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Wednesday, January 6, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Lok Nritya (झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य)

Jharkhand Ke Pramukh Lok Nritya


झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य


छऊ नृत्य

यह झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण लोक नृत्य है
युद्ध भूमि से संबंधित यह लोक-नृत्य शारीरिक भाव-भंगिमाओं, ओजस्वी स्वरो  तथा पगो की धीमी व तीव्र गति द्वारा संचालित होता है

इस नृत्य की दो श्रेणियां हैं

1) हातियार श्रेणी तथा 
2) काली भंग श्रेणी 

सरायकेला राज-घराने में पल्लवित हुआ, इस नृत्य का विदेश में (यूरोप में) सबसे पहले प्रदर्शन 1938 में सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह ने करवाया था

यह ओजपूर्ण नृत्य शैली है, जिसमें पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाओं के मंचन के लिए पात्र तरह-तरह के मुखोटे धारण करते हैं


झारखंड की लोक शैली के नृत्यों में यह  पहला नृत्य है, जो सिर्फ दर्शकों के लिए प्रदर्शित होता है 

झारखंड के अन्य सभी लोक नृत्यों में सिर्फ भावभिव्यक्ति ही होती है। उनके साथ कोई प्रसंग या कथानक नहीं होता। 
छऊ में प्रसंग या कथानक हमेशा मौजूद रहता है
 
अन्य लोक नृत्यों के संचालन में किसी गुरु या प्रशिक्षित शिक्षक की उपस्थिति नहीं होती, किंतु छाऊ नृत्य में उस्ताद या गुरु की उपस्थिति आवश्यक होती है 

पाइका नृत्य 

यह एक ओजपूर्ण नृत्य है, जिसमें नर्तक  सैनिक वेश में नृत्य करते हैं। 
 
इसमें नर्तक  रंग-बिरंगे झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी बांधते हैं। 
यह एक प्रकार का युद्ध से संबंधित नृत्य है और 
मुंडा जनजातियों का एक प्रमुख नृत्य है। 

नटुआ नृत्य

यह  पुरुष प्रधान नृत्य है यह पाइका नृत्य का एकल रूप जैसा है।  
इसमें भी कलगी रह सकती है, परंतु यह अनिवार्य नहीं है।  


करिया झूमर नृत्य

महिला प्रधान इस नृत्य में महिलाएं अपनी सहेलियों के हाथों में हाथ डालकर घूम- घूम कर नाचती-गाती है।  

करम नृत्य 

यह नृत्य करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है यह नृत्य झुककर होता है करम के दो भेद हैं :-खेमटा  और झीनसारी।  

खेमटा में गति अत्यंत धीमी किंतु अत्यंत कमनिया होती है। 
झीनसारी रात के तीसरे पहर से सुबह मुर्गे की बांग देने तक चलने वाला नृत्य है। 


जतरा
 नृत्य

यह एक सामूहिक नृत्य है इसमें स्त्री-पुरुष एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं। 
इसमें युवक-युवतियां कभी वृत्ताकार और कभी अर्द्ध-वृत्ताकार रूप में नृत्य करते हैं। 

नचनी नृत्य 

यह एक पेशेवर नृत्य है नचनी (स्त्री) और रसिक (पुरुष नर्तक) कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। 

अंगनाई नृत्य 

यह एक धार्मिक नृत्य है, जो पूजा के अवसर पर किया जाता है। 
यह सदनों के आंगन का नृत्य है, जिसे उरांवों ने भी अपना लिया है। 
इसके प्रमुख भेदों  में शामिल है:- पहिलसाझा, अधरतिया, विहनिया, लहसुआ, उदासी,लुझकी आदि।  

मुण्डारी नृत्य 

मुंडा जनजातियों  का रंग-बिरंगी पोशाक में यह एक  सामूहिक नृत्य है।  
इस समाज के प्रमुख नृत्य है -जदुर, ओर जदुर, नीर जदुर,जापी,गेना,चीटिद,छव, करम ,खेमटा,जरगा,ओरजरगा, जतरा,पाइका, बरु,जाली  नृत्य आदि।  

कठोरवा नृत्य

यह मुखौटे  पहनकर पुरुषों द्वारा लिया जाने वाला नृत्य है।  

मागे नृत्य

यह  नृत्य मुख्य रूप से हो जनजाति में प्रचलित है
यह महिला-पुरुषों का सामूहिक नृत्य है, जो माघ मास की पूर्णिमा में किया जाता है,इसमें बजाने, नाचने और गाने वाले नाचने वालियों के मध्य घिरे होते हैं

बा नृत्य

हो जनजातियों का यह एक प्रमुख नृत्य है
सरहुल के अवसर पर इस नृत्य में स्त्री-पुरुष सम्मिलित होकर नाचते-गाते तथा बजाते हैं 
एक साथ नृत्य तथा गीत वाले इस नृत्य में पुरुषों तथा महिलाओं का अलग दल होता है

हेरो नृत्य 

इस नृत्य में धान बोने की समाप्ति के उपरांत महिला-पुरुष सम्मिलित रूप से पारंपरिक वादियों के साथ नृत्य करते हैं

जोमनमा नृत्य

नया अन्न ग्रहण करने की खुशी में मनाए जाने वाले इस नृत्य में महिला-पुरुष सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। इसमें मादर, नगाड़े, बनम आदि बजाए जाते हैं

दसाई नृत्य

यह दशहरे के समय का पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें हाथों में छोटे-छोटे डंडे नृतक पकड़े होते हैं 
नाचने वाले घर-घर जाकर लोगों के आंगनों में नाचते हैं और हर घर से अनाज प्राप्त करते हैं

सोहराई  नृत्य

यह नृत्य पालतू पशुओं के लिए बनाए जाने वाला उत्सव में होता है
इस नृत्य में महिला चुम्मावड़ी गीत गाती है


गेना और जपिद नृत्य

इसमें महिलाएं नृत्य करती है और पुरुष वाद्य संभालते हैं 
महिलाएं जहां कतार में जुड़कर नृत्य करती हैं, वहीं पुरुष गीतों के भावनानुरूप स्वतंत्र रूप से निर्णय करते हैं

जदुर नृत्य 

यह एक महिला प्रधान नृत्य है, जो सरहुल के समय किया जाता है अन्य  ऋतु या अवसर पर यह नृत्य वर्जित है 
इस तीव्र गति वाले नृत्य में महिलाएं झूमर की तरह जुड़ी हुई नृत्य करते हुए गीत गाती है 
जिसके मध्य में पुरुष नर्तक और वादक घिरे रहते हैं 
इसमें लय- ताल तथा राग के अनुरूप वृत्ताकार में दौड़ते हुए महिलाएं नृत्य करती हैं 


टुसु नृत्य

यह नृत्य मकर संक्रांति के अवसर पर महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है जिसमें वे टुसु के प्रतीक चौढ़ाल  को प्रवाहित करने हेतु जाते समय करती हैं 

रास नृत्य

कार्तिक पूर्णिमा में एक या अधिक नचनी द्वारा किया जाने वाला एक मनमोहक नृत्य है,इसमें पुरुष नर्तक, वादक एवं गायक होते हैं, जिनके मध्य नर्तिकाएँ नृत्य करती हैं 

जरगा नृत्य 

यह माघ त्योहार से संबंधित नृत्य है इसमें बालाये  एक-दूसरे की कमर पकड़कर जुड़ती है और दाएं-बाएं फिर दाहिनी और बढ़ती हुई नृत्य करती है  
यह मध्य गति का नृत्य है इसमें पैरों की चाल् या पद संचालन की अपनी विशिष्टता  है 


ओर जरगा नृत्य 

यह  नृत्य जरगा नृत्य के साथ-साथ चलता है  इसमें महिलाओं का एक ही दल होता है 
तीव्र गति से ने नृत्य  करती हुई महिलाएं वृत्ताकार घूमती हैं 
इनके मध्य गायक, वादक नर्तक पुरुषों की मंडली होती हैं

फगुवा  नृत्य

यह फगुआ (फरवरी) और चैत (अप्रैल) के संधिकाल का पुरुष प्रधान नृत्य है 
फगुआ चढ़ते ही फगुआ नृत्य की तैयारी शुरू हो जाती है
इसमें एक दल गाने वालों का तो दूसरा दल लोकने (दोहराने) वालों का होता है

घोड़ा नृत्य

यह नर्तकों द्वारा बिना पैर के घोड़े की आकृति बनाकर किया जाता है विशेष, मेलों ,त्योहारों ,उत्सवों  एवं बारात के स्वागत के समय का यह नृत्य है 
इसे  मुखड़े पर बांस के पहियों से बिना पैर के घोड़े का आकार दिया जाता है
बैठने के स्थान पर नर्तक इस तरह खड़ा रहता है जैसे वह घोड़े पर सवार है 
नर्तक बाएं हाथ से घोड़े की लगाम और दाहिने हाथ से दोधारी तलवार चमकाते रहता है
मुस्कुराता हुआ युद्धरत  विजयी राजा या सेनापति की तरह सीना ताने या नर्तक नृत्य करता है
नागपुरी क्षेत्र में घोड़ा नृत्य के लिए पांडे दुर्गानाथ राय मैसूर थे

जापी नृत्य

यह शिकार से विजयी  होकर लौटने का प्रतीक नृत्य है, इसमें स्त्री-पुरुष सामूहिक रूप से निर्णय करते हैं
यह मध्य गति का नृत्य है, इसके वादक , गायक, नर्तक पुरुष और महिलाओं से घिरे रहते हैं 
इस नृत्य में महिलाएं एक-दूसरे की कमर पकड़कर जुड़ी रहती है
पुरुषों का एक दल बजाता है दूसरे दल वाले अपने लय-ताल से नाचते-गाते हैं 
महिलाएं पुरुष नायक के गीतों की अंतिम कड़ी को गाती है

राचा नृत्य

यह नृत्य खूटी के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में प्रचलित है 
इसे बरया खेलना या नाचना भी कहते हैं कहीं-कहीं इसे खड़िया नाच भी कहते हैं 
इसमें मादर तथा घंटी का विशेष महत्व रहता है
इस नृत्य में, पुरुष महिलाओं को आगे अपनी ओर आते देख पीछे हटते हैं 
दूसरे दौर में, पुरुष गीत गाते हुए बालाओं को नृत्य शैली से पीछे धकेलते हैं

➤धुड़िया नृत्य

सरहुल के उपरांत उरांव लोग खेत जोत लेते हैं और बीज बो देते  है। मौसम के अनुरूप इसमें जूते खेतों से धूल उड़ती है 
धूल उड़ाते हैं इससे इस काल के नृत्य  को धुड़िया  नृत्य कहते हैं 
इसे मांदर के ताल पर नाचा जाता है
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