मजार मदारशाह के मजार के नाम से प्रसिद्ध है।
➤काली कुल की देवी उग्रतारा और श्री कुल की देवी लक्ष्मी का एक ही स्थान पर स्थापित होना इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।
0 comments:
Post a Comment