Banjara Janjati Ka Samanya Parichay
➧ बंजारा झारखंड के घुमक्कड़ किस्म की अल्पसंख्यक जनजाति है जो छोटे-छोटे गिरोहों में घूमती रहती है इनका कोई गांव नहीं होता है।
➧ इसकी आबादी अब मात्र -487 है, जो राज्य की जनजातीय आबादी का 0.01% है।
➧ 1956 ईस्वी में इन्हें जनजाति का दर्जा प्रदान किया गया था।
➧ इस जनजाति का सबसे अधिक सकेंद्रण संथाल परगना क्षेत्र में है।
➧ यह जनजाति अपनी भाषा को लंबाडी कहते हैं।
➧ समाज एवं संस्कृति
➧ इस जनजाति का समाज पितृसत्तात्मक होता है।
➧ इनका परिवार नाभिकीय होता है जिसमें माता-पिता और अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं।
➧ यह जनजाति चौहान, पावर, राठौर तथा उर्वा नामक चार वर्गों में विभाजित है।
➧ इस जनजाति में राय की उपाधि काफी प्रचलित है।
➧ इस जनजाति में विधवा विवाह को नियोग कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को हारजी कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में विवाह पूर्व सगाई की रस्म प्रचलित है।
➧ इस जनजाति में 'आल्हा -उदल' की लोककथा काफी प्रचलित है तथा ये तथा यह 'आल्हा -उदल' को वीर पुरुष मानते हैं।
➧ इस जनजाति के गीतों में पृथ्वीराज चौहान का उल्लेख मिलता है।
➧ इस जनजाति का लोक नृत्य 'दंड-खेलना' अत्यंत प्रचलित है।
➧ आर्थिक व्यवस्था
➧ पेशेगत दृष्टि से इन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है, जिसमें गुलगुलिया (भिक्षुक वर्ग ) एवं कंजर (अपराधिक वर्ग) प्रमुख हैं।
➧ यह जनजाति जड़ी-बूटी के अच्छे जानकार होते हैं।
➧ इस जनजाति के लोग संगीत प्रेमी होते हैं तथा संगीत से जुड़ा हुआ पेशा भी अपनाते हैं।
➧ धार्मिक व्यवस्था
➧ इनकी प्रमुख देवी बंजारी देवी है।
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