Jharkhand Ki Chitrakala
➤झारखंड की जनजातियों में चित्रकला उनकी भावना के उद्गार का एक माध्यम है।
➤जनजातियों की कला का प्रेरणा स्रोत उनके आस-पास का प्राकृतिक वातावरण है।
➤जनजातियों के चित्रकला एवं शिल्पकला उनकी सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों संस्कृति आदि को प्रतिबिंबित करती है।
➦सोहराय चित्रकला
➤सोहराय जनजातियों की एक प्रसिद्ध स्थानीय चित्रकला शैली है।
➤यह उनके प्रसिद्ध पर्व सोहराय से जुड़ी शैली है।
➤इस कला में जंगली जीव-जंतुओं, पक्षियों और पेड़-पौधों को अंकित किया जाता है।
➤यह चित्रकारी वर्षा ऋतु के बाद घरों की लिपाई-पुताई से प्रारंभ होता है।
➤इस चित्रकारी में कला के देवता प्रजापति या पशुपति का चित्रण मिलता है तथा पशुपति का सांड की पीठ पर खड़ा चित्रण किया जाता है।
➤'मंझू सोहराई' तथा 'कुर्मी सोहराय' इस चित्रकला की दो प्रमुख शैलियाँ हैं।
➤यह चित्रकला हजारीबाग जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है।
➤सोहराय और कोहबर चित्रकला को 2020 में (भौगोलिक संकेतक) प्रदान किया गया है।
➤यह झारखंड में किसी भी श्रेणी में प्राप्त होने वाला प्रथम जी आई टैग है।
➤इसके लिए सोहराय कला विकास सहयोगी समिति, हजारीबाग द्वारा आवेदन दिया गया था।
➦जादूपटिया चित्रकला
➤यह संथाल जनजाति की सर्वाधिक मशहूर लोक चित्रकला शैली रही है, जो अब लगभग समाप्त हो चुकी है।
➤यह शैली संथालों की सामाजिक, धार्मिक, रीति-रिवाजों और मान्यताओं को उकेरती है।
➤इन चित्रों की रचना करने वाले को संथाली भाषा में जादो कहा जाता है।
➤जादो (चित्रकार) एवं पटिया (कागज या कपड़ा के छोटे-छोटे टुकड़े) को जोड़कर बनाए जाने वाला चित्र फलक है।
➤इस चित्रकला में कागज के छोटे-छोटे टुकड़े को जोड़कर निर्मित 15 से 20 फीट चौड़े पटो पर चित्रकारी की जाती है।
➤प्रत्येक पट पर 4 से 16 तक चित्र बनाए जाते हैं।
➤इसमें चित्रकारी हेतु मुख्य रूप से लाल, हरा, पीला, भूरा और काले रंगों का प्रयोग होता है।
➤इसमें बाघ देवता और जीवन के बाद के दृश्यों का चित्रण किया जाता है।
➤यह चित्रकला दुमका जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है।
➦कोहबर चित्रकला
➤यह फारसी शब्द कोह (गुफा) तथा हिंदी शब्द वर (दूल्हा अथवा दंपति) से मिलकर बना है, जिसका सामान्य अर्थ है- गुफा में विवाहित जोड़ा।
➤यह चित्रकारी विवाह के मौसम में जनवरी से जून महीना तक की जाती है।
➤इसमें घर-आंगन में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में पेड़-पौधों, फूल-पत्तों आदि का चित्रण किया जाता है।
➤बिरहोर जनजाति इस कला में निपुण मानी जाती है।
➤इसमें सिकी (देवी) का चित्रण मिलता है।
➦गूंज चित्रकला
➤गूंज कला में पशुओं, वन्य तथा पालतू जानवरों एवं वनस्पतियों की तस्वीरें बनाई जाती हैं।
➤इस चित्रकला के माध्यम से संकटग्रस्त जानवरों को रीति-रिवाजों में दर्शाया जाता है।
➦पईत्कार चित्रकला
➤यह चित्रकारी आमदुबी (सिंहभूम) गांव में अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसके कारण इस गांव को पईत्कार का गांव भी कहा जाता है।
➤इसे झारखंड का स्क्रॉल चित्रकला भी कहते हैं ।
➤यह प्राचीन काल से झारखंड में विद्यमान है। कि माना जाता है कि इसकी शुरुआत सबर जनजाति द्वारा की गई थी।
➤इससे भारत का सबसे पुराना आदिवासी चित्रकला माना जाता है।
➤चित्रकला गरुड़ पुराण में भी मिलती है।
➤झारखंड के अतिरिक्त यह चित्रकला बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में भी लोकप्रिय है।
➤इस चित्रकला के माध्यम से जनजातियों द्वारा विभिन्न कहानियों तथा स्थानीय रीति का वर्णन किया जाता है।
➤इसके माध्यम से जीवन के बाद होने वाली घटनाओं का वर्णन किया जाता है।
➦राणा तेली एवं प्रजापति चित्रकला
➤इन तीन चित्रकलाओं का प्रयोग उक्त तीन उपजातियों द्वारा किया जाता है।
➤इस चित्रकला में पशुपति (भगवान शिव) को पशुओं एवं पेड़-पौधों के देवता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
➤इस चित्रकला में धातु के तंतुओं का प्रयोग किया जाता है।
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