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Saturday, January 2, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Mandir (झारखंड के प्रमुख मंदिर)

Jharkhand Ke Pramukh Mandir

झारखंड के प्रमुख मंदिर

छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा)

➤यह मंदिर रामगढ़ जिला में अवस्थित है

यह दामोदर नदी और भेड़ा (भैरवी) नदी के संगम पर स्थित है

इसकी प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में है तंत्रिकों के लिए तंत्र-साधना हेतु इसे उपयुक्त स्थल माना जाता है

यहां शारदायी दुर्गा उत्सव में मां की महानवमी पूजा सबसे पहले संथाल आदिवासियों के द्वारा प्रारंभ की जाती है और इन्हीं के द्वारा प्रथम बकरे की बलि दी जाती है

इस मंदिर में देवी काली की धड़ से अलग सर वाली मूर्ति स्थापित है जिस कारण इसे छिन्नमस्तिका कहा जाता है

यह मूर्ति शक्ति के तीन रूपों-सौम्या, उग्र और काम में से उग्र रूप को प्रतिनिधित्व करती है

➤देवी की छिन्न मस्तक मानव मस्तिक की चंचलता का प्रतीक है

देवी के दाएं और बाएं डाकिनी और शाकिनी विराजमान है

देवी के पैरों के नीचे रती-कामदेव को दर्शाया गया है जो कामनाओं के दमन का प्रतीक है

➤छिन्नमस्तिका मंदिर को वन दुर्गा मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि 1947 ईस्वी तक यह मंदिर घने वनों के बीच स्थित है

देवड़ी मंदिर (राँची)

यह मंदिर तमाड़ से 3 किलोमीटर दूर देवड़ी नामक ग्राम में स्थित है

यहां 16 भुजा देवी की मूर्ति है

देवी की मूर्ति के ऊपर शिव की मूर्ति है तथा अगल-बगल में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और गणेश की मूर्तियां हैं

परंपरा के अनुसार इस मंदिर में सप्ताह में 6 दिन पाहन और एक दिन ब्राह्मण  पुजारी पूजा करते हैं

जगन्नाथ मंदिर (राँची)

इस  मंदिर की स्थापना 1691 नागवंशी राजा ठाकुर ऐनी शाह  के द्वारा की गई थी

यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर यहां भी 100 फीट ऊंची मंदिर का निर्माण किया गया है

रथ यात्रा के समय यहां विशाल मेला लगता है

 यह मंदिर रांची के क्षेत्र में जगह-जगह नाथ स्थित है 

कौलेश्वरी मंदिर (चतरा)

मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर चतरा में स्थित है

मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर 1575 फुट की ऊंचाई वाले कलुआ पहाड़ पर स्थित है 

➤कोल्हुआ पहाड़ तीन धर्मों  हिंदू, बौद्ध और जैनों का संगम स्थल है 

यहां जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव,पार्शवनाथ आदि की प्रतिमाएं स्थापित है 

कई मंदिरों के समूह को कालेश्वरी का मंदिर कहा जाता है

यह गुफाओं का मंदिर है

यहां पशु बलि दी जाती है और मेले का आयोजन होता है

मां भद्रकाली मंदिर (इटखोरी चतरा)  

यह मन्दिर चतरा जिला में चौपारण से 16 किलोमीटर की दूरी पर इटखोरी प्रखंड के भदौली गांव में स्थित है

इस मंदिर में भद्रकाली की मूर्ति प्रतिष्ठित है

यह मूर्ति शक्ति के रूप तीन रूपों -सौम्य, उग्र व काम में से सौम्य रूप का प्रतिनिधित्व करती है

यह एक ही शिलाखंड से तराशी गई मूर्ति है, जो साढ़े चार फीट ऊंची, ढाई फीट चौड़ी और 30 मन भारी है

संभवत यह  मंदिर पालकाल में (पांचवी-छटवीं शताब्दी) स्थापित की गई थी

यह सहत्रीलिंगी शिवलिंग भी है, जिसमें एक 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उकेरे गए हैं

मंदिर परिसर में ही कोठेश्वरनाथ स्तूप है, जिसके चारों ओर भगवान बुद्ध की मूर्तियां अंकित है

इसके ऊपर 4 इंच लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा है, जिसमें हमेशा 3 इंच पानी बना रहता है

कुंदा का किला (चतरा)

यह किला चेरों का था, जो चतरा जिले के कुंदा  नामक स्थान पर स्थित है,अब यह खंडहर हो चुका है

इस कीले की मीनारें मुगल शैली से निर्मित है

किले के प्रांगण में एक कुआं है, जहां सुरंगनुमा रास्ता था

बैद्यनाथ मंदिर(देवघर)

इस मंदिर का निर्माण गिद्दौर राजवंश के दसवें राजा पूरणमल द्वारा कराया गया था

शिव  के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक मनोकामना लिंग बैद्यनाथ धाम देवघर में स्थापित है

इस मंदिर के प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं

➤ये हैं - वैद्यनाथ, पार्वती, लक्ष्मीनारायण, तारा, काली, गणेश, सूर्य, सरस्वती, रामचंद्र, देवी अन्नपूर्णा, आनंद भैरव, नीलकंठ, गंगा, नरदेश्वर, राम-लक्ष्मण-सीता, जगत जननी, काल भैरव, ब्रह्म, संध्या गौरी, हनुमान, मनसा शंकर, बगुला माता काली के मंदिर

यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है

अकबर के सेनापति मानसिंह द्वारा यहां पर निर्मित एक मानसरोवर तालाब है

मंदिर के गर्भगृह के शिखर पर अष्टदल कमल के बीच में चंद्रकांत मणि है

यहां भगवान शिव के शिखर पर पंचशूल स्थापित है

युगल मंदिर(देवघर)

यह  मंदिर भी देवघर में है

इसे  नौलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है इसका निर्माण में ₹900000 खर्च हुए थे

तपोवन मंदिर (देवघर)

यहां भगवान शिव का एक मंदिर है

➤यहाँ गुफाएँ हैं ,जिसमें ब्रह्मचारी लोग निवास  करते हैं

कहा जाता है कि कभी माता सीता ने यहां तपस्या की थी

बासुकीनाथ धाम (दुमका)

बासुकीनाथ धाम दुमका से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

बैद्यनाथ धाम आने वाले प्राय: प्रत्येक तीर्थयात्री यहां आए बगैर दिन और अपनी यात्रा पूरी नहीं मानता

बासुकीनाथ की कथा समुद्र मंथन  से जुड़ी हुई है ,समुन्द्र मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी और बासुकीनाथ को रस्सी  बनाया गया था

बासुकिनाथ मंदिर को 150 वर्ष बताया जाता है, जिसका निर्माण बासकी तांती ने कराया था, जो हरिजन जाति का था

शिवरात्रि के दिन यहाँ  विशाल मेला लगता है

महामाया मंदिर (गुमला)

रांची-लोहरदगा-गुमला मार्ग में लोहरदगा से 14 किलोमीटर दूर गम्हरिया नामक स्थान में 1 किलोमीटर पश्चिम में हापामुनी नामक गांव में महामाया का मंदिर स्थित है

इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा गजघंट ने 908 ईस्वी में करवाया था

इस मंदिर में काली मां की मूर्ति स्थापित है

यह एक तांत्रिक पीठ है

इस मंदिर का प्रथम पुरोहित द्विज हरिनाथ थे

टांगीनाथ मंदिर (गुमला)

यह मंदिर में मझगांव की पहाड़ी पर स्थित है

टांगी पहाड़ पर शिवलिंग के अलावा दुर्गा,भगवती, लक्ष्मी ,गणेश, अर्धनारीश्वर, विष्णु, सूर्यदेव, हनुमान आदि की मूर्तियां हैं

➤ये मूर्तियां प्राचीन शिल्पकला के  सुंदर नमूने हैं

मुख्य मंदिर का नाम टांगीनाथ अथवा शिव मंदिर है

मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग के अलावा आठ अन्य शिवलिंग भी है

हल्दीघाटी मंदिर (गुमला)

यह मंदिर गुमला जिले के कोराम्बे नामक स्थान में स्थित है

यहां का पहला शासक कोल तेली राजा था।बाद में यहाँ रक्सेल आये 

➤यह स्थान नागवंशी राजा तथा रक्सेल के लिए हल्दी घाटी के समान माना जाता है

कोरमबे में वासुदेव राय का मंदिर है

वासुदेव राय की काले पत्थरों से निर्मित आकर्षक मूर्ति प्राचीन परंपरा का प्रतीक है

मां योगिनी का मंदिर(गोड्डा)

यह मंदिर बराकोपा पहाड़ी पर स्थित है

मान्यता है अनुसार मां-सीता का दाहिना जांघ यहां गिरा था

यहां मां की प्रतिमा के रूप में जाँघ  की आकृति का शैल अंश है 

भक्तजन यहां लाल वस्त्र चढ़ाते हैं

इस मंदिर के समस्त निर्माण खर्चों का वहन श्रीमती चारुशिला देवी ने किया था

श्री बंशीधर मंदिर (गढ़वा) :-

यह मंदिर नगर उंटारी में राजा के गढ़ के पीछे स्थित है

इस मंदिर की स्थापना 1885 में की गई थी

यहां राधा कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं

सूर्य मंदिर (बंडू)

रांची-टाटा मार्ग पर बुंडू के नजदीक इस मंदिर की स्थापना की गई है

यह मंदिर सूर्य के रथ की आकृति में बनाया गया है

इसका निर्माण संस्कृति-विहार, रांची नामक एक संस्था ने किया है

मंदिर की खूबसूरती के संबंध में स्थानीय साहित्यकारों ने इसे 'पत्थर पर लिखी कविता' कहा है

बेनीसागर का शिव मंदिर (पश्चिमी सिंहभूम

इस मंदिर का निर्माण काल 602 से 625 के बीच बताया जाता है

संभवत:गौड़ शासक शशांक द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ था

यहां से छठी शताब्दी की 33 छोटी-बड़ी मूर्तियां मिली हैं, जिसमें हनुमान, गणेश और दुर्गा की प्रतिमाएं प्रमुख है

शिवलिंग के साथ शिलालेख भी यहां से प्राप्त हुए हैं

उग्रतारा मंदिर नगर

यह मंदिर लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड मुख्यालय से लगभग 9 किलोमीटर दूर पर नगर गांव (मंदाकिनी पहाड़) में अवस्थित है

इस मंदिर की प्रसिद्ध एक सिद्ध तंत्रपीठ के रूप में दूर-दूर तक व्याप्त है

मंदिर में लगभग 2 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर पहाड़ी पर एक मजार है

यह मजार मदारशाह के मजार के नाम से प्रसिद्ध है

काली कुल की देवी उग्रतारा और श्री कुल की देवी लक्ष्मी का एक ही स्थान पर स्थापित होना इस मंदिर की मुख्य विशेषता है



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