Munda Janjati Ka Samanya Parichay
➧ यह झारखंड की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है तथा कुल जनजातीय आबादी में इसका प्रतिशत 14 पॉइंट 56 है।
➧ मुंडा का मूल निवास स्थान तिब्बत बताया जाता है तथा इनका फैलाव संपूर्ण झारखंड में है।
➧ मुंडा एक ऐसी जनजाति है, जो केवल झारखंड में ही निवास करती है।
➧ झारखंड में इसका मुख्य संकेन्द्रण रांची, गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावां में है।
➧ मुंडा जनजाति प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड प्रजाति से संबंधित है, जिसे कोलेरियन समूह में रखा जाता है।
➧ मुंडा जनजाति को कोल भी कहा जाता है ये अपनी जाति को होड़ो तथा स्वयं को होड़ोको कहते हैं।
➧ इनकी भाषा मुंडारी है।
➧ राजनीतिक दृष्टिकोण से
(i) मुंडा का प्रशासनिक व्यवस्था मुंडा-मानकी व्यवस्था कहलाती है, जिसमें ग्राम प्रमुख को मुंडा, ग्राम पंचायत प्रमुख को हेतु मुंडा एवं कई गांवों को मिलाकर बनाई गयी पड़हा पंचायत के प्रमुख को मानकी कहते हैं। मुंडा एवं मानकी का पद वंशानुगत होता है।
(ii) मुण्डाओं ने ही सबसे पहले राज्य गठन की प्रक्रिया आरंभ की थी तथा इनका प्रथम प्रशासनिक केंद्र सुतयाम्बे में स्थापित हुआ था।
➧ सामाजिक दृष्टिकोण से
(i) मुंडा जनजाति 13 उपशाखा में बँटी है, जिसमें रिजले के अनुसार 340 गोत्र हैं।
(ii) यह जनजाति माहली मुंडा एवं कपाट मुंडा नामक शाखा में विभक्त है।
(iii) एकल परिवार की अवधारणा है, जो पितृसतात्मक एवं पितृवंशीय होता है।
(iv) इस जनजाति में गोत्र को किली कहते हैं।
(v) समगोत्रीय विवाह वर्जित है।
(vi) पुरुषों द्वारा धारण किए गए वस्त्र को करेया तथा महिला वस्त्र को कोरेया कहते हैं।
(vii) मुंडाओ के युवागृह को गितीओंड़ा कहते हैं जबकि वंशकुल -खूँट कहलाता है।
(viii) मुंडा जनजाति के विवाह को अरंडी कहते हैं तथा सर्वाधिक प्रचलित विवाह आयोजित विवाह है। विवाह के अन्य रूप निम्न है:-
2- हरण विवाह
3- सेवा विवाह
4- हठ विवाह
(vii) सगाई विधवा विवाह को कहते हैं, जबकि तलाक को सकामचारी कहा जाता है।
(viii) यदि स्त्री तलाक देती है तो उसे वधू मूल्य लौटाना होता है, जिसे गोनोंग टका कहते हैं।
(ix) मुंडा समाज में कर्णछेदन संस्कार को तुकुईलूतूर कहते हैं। मुंडा जनजाति के प्रसिद्ध लोक कथा सोसो बोंगा है।
➧ धार्मिक दृष्टिकोण से
(i) मुंडा जाति के सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा है। इनके अलावा निम्न देवताओं की महत्ता है:-
हातुबोंगा : ग्राम देवता
ओड़ा बोंगा : कुल देवता
इकिर बोंगा : पहाड़ देवता
देशाउली : गांव की सर्वोच्च देवी
(ii) मुंडा जनजाति में
पूजा स्थल को : सरना
धार्मिक स्थल को : पाहन
पाहन के सहयोगी को : पनभरा
ग्रामीण पुजारी को : डेहरी कहते हैं।
(iii) तंत्र-मंत्र विद्या का प्रमुख तथा झाड़-फूंक करने वाले को देवड़ा कहा जाता है।
➧ आर्थिक दृष्टिकोण से
(i) मुंडा की आर्थिक व्यवस्था कृषि एवं पशुपालन निर्भर है।
(ii) आर्थिक उपयोगिता के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में बांटते हैं।
पंकु : सबसे उपजाऊ भूमि
नागरा : औसत उपजाऊ भूमि
खिरसी : बालूयुक्त भूमि
(iii) मुण्डाओं द्वारा निर्मिट भूमि को खुंटकट्टी भूमि कहा जाता है ,जिसमें खूंट का आशय परिवार होता है।
➧ सांस्कृतिक दृष्टिकोण से
(i) मुंडा जनजाति के सभी अनुष्ठानों में हड़िया एवं रान का प्रयोग करते हैं।
(ii) पशु पूजा के लिए सोहराय पर्व मनाया जाता है।
(iii) मुंडा जनजाति का सबसे प्रमुख त्योहार सरहुल, करमा एवं सोहराय हैं। सरहुल को बा परब के नाम से भी जाना जाता है।
(iv) यह जनजाति के द्वारा मनाया जाने वाला बतौली पर्व को छोटा सरहुल तथा रोआपुना को धानबुनी पर्व भी कहा जाता है।
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