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Friday, November 19, 2021

Jharkhand Me Jalvayu Parivartan (झारखंड में जलवायु परिवर्तन)

झारखंड में जलवायु परिवर्तन

➧ जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य हमारी जलवायु में एक निश्चित समय के पश्चात होने वाले परिवर्तन से है सामान्यत: इसके लिए 15 वर्ष की समय-सीमा का निर्धारण किया जाता है।  

➧ वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन हमारे समक्ष एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है, जिसने जैव मंडल के अस्तित्व पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। 

 जलवायु परिवर्तन के लिए कई प्रमुख कारण जिम्मेदार हैं। 

 झारखंड में जलवायु परिवर्तन के कारण 

➧ ग्रीन हाउस गैस 

➧ पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बने हुए हैं, इस परत में मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन ऑक्साइड जैसे गैसे शामिल है।  

 ग्रीन हाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विशेषज्ञों  के अनुसार यदि यह संतुलन पर नहीं होगी तो पृथ्वी पर तापमान काफी कम हो जाएगा

 आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियां बढ़ रही है, वैसे-वैसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है

झारखंड में जलवायु परिवर्तन

 मुख्य ग्रीन हाउस गैसें 

(1) कार्बन डाइऑक्साइड:- 

➧ इसे सबसे महत्वपूर्ण GHG (Greenhouse gases) माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होते हैं वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है आंकड़े बताते हैं, कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली है

(2) मिथेन: 

 जैव पदार्थों का अपघटन मिथेन का एक बड़ा स्रोत है उल्लेखनीय है कि मिथेन (CH4) कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीन हाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है 

(3) क्लोरोफ्लोरोकार्बन 

 इसका प्रयोग मुख्यत: रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है और ओजोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है 

(4) भूमि के उपयोग में परिवर्तन

➧ वनों की कटाई वाणिज्यक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि यह वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही है, वह काफी चिंतनीय है

(5) शहरीकरण 

➧ शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया हैविश्वभर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है जीवनशैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है

➧ राज्य में जलवायु परिवर्तन के परिणाम एवं प्रभाव

झारखंड में जलवायु परिवर्तन

(1)  उच्च तापमान

➧ पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी की अपेक्षाकृत काफी तेजी से गर्म कर रहा है 

➧ पिछले डेढ़ वर्षो में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड दर्ज किया है 

➧ गर्मी में संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिए बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण के रूप में माना जा सकता है

(2) वर्षा के पैटर्न के बदलाव

➧ पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरुप हो ही हो रहा है कुछ स्थानों पर बहुत ज्यादा वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है

(3) समुद्र जल के स्तर में वृद्धि

➧ वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता है, जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के दीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ रहा है

(4) वन्यजीव प्रजाति का नुकसान 

➧ तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिए मजबूर कर दिया है विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक चौथाई प्रजातियां वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं

(5) रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान

➧ जानकारों ने अनुमान लगाया है, कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरुप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों और अधिक बढ़ेंगे तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा

(6) जंगलों में आग

 जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाले हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिए उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियां पैदा की है हाल के ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में लगी आग में व्यापक वन्य प्राणी का नुकसान हुआ, जिसमें इसका एक बड़ा पक्ष जलवायु परिवर्तन ही है

(7) खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव

➧ जलवायु परिवर्तन से तटों  के डूबने से कृषि भूमि का जल में डूबना प्रत्यक्ष रुप से खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, वहीं दूसरी और खाद्यान्न उत्पादन में पोषकता की मात्रा में भी कमी आयेगी 

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Thursday, November 18, 2021

Jharkhand Me Pradushan Niyantran Ke Sarkari Prayas (झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास)

झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास

➧ पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण निवारण शोध संस्थान 

(i)  खनन पर्यावरण केंद्र  - धनबाद

(ii) वन उत्पादकता केंद्र - राँची

(iii) भारतीय लाह अनुसंधान केंद्र - राँची

(iv) झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित (2001) - राँची

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 

➧ झारखंड राज्य में प्रदूषण नियंत्रण हेतु 2001 ईस्वी  में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई है संसाधनों के सतत उद्योग उपयोग के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा (JSPCB) द्वारा 2012-17 के लिए दृष्टि पत्र प्रस्तुत किया गया है 

➧ यह बोर्ड संसाधनों के सतत उपयोग पर बल देता है साथ ही जल के उपयोग को कम करने, वर्षा, जल, कृषि, लकड़ी एवं कोयला का औद्योगिक' क्षेत्र में कम उपयोग करने एवं स्वच्छ ऊर्जा उपयोग पर अधिक बल देता है 

झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास

 झारखंड ऊर्जा नीति 2012 :- ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए यह नीति बनाई गई। इसमें गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के विकास पर विशेष बल दिया गया है इस नीति में 10 वर्षों में कुल ऊर्जा उत्पादन का 50% ,गैर परंपरागत स्रोत से उत्पादन करना है JREDA (Jharkhand Renewable Energy Development Authority)  का गठन 2001 में किया गया किया गया है 

➧ झारखंड राज्य एक्शन प्लान (JSPCB) - 2014 

 राज्य सरकार द्वारा प्रदूषण से निपटने और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों के समाधान हेतु बनाया गया

 झारखंड में सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना

➧ जनसंख्या परिवर्तन से प्रभावित अति संवेदनशील क्षेत्रों की मानचित्र तैयार करना

➧ कोयला एवं खनन आधारित उद्योगों से उत्पन प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय करना

 झारखंड राज्य जल नीति-2011

➧ जल संसाधन के उचित प्रबंधन के लिए यह नीति बनायी गयी। 

 जल संसाधन, विशेषकर नदी जल संरक्षण के लिए भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 20 फरवरी, 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया है 

➧ इस प्राधिकरण के अंतर्गत गंगा नदी से संबंधित राज्यों को नदी संरक्षण संबंधी कार्यों को करने के लिए निर्देश दिया गया है इस प्राधिकरण के आलोक में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत झारखंड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण का गठन 30 सितंबर 2009 को भविष्य को किया गया था

 प्राधिकरण का पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है और इनका मुख्यालय रांची में स्थित है

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Tuesday, November 16, 2021

Jharkhand me dhwani Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव)

झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को डेसिबल इकाई में मापा जाता है

(i) कृषि योग्य भूमि की कमी

(ii) भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

(iii) भू-संख्लन से होने वाली हानियां 

(iv) जल तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि

ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव

(1) ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्चरक्तचाप अथवा स्नायविक, मनोवैज्ञानिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से स्वभाविक परेशानियां बढ़ जाती हैं 

(2) ध्वनि प्रदूषण से ह्रदय गति बढ़ जाती है, जिससे रक्तचाप, सिर दर्द एवं अनिद्रा जैसे अनेक रोग उत्पन्न होते हैं  

(3) नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इससे कई प्रकार की शारीरिक विपरीत विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं गैस्ट्रिक, अल्सर और दमा जैसे शारीरिक रोगों तथा थकान एवं चिड़चिड़ापन जैसे मनोविकारों का कारण भी ध्वनि प्रदूषण ही है 

झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव

➧ झारखंड में ध्वनि प्रदूषण

➧ झारखंड ध्वनि प्रदूषण के मामले में अन्य राज्यों की अपेक्षा कम प्रभावित है उच्च ध्वनि प्रदूषण राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, (लाजपत नगर), महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश राज्य आदि शामिल है। ध्वनि प्रदूषण अनियंत्रित वाहनों, त्योहारों व उत्सव, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल, औद्योगिक क्षेत्रों में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर सायरन , हॉर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर के द्वारा होता है झारखंड के शहरी क्षेत्रों (खासकर औद्योगिक नगर) में इन सभी ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है

 हाल ही में सर्वे के अनुसार राजधानी रांची में सबसे ज्यादा प्रदूषण के प्रभाव देखे गए, जिसमें अशोक नगर (रांची) प्रमुख क्षेत्र रहा 

➧ प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने जांच के लिए शहर को 4 जोन में बांटा था :-

क्षेत्र                                जोन                                डेसिबल 

झारखंडहाई  कोर्ट               साइलेंट जोन                         45 -  50 डेसिबल 

अल्बर्ट एक्का चौक            कमर्शियल जोन                      55 - 65

कचहरी चौक                     कमर्शियल जोन                      55 - 65 

अशोक नगर                     रिहायशी जोन                         45 - 55 

➧ धनबाद में सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण रिकॉर्ड किए गए। यहां प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने तीन जगहों पर दीपावाली के दिन ध्वनि प्रदूषण की जांच की, जिसमें हीरापुर इलाके में सबसे ज्यादा 107 पॉइंट 5 डेसीबल ध्वनि प्रदूषण का स्तर रहा वही बैंक मोड़ में 107 पॉइंट 2  डेसीबल और बरटांड़ में 106 पॉइंट 7 डेसीबल प्रदूषण दर्ज किया गया 

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Monday, November 15, 2021

Jharkhand me Bhumi Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव)

झारखंड  में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ भूमि प्रदूषण से अभिप्राय जमीन पर जहरीले, अवांछित एवं अनुपयोगी पदार्थों की भूमि में विसर्जित करने से है, क्योंकि इससे भूमि का निम्नीकरण होता है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है लोगों की भूमि के प्रति बढ़ती लापरवाही के कारण भूमि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। 

 भूमि प्रदूषण के कारण

(i) कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग । 

(ii) औद्योगिक इकाइयों, खानों तथा खदानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन। 

(iii) भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन

(iv) कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते। 

(v) प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग, जो जमीन में दबकर नहीं गलती। 

 (vi) घरों, होटलों और औद्योगिक इकाइयों द्वारा निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों का निपटान, जिसमेँ  प्लास्टिक, कपड़े, लकड़ी, धातु, काँच, सेरामिक, सीमेंट आदि सम्मिलित है। 

➧ भूमि प्रदूषण के प्रभाव

(i) कृषि योग्य भूमि की कमी

(ii) भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

(iii) भू-संख्लन से होने वाली हानियां 

(iv) जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि

झारखंड  में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ झारखंड में भूमि प्रदूषण के प्रभाव

➧ झारखंड प्रदेश में लगभग 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का अम्लीय भूमि (पी.एच. 5.5 से कम) के अंतर्गत आती हैं ।  

➧ यदि विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र में पड़ने वाले जिलों में अम्लीय भूमि की स्थिति को देखें तो उत्तरी-पूर्वी जोन (जोन-IV) के अंतर्गत जामताड़ा, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग और रांची के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 50% से अधिक भूमि अम्लीय समस्या से ग्रसित है । 

 इसी तरह पश्चिमी पठारी जोन (जोन -V) में सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा में 69 से 72% तक अम्लीय भूमि की समस्या है, जबकि पलामू, गढ़वा और लातेहार में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल 16% से कम है, दक्षिणी-पूर्वी जोन (जोन -VI) में अम्लीय भूमि की समस्या सबसे ज्यादा है 

➧ इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तीनों जिलों-सरायकेला, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल  70% के करीब है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि झारखंड प्रदेश में मृदा अम्लीयता प्रमुख समस्याएं है 

➧ अम्लीय भूमि की समस्या का प्रभाव 

➧ गेहूं , मक्का, दलहन एवं तिलहन फसलों की उपज संतोषप्रद नहीं हो पाती है

 मृदा अम्लीयता के कारण एलयूमिनियम, मैगनीज और लोहा अधिक घुलनशील हो जाते हैं और पौधों को अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के कारण उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है

➧ अम्लीय भूमि में मुख्यत: फास्फेट, सल्फर, कैल्शियम एवं बोरॉन की कमी होती है

 अम्लीय भूमि में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण और कार्बनिक पदार्थों का विघटन नहीं होता है इसके अलावा सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं कार्यकुशलता में कमी आ जाती है

 झारखंड में पोषक तत्वों का वितरण और विवरण

➧ झारखंड में मुख्य पोषक तत्वों में फास्फोरस एवं सल्फर की कमी पाई जाती है कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 66 % भाग में फास्फोरस एवं 38% भाग में सल्फर की कमी पाई गई है

 पोटेशियम की स्थिति कुल भौगोलिक क्षेत्र के 51 प्रतिशत भाग में निम्न से मध्य है

➧ नाइट्रोजन की स्तिथि 70% भाग में निम्न से मध्यम पाई जाती है, जबकि कार्बन 47% भाग में मध्यम स्थिति में पाई जाती है

 फास्फोरस की कमी होने के नुकसान 

(i) फास्फोरस की कमी दलहनी और तिलहनी फसलों की उपज को प्रभावित करती है

(ii) फसल विलंब से पकते हैं और बीजों या फलों के विकास में कमी आती है

 उपाय

(i) जहां फास्फोरस की कमी हो, मिट्टी जांच प्रतिवेदन के आधार पर सिंगल सुपर फास्फेट (SPP) या डी. ए. पी. का प्रयोग करना चाहिए

(ii) लाल एवं लैटीरिटिक मिट्टीयों  में जिसका पी.एच.(PH) मान 5.5 से कम हो, रॉक फास्फेट का उपयोग काफी लाभदायक होता है 

➧ सल्फर की कमी से होने वाले नुकसान 

(i) कीट-व्याधि का प्रभाव बढ़ता है, जिससे फसलों की उत्पादकता घटती है इतना ही नहीं फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाते है

 उपाय

(i) जिन जिलों में सल्फर की कमी ज्यादा पाई गई है, वहां एल. एस. पी. का प्रयोग कर इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है

(ii) इसके अलावा फास्फोरस, जिप्सम का प्रयोग भी सल्फर की कमी को दूर करने में लाभदायक है क्योंकि दलहनी एवं तिलहनी फसलों में सल्फर युक्त खाद का प्रयोग लाभदायी होता है 

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Jharkhand me Jal Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव)

झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ जल में घुलनशील अथवा अघुलनशील पदार्थों की मात्रा में वृद्धि के कारण जब जल की गुणवत्ता जैसे रंग, स्वाद आदि में परिवर्तन आता है, तो पृथ्वी पर पानी का प्रदूषित होना जल प्रदूषण कहलाता है

 जल प्रदूषण में जीवाणु, रसायन और कण  जैसे प्रदूषकों द्वारा जल का संदूषण किया जाता है, जो पानी की शुद्धता को कम करता है

झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ जल प्रदूषण के कारण 

(i) मानव मल का नदियों, नहरों आदि में विसर्जन

(ii) सफाई तथा सीवर (मल-जल निकास पाइप) का उचित प्रबंधन का न होना

(iii) विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपने कचरे तथा गंदे पानी का नदियों तथा नहरों में विसर्जन करना 

(iv) कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले जहरीले रसायनों और खादों का पानी में घुलना

(v) नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारंपरिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलु सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन

(vi) गंदे नालों, सीवरों के पानी का नदियों में छोड़ा जाना

(v) कच्चा पेट्रोल, कुओं से निकालते समय समुद्र में मिल जाता है, जिससे जल प्रदूषित होता है 

(vi) कुछ कीटनाशक पदार्थ जैसे डीडीटी, बीएचसी आदि के छिड़काव से जल प्रदूषित हो जाता है तथा समुद्री जानवरों एवं मछलियों आदि को हानि पहुंचाता है  अंततः खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करते हैं 

 जल प्रदूषण के प्रभाव

(i) इससे मनुष्य,पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है इससे टाइफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं। 

(ii) इससे विभिन्न जीव तथा वनस्पति प्रजातियों को नुकसान पहुंचाता है

(iii) इससे पीने के पानी की कमी बढ़ती है, क्योंकि नदियों, नहरों यहां तक की जमीन के भीतर का पानी भी प्रदूषित हो जाता है

(iv) सूक्ष्म-जीव जल में घुले हुए ऑक्सीजन के एक बड़े भाग को अपने उपयोग के लिए अवशोषित कर लेते हैं जब जल में जैविक द्रव बहुत अधिक होते हैं तब जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसके कारण जल में रहने वाले जीव-जंतुओ की मृत्यु हो जाती है

(v) प्रदूषित जल से खेतों में सिंचाई करने पर प्रदूषक तत्व पौधे में प्रवेश कर जाते हैं इन पौधों  अथवा इन के फलों को खाने से अनेक भयंकर बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं

(vi) मनुष्य द्वारा पृथ्वी का कूड़ा-कचरा समुद्र में डाला जा रहा है नदियाँ  भी अपना प्रदूषित जल समुद्र में मिलाकर उसे लगातार प्रदूषित कर रही है वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, कि यदि भू-मध्य सागर में कूड़ा-कचरा समुद्र में डालना बंद न किया गया तो डॉल्फिन और टूना जैसे सुंदर मछलियों का यह सागर भी कब्रगाह बन जाएगा 

(vii) औद्योयोगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न रासायनिक पदार्थ प्रायः क्लोरीन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड, जस्ता निकिल एवं पारा आदि विषैले पदार्थों से युक्त होते हैं 

(viii) यदि जल पीने के माध्यम से अथवा इस जल में पलने वाली मछलियों को खाने के माध्यम से शरीर में पहुंच जाए तो गंभीर बीमारियों का कारण बन जाता है, जिसमें अंधापन, शरीर के अंगो का लकवा मार जाना और श्वसन क्रिया आदि का विकार शामिल है जब यह जल, कपड़ा धोने अथवा नहाने के लिए नियमित प्रयोग में लाया जाता है, तो त्वचा रोग उत्पन्न हो जाता है  

 झारखंड में जल प्रदूषण का प्रभाव 

➧ राज्य में जल प्रदूषण का खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन की उच्च क्षमता प्राप्त करना और जनसंख्या का संकेंद्रण विशिष्ट संसाधन प्राप्त क्षेत्रों में होना निरंतर बढ़ जा रहा है 

 झारखंड को मुख्यतः सतही जल प्रदूषण एवं भौम जल प्रदूषण दोनों ही रूप में जल प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। चूकिं भौम  जल स्तर में प्रदूषण का मुख्य कारण खनन का अवैज्ञानिक तरीका है, इसका विशेष उदाहरण धनबाद का झरिया क्षेत्र  एवं स्वयं धनबाद शहर आदि हैं। 

➧ वहीं औद्योगिक निस्तारण ने दामोदर को राज्य की सबसे अधिक प्रदूषित नदी होने का दर्जा प्रदान किया है

➧ स्वर्णरेखा नदी भी जल प्रदूषण के चपेट में है, जबकि राज्य में कई नदियों को शहरी विकास ने अपने में समा लिया, जिससे पारितंत्र को नुकसान पहुंचा है। उदाहरण के लिए राँची का हरमू नदी, जो कभी मध्यम आकार की नदी थी, परंतु वर्तमान में यह शहरी बड़ी नालों में बदल चुकी है। 

➧ राज्य में पाट क्षेत्र  एवं रांची हजारीबाग पठार के किनारों के सहारे कई जल प्रपातों का निर्माण होता है, जो पर्यटन का मुख्य केंद्र है, परंतु पर्यटकों के द्वारा इन जलप्रपातों के आस-पास सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग करना, इन जल प्रपातों की आयु पर प्रश्न खड़ा कर सकता है अतः इस पर अवसंरचनात्मक रूप से कार्य करने की जरूरत है। 

➧ राज्य की नदियों में प्रदूषण की स्थिति

झारखण्ड में दामोदर नदी का प्रदुषण

 ➧ इस नदी के किनारे लगभग सभी प्रकार के प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग अवस्थित है। लगभग 130Mn लीटर औद्योगिक अपशिष्ट और 65 मिलियन लीटर अनुपचारित घरेलु मल-जल प्रतिदिन दामोदर नदी को प्रदूषित कर रही है। 

➧ दामोदर और उसकी सहायक नदियों में वर्तमान में बड़े पैमाने पर कचरों का जमाव किया जा रहा है, जो वर्षा के दिनों में फैलकर नदियों में आ जाता है। 

➧ फल स्वरुप नदियों का जल एवं भौम जल स्तर दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिस कारण निकटवर्ती गांवों व कस्बों पर जल संकट की समस्या सामने आ रही है। क्योंकि नलकूप एवं कुआँ के जल प्रदूषित होकर सूख जाते हैं। 

➧ दामोदर घाटी के कोयला में थोड़ी मात्रा में सल्फर एवं पायराइट की भी विद्यमान है। 

➧ दामोदर में लोहे की मात्रा में 1 से 6mg/1 है। यद्यपि यह बहुत अधिक नहीं है, किंतु परितंत्र  के लिए इनकी यह मात्रा पर मात्रा भी खतरनाक साबित होती है, क्योंकि जलीय जीव इससे समाप्त होते हैं एवं स्व नियमन की घटना में परिवर्तन आता है।  

➧ दामोदर नदी में मैग्नीज, क्रोमियम, शीशा, पारा, फ्लूराइट कैडमियम और तांबा आदि की मात्रा भी पाई जाती है, जो मुख्यतः इनकी सहायक नदियों की अवसादो के द्वारा लाई जाती है। 

➧ इन छोटे कणों के द्वारा मनुष्यों में कई बीमारियों को जन्म दिया जाता है, जिसमें कमजोरी, एनोरेक्सिया, दिल्पेप्सिया, मुंह में धातु का स्वाद, सर दर्द , हाई ब्लड प्रेशर और एनेमिया आदि मुख्य हैं। 

➧ दामोदर की अवसादो में कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी तथा पोटेशियम का संकेंद्रण है इन अवसादों में आर्सेनिक, पारा, शीशा, क्रोमियम, तांबा, जिंक, मैगनीज़, लोहा और टिटैनियम जैसे धातु भी मिलते हैं।  

झारखंड के दामोदर नदी के आस-पास रहने वाले लोग दामोदर का प्रदूषण से काफी प्रभावित है, दामोदर एवं इसकी सहायक नदियों के जल में प्रदूषण की मात्रा उच्च होने के कारण पेयजल के रूप में इन नदियों का प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है।  

➧ स्वर्णरेखा नदी का प्रदूषण 

➧ स्वर्णरेखा नदी रांची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में नगड़ी गांव (रानी चुवा)  नामक स्थान से निकलती है

➧ यह लगभग 28,928 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अपना बेसिन बनाती है इस नदी के किनारे भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी टाटा इस्पात निगम लिमिटेड (टिस्को) बसा हुआ है 

➧ सर्वेक्षण में पाया गया कि नगड़ी से लेकर गालूडीह तक है यह नदी पांच स्थानों पर काफी प्रदूषित हो गई है, इसका कारण यह है:- 

क्षेत्र                                           प्रदूषण

(i) नगरी से हरीमा डैम                    दर्जनों चावल मिल

(ii) हरीमा डैम से गेतलसूद डैम       फैक्ट्री, रांची नगर की नालियाँ 

(iii) गेतलसूद डैम से चांडिल डैम     मुरी एल्युमीनियम कारखाना

(iv) चांडिल डैम से गालूडीह बराज   शहरी कचरा, उद्योग 

(v) गालूडीह बराज से आगे तक       शहरी कचरा, उद्योग

➧ स्वर्णरेखा नदी रांची से जमशेदपुर तक पहुंचते-पहुंचते लगभग सूख जाती है जमशेदपुर शहर में मानगो पुल से नदी जल के गुजरने के दौरान बदबू साफ महसूस किया जाता है, क्योंकि यहां जल के सड़ने की क्रिया प्रारंभ हो चुकी है 

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