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Tuesday, May 4, 2021

Chero Vidroh 1770-1819 (चेरो विद्रोह 1770-1819)

Chero Vidroh 1770-1819

प्रथम चरण (1770-1771)

➧ उत्तराधिकार की इस लड़ाई में पलामू के चेरो राजा चित्रजीत राय ने अपने दीवान जयनाथ सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर लिया

➧ इस विद्रोह का मूल कारण अंग्रेजों द्वारा पलामू की राजगद्दी के दावेदार गोपाल राज को राय को समर्थन प्रदान करना था 

चेरो विद्रोह 1770-1819

➧ इस विद्रोह के प्रथम चरण का दमन जैकब कैमक द्वारा किया गया 

➧ चेरो विद्रोहियों को पराजित करने के बाद अंग्रेजों ने पलामू किले पर कब्जा कर लिया तथा 1 जुलाई 1771 ईस्वी को गोपाल राय को पलामू का राजा घोषित कर दिया 

➧ द्वितीय चरण (1800-1819

➧ इस विद्रोह का दूसरा चरण सन 1800 ईस्वी में भुखन सिंह के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ

➧ इसका कारण चेरो जनजाति के लोगों में ज्यादा कर वसूली तथा पट्टों के पुनः अधिग्रहण के खिलाफ  व्याप्त असंतोष था 

➧ 1802 ईस्वी में कर्नल जोंस के नेतृत्व में राजा भुखन सिंह को गिरफ्तार करके फांसी दे दी गई, जिसके बाद यह विद्रोह कमजोर पड़ने लगा

 1809 ईस्वी में अंग्रेजों द्वारा इस विद्रोह का पूरी तरह से दमन करने हेतु जमींदारी पुलिस बल का गठन किया गया 

➧ 1813 ईस्वी में चेरो राजा चूड़ामन राय द्वारा बकाया चुकाने में असमर्थ के कारण अंग्रेजों ने उसके राज्य को नीलाम कर दिया  

➧ 1815 ईस्वी में अंग्रेजों ने नीलाम किए गए राज्य को देव के राजा घनश्याम सिंह से बेच दिया जिसके परिणाम स्वरुप ऐतिहासिक चेरो  राजवंश समाप्त हो गया 

 उपरोक्त घटनाओं के परिणाम स्वरूप चेरो जनजाति के लोग, जागीरदार एवं पूर्व के राजा व उनके समर्थकों ने सामूहिक रूप से अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने का निर्णय लिया तथा 1817 में अंग्रेजों के विरुद्ध पुणे एक व्यापक विरोध प्रारंभ हो गया। 

➧ विद्रोह के इस दूसरे चरण का नेतृत्व चैनपुर के ठाकुर रामबख्श सिंह एवं रांका के शिव प्रसाद सिंह ने किया 

➧ इस विद्रोह का दमन करने हेतु अंग्रेजों ने रफसेज को नियुक्ति किया जिसने जागीरदारों एवं विद्रोही नेताओं को गिरफ्तार कर लिया

 इसके बाद भी विद्रोह को दबाया नहीं जा सका 

➧ अंततः 1819 ईस्वी में अंग्रेजों ने पलामू को नीलाम करने के नाम पर अपने अधिकार में ले लिया  

➧ पलामू की नीलामी के बाद अंग्रेजों ने इसके शासन की जिम्मेदारी भरदेव के राजा घनश्याम सिंह को सौंप दी 

➧ 1819 में चेरो  ने घनश्याम सिंह और अंग्रेजों के विरुद्ध फिर से विद्रोह कर दिया

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