Prachin Kal Me Jharkhand
1) मौर्य काल
➤मगध से दक्षिण भारत की ओर जाने वाला व्यापारिक मार्ग झारखंड से होकर जाता था।
अत: मौर्यकालीन झारखंड का अपना राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक महत्व था।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
➤कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस क्षेत्र को कुकुट/कुकुटदेश नाम से इंगित किया गया है।
➤कौटिल्य के अनुसार कुकुटदेश में गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली स्थापित थी।
➤कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने आटविक नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी।
➤जिसका उद्देश्य जनजातियों का नियंत्रण, मगध साम्राज्य हेतु इनका उपयोग तथा शत्रुओ से इनके गठबंधन को रोकना था।
➤इंद्रनावक नदियों की चर्चा करते हुए कौटिल्य ने लिखा है कि इंद्रनावक की नदियों से हीरे प्राप्त किये जाते थे।
➤इन्द्रनवाक संभवत: ईब और शंख नदियों का इलाका था।
अशोक
➤अशोक के 13वें शिलालेख में समीपवर्ती राज्यों की सूची मिलती है, जिसमें से एक आटविक/आटव/आटवी प्रदेश (बुंदेलखंड से उड़ीसा के समुद्र तट तक विस्तृत) भी था और झारखंड क्षेत्र इस प्रदेश में शामिल था।
➤अशोक का झारखंड की जनजातियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण था।
➤अशोक के पृथक कलिंग शिलालेख-II में वर्णित है कि - 'इस क्षेत्र को अविजित जनजातियों को मेरे धम्म का आचरण करना चाहिए, ताकि वे लोक परलोक प्राप्त कर सके।
➤अशोक ने झारखंड में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित नामक अधिकारी को भेजा था।
2) मौर्योत्तर काल
➤मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में अपने-अपने राज्य स्थापित किए।
➤इसके अलावा भारत का विदेशों से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ जिसके प्रभाव झारखंड में भी दिखाई देते हैं।
➤सिंहभूम
➤सिंहभूम से रोमन साम्राज्य के सिक्के प्राप्त हुए हैं ,जिससे झारखंड के वैदेशिक संबंधों की पुष्टि होती है।
➤चाईबासा
➤चाईबासा से इंडो-सीथियन सिक्के प्राप्त हुए हैं।
➤रांची से कुषाणकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र कनिष्ठ के प्रभाव में था।
3) गुप्त काल
➤गुप्त काल में अभूतपूर्व सांस्कृतिक विकास हुआ अतः इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।
➤हजारीबाग के मदुही पहाड़ से गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं।
➤झारखंड में मुंडा, पाहन, महतो तथा भंडारी प्रथा गुप्तकाल की देन माना जाता है।
➤समुद्रगुप्त
➤गुप्त वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक समुद्रगुप्त था। इसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है।
➤इसके विजयों का वर्णन प्रयाग प्रशस्ति (इलाहाबाद प्रशस्ति) में मिलता है। प्रयाग प्रशस्ति के लेखक हरीसेंण है। इन विजयों में से एक आटविक विजय भी था।
➤झारखंड प्रदेश इसी आटविक प्रदेश का हिस्सा था। इससे स्पष्ट पता होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में झारखंड क्षेत्र उसके अधीन था।
➤समुद्रगुप्त ने पुन्डवर्धन को अपने राज्य में मिला लिया, जिसमें झारखंड का विस्तृत क्षेत्र शामिल था।
➤समुद्रगुप्त के शासनकाल में छोटानागपुर को मुरुण्ड देश कहा गया है।
➤समुद्रगुप्त के प्रवेश के पश्चात झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया।
➤चंद्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य'
➤चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रभाव झारखंड में भी था।
➤इसके काल में चीनी यात्री फाह्यान 405 ईस्वी में भारत आया था। जिसने झारखंड क्षेत्र को कुक्कुटलाड कहा है।
➤मुदही पहाड़ हजारीबाग जिले में है जो पत्थरों को काटकर बनाए गए चार मंदिर। सतगांवा कोडरमा मंदिरों के अवशेष (उत्तर गुप्त काल से संबंधित) हैं। पिठोरिया रांची पहाड़ी पर स्थित कुआं तीनों गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेष हैं।
4) गुप्तोत्तर काल
➤शशांक
➤गौड़ (पश्चिम बंगाल) का शासक शशांक इस काल में एक प्रतापी शासक था।
➤शशांक के साम्राज्य का विस्तार संपूर्ण झारखंड, उड़ीसा तथा बंगाल तक था।
➤शशांक अपने विस्तृत साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए दो राजधानी स्थापित की:-
➤प्राचीन काल में शासकों में यह प्रथम शासक था जिसकी राजधानी झारखंड क्षेत्र में थी।
➤शशांक शैव धर्म का अनुयाई था तथा इसने झारखंड में अनेक शिव मंदिरों का निर्माण कराया।
➤शशांक के काल का प्रसिद्ध मंदिर वेणुसागर है जो कि एक शिव मंदिर है। यह मंदिर सिंहभूम और मयूरभंज की सीमा क्षेत्र पर अवस्थित कोचिंग में स्थित है।
➤शशांक ने बौद्ध धर्म के प्रति असहिषुणता की नीति अपनाई,जिसका उल्लेख हेन्सांग ने किया है।
➤शशांक ने झारखंड के सभी बौद्ध केंद्रों को नष्ट कर दिया। इस तरह झारखंड में बौद्ध- जैन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म की महत्ता स्थापित हो गई।
➤हर्ष वर्धन
➤वर्धन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हर्षवर्धन था।
➤इसके साम्राज्य में काजांगल (राजमहल) का कुछ भाग शामिल था।
➤काजांगल (राजमहल) में ही हर्षवर्धन हेनसांग से मिला। हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में राजमहल की चर्चा की है।
➤अन्य तथ्य
➤हर्यक वंश का शासक बिंबिसार झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहता था।
➤नंद वंश के समय झारखंड मगध साम्राज्य का हिस्सा था।
➤नंद वंश की सेना में झारखंड से हाथी की आपूर्ति की जाती थी। इस सेना में जनजातीय लोग भी शामिल थे।
➤झारखंड में दामोदर नदी के उद्गम स्थल तक मगध की सीमा का विस्तार माना जाता है।
➤झारखंड में 'पलामू' में चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
➤कन्नौज के राजा यशोवर्मन के विजय अभियान के दौरान मगध के राजा जीवगुप्त द्वितीय ने झारखण्ड में शरण ली थी।
➤13वीं सदी में उड़ीसा के राजा जयसिंह ने स्वयं को झारखंड का शासक घोषित कर दिया था।
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