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Friday, May 7, 2021

Kol Vidroh 1831-32 (कोल विद्रोह 1831-1832)

Kol Vidroh (1831-32) 

➧ कोल विद्रोह झारखंड का प्रथम संगठित तथा व्यापक जनजातीय आंदोलन था।अतः झारखंड में हुए विभिन्न जनजातीय विद्रोह में इसका विशेष स्थान है। 

कोल विद्रोह 1831-1832

 इस विद्रोह के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे। 

(i) लगान की ऊंची दरें तथा लगान नहीं चुका पाने की स्थिति में भूमि से मालिकाना हक की समाप्ति।

(ii) अंग्रेजों द्वारा अफीम की खेती हेतु आदिवासियों को प्रताड़ित किया जाना।

(iii) जमींदारों और जागीरदारों द्वारा कोलों का अमानवीय शोषण और उत्पीड़न।

(iv) दिकुओं (अंग्रेजों द्वारा नियुक्त बाहरी गैर-आदिवासी कर्मचारी), ठेकेदारों व व्यापारियों द्वारा आदिवासियों का आर्थिक शोषण।

(v)अंग्रेजों द्वारा आरोपित विभिन्न प्रकार के कर (उदाहरण स्वरूप 1824 में हड़िया पर लगाया गया 'पतचुई' नामक कर) 

(vi) विभिन्न मामलों के निपटारे हेतु आदिवासियों के परंपरागत 'पहाड़ा पंचायत व्यवस्था' के स्थान पर अंग्रेजी कानून को लागू किया जाना।

➧ इस विद्रोह के प्रारंभ से पूर्व सोनपुर परगना के सिंदराय मानकी के 12 गांवों की जमीन छीनकर सिक्खों को दे दी गई तथा सिक्खों ने सिंगराई की दो बहनों का कर अपहरण कर उनकी इज्जत लूट ली

 इसी प्रकार सिंहभूम के बंदगांव में जफर अली नामक मुसलमान ने सुर्गा मुंडा की पत्नी का अपहरण कर इसकी इज्जत लूट ली

➧ इन घटनाओं के परिणाम स्वरुप सिंदराय मानकी और सुर्गा मुंडा के नेतृत्व में 700 आदिवासियों ने उन गांवों  पर हमला कर दिया जो सिंदराय मानकी से छीन लिए गये थे

➧ इस हमले की योजना बनाने हेतु तमाड़ के लंका गांव में एक सभा का आयोजन किया गया था जिसकी व्यवस्था बंदगांव के बिंदराई मानकी ने की थी

➧ इस हमले के दौरान विद्रोहियों ने जफर अली के गांव पर हमला कर दिया तथा जफर अली व उसके 10 आदिवासियों को मार डाला

➧ यह विद्रोह 1831 ईस्वी में प्रारंभ होने के अत्यंत तीव्रता से छोटानागपुर ख़ास, पलामू, सिंहभूम और मानभूम क्षेत्र तक प्रसारित हो गया 

➧ इस विद्रोह को मुंडा,  हो,  चेरो,  खरवार आदि जनजातियों का भी व्यापक समर्थन प्राप्त था  

➧ हजारीबाग में बड़ी संख्या में अंग्रेज सेना की मौजूदगी के कारण यह क्षेत्र इस विद्रोह से पूर्णत: अछूता रहा 

➧ इस विद्रोह के प्रसार हेतु प्रतिक चिन्ह के रूप में तीर का प्रयोग किया गया 

➧ इस विद्रोह के प्रमुख नेता बुधु भगत (सिली निवासी) अपने भाई, पुत्र व डेढ़ सौ (150) साथियों के साथ विद्रोह के दौरान मारे गये। बुध्दू भगत को कैप्टन इम्पे ने मारा था

➧ अंग्रेज अधिकारी कैप्टन विलिंक्सन ने रामगढ़, बनारस, बैरकपुर, दानापुर तथा गोरखपुर की अंग्रेजी सेना की सहायता से इस विद्रोह का दमन करने का प्रयास किया 

➧ विभिन्न हथियारों और सुविधाओं से लैस अंग्रेजी सेना के विरुद्ध केवल तीर-धनुष के लैस विद्रोहियों ने 2 महीने तक डटकर अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया 

➧ इस विद्रोह को दबाने में पिठौरिया के तत्कालीन राजा जगतपाल सिंह ने अंग्रेज की मदद की थे जिसके बदले में तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम बैटिंग ने उन्हें ₹313प्रतिमाह आजीवन पेंशन देने की घोषणा की

➧ 1832 ईस्वी में सिंदराय मानकी तथा सुर्गा मुंडा (बंदगांव, सिंहभूम निवासी) ने आत्मसमर्पण कर दिया जिसके पश्चात विद्रोह कमजोर पड़ गया

➧ इस विद्रोह के बाद छोटानागपुर क्षेत्र में बंगाल के सामान्य कानून के स्थान पर 1833 ईस्वी का रेगुलेशन-III  लागू किया गया

➧ साथ ही जंगलमहल जिला को समाप्त कर नन-रेगुलेशन प्रान्त के रूप में संगठित किया गया इसे बाद  में दक्षिण-पश्चिमी सीमा एजेंसी' का नाम दिया गया

➧ इस क्षेत्र के प्रशासन के संचालन की जिम्मेदारी गवर्नर जनरल के एजेंट के माध्यम से की जाने की व्यवस्था की गई तथा इसका पहला एजेंट थॉमस विलिंक्सन को बनाया गया 

➧ इस विद्रोह के बाद मुंडा-मानकी शासन प्रणाली को भी वित्तीय व् न्यायिक अधिकार भी प्रदान किए  

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