Tamar Vidroh (1782-1821)
➧ इस विद्रोह का प्रारंभ मुंडा आदिवासियों ने अंग्रेजों द्वारा बाहरी लोगों को प्राथमिकता देने तथा नागवंशी शासकों के शोषण के विरुद्ध तमाड़ क्षेत्र में किया।
➧ यह अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे लंबा, वृहत्तम और सबसे खूनी आदिवासी विद्रोह था।
➧ यह विद्रोह छ: चरणों में संचालित हुआ।
➧ प्रथम चरण (1782-83)
➧ सन 1782 में रामगढ़, पंचेत तथा बीरभूम के लोग भी तमाड़ में संगठित होने लगे तथा इस विद्रोह को मजबूती प्रदान की। इसका नेतृत्व ठाकुर भोलानाथ सिंह ने किया था।
➧ नागवंशी शासकों द्वारा इस विद्रोह को दबाने का प्रयास किया गया जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप विद्रोहियों ने अधिक आक्रमक रूख अख्तियार कर लिया।
➧ साथ ही इस विद्रोह को कुछ जमींदारों का भी समर्थन मिला मिलना प्रारंभ हो गया।
➧ सन 1783 के अंत में अंग्रेजी अधिकारी जेम्स क्रॉफर्ड द्वारा विद्रोहियों को आत्मसमर्पण हेतु विवश किये जाने के बाद विद्रोह अगले 5 वर्षों के लिए शांत हो गया।
➧ द्वितीय चरण (1789)
➧ 5 वर्षों बाद 1789 में मुंडाओं ने विष्णु मानकी तथा मौजी मानकी के नेतृत्व में कर देने से इनकार कर दिया जिसके बाद यह विद्रोह पुनः प्रारंभ हो गया।
➧ इस विद्रोह को दबाने हेतु कैप्टन होगन को भेजा गया जो असफल रहा।
➧ पुनः अन्य अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट कुपर को विद्रोह को शांत करने का दायित्व सौंपा गया तथा कुपर के प्रयासों के परिणाम स्वरूप विद्रोह अगले 4 वर्षों तक शांत रहा।
➧ तृतीय चरण (1794-98)
➧ 1794 ईस्वी में यह विद्रोह पुनः प्रारंभ हो गया तथा 1796 ईस्वी में इसने व्यापक स्वरूप धारण कर लिया।
➧ 1796 ईस्वी में राहे के राजा नरेंद्र शाही द्वारा अंग्रेजों का साथ दिए जाने के कारण सोनाहातू गांव में आदिवासियों द्वारा नरेंद्र शाही का विरोध किया गया।
➧ यह विद्रोह तमाड़ के ठाकुर भोलानाथ सिंह के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था।
➧ इसके अतिरिक्त सिल्ली के ठाकुर विश्वनाथ सिंह, विशुनपुर के ठाकुर हीरानाथ सिंह, बुंडू के ठाकुर शिवनाथ सिंह, एवं आदिवासी नेता रामशाही मुंडा ने इस विद्रोह में प्रमुखता से भाग लिया।
➧ विद्रोहियों द्वारा रिश्तेदार की हत्या किए जाने के बाद राहे के राजा नरेंद्र शाही फरार हो गए।
➧ 1798 ईस्वी में कैप्टन लिमंड द्वारा कई विद्रोहियों तथा कैप्टन बेन द्वारा भोलानाथ सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया जिसके परिणाम स्वरूप तमाड़ विद्रोह कमजोर पड़ गया।
➧ चौथा चरण (1807-08)
➧ 1807 ईस्वी में दुखन शाही के नेतृत्व में मुंडा जनजाति के लोगों ने पुनः विद्रोह प्रारम्भ कर दिया।
➧ 1808 ईस्वी में कैप्टन रफसीज के नेतृत्व में दुखन शाही को गिरफ्तार किए जाने के बाद यह विद्रोह शांत पड़ गया।
➧ पांचवा चरण (1810-12)
➧1810 ईस्वी में नवागढ़ क्षेत्र के जागीरदार बख्तर शाह के नेतृत्व में यह विद्रोह पुनः प्रारंभ हो गया।
➧ इस विद्रोह के दमन हेतु अंग्रेजी सरकार द्वारा लेफ्टिनेंट एच.ओडोनेल को भेजा गया जिसने 1812 ईस्वी में नवागढ़ पर हमला कर दिया। बख्तर शाह इस हमले से बचकर सरगुजा भाग गया जिसके बाद यह विद्रोह मंद पड़ गया।
➧ छठा चरण (1819-21)
➧ 1819 ईस्वी में यह विद्रोह पुनः भड़क उठा जिसके प्रमुख नेता रुदन मुंडा तथा कुंटा मुंडा थे।
➧ इसके अतिरिक्त इसमें दौलत राय मुंडा, मंगल राय मुंडा, गाजी राय मुंडा, मोची राय मुंडा, भद्रा मुंडा, झलकारी मुंडा, टेपा मानकी, चन्दन सिंह, घूंसा सरदार आदि ने भी भाग लिया।
➧ तमाड़ के राजा गोविंद साही द्वारा सहायता मांगे जाने पर अंग्रेज अधिकारी ई. रफसेज ने जे. कोलविन के साथ मिलकर विद्रोह को दबाने का प्रयास किया। इस अभियान के फलस्वरुप रुदन मुंडा और कुंटा मुंडा को छोड़कर सभी प्रमुख विद्रोही नेता गिरफ्तार हो गये।
➧ जुलाई, 1820 में रुदन मुंडा तथा मार्च, 1821 कुंटा मुंडा के गिरफ्तार होने के साथ ही यह विद्रोह समाप्त हो गया।
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