Munda Ungulan/Birsa Munda Andolan
(मुंडा उलगुलान /बिरसा मुंडा आंदोलन)
➤बिरसा आंदोलन 19वीं सदी के आदिवासी आंदोलनों में सबसे अधिक संगठित और व्यापक आंदोलन में से एक था, जो वर्तमान झारखंड राज्य के रांची जिले के दक्षिणी भाग में 1899-1900 ईसवी में हुआ।
➤इसे 'मुण्डा उलगुलान ' मुण्डा महाविद्रोह भी कहा जाता है।
➤सामूहिक भू -स्वामित्व व्यवस्था का जमींदारी या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व व्यवस्था में परिवर्तन के विरुद्ध इस आंदोलन का उदय हुआ और बाद में बिरसा के धार्मिक-राजनीतिक आंदोलन के रूप में इसका चरमोत्कर्ष हुआ।
➤कारण
➤मुण्डा उलगुलान के निम्नलिखित कारण थे।
1) खूंटकट्टी व्यवस्था की समाप्ति और बैठ बेगारी का प्रचलन :- 19वीं सदी में उत्तरी मैदान से आने वाले व्यापारियों, जमींदारों, ठेकेदारों, साहूकारों ने मुंडा जनजाति में प्रचलित सामूहिक भू -स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था (खूंटकट्टी व्यवस्था) को समाप्त कर व्यक्तिगत भू -स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था का प्रचलन किया।
➤बंधुआ मजदूरी (बेठ बेगारी) के माध्यम से (देकु )गैर आदिवासियों/बाहरी लोग का शोषण करते थे।
2) मिशनरियों का कोरा आश्वासन और उनसे मोह -भंग :- विभिन्न मिशनरियों ने भूमि संबंधी समस्याओं के समाधान दूर करने का लालच देकर उन्हें अपने धर्म-ईसाई धर्म में दीक्षित करना प्रारंभ कर दिया।
➤किंतु वे भूमि की मूल समस्या का कोई समाधान नहीं कर पाए।
3) अदालतों से निराशा :- जब मुंडा कबीले के सरदारों ने बाहरी भूस्वामियों और जबरी बेगारी के खिलाफ अदालतों की शरण ली तो वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
➤तत्कालीन कारण
4) 1894 का छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून :-1894 का छोटानागपुर वन सुरक्षा कानून बन जाने से जंगल पुत्र आदिवासी निर्वाह के सबसे प्रमुख साधन से वंचित हो गए।
➤उन्हें भूखों मरने की नौबत आ गई।
➤भूख से बिलबिलाते मुंडाओ को आंदोलन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा।
➤बिरसा आंदोलन का उद्देश्य
➤आर्थिक उद्देश्य :- सभी बाहरी तथा विदेशी तत्वों को बाहर निकालना विशेषकर मुंडाओ की उनकी जमीन हथियाने वाले जमींदारों को भगाना एवं जमीन को मुंडा उनके हाथ में वापस लाना।
➤राजनीतिक उद्देश्य :- अंग्रेजों के राजनीतिक प्रभुत्व को समाप्त करना तथा स्वतंत्र मुंडा राज की स्थापना करना।
➤धार्मिक उद्देश्य :- ईसाई धर्म का विरोध करना तथा ईसाई बन गए असंतुष्ट मुंडाओ को अपने धर्म में वापस लाना।
➤परिणाम
➤बिरसा आंदोलन स्वतंत्र मुंडा राज की स्थापना करने में विफल रहा, लेकिन 1902 में गुमला एवं 1903 में खूटी को अनुमंडल के रूप में स्थापना तथा 1908 के छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम के द्वारा मुण्डाओं को कुछ आराम अवश्य मिली।
➤वर्ष 1908 में पारित छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम के के द्वारा (सामूहिक काश्तकारी) अधिकारों को पुनर्स्थापित किया गया, बंधुआ मजदूर (बेठ बेगारी) पर प्रतिबंध लगाया गया तथा लगान की दरें कम की गई।
➤फ़ादर हाफमैन ने 1908 के छोटानागपुर काश्तकारी को मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए किया गया बहुत ही बहुमूल्य प्रयास बताया।
➤बिरसा मुंडा एक राष्ट्रवादी था।
➤परंतु इस आंदोलन को आदिम पर साम्राज्य विरोधी करने से इनकार किया जा सकता।
➤मुण्डा समाज आज भी उन्हे 'बिरसा भगवान', 'धरती आबा', धरती पिता) 'विश्वपिता का अवतार' आदि के रूप में याद करता है उसके गांव चालकंद को तीर्थ स्थल का दर्जा देता है।
➤मुंडा समाज के बीच बिरसा के नाम से एक पंथ -बिरसाई पंथ चल निकला।
➤बिरसा पवित्र स्मृति मुण्डाओं के हृदय में बनी हुई है।बिरसा की वीरता व बलिदान की गाथा अनेक लोक कथाओ व लोक गीतों में अमर बन चुकी है।
➤वह आज भी आदिवासियों में नये युग का प्रेरणा पुंज है।
➤वैसा आंदोलन से मुंडा राज का सपना भले ही पूरा नहीं हो सका, लेकिन विद्रोह की आग अंदर ही अंदर सुलगती रही , यही विद्रोह की आग पृथक झारखंड राज्य की प्रेरणा बन गई।
0 comments:
Post a Comment