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Sunday, November 8, 2020

झारखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र (Jharkhand Ke Pramukh Vadya Yantra)

झारखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र

(Jharkhand Ke Pramukh Vadya Yantra)

1) तंतु वाद्य 

2) सुषिर वाद्य

3) ताल वाद्य 

1) तंतु वाद्य :-

यह वैसे वाद्य होते हैं, जिनके  तारों में कंपन के माध्यम से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है। जैसे :- एकतारा, भुआंग,केंद्ररी आदि। 

एकतारा :- इसमें एक तार होने के कारण इसे एकतारा कहा जाता है 

इस वाद्य का निचला हिस्सा खोखली लौकी या लकड़ी का बना होता है

यह  देश भर के अपनी धुन में मस्त साधुओं और फकीरों की पहचान का वाद्य यंत्र है

झारखंड में भी अक्सर फकीर/साधुओ  के पास देखा जा सकता है

केन्द्री :- यह संथालों का प्रिय वाद्य है।  

इसे झारखंडी वायलिन भी कहा जाता है। 

इसका निचला हिस्सा कछुए की खाल या नारियल के खाल का बना होता है। 

इसमें 3 तार होते हैं जिनसे मधुर ध्वनि निकलती है। 

भुआंग:-  यह संथालों का प्रिय वाद्य है

दशहरा के समय दासोई नाच में संथाल भुआंग बजाते हुए नृत्य करते हैं

इसमें तार को ऊपर खींच कर छोड़ने से धनुष टंकार जैसी आवाज निकलती है

टूइला :- इसकी वादन शैली कठिन होने के कारण झारखंड में यह कम लोकप्रिय है

2) सुषिर वाद्य :- 

ये वैसे वाद्य होते हैं जिसमें पतली नलिका में फूंक मारकर संगीत में ध्वनि उत्पन्न की जाती है। जैसे :- बांसुरी,सनाई(शहनाई), मदनभेरी, शंख, सिंगा आदि 

बांसुरी :- यह झारखंड का सबसे अधिक लोकप्रिय सुषिर वाद्य है डोंगी बांस से सबसे अच्छी बांसुरी बनाई जाती है

सानाई :- झारखंड के लोक संगीत में सानाई (शहनाई) बांसुरी की तरह लोकप्रिय है 

यह यहां का मंगल वाद्य भी है ,जिससे पूजा, विवाह आदि के साथ-साथ छउ,पाइका आदि नृत्यों में भी बजाया जाता है 

 सिंगा :- प्राय: बैल या भैंस के सींग  से बनाए जाने के कारण सिंगा कहा जाता है

छऊ नृत्य में और शिकार के वक्त पशुओं को खदेड़ने के लिए बजाया जाता है

मदनभेरी :- इस सुषिर वाद्य  में लकड़ी की एक सीधा मिली होती है, जिसके आगे पीतल का मुह रहता है

इसे ढोल, बांसुरी,सानाई के साथ सहायक के रूप में बजाया जाता है

3) ताल वाद्य :-

वैसे वाद्य जिन्हे पीटकर या ठोककर ध्वनि उत्पन्न की जाती है
 

ताल वाद्य दो प्रकार के होते हैं 

I)अवनद्ध वाद्य:-

ये लकड़ी के ढांचे पर चमड़ा मढ़कर बनाए जाने वाले वाद्य हैं इसे मुख्य ताल वाद्य भी कहा जाता है 
जैसे :- मांदर, ढोल, नगाड़ा, धमसा,ढाक ,करहा,डमरू,ढप,जुड़ी नगाड़ा,खंजरी आदि  

मांदर :- यह झारखंड का प्राचीन एवं अत्यंत लोकप्रिय वाद्य है

 इस वाद्य यंत्र को यहां लगभग सभी समुदाय के लोग बजाते हैं

यह पार्शवमुखी  वाद्य है  इसमें लाल मिट्टी का गोलाकार  ढांचा होता है, जो अंदर से बिल्कुल खोखला होता है

इसके दोनों तरफ के खुले सिरे बकरे की खाल से मड़े होते हैं

रस्सी के सहारे कंधे से लटकार  इसे बजाया जाता है

मांदर की आवाज गूंज तार होती है

ढोल :- लोकप्रियता की दृष्टि से इनका स्थान मांदर के बाद आता है

इससे पूजा के साथ-साथ शादी, छांउ, नृत्य , घोड़नाच आदि में भी बजाया जाता है

इसका मुख्य ढांचा आम, कटहल, या गमहार की लकड़ी का बना होता है 

इसके दोनों खुले मुंह को बकरे की खाल से मढ़कर बद्दी से कस दिया जाता है

इसे हाथ या लकड़ी से बचाया जाता है

धामसा :- इसका उपयोग, मांदर, ढोल आदि मुख्य वाद्यों  के सहायक वाद्य  के रूप में किया जाता है

इसकी आकृति कढ़ाही  जैसे होती है

➤छउ  नृत्य में धामसा की आवाज से युद्ध और सैनिक प्रयाण जैसे दृश्यों को साकार किया जाता है

नगाड़ा :- इसे  छोटे और बड़े दोनों प्रकार का बनाया जाता है

➤बड़े नगाड़े का उपयोग सामूहिक उत्सवों  और सामूहिक नृत्य के लिए किया जाता है

ढाक :- इसका मुख्य ढाँचा गम्हार की लकड़ी का बना होता है 

इसके दोनों खुले मुँह को बकरे की खाल से मढ़कर बद्धी से कस दिया जाता है 

इसे कंधे से लटकाकर दो पतली लकड़ी के जरिए बजाया जाता है 

➤यह आकर में मांदर एवं  ढोल से बड़ा होता है

II)धन वाद्य:-

यह प्रया: कांसा के बने होते हैं, इन्हें सहायक ताल वाद्य भी कहा जाता है।जैसे :-करताल,झांझ ,झाल,  घंटा, काठी खाला आदि 

करताल  :- इसमें दो चपटे गोलाकार प्याले होते हैं, जिनके बीच का हिस्सा ऊपर की ओर उभरा होता है

➤उभरे हिस्से के बीच में एक छेद होता है, जिसमें रस्सी पिरो दी जाती है

रस्सीयों को हाथों की अंगुलियों में फंसाकर प्यालो को ताली बजाने की तरह एक दूसरे पर चोट की जाती है
ऐसा करने से मधुर ध्वनि निकलती है 

झांझ :-यह करताल  से बड़े आकार का होता है, बड़ा होने के कारण इसकी आवाज करताल से ज्यादा गुंजायमान होती है

काठी :- यह भी एक धन वाद्य  है ,इसमें कुडची की लकड़ी के दो टुकड़े होते हैं, जिन्हें आपस में टकराने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है 

थाला :- यह कासे से  निर्मित थाली की तरह होता है ,थाला  का गोलाकार किनारा दो-3 इंच का उठा होता है 
बीच में छेद होता है, जिससे रस्सी पिरोक झुलाया जाता है

बाएं हाथ से रस्सी थामकर  दाएं हाथ से इसे भुट्टे /मक्का की खलरी से बजाया जाता है 

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