➤हो देशम /कोल्हान पर मुगलों या मराठों का कभी अधिकार नहीं रहा था।
➤यद्यपि पोरहाट के सिंह राजाओं का इन पर प्रभाव था, किंतु वे सिंह वंश के समकक्ष थे ना कि अधीनस्थ।
➤वे सिंह राजाओं को कोई नियमित कर नहीं देते थे, केवल समय-समय पर कुछ भेंट/ उपहार दे देते थे।
➤बाह्य नियंत्रण से दीर्घकाल तक मुक्त रहने के फलस्वरुप हो स्वतंत्राप्रेमी और लड़ाकू स्वभाव के हो गए थे।
➤इसी कारण कंपनी काल में यह 'लड़ाका कोल' के नाम से प्रसिद्ध थे।
➤सिंहभूम के राजा के आग्रह पर वर्ष 1820 में पॉलिटिकल एजेंट मेजर रफसेज एक सेना के साथ हो देशम में प्रविष्ट हुआ।
➤चाईबासा के निकट रोरो नदी के तट पर हो लोगों से हुई लड़ाई में अंग्रेजी विजय हुए।
➤इस दमन के बावजूद हो देशम के उत्तरी भाग के हो पोरहाट के राजा को कर देने के लिए सहमत हुए।
➤दक्षिणी कोल्हान के हो लोगों ने अंग्रेजों का विरोध करना जारी रखा।
➤हो लोगों ने सीमावर्ती राज्यों के इलाकों में उपद्रव मचाना शुरू कर दिया।
➤हो लोगों की इन गतिविधियों के फलस्वरुप पोरहाट राजा को पुनःमेजर रफसेज से सहायता की याचना करनी पड़ी।
➤परिणाम स्वरुप 1821 ईस्वी में कर्नल रिचर्ड के नेतृत्व में एक बड़ी सेना हो लोगों के विरुद्ध भेजी गई।
➤हो लोगों ने रिचर्ड का एक महीने तक सामना किया किंतु अंतर्विरोध को निरर्थक जानकर कंपनी से संधि करना बेहतर समझा।
संधि की प्रमुख शर्तें थी
1) हो लोगों ने कंपनी की अधीनता को स्वीकार किया।
2) हो लोगों ने अपने राजाओं और जमींदारों को 8 आना (50 पैसे) प्रति हल सालाना कर देना स्वीकार किया।
इस संधि के बावजूद कोल्हान में गड़बड़ी समाप्त नहीं हुई। 1831- 32 ईसवी में हो लोगों ने कोल विद्रोह में सक्रिय भाग लिया।
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