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Friday, January 1, 2021

Dhoklo shohor shashan vyavastha (ढोकलो सोहोर शासन व्यवस्था)

Dhoklo shohor shashan vyavastha

खड़िया झारखंड की एक प्रमुख जनजाति है

ढोकलो सोहोर शासन व्यवस्था को ही खड़िया शासन व्यवस्था भी कहा जाता है 

यह प्रोटो ऑस्ट्रोलॉयड से सम्बन्ध रखती है

इनकी भाषा खड़िया है

जिसमें मुण्डारी,उरांव ,तथा आर्य भाषा के शब्द मिलते है इस जाति के लोग झारखंड में गुमला ,सिमडेगा तथा रांची ,उड़ीसा ,छत्तीसगढ़ राज्य में फैले हुए है 

झारखण्ड में ज़्यादातर लोग बीरु क्षेत्र सिमडेगा से हैं

खड़िया भाषा में ढोकलो का अर्थ -बैठक और सोहोर का अर्थ - अध्यक्ष 

Dhoklo shohor shashan vyavastha

इनका उद्गम स्थान रो:जंग बताया जाता है

1934-35 ईस्वी के आस -पास जब समस्त आदिवासी समाज शिक्षा के विकास के साथ जाग्रत हो रहा था, लगभग इसी समय खड़िया जाति के अग्रणी लोगों के द्वारा भी अपने समाज को संगठित करने,सशक्त बनाने हेतु अखिल भारतीय महासभा का गठन किया गया,जिसे ढोकलो के नाम से जाना जाता है।  

खड़िया लोगों में किसी शबर गांव के सभी निवासी एक गोत्र के होते हैं

जो ढोकलो का सभापति जो संपूर्ण खड़िया समाज का राजा होता है 'ढोकलो सोहोर' कहलाता है।

ढोकलो में सभी क्षेत्र के प्रमुख प्रतिनिधि ,महतो ,पाहन, करटाहा इकठ्ठा होते हैं, इस सभा में ' ढोकलो सोहोर' का चुनाव खड़िया जनजाति के लोगों द्वारा करते हैं

इनका कार्यकाल 3 वर्षों के लिए होता है

खड़िया तीन प्रकार के होते है 

1) पहाड़ी खड़िया या शबर खड़िया

2) दूध खड़िया,

3) ढेलकी  खड़िया

तीनों के स्वशासन के पद नामों में कुछ अंतर है। इनका ग्राम पंचायत अपने ढंग का होता है। 

पहाड़ी खड़िया 

(क) डंडिया : - पहाड़ी खड़िया गांव के प्रधान या शासक को डंडिया कहा जाता है

(ख) डिहुरी : -पहाड़ी खड़िया गांव के दूसरे प्रधानमंत्री को डिहुरी कहते हैं, यही गांव का पुजारी होता हैयह पूजा-पाठ, शादी-विवाह तथा पर्व-त्योहारों में मुख्य भूमिका निभाता है साथ ही यह डंडिया का सहयोगी भी रहता है

➤ दो से तीन दूध खड़िया और डेलकी खड़िया : - इन दोनों प्रकार के खड़िया गांवों  के प्रशासक या प्रधान को ढ़ोकलो शोहोर कहते हैं 

(ग) ढ़ोकलो सोहोर का अर्थ है :-  फा.डॉ.निकोलस टेटे  ने अपने शब्द खड़िया शब्द में कोष में 'सभापति' बताया है 

ग्राम सभा या ग्राम पंचायत (स्वशासन) के अध्यक्ष को भी ढोकलो सोहोर कहते हैं

यही ग्राम सभा का संचालन करता है तथा आगत मामलों का निपटारा करता है 

खड़िया स्वशासन के निम्न पद होते हैं

(1) महतो :- परंपरागत रूप से जिन लोगों ने गाँव बसाया था उन्हें महतो कह कर संबोधित किया जाता है 

 महतो को गांव का मुख्य व्यक्ति माना जाता है यह पद सामान्यत: वशांनुगत होता है 

 गाँव वालो की सहमति से महतो को बदला जा सकता है  

(2) करटाहा :- प्रत्येक खड़िया पारंपरिक गांव में करटाहा होता है 

20-25 गांवों  के अनुभवी लोग मिलकर पंचायत में गांव के सुयोग्य व्यक्ति को करटाहा चुनते हैं

इमानदारी, न्यायी, निष्पक्ष, बुद्धिमान, सामाजिक-सांस्कृतिक  विधानों को जानने वालों को ही करटाहा चुना जाता है

यह अवनैतिक होता है परंतु समाज में उसका मान-सम्मान होता है

सामाजिक कार्य करने वालों को दंड देना करटाहा का कार्य है, यह वंशानुगत नहीं होता है 

(3) रेड :- करटाहा से बड़ा रेड का होता है 

(4) परगना का राजा  :- रेड से ऊपर का पद परगना के खड़ियाओं के राजा का पद होता है 

 ग्राम-पंचायत के शासन, न्याय तथा अन्य मामले देखने का अधिकार इसे प्राप्त होता है 

(5) खड़िया राजा  :- परगना से ऊपर का पद खड़िया राजा का होता है यह पुरे खड़िया महासभा का सर्वोच्च सभापति होता है

इसको ही खड़िया राजा कहते है इसका अंतिम निर्णय होता है

(6) लिखाकड़ (सचिव या मंत्री)  :- खड़िया राजा के सचिव या मंत्री होते हैं जो राजा के सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक आदि कार्यों में सहयोग देते हैं

(7) तिंजाडकड़ या खजांची :- यह खड़िया राजा के आय -व्यय का विवरण रखता है 

(8) देवान या सलाहकार  :- यह भी खड़िया राजा का सलाहकार होता है 

खड़िया राजा, लिखवाड़ और देवान की सहायता से मामलों का निपटारा करता है।आवश्यकता पड़ने पर अपराधी को आर्थिक दंड भी दिया जाता है 

इस दंड से प्राप्त राशि से कुछ रकम अपने पदाधिकारियों, खजांची, लिखाकड़, देवान आदि को खड़िया राजा देता है,पर यह कभी भी वेतन की भांति नहीं होता। बाकी पैसे समाज या पंचायत को खस्सी भोज देने में लगाया जाता है 

(9) कालो या पाहन  :- प्रत्येक दूध खड़िया और डेलकी खड़िया गांव का एक पुजारी होता है उसे कालो या पाहन कहते हैं 

कालो धार्मिक कार्य करते हैं जो एक पुरोहित करता है हर गोत्र का एक कालो या पाहन होता है 

यह वंशानुगत होता है  

प्रायः बड़े खड़िया गांव के कालो को पाहन कहते हैं  

कालो तथा पाहन  दोनों परंपरागत होते हैं  

खड़िया समाज में भी पाहन (पुजारी) को गांव की ओर से पहनई जमीन दी जाती है

इसकी उपज से वह धार्मिक कार्यों का खर्च निकलता है

पाहन या कालो  के लिए मुंडा, उरांव में भी पहनई जमीन दी जाती है 

कालो या पाहन के वंश ना होने पर नए का चुनाव पारंपारिक पंचायत करती है 

मूलतः ढोकलाे  शोहोर  शब्द खड़िया महासभा के सभापति या अध्यक्ष के लिए प्रयोग किया जाता है 

परंतु अब खड़िया राजा के लिए ढोकलाे सोहोर का प्रयोग होने लगा है 

खड़िया समाज के नीचे के पदाधिकारी सभी खड़िया राजा या ढोकलाे  शोहोर के प्रति उत्तरदाई होते हैं

गांव की हर स्थिति की सूचना इसे देते हैं और इनकी निर्देश पर शासन या न्याय करते हैं 

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