Ho Janjati Ka Samanya Parichay
➧ जनसंख्या की दृष्टि से हो जनजाति झारखंड की चौथी सबसे बड़ी जनजाति है, जो प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड श्रेणी से संबंधित है।
➧ इनकी भाषा 'हो' है जिसकी लिपि वारंग क्षिति है।
➧ इनका निवास स्थान मुख्यत: पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां है।
➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से
(i) हो जनजाति मुंडा ओं से प्रभावित है। प्रशासनिक व्यवस्था के तहत ग्राम प्रधान को मुंडा एवं मुंडा के सहायक को डाकुआ कहते हैं।
(ii) फिर 7-12 गांवों का एक समूह बनता है, जिसे पीर या परहा कहते हैं, जिसका प्रमुख मानकी होता है, अर्थात यह मुंडा-मानकी शासन व्यवस्था का ही रूप है।
➧ सामाजिक दृष्टिकोण से
(i) हो जनजाति 80 से अधिक गोत्र में विभाजित है, जिसमें बोदरा, बारला, बालमुचु , हेम्ब्रम,अंगारिया मुख्य है।
(ii) आरंभ में यह जनजाति मातृसतात्मक था, परंतु धीरे-धीरे इसका रूपांतरण पितृसतात्मक में हुआ है।
(iii) संगोत्रीय विवाह निषेध है, परंतु बहुविवाह का प्रचलन है। ममेरे भाई तथा बहन की शादी को प्राथमिकता दी जाती है।
(iv) हो जनजाति में पांच प्रकार के विवाह का प्रचलन है, जिसमें सबसे अधिक प्रचलित विवाह आंदि विवाह है, जिसमें वर विवाह का प्रस्ताव लेकर वधू के घर जाता है।
अन्य विवाह निम्न है।
दिकू आंदि : गैर जनजातिय परंपरा के साथ विवाह
अंडी/ओपोर्तिपि : कन्या का हरण कर विवाह
राजी-खुशी विवाह : प्रेम विवाह
आंदेर विवाह : वधू द्वारा वर के यहां बलपूर्वक रहना, जब तक शादी ना हो जाए।
(iv) इनका युवागृह गीतिओड़ा कहलाता है, जहां अस्त्र-शस्त्र वाद्य यंत्र भी रखा जाता है।
➧ आर्थिक दृष्टिकोण से
हो जनजाति का प्रमुख पैसा कृषि है।
इली इनका प्रमुख पेय पदार्थ है, जिससे देवी-देवताओं पर भी चढ़ाया जाता है।
ये अपनी भूमियों को तीन श्रेणी में बाँटते हैं।
बेड़ो : अधिक उपजाऊ भूमि
वादी : धान खेती के लिए उपयुक्त
गोडा : मोटे अनाज के लिए उपयुक्त
➧ धार्मिक दृष्टिकोण से
(i) हो जनजाति के सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा है, परंतु साथ ही कई अन्य देवताओं का भी प्रचलन है। जैसे:-
पाहुई बोंगा : ग्राम देवता
ओरी बोड़ोम : पृथ्वी देवता
मरांग बुरु : पहाड़ देवता
देशाउली बोंगा : वर्षा देवता
(ii) हो जनजाति के लोग 'सूर्य, चंद्रमा, नदी, दुर्गा, काली, हनुमान' के भी उपासक होते हैं भूत-प्रेत, जादू-टोना में विश्वास करते हैं।
(iii) देउरी नामक पुरोहित इनका धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता है।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से
(i) इनके गांवों के बीच एक अखाड़ा होता है जिसे स्टे:तुरतुड कहते हैं। यहां नाच, गान, मनोरंजन, प्रशिक्षण की व्यवस्था होती है
(ii) इनके घर के एक कोने में आंदि स्थल होता है, जो पूर्वजों का पवित्र स्थान माना जाता है।
(iii) इस जनजाति के लोगों को सामान्यत: मूंछ-दाढ़ी नहीं होती है।
(iv) इस जनजाति का सबसे प्रमुख त्यौहार माघे हैं इसके अलावे 'बाहा, हेरो, बताउली, दमुराई, जोमनाया, कोलोभ प्रमुख पर्व है।
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