Oraon Janjati Ka Samanya Parichay
➧ यह झारखंड की दूसरी तथा भारत की चौथी सबसे बड़ी जनजाति है। झारखंड के जनजातीय आबादी में इसका प्रतिशत 18 प्वाइंट्स 14% है।
➧ इसका निवास स्थान छोटा नागपुर पठार है, जहां 90% आबादी निवास करती हैं।
➧ इस जनजाति का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र है तथा यह बख्तियार रुद्दीन खिलजी के आक्रमण के साथ झारखंड में प्रवेश किया।
➧ इस जनजाति की भाषा कुड़ुख है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'मनुष्य' होता है।
➧ प्रजातिय दृष्टिकोण से यह जनजातीय द्रविड़ है, जिसमें बी. रक्त समूह की प्रधानता है।
➧ 1915 में शरदचंद्र राय 'द उरांव ऑफ छोटा नागपुर' नामक पुस्तक लिखी, जो इस जनजाति से जुड़ा प्रमुख पुस्तक है।
➧ राजनीतिक दृष्टि से
➧ उरांव जनजाति की प्रशासनिक व्यवस्था पड़हा पंचायत कहलाती है। जिसमे :-
(i) ग्राम प्रमुख : महतो
(ii) महतो के सहयोगी को : मांझी और
(iii) सर्वोच्च राजा को : पड़हा दीवान कहते हैं।
➧ सामाजिक दृष्टिकोण से
(i) उरांव जनजाति के में 14 गोत्र हैं, जिन्हें किली कहा जाता है।
(ii) गोदना प्रथा का विशिष्ट महत्व है।
(iii) बंदर का मांस खाना वर्जित है।
(iv) एकल परिवार की मजबूत अवधारणा है जो पितृवंशीय है।
(v) पर्व त्योहार के अवसर पर पुरुष केरेया एवं महिला खनारिया वस्त्र पहनते हैं।
(vi) संगोत्र विवाह वर्जित है।
(vii) सर्वाधिक प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है, जिसमें वर पक्ष को वधू मूल्य देना पड़ता है।
➧ युवागृह धुमकुड़िया का स्वरूप
(i) धुमकुड़िया में सरहुल के अवसर पर 3 वर्ष में एक बार 10 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रवेश मिलता है, जिसका उद्देश्य युवा-युवतियों को जनजातीय परंपरा का प्रशिक्षण देना है।
(ii) युवकों को रहने के लिए बना युवागृह जोग ऐड़पा एवं युवतियों के लिए बना युवागृह पेल ऐड़पा कहलाता है।
(iii) जोग ऐड़पा का मुख्य धांगर होता है, जबकि पेल ऐड़पा का मुखिया बड़की धांगरिन कहलाती है।
➧ आर्थिक दृष्टिकोण से
(i) यह जनजाति कृषि कार्य पर निर्भर करती है तथा इसका भोजन चावल, जंगली पक्षी एवं फल है।
(ii) झारखंड में सर्वाधिक विकास उरांव जनजाति का ही हुआ है।
➧ धार्मिक दृष्टिकोण से
(i) उराँवो के प्रमुख देवता निम्न है:-
1. सर्वोच्च देवता : धर्मेश (सूर्य )
2. ग्राम देवता : ठाकुर देवता
3. सीमांत देवता : डिहवार
4. पहाड़ देवता : मरांग बुरु
5. कुल देवता : पूर्वाजात्मा
6. गांव के धार्मिक प्रमुख को : पाहन
7. पाहन के सहयोगी (ओझा-गुनी) : बैगा कहलाता है।
(ii) उरांव समुदाय के लोग फसल की रक्षा के लिए भेलवा पूजा तथा गांव की सुरक्षा के लिए गोरेया पूजा करते हैं।
(iii) उरांव में मुख्य पूजा स्थल को सरना एवं पूर्वजों की आत्मा का निवास स्थान सासन कहलाता है। उरांव तंत्र-मंत्र विद्या में विश्वास करते हैं तथा इसमें बैगा की मुख्य भूमिका होती है।
(iv) उरांवों में सरना संस्कृतिक वाले शव का दाह संस्कार करते हैं, जबकि इसाई धर्म मानने वालों को दफनाया जाता है।
➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से
(i) इस जनजाति का मुख्य त्यौहार करमा एवं सरहुल है।
(ii) इनका प्रमुख नृत्य यदुर है।
(iii) इनका नित्य स्थान आखड़ा कहलाता है।
(iv) इनके नववर्ष का आरंभ नवम्बर-दिसम्बर धान की कटाई के बाद होता है।
(v) उरांव गांवों को भुईहर कहते हैं।
(vi) उरांवों की सबसे बड़ी पंचायत पड़हा कहलाती है।
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