झारखंड की वित्त व्यवस्था
(Jharkhand Ki Vit Vyavastha)
➤भारत जैसे विकासशील राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में
विकास के दो चरण होते हैं:-
1) सर्वजनिक क्षेत्र एवं
2) निजी क्षेत्र
➤ये दोनों क्षेत्र मिलाकर ही अर्थव्यवस्था को प्रगति प्रदान करते हैं।
➤स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने आर्थिक नियोजन को अपनाया।
➤इसका अर्थ यह था कि राज्य उत्पादन वितरण तथा उपभोक्ता के स्तर तथा तरीकों को निर्धारण करने में सक्रिय भूमिका निभाते हुए निजी संपत्ति तथा बाजार की संस्थाओं की कद्र भी करेगा।
➤हमारे संविधान ने बाजार को अपना कार्य करने की स्वतंत्रता दी है लेकिन साथ ही इसने राज्य को बाजार की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने का अधिकार भी दिया है।
➤1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ने का कार्य किया जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थितियां भारत के लिए अनुकूल होती गई ।
➤राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तथा संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही झारखंड की वित्त व्यवस्था भी संचालित होती है।
➤बजट प्रक्रिया
➤भारतीय संविधान की धारा 202 के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय ब्यौरा प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है, जिसे वार्षिक वित्तीय वितरण भी कहा जाता है। इसे सामान्यतः बजट कहा जाता है।
➤बजट पेश किया जाना
➤आगामी वित्तीय वर्ष के लिए राज्य की सभी प्राप्तियों और विवरणों को सामान्य चर्चा के लिए विधान सभा के समक्ष राज्यपाल के निर्देश पर राज्य के वित्तमंत्री विधान सभा में बजट प्रस्तुत करते हैं।इससे बजट 'प्रस्तुतीकरण' कहा जाता है।
➤बजट भाषण समाप्त होने के बाद विधानसभा की बैठक अगले दिन के लिए स्थगित हो जाती है। प्राय: उस दिन आगे कोई कामकाज नहीं होता है।
➤बजट प्रस्तुत करने के दिन बजट पर कोई चर्चा नहीं होती है।
➤बजट का वितरण
➤वित्तमंत्री के भाषण के बाद बजट विधानसभा सचिवालय द्वारा सदस्यों को तथा पत्रकार दीर्घा में प्रवेश पाने वाले पत्रकारों में वितरित कर दिया जाता है।
➤बजट पर चर्चा
➤उस दिन बजट पर कोई चर्चा नहीं होती है, जिस दिन बजट विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
➤बजट पर दो प्रक्रमों में चर्चा की जाती है। पहले संपूर्ण बजट पर सामान्य चर्चा होती है।सामान्यत: चर्चा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित 3 से 4 दिनों तक चलती है।
➤इसमें बजट की मुख्य-मुख्य बातों, इसके सिद्धांतों तथा नीतियों पर चर्चा होती है।
➤सामान्य चर्चा के बाद अनुदानों की मांगों पर चर्चा तथा मतदान का सिलसिला शुरू होता है।
➤चर्चा के लिए समय तय करना
➤बजट पर सामान्य चर्चा, अनुदान-मांगों पर मतदान, विनियोग विधेयक एवं वित्त विधेयक को पास करने की समस्त प्रक्रिया को निश्चित समय में पूरा किया जाना होता है।
➤मांगों पर मतदान के लिए निर्धारित पूरे समय का विभाजन विभिन्न मांगों के लिए अथवा विभिन्न मंत्रियों की मांगों के लिए अलग-अलग से किया जाता है।
➤बजट पर सामान्य चर्चा
➤बजट पर सामान्य चर्चा के दौरान विधानसभा संपूर्ण बजट पर या उसमें निहित सिद्धांतों के किसी प्रश्न पर चर्चा करने के लिए स्वतंत्र होती है, किंतु इस मौके पर कोई अन्य प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया जा सकता और ना ही बजट मतदान के लिए रखा जा सकता है।
➤चर्चा का विस्तार सामान्य योजनाओं और बजट के ढांचे का परीक्षण, कर लगाने की नीति तक सीमित होनी चाहिए।
➤वित्त मंत्री को बहस के अंत में उत्तर देने का अधिकार होता है।
➤अनुदान मांगों पर चर्चा एवं मतदान
➤अनुदान की मांगों पर मतदान के लिए अध्यक्ष द्वारा निर्धारित समय के दौरान चर्चा का विस्तार उस विषय तक सीमित होना चाहिए, जो प्रभारी मंत्री के प्रशासकीय नियंत्रण में हो।
➤याह सदस्यों के ऊपर निर्भर करता है कि वह किसी विशेष विभाग द्वारा अनुसरण की जाने वाली नीति का अनुमोदन करें या विभागीय प्रशासन में मितव्ययिता के उपाय बताएं या विभाग का ध्यान विशेष स्थानीय शिकायतों की ओर केंद्रित करें।
➤इस प्रक्रम पर किसी अनुदान की मांग को कम करने हेतु कटौती प्रस्ताव पेश किये जा सकता है, किंतु किसी मांगों में कमी चाहने वाले प्रस्ताव में संशोधन स्वीकार योग्य नहीं होते।
➤कटौती प्रस्ताव
➤अनुदान की मांग को कम करने के लिए लाए जाने वाले प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव कहा जाता है।
➤कटौती प्रस्तावों उद्देश्य उसमें निहित विषय की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करना होता है।
➤कटौती प्रस्तावों की सूचना मांगों पर मतदान के लिए नियत प्रथम दिन से सामान्यत: 4 दिन पूर्व निर्धारित समय से पहले विधानसभा सचिवालय में दी जानी चाहिए।
➤लेखानुदान
➤बजट के पारित होने तक सरकारी खर्चों की वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए विधानसभा को लेखानुदान के रूप में अनुदानों की स्वीकृति का अधिकार है।
➤लेखानुदान अनुदान के रूप में जो राशि स्वीकृत कराई जाती है, वह उस वित्तीय वर्ष के एक भाग के खर्चे की पूर्ति के लिए आवश्यक होती है।
➤संबंधित वित्तीय वर्ष के अनुमानित व्यय के लिए सामान्यत: लेखानुदान 3 या 4 माह के लिए भी पास किया जा सकता है।
➤अनुपूरक /अतिरिक्त अनुदानों पर चर्चा व्याप्ति
➤संपूर्ण अनुदान को कम करने के लिए जिन मदों से मिलकर अनुदान बना हो, उनको कम करने या निकाल देने के लिए संशोधन के रूप में कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
➤अनुपूरक मांगों पर चर्चा के समय बहस मात्र शामिल की गई मदों के संबंध में ही सीमित रहती है इस अवसर पर मूल मांगो और नीतिगत विषयों पर सामान्य चर्चा संभव नहीं होती।
➤मुख्य बजट में सम्मिलित योजनाओं के बारे में अन्तर्निहित सिद्धांतों के विषय में चर्चा नहीं उठाई जाती। इस मौके पर सदस्य अनुपूरक मांगों की आवश्यकता के बारे में इंगित कर सकते हैं।
➤सांकेतिक अनुदान
➤जब किसी नई सेवा पर प्रस्तावित व्यय के लिए पुनर्विनियोग द्वारा धन उपलब्ध कराना हो तो सांकेतिक राशि के अनुदान की मांग विधानसभा में मतदान के लिए रखी जा सकती है।
➤विनियोग विधेयक
➤राज्य की संचित निधि में से कोई भी राशि तब तक नहीं निकाली जा सकती, जब तक कि उसके संबंध में विनियोग विधेयक पारित नहीं कर लिया जाता।
➤विधानसभा द्वारा अनुदान की मांगों को पारित करने के तुरंत बाद सभी धनराशियों को राज्य की संचित निधि से विनियोग किए जाने की व्यवस्था के लिए विनियोग विधेयक पुन:स्थापित किया जाता है।
➤विधानसभा में विनियोग विधेयक के पुन:स्थापित होने के बाद अध्यक्ष विधेयक के प्रक्रम को पूरा करने के लिए विनिश्चित करता है।
➤विनियोग विधेयक पर वाद-विवाद उन अनुदानों में निहित लोक महत्व के विषयों या प्रशासकीय नीति तक सीमित रहता है, जो उस समय ना उठाए गए हों और जो अनुदानों की मांगों पर विचार करते समय पहले उठायें न जा चुके हों।
➤वाद-विवाद की पुनरावृति रोकने के लिए अध्यक्ष चाहे तो विनियोग विधेयक पर चर्चा में भाग लेने के लिए इच्छुक सदस्यों से कह सकता है कि वह पहले उन विशिष्ट विषयों की सूची सूचना दें, जिन्हें वे उठाना चाहते हैं।
➤अध्यक्ष वैसे विषयों को उठाए जाने की अनुमति देने से इंकार कर सकता है, जो उनके विचार में पुनरावृत्ति हों, जो अनुदानों की मांग पर चर्चा के समय उठायी जा चुकी हों या जो समुचित लोक महत्व की न हों।
➤अध्यक्ष की शक्तियां
➤नियमों के अधीन अध्यक्ष द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों के अतिरिक्त अध्यक्ष उन सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, जो समस्त कार्य को समय पर पूरा करने के लिए आवश्यक हों।
➤राज्यों के राजस्व स्त्रोत
1) प्रति व्यक्ति कर
2) कृषि-भूमि, उत्तराधिकारी संबंधी शुल्क
3) राज्यों में उत्पादित या निर्मित शराब, अफीम आदि मादक द्रव्यों पर उत्पादन कर
4) कृषि भूमि पर संपदा शुल्क
5) न्यायालयों द्वारा लिए जाने वाले मूल्य को छोड़कर राज्य सूची में सम्मिलित विषयों पर मूल्य
6) भू राजस्व
7) संघ सूची में वर्णित लेखों को छोड़कर अन्य लेखों पर मुद्रांक मूल्य
8) कृषि आय पर कर
9) भूमि और भवनों पर कर
10) खनिज पदार्थों के विकास के लिए निश्चित सीमा के अधीन खनन अधिकारों पर कर
11) बिजली के उपभोग तथा विक्रय पर कर
12) स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, प्रयोग तथा विक्रय के लिए लायी गयी वस्तुओं पर कर
13) समाचार-पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय तथा विक्रय मूल्य पर कर
14) समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों को छोड़कर अन्य विज्ञापनों पर कर
15) सड़कों तथा अंतर्देशीय जलमार्गों से ले जाया जाने वाला माल तथा यात्रियों पर कर
16) वाहनों पर कर
17) पशुओं तथा नौकाओं पर कर
18) व्यवसायों, आजीविकाओं गांव तथा नौकरियों पर कर
19) विलासिता की वस्तुओं पर कर इनमें मनोरंजन तथा जुआ भी शामिल है।
20) चुंगी कर।पर कर
14) समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों को छोड़कर अन्य विज्ञापनों पर कर
15) सड़कों तथा अंतर्देशीय जलमार्गों से ले जाया जाने वाला माल तथा यात्रियों पर कर
16) वाहनों पर कर
17) पशुओं तथा नौकाओं पर कर
18) व्यवसायों, आजीविकाओं गांव तथा नौकरियों पर कर
19) विलासिता की वस्तुओं पर कर इनमें मनोरंजन तथा जुआ भी शामिल है।
20) चुंगी कर।