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Friday, November 19, 2021

Jharkhand Me Jalvayu Parivartan (झारखंड में जलवायु परिवर्तन)

झारखंड में जलवायु परिवर्तन

➧ जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य हमारी जलवायु में एक निश्चित समय के पश्चात होने वाले परिवर्तन से है सामान्यत: इसके लिए 15 वर्ष की समय-सीमा का निर्धारण किया जाता है।  

➧ वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन हमारे समक्ष एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है, जिसने जैव मंडल के अस्तित्व पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। 

 जलवायु परिवर्तन के लिए कई प्रमुख कारण जिम्मेदार हैं। 

 झारखंड में जलवायु परिवर्तन के कारण 

➧ ग्रीन हाउस गैस 

➧ पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बने हुए हैं, इस परत में मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन ऑक्साइड जैसे गैसे शामिल है।  

 ग्रीन हाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विशेषज्ञों  के अनुसार यदि यह संतुलन पर नहीं होगी तो पृथ्वी पर तापमान काफी कम हो जाएगा

 आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियां बढ़ रही है, वैसे-वैसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है

झारखंड में जलवायु परिवर्तन

 मुख्य ग्रीन हाउस गैसें 

(1) कार्बन डाइऑक्साइड:- 

➧ इसे सबसे महत्वपूर्ण GHG (Greenhouse gases) माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होते हैं वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है आंकड़े बताते हैं, कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली है

(2) मिथेन: 

 जैव पदार्थों का अपघटन मिथेन का एक बड़ा स्रोत है उल्लेखनीय है कि मिथेन (CH4) कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीन हाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है 

(3) क्लोरोफ्लोरोकार्बन 

 इसका प्रयोग मुख्यत: रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है और ओजोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है 

(4) भूमि के उपयोग में परिवर्तन

➧ वनों की कटाई वाणिज्यक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि यह वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही है, वह काफी चिंतनीय है

(5) शहरीकरण 

➧ शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया हैविश्वभर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है जीवनशैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है

➧ राज्य में जलवायु परिवर्तन के परिणाम एवं प्रभाव

झारखंड में जलवायु परिवर्तन

(1)  उच्च तापमान

➧ पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी की अपेक्षाकृत काफी तेजी से गर्म कर रहा है 

➧ पिछले डेढ़ वर्षो में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड दर्ज किया है 

➧ गर्मी में संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिए बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण के रूप में माना जा सकता है

(2) वर्षा के पैटर्न के बदलाव

➧ पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरुप हो ही हो रहा है कुछ स्थानों पर बहुत ज्यादा वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है

(3) समुद्र जल के स्तर में वृद्धि

➧ वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता है, जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के दीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ रहा है

(4) वन्यजीव प्रजाति का नुकसान 

➧ तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिए मजबूर कर दिया है विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक चौथाई प्रजातियां वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं

(5) रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान

➧ जानकारों ने अनुमान लगाया है, कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरुप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों और अधिक बढ़ेंगे तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा

(6) जंगलों में आग

 जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाले हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिए उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियां पैदा की है हाल के ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में लगी आग में व्यापक वन्य प्राणी का नुकसान हुआ, जिसमें इसका एक बड़ा पक्ष जलवायु परिवर्तन ही है

(7) खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव

➧ जलवायु परिवर्तन से तटों  के डूबने से कृषि भूमि का जल में डूबना प्रत्यक्ष रुप से खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, वहीं दूसरी और खाद्यान्न उत्पादन में पोषकता की मात्रा में भी कमी आयेगी 

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Thursday, November 18, 2021

Jharkhand Me Pradushan Niyantran Ke Sarkari Prayas (झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास)

झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास

➧ पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण निवारण शोध संस्थान 

(i)  खनन पर्यावरण केंद्र  - धनबाद

(ii) वन उत्पादकता केंद्र - राँची

(iii) भारतीय लाह अनुसंधान केंद्र - राँची

(iv) झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित (2001) - राँची

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 

➧ झारखंड राज्य में प्रदूषण नियंत्रण हेतु 2001 ईस्वी  में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गई है संसाधनों के सतत उद्योग उपयोग के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा (JSPCB) द्वारा 2012-17 के लिए दृष्टि पत्र प्रस्तुत किया गया है 

➧ यह बोर्ड संसाधनों के सतत उपयोग पर बल देता है साथ ही जल के उपयोग को कम करने, वर्षा, जल, कृषि, लकड़ी एवं कोयला का औद्योगिक' क्षेत्र में कम उपयोग करने एवं स्वच्छ ऊर्जा उपयोग पर अधिक बल देता है 

झारखंड में प्रदूषण नियंत्रण के सरकारी प्रयास

 झारखंड ऊर्जा नीति 2012 :- ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए यह नीति बनाई गई। इसमें गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के विकास पर विशेष बल दिया गया है इस नीति में 10 वर्षों में कुल ऊर्जा उत्पादन का 50% ,गैर परंपरागत स्रोत से उत्पादन करना है JREDA (Jharkhand Renewable Energy Development Authority)  का गठन 2001 में किया गया किया गया है 

➧ झारखंड राज्य एक्शन प्लान (JSPCB) - 2014 

 राज्य सरकार द्वारा प्रदूषण से निपटने और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों के समाधान हेतु बनाया गया

 झारखंड में सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना

➧ जनसंख्या परिवर्तन से प्रभावित अति संवेदनशील क्षेत्रों की मानचित्र तैयार करना

➧ कोयला एवं खनन आधारित उद्योगों से उत्पन प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय करना

 झारखंड राज्य जल नीति-2011

➧ जल संसाधन के उचित प्रबंधन के लिए यह नीति बनायी गयी। 

 जल संसाधन, विशेषकर नदी जल संरक्षण के लिए भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 20 फरवरी, 2009 को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया है 

➧ इस प्राधिकरण के अंतर्गत गंगा नदी से संबंधित राज्यों को नदी संरक्षण संबंधी कार्यों को करने के लिए निर्देश दिया गया है इस प्राधिकरण के आलोक में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत झारखंड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण का गठन 30 सितंबर 2009 को भविष्य को किया गया था

 प्राधिकरण का पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है और इनका मुख्यालय रांची में स्थित है

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Tuesday, November 16, 2021

Jharkhand me dhwani Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव)

झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ अनियंत्रित, अत्यधिक तीव्र एवं असहनीय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता को डेसिबल इकाई में मापा जाता है

(i) कृषि योग्य भूमि की कमी

(ii) भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

(iii) भू-संख्लन से होने वाली हानियां 

(iv) जल तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि

ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव

(1) ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्चरक्तचाप अथवा स्नायविक, मनोवैज्ञानिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से स्वभाविक परेशानियां बढ़ जाती हैं 

(2) ध्वनि प्रदूषण से ह्रदय गति बढ़ जाती है, जिससे रक्तचाप, सिर दर्द एवं अनिद्रा जैसे अनेक रोग उत्पन्न होते हैं  

(3) नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इससे कई प्रकार की शारीरिक विपरीत विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं गैस्ट्रिक, अल्सर और दमा जैसे शारीरिक रोगों तथा थकान एवं चिड़चिड़ापन जैसे मनोविकारों का कारण भी ध्वनि प्रदूषण ही है 

झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव

➧ झारखंड में ध्वनि प्रदूषण

➧ झारखंड ध्वनि प्रदूषण के मामले में अन्य राज्यों की अपेक्षा कम प्रभावित है उच्च ध्वनि प्रदूषण राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, (लाजपत नगर), महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश राज्य आदि शामिल है। ध्वनि प्रदूषण अनियंत्रित वाहनों, त्योहारों व उत्सव, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल, औद्योगिक क्षेत्रों में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर सायरन , हॉर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर के द्वारा होता है झारखंड के शहरी क्षेत्रों (खासकर औद्योगिक नगर) में इन सभी ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है

 हाल ही में सर्वे के अनुसार राजधानी रांची में सबसे ज्यादा प्रदूषण के प्रभाव देखे गए, जिसमें अशोक नगर (रांची) प्रमुख क्षेत्र रहा 

➧ प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने जांच के लिए शहर को 4 जोन में बांटा था :-

क्षेत्र                                जोन                                डेसिबल 

झारखंडहाई  कोर्ट               साइलेंट जोन                         45 -  50 डेसिबल 

अल्बर्ट एक्का चौक            कमर्शियल जोन                      55 - 65

कचहरी चौक                     कमर्शियल जोन                      55 - 65 

अशोक नगर                     रिहायशी जोन                         45 - 55 

➧ धनबाद में सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण रिकॉर्ड किए गए। यहां प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने तीन जगहों पर दीपावाली के दिन ध्वनि प्रदूषण की जांच की, जिसमें हीरापुर इलाके में सबसे ज्यादा 107 पॉइंट 5 डेसीबल ध्वनि प्रदूषण का स्तर रहा वही बैंक मोड़ में 107 पॉइंट 2  डेसीबल और बरटांड़ में 106 पॉइंट 7 डेसीबल प्रदूषण दर्ज किया गया 

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Monday, November 15, 2021

Jharkhand me Bhumi Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव)

झारखंड  में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ भूमि प्रदूषण से अभिप्राय जमीन पर जहरीले, अवांछित एवं अनुपयोगी पदार्थों की भूमि में विसर्जित करने से है, क्योंकि इससे भूमि का निम्नीकरण होता है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है लोगों की भूमि के प्रति बढ़ती लापरवाही के कारण भूमि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। 

 भूमि प्रदूषण के कारण

(i) कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग । 

(ii) औद्योगिक इकाइयों, खानों तथा खदानों द्वारा निकले ठोस कचरे का विसर्जन। 

(iii) भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का विसर्जन

(iv) कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पाते। 

(v) प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग, जो जमीन में दबकर नहीं गलती। 

 (vi) घरों, होटलों और औद्योगिक इकाइयों द्वारा निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों का निपटान, जिसमेँ  प्लास्टिक, कपड़े, लकड़ी, धातु, काँच, सेरामिक, सीमेंट आदि सम्मिलित है। 

➧ भूमि प्रदूषण के प्रभाव

(i) कृषि योग्य भूमि की कमी

(ii) भोज्य पदार्थों के स्रोतों को दूषित करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

(iii) भू-संख्लन से होने वाली हानियां 

(iv) जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण में वृद्धि

झारखंड  में भूमि प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ झारखंड में भूमि प्रदूषण के प्रभाव

➧ झारखंड प्रदेश में लगभग 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का अम्लीय भूमि (पी.एच. 5.5 से कम) के अंतर्गत आती हैं ।  

➧ यदि विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र में पड़ने वाले जिलों में अम्लीय भूमि की स्थिति को देखें तो उत्तरी-पूर्वी जोन (जोन-IV) के अंतर्गत जामताड़ा, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग और रांची के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 50% से अधिक भूमि अम्लीय समस्या से ग्रसित है । 

 इसी तरह पश्चिमी पठारी जोन (जोन -V) में सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा में 69 से 72% तक अम्लीय भूमि की समस्या है, जबकि पलामू, गढ़वा और लातेहार में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल 16% से कम है, दक्षिणी-पूर्वी जोन (जोन -VI) में अम्लीय भूमि की समस्या सबसे ज्यादा है 

➧ इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले तीनों जिलों-सरायकेला, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम में अम्लीय भूमि का क्षेत्रफल  70% के करीब है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि झारखंड प्रदेश में मृदा अम्लीयता प्रमुख समस्याएं है 

➧ अम्लीय भूमि की समस्या का प्रभाव 

➧ गेहूं , मक्का, दलहन एवं तिलहन फसलों की उपज संतोषप्रद नहीं हो पाती है

 मृदा अम्लीयता के कारण एलयूमिनियम, मैगनीज और लोहा अधिक घुलनशील हो जाते हैं और पौधों को अधिक मात्रा में उपलब्ध होने के कारण उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है

➧ अम्लीय भूमि में मुख्यत: फास्फेट, सल्फर, कैल्शियम एवं बोरॉन की कमी होती है

 अम्लीय भूमि में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण और कार्बनिक पदार्थों का विघटन नहीं होता है इसके अलावा सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं कार्यकुशलता में कमी आ जाती है

 झारखंड में पोषक तत्वों का वितरण और विवरण

➧ झारखंड में मुख्य पोषक तत्वों में फास्फोरस एवं सल्फर की कमी पाई जाती है कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 66 % भाग में फास्फोरस एवं 38% भाग में सल्फर की कमी पाई गई है

 पोटेशियम की स्थिति कुल भौगोलिक क्षेत्र के 51 प्रतिशत भाग में निम्न से मध्य है

➧ नाइट्रोजन की स्तिथि 70% भाग में निम्न से मध्यम पाई जाती है, जबकि कार्बन 47% भाग में मध्यम स्थिति में पाई जाती है

 फास्फोरस की कमी होने के नुकसान 

(i) फास्फोरस की कमी दलहनी और तिलहनी फसलों की उपज को प्रभावित करती है

(ii) फसल विलंब से पकते हैं और बीजों या फलों के विकास में कमी आती है

 उपाय

(i) जहां फास्फोरस की कमी हो, मिट्टी जांच प्रतिवेदन के आधार पर सिंगल सुपर फास्फेट (SPP) या डी. ए. पी. का प्रयोग करना चाहिए

(ii) लाल एवं लैटीरिटिक मिट्टीयों  में जिसका पी.एच.(PH) मान 5.5 से कम हो, रॉक फास्फेट का उपयोग काफी लाभदायक होता है 

➧ सल्फर की कमी से होने वाले नुकसान 

(i) कीट-व्याधि का प्रभाव बढ़ता है, जिससे फसलों की उत्पादकता घटती है इतना ही नहीं फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाते है

 उपाय

(i) जिन जिलों में सल्फर की कमी ज्यादा पाई गई है, वहां एल. एस. पी. का प्रयोग कर इसकी कमी को पूरा किया जा सकता है

(ii) इसके अलावा फास्फोरस, जिप्सम का प्रयोग भी सल्फर की कमी को दूर करने में लाभदायक है क्योंकि दलहनी एवं तिलहनी फसलों में सल्फर युक्त खाद का प्रयोग लाभदायी होता है 

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Jharkhand me Jal Pradushan Ke Karan Aur Prabhav (झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव)

झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ जल में घुलनशील अथवा अघुलनशील पदार्थों की मात्रा में वृद्धि के कारण जब जल की गुणवत्ता जैसे रंग, स्वाद आदि में परिवर्तन आता है, तो पृथ्वी पर पानी का प्रदूषित होना जल प्रदूषण कहलाता है

 जल प्रदूषण में जीवाणु, रसायन और कण  जैसे प्रदूषकों द्वारा जल का संदूषण किया जाता है, जो पानी की शुद्धता को कम करता है

झारखंड में जल प्रदूषण के कारण और प्रभाव

➧ जल प्रदूषण के कारण 

(i) मानव मल का नदियों, नहरों आदि में विसर्जन

(ii) सफाई तथा सीवर (मल-जल निकास पाइप) का उचित प्रबंधन का न होना

(iii) विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपने कचरे तथा गंदे पानी का नदियों तथा नहरों में विसर्जन करना 

(iv) कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले जहरीले रसायनों और खादों का पानी में घुलना

(v) नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारंपरिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाले प्रत्येक घरेलु सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन

(vi) गंदे नालों, सीवरों के पानी का नदियों में छोड़ा जाना

(v) कच्चा पेट्रोल, कुओं से निकालते समय समुद्र में मिल जाता है, जिससे जल प्रदूषित होता है 

(vi) कुछ कीटनाशक पदार्थ जैसे डीडीटी, बीएचसी आदि के छिड़काव से जल प्रदूषित हो जाता है तथा समुद्री जानवरों एवं मछलियों आदि को हानि पहुंचाता है  अंततः खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करते हैं 

 जल प्रदूषण के प्रभाव

(i) इससे मनुष्य,पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है इससे टाइफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं। 

(ii) इससे विभिन्न जीव तथा वनस्पति प्रजातियों को नुकसान पहुंचाता है

(iii) इससे पीने के पानी की कमी बढ़ती है, क्योंकि नदियों, नहरों यहां तक की जमीन के भीतर का पानी भी प्रदूषित हो जाता है

(iv) सूक्ष्म-जीव जल में घुले हुए ऑक्सीजन के एक बड़े भाग को अपने उपयोग के लिए अवशोषित कर लेते हैं जब जल में जैविक द्रव बहुत अधिक होते हैं तब जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसके कारण जल में रहने वाले जीव-जंतुओ की मृत्यु हो जाती है

(v) प्रदूषित जल से खेतों में सिंचाई करने पर प्रदूषक तत्व पौधे में प्रवेश कर जाते हैं इन पौधों  अथवा इन के फलों को खाने से अनेक भयंकर बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं

(vi) मनुष्य द्वारा पृथ्वी का कूड़ा-कचरा समुद्र में डाला जा रहा है नदियाँ  भी अपना प्रदूषित जल समुद्र में मिलाकर उसे लगातार प्रदूषित कर रही है वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, कि यदि भू-मध्य सागर में कूड़ा-कचरा समुद्र में डालना बंद न किया गया तो डॉल्फिन और टूना जैसे सुंदर मछलियों का यह सागर भी कब्रगाह बन जाएगा 

(vii) औद्योयोगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न रासायनिक पदार्थ प्रायः क्लोरीन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड, जस्ता निकिल एवं पारा आदि विषैले पदार्थों से युक्त होते हैं 

(viii) यदि जल पीने के माध्यम से अथवा इस जल में पलने वाली मछलियों को खाने के माध्यम से शरीर में पहुंच जाए तो गंभीर बीमारियों का कारण बन जाता है, जिसमें अंधापन, शरीर के अंगो का लकवा मार जाना और श्वसन क्रिया आदि का विकार शामिल है जब यह जल, कपड़ा धोने अथवा नहाने के लिए नियमित प्रयोग में लाया जाता है, तो त्वचा रोग उत्पन्न हो जाता है  

 झारखंड में जल प्रदूषण का प्रभाव 

➧ राज्य में जल प्रदूषण का खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन की उच्च क्षमता प्राप्त करना और जनसंख्या का संकेंद्रण विशिष्ट संसाधन प्राप्त क्षेत्रों में होना निरंतर बढ़ जा रहा है 

 झारखंड को मुख्यतः सतही जल प्रदूषण एवं भौम जल प्रदूषण दोनों ही रूप में जल प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। चूकिं भौम  जल स्तर में प्रदूषण का मुख्य कारण खनन का अवैज्ञानिक तरीका है, इसका विशेष उदाहरण धनबाद का झरिया क्षेत्र  एवं स्वयं धनबाद शहर आदि हैं। 

➧ वहीं औद्योगिक निस्तारण ने दामोदर को राज्य की सबसे अधिक प्रदूषित नदी होने का दर्जा प्रदान किया है

➧ स्वर्णरेखा नदी भी जल प्रदूषण के चपेट में है, जबकि राज्य में कई नदियों को शहरी विकास ने अपने में समा लिया, जिससे पारितंत्र को नुकसान पहुंचा है। उदाहरण के लिए राँची का हरमू नदी, जो कभी मध्यम आकार की नदी थी, परंतु वर्तमान में यह शहरी बड़ी नालों में बदल चुकी है। 

➧ राज्य में पाट क्षेत्र  एवं रांची हजारीबाग पठार के किनारों के सहारे कई जल प्रपातों का निर्माण होता है, जो पर्यटन का मुख्य केंद्र है, परंतु पर्यटकों के द्वारा इन जलप्रपातों के आस-पास सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग करना, इन जल प्रपातों की आयु पर प्रश्न खड़ा कर सकता है अतः इस पर अवसंरचनात्मक रूप से कार्य करने की जरूरत है। 

➧ राज्य की नदियों में प्रदूषण की स्थिति

झारखण्ड में दामोदर नदी का प्रदुषण

 ➧ इस नदी के किनारे लगभग सभी प्रकार के प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग अवस्थित है। लगभग 130Mn लीटर औद्योगिक अपशिष्ट और 65 मिलियन लीटर अनुपचारित घरेलु मल-जल प्रतिदिन दामोदर नदी को प्रदूषित कर रही है। 

➧ दामोदर और उसकी सहायक नदियों में वर्तमान में बड़े पैमाने पर कचरों का जमाव किया जा रहा है, जो वर्षा के दिनों में फैलकर नदियों में आ जाता है। 

➧ फल स्वरुप नदियों का जल एवं भौम जल स्तर दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिस कारण निकटवर्ती गांवों व कस्बों पर जल संकट की समस्या सामने आ रही है। क्योंकि नलकूप एवं कुआँ के जल प्रदूषित होकर सूख जाते हैं। 

➧ दामोदर घाटी के कोयला में थोड़ी मात्रा में सल्फर एवं पायराइट की भी विद्यमान है। 

➧ दामोदर में लोहे की मात्रा में 1 से 6mg/1 है। यद्यपि यह बहुत अधिक नहीं है, किंतु परितंत्र  के लिए इनकी यह मात्रा पर मात्रा भी खतरनाक साबित होती है, क्योंकि जलीय जीव इससे समाप्त होते हैं एवं स्व नियमन की घटना में परिवर्तन आता है।  

➧ दामोदर नदी में मैग्नीज, क्रोमियम, शीशा, पारा, फ्लूराइट कैडमियम और तांबा आदि की मात्रा भी पाई जाती है, जो मुख्यतः इनकी सहायक नदियों की अवसादो के द्वारा लाई जाती है। 

➧ इन छोटे कणों के द्वारा मनुष्यों में कई बीमारियों को जन्म दिया जाता है, जिसमें कमजोरी, एनोरेक्सिया, दिल्पेप्सिया, मुंह में धातु का स्वाद, सर दर्द , हाई ब्लड प्रेशर और एनेमिया आदि मुख्य हैं। 

➧ दामोदर की अवसादो में कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी तथा पोटेशियम का संकेंद्रण है इन अवसादों में आर्सेनिक, पारा, शीशा, क्रोमियम, तांबा, जिंक, मैगनीज़, लोहा और टिटैनियम जैसे धातु भी मिलते हैं।  

झारखंड के दामोदर नदी के आस-पास रहने वाले लोग दामोदर का प्रदूषण से काफी प्रभावित है, दामोदर एवं इसकी सहायक नदियों के जल में प्रदूषण की मात्रा उच्च होने के कारण पेयजल के रूप में इन नदियों का प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है।  

➧ स्वर्णरेखा नदी का प्रदूषण 

➧ स्वर्णरेखा नदी रांची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में नगड़ी गांव (रानी चुवा)  नामक स्थान से निकलती है

➧ यह लगभग 28,928 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अपना बेसिन बनाती है इस नदी के किनारे भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक कंपनी टाटा इस्पात निगम लिमिटेड (टिस्को) बसा हुआ है 

➧ सर्वेक्षण में पाया गया कि नगड़ी से लेकर गालूडीह तक है यह नदी पांच स्थानों पर काफी प्रदूषित हो गई है, इसका कारण यह है:- 

क्षेत्र                                           प्रदूषण

(i) नगरी से हरीमा डैम                    दर्जनों चावल मिल

(ii) हरीमा डैम से गेतलसूद डैम       फैक्ट्री, रांची नगर की नालियाँ 

(iii) गेतलसूद डैम से चांडिल डैम     मुरी एल्युमीनियम कारखाना

(iv) चांडिल डैम से गालूडीह बराज   शहरी कचरा, उद्योग 

(v) गालूडीह बराज से आगे तक       शहरी कचरा, उद्योग

➧ स्वर्णरेखा नदी रांची से जमशेदपुर तक पहुंचते-पहुंचते लगभग सूख जाती है जमशेदपुर शहर में मानगो पुल से नदी जल के गुजरने के दौरान बदबू साफ महसूस किया जाता है, क्योंकि यहां जल के सड़ने की क्रिया प्रारंभ हो चुकी है 

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Wednesday, October 27, 2021

Jharkhand me Pradusan Ke Karan Ewam Parinam (झारखंड में प्रदूषण के कारण एवं परिणाम)

झारखंड में प्रदूषण के कारण एवं परिणाम

➧ ऐसे हानिकारक पदार्थ है जो वायु, भूमि और पानी में पाए जाते हैं, जिनके कारण जीवित प्राणियों और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, प्रदूषण कहलाता है

➧ प्रदूषण हानिकारक गैसों, द्रवों तथा अन्य खतरनाक पदार्थों के द्वारा उत्पन्न होता है, जो प्राकृतिक वातावरण में भी पाया जा सकता है। 

➧ प्रदूषण के कारण कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जिनके कारण मिट्टी और हवा अशुद्ध, प्रदूषक, दूषित या खतरनाक पदार्थ के रूप में तब्दील हो जाते हैं, जो पर्यावरण को अनुपयुक्त या असुरक्षित कर देते हैं

➧ प्रदुषण के प्रकार 

(I) वायु प्रदूषण

(II) जल प्रदूषण 

(III) भूमि प्रदूषण 

(IV) ध्वनि प्रदूषण

झारखंड में प्रदूषण के कारण एवं परिणाम

➧ झारखंड में वायु प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव

➧ यह हानिकारक धुआँ एवं रसायनों जैसे विभिन्न प्रदूषकों के साथ मिलकर प्राकृतिक हवा का संदूषण है इस प्रकार का संदूषण पदार्थों के जलने से या वाहनों द्वारा उत्सर्जित गैसों या उद्योगों के उप-उत्पाद के रूप में निकलने वाले हानिकारक धुआँ के कारण हो सकते हैं

 विशेषज्ञों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग को वायु प्रदूषण के सबसे बड़े दुष्प्रभावों में से एक माना जाता है

 वायु प्रदूषण के कारण 

(I) वाहनों से निकलने वाला धुआं

(II) औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं तथा रसायन 

(III) आण्विक संयंत्रों से निकलने वाली गैसें तथा धूल-कण 

(IV) जंगलों में पेड़ पौधे के जलने से, कोयले के जलने से तथा तेल शोधन कारखानों आदि से निकलने वाला धुआं

(V) ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न गैस जैसे-जलवाष्प, So2

➧ वायु प्रदूषण के प्रभाव 

➧ वायु प्रदूषण हमारे वातावरण तथा हमारे ऊपर अनेक प्रभाव डालते हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :-

(i) हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है 

➧ इसमें दमा, सर्दी-खांसी, अंधापन, श्रव का कमजोर होना, त्वचा रोग जैसी बीमारियां पैदा होती हैं  

➧ लंबे समय के बाद जननिक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है तथा अपनी चरम सीमा पर यह घातक भी हो सकती है  

(ii) वायु प्रदूषण से सर्दियों में कोहरा छाया रहता है, इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है तथा आंखों में जलन होती है। 

(iii) ओजोन परत, हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक सुरक्षात्मक गैस की परत है, जो हमें सूर्य से आने वाले हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। वह प्रदूषण के कारण जीन अपरिवर्तन, अनुवांशिकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं। 

(iv) वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, क्योंकि सूर्य से आने वाले गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता है , जो कि हानिकारक है। 

➧ झारखंड में वायु प्रदूषण के प्रभाव 

➧ झारखंड में खनिजों के उत्खनन का अवैज्ञानिक स्वरूप, बढ़ता शहरीकरण एवं निजी परिवहन का प्रयोग आदि विषय वस्तु प्रदूषण के मुख्य कारण है। 

 हाल ही में ग्रीनपीस रिपोर्ट के सर्वे में देश में सबसे अधिक वायु प्रदूषक शहर के रूप में झरिया को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है, जो झारखंड में प्रदूषण के बढ़ते मात्रा को लेकर सजग होने का संकेत देता है।  

➧ बड़े शहरों में धनबाद ,रांची, बोकारो और रामगढ़ जैसे शहर वायु प्रदूषण के उच्च प्रभाव से ग्रसित है। शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका की शोध संस्थान 'एपिक' द्वारा तैयार वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के नए विश्लेषण के अनुसार वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति के कारण झारखंड के नागरिकों की जीवन प्रत्याशा में औसत 4.4 वर्ष कम हो रही है

 देशों में मेट्रो शहरों की तरह झारखंड की वायु भी जहरीली होती जा रही है एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार रांची, गोड्डा और कोडरमा के लोग अपनी औसत जीवन के लगभग 5 वर्ष अधिक जी सकते है, अगर वायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) डब्ल्यू.एच.ओ. के दिशा निर्देशों के अनुरूप हो 

➧ राजधानी रांची समेत झारखंड के अन्य जिले और शहर के लोगों का जीवन काल भी घट रहा है  वे बीमार जीवन जी रहे हैं  गोड्डा के लोगों का जीवनकाल 5 वर्ष तक घट गया है  

➧ इसी तरह कोडरमा, साहेबगंज, बोकारो, पलामू और धनबाद भी इसी सूची में पीछे नहीं है। यहां के लोगों के जीवन काल क्रमश:  4 पॉइंट 9 वर्ष, 4.8 वर्ष, 4.8 वर्ष, 4.7 वर्ष और 4.7 वर्ष तक घट गया है। यहां के लोगों का जीवनकाल इतना ही बढ़ जाता, अगर लोग स्वच्छ और सुरक्षित हवा से सांस लेते।

 उनकी जीवन प्रत्याशा की उम्र बढ़ सकती है, अगर वहां के वायुमंडल में मौजूद सूक्ष्म तत्वों  एवं धूलकणों की सघनता 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक सीमित हो, एक्यूएलआई के आंकड़े के अनुसार राजधानी रांची के लोग 4.1 ज्यादा जी सकते हैं अगर विश्व स्वास्थ संगठन के मानकों को हासिल कर लिया जाए

 झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) ने दिवाली की रात बिरसा चौक पर वायु प्रदूषण की जांच कराई

 दीपावली के दिन वायु में pm10 (सूक्ष्म धूलकण) की औसत मात्रा मानक से 175 पॉइंट 96 प्रतिशत अधिक पहुंच गयी 

 इस स्तर पर सांस, फेफड़े, एलर्जी रोगियों की परेशानी बढ़ने लगती है । दूसरी ओर पीएम 2.5 (अति सूक्ष्म धूलकण)  भी निर्धारित सीमा से 95.08% अधिक तक रिकॉर्ड किया गया

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Saturday, June 26, 2021

Jharkhand Ke Apwah Tantra (झारखंड के अपवाह तंत्र)

Jharkhand Ke Apwah Pranali

➧ जल संसाधन राज्य के जैव मंडल के विकास हेतु महत्वपूर्ण साधन है, जो प्रकृति प्रदत है 

➧ वर्षा के जल एवं दूसरे स्रोत से प्राप्त जल के बहाव की समग्र व्यवस्था अपवाह प्रणाली के नाम से जानी जाती है

➧ झारखंड के अपवाह प्रणाली के अंतर्गत नदियां, जलप्रपात एवं गर्म जलकुंड शामिल किए जाते हैं।

➧ झारखंड के अपवाह तंत्र में बड़ी आकार वाली नदियां नहीं है, यहां की अधिकांश नदियां छोटे आकार की है

➧ ये नदियां सदानीरा भी नहीं है क्योंकि इनका स्रोत अमरकंटक के पहाड़ी या छोटानागपुर के पठार द्रोणी है

झारखंड के अपवाह तंत्र

➧ जल संसाधन का संरक्षण झारखंड जैसे राज्य के लिए अति-आवश्यक है, क्योंकि राज्य में आर्कियन  ग्रेनाइट तथा  नीस जैसे चट्टाने पायी जाती है

 इस प्रकार की चट्टानों की छिद्रता कम होती है, फलत: भूमिगत जल ठहर नहीं पाता  अतः राज्य में भूमिगत भंडार जल सीमित है

➧ झारखंड के नदियों की उपयोगिता

(i) यहां की नदियां उद्योगों की स्थापना में सहायक है
(ii) ये नदियां शिक्षाएं, मत्स्यपालन, पन-बिजली की प्राप्ति का साधन है 
(iii) ये नदियां पेयजल का मुख्य स्रोत उपलब्ध कराती है


ये नदियों की विशेषता 

(i) झारखंड की अधिकांश नदियां उत्तर की ओर प्रवाहित होकर गंगा में मिल जाती है या फिर स्वतंत्र रूप से पूर्व की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है 

(ii) झारखंड की नदियों में मार्ग बदलने की प्रवृत्ति नहीं के बराबर होती है, क्योंकि ये कठोर चट्टानों से होकर प्रवाहित होती है


(iv) झारखंड की नदियां मानसून पर निर्भर है अर्थात बरसात के मौसम में इनमें बाढ़ आती है, परन्तु गर्मी के मौसम पर यह सूख जाती हैं सोन इसका अपवाद है 

(v) यहां की नदियां जलप्रपात के लिए विशिष्ट स्थिति प्रदान करती है, परंतु नौकाचालन के लिए उपयोगी नहीं होती  

➧ नदियों से जुड़े विशिष्ट तथ्य

➧ सोन नदी को छोड़कर झारखंड की सभी नदियां बरसाती है, अर्थात मौनसून पर निर्भर है 

➧ मोर/ मयूराक्षी एकमात्र झारखंड की नदी है, जिसमें नौकायान किया जा सकता है 

➧ गंगा नदी झारखंड की एकमात्र जिले साहबगंज से होकर गुजरती है इसके संरक्षण के लिए 2009 में झारखंड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण गठित किया गया है


➧ दामोदर और स्वर्णरेखा नदियों की आकारिकी अध्ययन से पता चलता है कि नदियां नवोन्मेषण (पुनर्योवन) की प्रकिया से गुजरी है 

 झारखंड की वार्षिक औसत वर्षा 125 से 150 सेंटीमीटर है जबकि यहां की नदियों की क्षमता 18 पॉइंट 18 बिलियन क्यूबिक मीटर है

➧ झारखंड में 8 नदी बेसिन है - उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, शंख, दामोदर, स्वर्णरेखा, खैरकई, अजय, मयूराक्षी

 नदी अपवाह तंत्र का विभाजन

उत्तर-पश्चिम अपवाह :- सोन, पुनपुन, सकरी, फल्गु, करमनासा, पांचने, कियूल
 
उत्तरी-पश्चिम अपवाह :- उत्तरी कोयल, औरंगा, अमानत 

पूर्वी अपवाह :- दामोदर, बराबर, अजय, मयूराक्षी, ब्रम्हाणी

दक्षिण अपवाह  :- दक्षिणी कोयल, शंख   

दक्षिण-पूर्वी अपवाह :- स्वर्णरेखा, खरकई, काँची, राढू कसाई, संजय   
 

➧ उत्तरी अपवाह तंत्र

➧ यह अपवाह तंत्र  झारखंड के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह बिहार के मध्य भाग में अपना प्रवाह तंत्र  विकसित करती है
➧ इस प्रवाह तंत्र का विकास हजारीबाग (प्रखंड-चौपारण) और उत्तरी चतरा, उत्तरी कोडरमा जिला क्षेत्र भू-भाग में विकसित है इसके अंतर्गत सोन, कर्मनासा,पुनपुन, फल्गु, सकरी, पंचाने, कियूल आदि नदियां बहती है

(i) सोन नदी :- इसका उद्गम स्थल मैकाल श्रेणी का अमरकंटक पहाड़ी है 
➧ इसे सोनभद्र एवं हिरण्यवाह भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें सुनहरी रेत पाई जाती है 
➧ गढ़वा-पलामू की सीमा को छूते हुए यह नदी सीधे पूर्व की ओर बहते हुए गंगा नदी में मिल जाती मिल जाती हैं

(ii) पुनपुन नदी :- इसका उद्गम स्थल मध्यप्रदेश की पठारी भाग एवं इसका मुहाना गंगा नदी है 
➧ इस नदी की कुल लंबाई 200 किलोमीटर है 
➧ इसकी सहायक नदियों में दरधा और मोरहर है 
➧ यह झारखंड के चतरा से होते हुए बिहार के औरंगाबाद, गया, पटना में प्रवेश करते हुए गंगा नदी से मिल जाती है
 इससे कीकट एवं बमागधी  के नाम से जाना जाता है

(iii)  सकरी नदी :- यह उत्तरी छोटानागपुर के पठार से निकलकर गंगा के ताल क्षेत्र में अपना मुहाना बनाती है➧ इसकी सहायक नदियों में किउल प्रमुख है
➧ इस नदी की विशेषता यह है कि यह मार्ग बदलने हेतु कुख्यात हैं

(iv) फल्गु नदी :- इसे अंतः सलिला के नाम से भी जाना जाता है 
➧ इसकी सहायक नदी निरंजना एवं मोहना है  
➧ यह छोटा नागपुर पठार का उत्तरी भाग हजारीबाग के पठार (चतरा जिले) से निकलकर बिहार में पुनपुन से मिल जाती है  
➧ इस नदी के पौराणिक विशेषता है 
 पितृपक्ष के समय स्नान एवं पिंडदान हेतु लोग यहां आते हैं 
 इस नदी का झारखंड में केवल उद्गम स्थल है 

 उत्तर-पश्चिमी अपवाह तंत्र 

➧ इस अपवाह तंत्र का विस्तार पलामू प्रमंडल में है इस अफवाह तंत्र की प्रमुख नदियां इस प्रकार हैं :-

(i) उत्तरी कोयल नदी :- इस नदी का उद्गम स्थल रांची पठार के मध्य भाग में स्थित है
 यह गढ़वा, पलामू, लातेहार होते हुए सोन नदी में जाकर गिरती है
 इसकी कुल लंबाई 260 किलोमीटर है
 इसकी सहायक नदियों में औरंगा एवं अमानत है 
➧ झारखंड के लातेहार जिले में बूढ़ाघाघ जलप्रपात, जो झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात है और जिसकी ऊंचाई 450 फीट है इसी नदी पर स्थित है

(ii) औरंगा नदी :- यह लोहरदगा जिले के किसको प्रखंड के उत्तरी सीमा से निकलती है
➧ इसकी सहायक नदियां  घाघरी, गोवा नाला, धाधरी, सुकरी आदि है 
➧ यह आगे चलकर लेस्लीगंज और बरवाडीह की सीमा बनाते हुए कोयल नदी में जाकर गिरती है

(iii) अमानत नदी :-  यह चतरा जिले से निकलकर बालूमाथ होते हुए पांकी प्रखंड में प्रवेश करती है 
➧ इसकी प्रमुख सहायक नदियां जिजोई, माईला, जमुनियाँ, खैरा, चाको, सलाही, पाटम आदि है

➧ पूर्वी अपवाह तंत्र 

(i) दामोदर नदी :- यह झारखंड स्थित छोटा नागपुर पठार के टोरी (लातेहार) से निकलकर हुगली नदी में मिलती है
 इसकी कुल लंबाई 592 किलोमीटर है, जबकि यह नदी झारखंड में 290 किलोमीटर की दूरी तय करती है
 इसका अपवाह क्षेत्र 12,800 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत है
 इसकी सहायक नदियों में बराकर, बोकारो, कोनार, जमुनिया, कतरी आदि हैं 
➧ यह झारखंड के हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, लातेहार, रांची, लोहरदगा आदि जिले में प्रवाहित होती है 
➧ इसे देवनदी, बंगाल का शोक आदि नामों से भी जाना जाता है
 यह झारखंड की सबसे प्रदूषित नदी है 
➧ यह झारखंड की सबसे लंबी और बड़ी नदी है

(ii) बराकर नदी :- इसका उद्गम स्थल छोटा नागपुर का पठार है 
➧ यह 225 किलोमीटर की दूरी तय कर दामोदर नदी में जाकर गिरती है
➧ यह झारखंड के हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद आदि जिले में अपना अपवाह क्षेत्र बनाती हैं

(iii) अजय नदी :- यह बिहार के मुंगेर जिले से निकलकर लगभग 288 किलोमीटर की यात्रा करते हुए भागीरथ नदी पश्चिम बंगाल में अपना मुहाना बनाती है
 इसकी सहायक नदियों में पथरो एवं जयंती का नाम आता है
 इसकी अपवाह क्षेत्र में देवघर, दुमका, जामताड़ा है

(iv) मयूराक्षी नदी :-इस नदी का उद्गम स्थल त्रिकूट पहाड़ी (देवघर) में स्थित है
 यह कुल 250 किलोमीटर की दूरी तय कर पश्चिम बंगाल के हुगली में जाकर मिलती है
➧ इस नदी की सहायक नदियों में धोवाइ, टिपरा, भामरी है 
➧ इस नदी का अपवाह क्षेत्र दुमका, साहिबगंज, देवघर और गोड्डा है
➧ झारखंड में इस नदी की विशेषता यह है कि यह नौगाम्य नदी है

(v) ब्राह्मणी नदी :- इस नदी का उद्गम स्थल दुमका जिले के उत्तर में स्थित दुधवा पहाड़ी से है
 इसकी सहायक नदियों में गुमरो और ऐरो मुख्य हैं 
➧ यह पश्चिम बंगाल के हुगली में अपना मुहाना बनाती है
 इसका अपवाह क्षेत्र दुमका, साहिबगंज, देवघर, गोड्डा है

(vi) गुमानी नदी :- इस नदी का उद्गम स्थल राजमहल की पहाड़ी है 
➧ यह अपना मुहाना गंगा नदी (पश्चिम बंगाल) में बनाती है
 यह राजमहल की पहाड़ियों से निकलकर उत्तरी-पूर्वी खंड का निर्माण करती है
 इस नदी के दो प्रमुख सहायक नदियां है जिसमें मेरेल नदी उत्तर की ओर से आकर बुढ़ेत के पास मिलती है 
अन्य सहायक नदियों में दक्षिण की ओर से छोटी नदियां आकर मिलती है, जो छोटे मैदानी क्षेत्र का निर्माण करते हैं

(vii) बंसोलोई :- इस नदी का उद्गम स्थल गोड्डा जिले के बांस पहाड़ी से हुआ है 
➧ यह दुमका के पचावारा के नजदीक प्रवेश करती है तथा मुराराई रेलवे स्टेशन के पास गंगा में मिल जाती है

➧ दक्षिणी-पूर्वी अपवाह तंत्र

➧ इस अपवाह तंत्र में स्वर्ण रेखा, राढू, खरकई, कांची, संजय, कसाई आदि नदियां शामिल है
 
(i) स्वर्णरेखा नदी :- यह रांची के नगड़ी (प्रखंड) से निकलकर करीब 470 किलोमीटर की दूरी तय कर स्वतंत्र रूप से बंगाल की खाड़ी में गिरती है
➧ यह झारखंड की एकमात्र नदी है जो स्वतंत्र रूप से बंगाल की खाड़ी में गिरती है, अन्यथा सभी नदियां किसी ना किसी नदी में जाकर मिल जाती है 
➧ इसकी सहायक नदियों में काकरो, कांची, खरकई, जामरू, राढू, संजय आदि शामिल है 
➧ इसकी अपवाह क्षेत्र रांची और सिंहभूम में है
➧ इसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस नदी की रेत में सोने का अंश पाया जाता है 
 इसी नदी पर हुंडरू जलप्रपात का निर्माण होता है 

(ii) खरकई नदी :- झारखंड और उड़ीसा के मध्य सीमा का निर्माण खरकई नदी द्वारा किया जाता है 
➧ इस नदी पर खरकई जलाशय परियोजना स्थित है
 यह स्वर्णरेखा के सहायक नदी है
 इसके किनारे लौहनगरी जमशेदपुर स्थित है

(iii) काँची :- इस नदी पर झारखंड का दशम जलप्रपात स्थित है, जिसकी ऊंचाई 144 फीट हैहै
 यह राढू नदी की सहायक नदी है

➧ दक्षिणी अपवाह तंत्र 

 इस अपवाह तंत्र में दक्षिणी कोयल एवं और शंख नदी को शामिल किया जाता है 
(i) दक्षिणी कोयल :- यह रांची के नगड़ी प्रखंड से निकलकर शंख नदी (उड़ीसा) में गिरती है
 इसकी कुल लंबाई 470 किलोमीटर है
 इसकी सहायक नदी कारो है 
➧ इसका अपवाह क्षेत्र लोहरदगा, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम और रांची में है
 शंख नदी के साथ मिलकर यह उड़ीसा में ब्राह्मणी नदी के नाम से भी जानी जाती है

(ii) शंख नदी :- यह गुमला के चैनपुर से निकलकर लगभग 240 किलोमीटर की दूरी तय कर दक्षिणी कोयल में मिलती है
 इसके अपवाह क्षेत्र में झारखंड का गुमला जिला आता है


 
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Monday, June 14, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Udyog (झारखंड के प्रमुख उद्योग)

Jharkhand Ke Pramukh Udyog

➧ झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न राज्य है भारत के कुल खनिज भंडार का 40% झारखंड राज्य में पाया जाता है 

➧ खनिजों की उपलब्धता के कारण राज्य में औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं उद्योगों के विकास से आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित होने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे 

झारखंड के प्रमुख उद्योग

राज्य के प्रमुख उद्योगों का वर्गीकरण

 वन संसाधन आधारित उद्योग  :- झारखंड में लाह, गोंद, साल के बीच, महुआ के फूल एवं बीज, तेंदूपत्ता आदि लघु वनोत्पाद हैं

➧ इसके अतिरिक्त राज्य में कागज, अखबारी कागज, लुगदी आदि उद्योगों की भी अपार संभावनाएं हैं

➧ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग :- झारखंड भारत में सबसे अधिक सब्जी उत्पादक राज्यों में से एक है झारखंड में सब्जियों में टमाटर, आलू, भिंडी, गोबी, शकरकंद तथा फलों में अमरूद, आम आदि का उत्पादन होता है

➧ पापड़, चटनी, तंबाकू आदि प्रसंस्करणयुक्त उत्पादों के लिए भी यह राज्य उपयुक्त है

➧ कृषि सहायक उद्योग :- इसके अंतर्गत अचार, चटनी, फलों का मुरब्बा, पिसा अनाज आदि उत्पाद पर आधारित उद्योग आते हैं 

➧ सूती वस्त्र उद्योग :- झारखंड में विशेष जाति समुदाय द्वारा हथकरघे से कपड़े बुनने का कार्य किया जाता हैरांची जिले में ओरमांझी गांव में सूत का कारखाना तथा इरबा रांची का 'छोटानागपुर रीजनल हैंडलूम वीवर्स सोसाइटी' इसके लिए प्रसिद्ध है

रेशमी वस्त्र उद्योग :- देश भर में सबसे अधिक तसर उत्पादन झारखंड में होता है। इसका सबसे अधिक उत्पादन पलामू, रांची, हजारीबाग आदि जिलों में होता है राज्य में नगड़ी रांची में तसर अनुसंधान केंद्र एवं गोड्डा  में तसर कोआपरेटिव सोसाइटी कार्यरत है

➧ झारखंड की तसर रेशम गुणवत्ता को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन भी दिया गया है 

वस्त्र  उद्योग :- वस्त्र  उद्योग के अंतर्गत कपड़ों की सिलाई, क्रय-विक्रय, कपड़ा बुनना, रंगना, धागा कातना आदि उद्योग आते हैं

लकड़ी उद्योग  :- इस उद्योग के अंतर्गत लकड़ी की कटाई (चिराई), फर्नीचर बनाना, लकड़ी का क्रय-विक्रय करना और लकड़ी के खिलौने बनाना आदि आता है

➧ अन्य उद्योग :- राज्य में अन्य उद्योगों में धातु उद्योग, चर्म उद्योग, साबुन बनाना, चूड़ियां बनाना, अगरबत्ती, मोमबत्ती बनाना, शहद इकट्ठा करना आदि शामिल है 

झारखंड के प्रमुख वृहद उद्योग (Large Industries)

➧ झारखंड की अर्थव्यवस्था में वृहद उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान है 

➧ प्रमुख वृहत उद्योगों का वर्णन निम्नलिखित है:- 

1- लौह-इस्पात उद्योग 

टाटा लौह एवं इस्पात कंपनी (टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी-टिस्को)

➧ टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी यानी टिस्को की स्थापना झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के साकची नामक स्थान दोराब जी टाटा ने की थी  

➧ दरअसल टिस्को की स्थापना का प्रारंभिक विचार जमशेदजी नौसेरवान जी टाटा का था, परंतु 1904 में इनका निधन हो गया  परंतु जमशेदजी टाटा को ही टिस्को कंपनी का वास्तविक संस्थापक माना जाता है

➧ जमशेदजी टाटा के नाम पर साकची का नाम बाद में बदलकर जमशेदपुर कर दिया गया। यह संयंत्र की स्थापना स्वर्णरेखा और खरकई नदी के संगम पर की गई

➧ टिस्को कंपनी की स्थापना 1907 में की गई  परन्तु यहाँ लौह उत्पादन का कार्य 1911 में शुरू हुआ

टिस्को कंपनी को 

(i) कच्चे लोहे की प्राप्ति  - नोवामुंडी, गुआ, होक्लातबुरु से होती है 

(ii) कोयले की आपूर्ति  - झरिया खदान तथा रानीगंज (बंगाल) खदान से होती है

(iii) मैग्नीज एवं क्रोमाइट - चाईबासा खान से होती है

(iv) चूना पत्थर एवं डोलोमाइट - सुंदरनगर (उड़ीसा) से होती है

(v) जल - स्थानीय नदियों से होता है 

➧ रेलवे के द्वारा माल की ढुलाई बंदरगाह तक होने की सुविधा है 
 सन 1948 में टाटा मोटर्स के द्वारा यहां 'टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी' (टेल्को) की स्थापना की गई
➧ यहां ट्रक, रेलवे वैगन, बॉयलर तथा अन्य गाड़ियों की चेचिस बनाई जाती है
➧ 2005 में टिस्को कंपनी का नाम बदलकर टाटा स्टील कर दिया गया 
➧ इस औद्यौगिक नगर को 'टाटानगर' भी कहा जाता है 
➧ झारखंड की औद्यौगिक राजधानी मानी जाती है  

2- बोकारो लौह स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant)

➧ सन 1964 में भारतीय इस्पात प्राधिकरण एवं सोवियत संघ (वर्तमान रूस) के सहयोग से भारत सरकार ने बोकारो लौह इस्पात कंपनी की स्थापना की
➧ यहां उत्पादन कार्य 1972 में शुरू हो गया । यह झारखंड का दूसरा महत्वपूर्ण लौह इस्पात उद्योग केन्द्र है
➧ यह कारखाना बोकारो जिले के माराफारी नामक स्थान पर गर्गा डैम और तेनुघाट (दामोदर घाटी) के निकट स्थापित किया गया है
➧ यह भारत का पहला स्वदेशी स्टील संयंत्र है तथा देश का चौथा सबसे बड़ा लौह इस्पात संयंत्र है
➧ यह कारखाना सैल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया-सेल) के अधीन कार्यरत है
➧ इस प्लांट से माल ढुलाई के लिए दिल्ली-कोलकाता मार्ग सबसे उपयुक्त है। यह मार्ग उत्पाद को बंदरगाह तक पहुंचाने में मदद करता है
➧ इस प्लांट को सस्ती बिजली और जल की आपूर्ति दामोदर बिजली परियोजना से की जाती है

 इस संयंत्र को

(i) लौह अयस्क  - क्योंझर खान से प्राप्त होती है
(ii)  कोयला -       झरिया खान से प्राप्त होती है
(ii) चूना पत्थर -  पलामू एवं मध्य प्रदेश से प्राप्त होता है 
➧ यहां हॉट रोल्ड कॉयल, रोल्ड प्लेट, रोल्ड शीट, कोल्ड रॉल्ड कॉयल आदि उपकरण तैयार किए जाते हैं 

3- रसायनिक उर्वरक उद्योग (Chemical Industry) 

➧ वर्ष 1951 में भारत सरकार ने भारत उर्वरक उद्योग निगम के अंतर्गत सिंदरी (धनबाद) में एक उर्वरक कारखाने की स्थापना की  
➧ दामोदर घाटी परियोजना से बिजली एवं जल की आपूर्ति तथा बोकारो स्टील प्लांट से कच्चे माल की आपूर्ति की जाती है
➧ यह कारखाना नाइट्रेड, अमोनियम सल्फेट और यूरिया का बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है

4- तांबा उद्योग (Copper Industry)

➧ देश का पहला तांबा उत्पादक कारखाना भारत सरकार ने वर्ष 1924 में 'इंडियन कॉपर कारपोरेशन' के माध्यम से झारखंड के घाटशिला में स्थापित किया था 
➧ घाटशिला के बेदिया एवं मुसाबनी की खानों से कच्चा चूर्ण निकाला जाता है, जिसका चूर्ण बनाकर रोपवे के माध्यम से मउभंडारा कारखाने तक लाया जाता है
 वहां उस चूर्ण को भट्टी में डालकर तांबे से गंधक को अलग किया जाता है
➧ इंडियन कॉपर कारपोरेशन ने 1930 में घाटशिला के पास तांबा शोधन केंद्र स्थापित किया है

➧ झारखंड में इसके अलावा दो अन्य स्थानों से भी तांबा उद्योग का संचालन होता है
(i) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के द्वारा जादूगोड़ा से 
(ii) इंडियन केबल कंपनी लिमिटेड के द्वारा जमशेदपुर से 

5- एल्युमिनियम उद्योग (Aluminum Industry)

➧ राज्य में एलुमिनियम उद्योग के लिए बॉक्साइट की अनेक खाने हैं यहां भारत में कुल एलुमिनियम अयस्क (एलुमिना) उत्पादन का 16% भाग उत्पादित होता है
➧ राज्य में बॉक्साइट का विशाल भंडार है, जिसमें सबसे अधिक भंडार लोहरदगा में है
 सन 1938 ईस्वी में रांची के निकट मुरी में इंडियन एलुमिनियम कंपनी की स्थापना की गई
➧ बिरला समूह द्वारा इस कंपनी को खरीदने जाने के पश्चात का वर्तमान नाम 'हिंडालको' (Hindustan Aluminium And Corporation- Hindalco Ltd) है 
 यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा एलुमिनियम संयंत्र है
 हिंडालको संयंत्र को ऑक्साइड के रूप में कच्चे माल की आपूर्ति लोहरदगा एवं पलामू से होती है 
 राज्य में निर्मित होने वाले एलुमिना को केरल के अलमपुरम एवं अलवाय, कोलकाता के बेलूर तथा मुंबई के लेई  करखानों में भेजा जाता है
 एलुमिनियम का उपयोग बर्तन, बिजली के तार, मोटर, रेल और वायुयान बनाने में किया जाता है 

6- सीमेंट उद्योग (Cement Industry)

➧ झारखंड में सीमेंट के कारखाने सिंदरी (धनबाद), कुमारडूबी (धनबाद),  जलपा (पलामू), चाईबासा (पश्चिमी सिंहभूम), झींकपानी (पश्चिमी सिंहभूम), खेलारी (रांची), बोकारो आदि  स्थान पर स्थित है
 राज्य में पर्याप्त चूना पत्थर एवं कोयले के भंडार होने के कारण सीमेंट उद्योग के लिए अनुकूल स्थिति बनती है
➧ झारखंड में प्रथम सीमेंट उद्योग की स्थापना 1921 में जपला (पलामू) में की गई थी
➧ झींकपानी, जमशेदपुर, बोकारो एवं सिंदरी में सीमेंट का उत्पादन स्लैग (Slag) एवं स्लेज (Sludge) से होता हैयह सीमेंट कारखानों का उत्पादन है
➧ जमशेदपुर का लाफार्ज सीमेंट कारखाना में लौह-इस्पात उद्योग के अवशिष्ट का प्रयोग होता है
➧ सीमेंट एक वजन ह्रास वाला उद्योग है तथा इसका सबसे अधिक प्रयोग भवन निर्माण, सड़क निर्माण जैसे कार्यों में किया जाता है

7- कांच उद्योग (Glass Industry)

➧ राज्य में कांच का कारखाना रामगढ़ जिले में भुरकुंडा नामक स्थान पर 'इंडो आसई ग्लास' नाम से स्थापित किया गया है
➧ कांच उद्योग में कई सारे खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है, जैसे :- सीसा, सिलीका, चूना-पत्थर, सुरमा, शीरा, पोटेशियम कार्बोनेट, सुहागा, सल्फेट आदि 
➧ इस सभी पदार्थों की आपूर्ति राजमहल की पहाड़ी मंगल घाट और पत्थर घाट से होती है

8- अभ्रक उद्योग

➧ झारखंड अभ्रक उत्पादन में कभी देश का प्रथम राज्य हुआ करता था, तथा यहां अभ्रक की सबसे उन्नत किस्म की रूबी अभ्रक पाया जाता था 
➧ परंतु वर्तमान समय में अभ्रक उत्पादन झारखंड में लगभग बंद है तथा अभ्रक उत्पादन में भारत का प्रथम राज्य आंध्रप्रदेश बन गया है 
➧ झारखंड में अभ्रक का सबसे प्रसिद्ध खान कोडरमा खान है अभ्रक उत्पादन कोडरमा के अलावा गिरिडीह और हजारीबाग जिले में किया जाता है 

9- कोयला उद्योग

➧ राज्य में कोयले का अनुमानित भंडार 82,439 मिलियन टन है, जो भारत में सबसे अधिक है यह भारत के कुल कोयला भंडार का लगभग 26 पॉइंट 16% है कोयला उत्पादन में राज्य का तीसरा स्थान है
➧ झारखंड में झरिया, बोकारो, रांची, उत्तरी कर्णपुरा, धनबाद की खानों में कोयला उत्पादन का कार्य किया जाता है 
➧ झारखंड में कोयला निकालने वाली प्रथम कंपनी बंगाल कोल थी  
वर्त्तमान में कोल इंडिया की दो बड़ी इकाइयां झारखंड में कार्यरत है :-
(i) सेंट्रल कोल फील्ड ,रांची
(ii) भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, धनबाद
➧ केंद्रीय खनन अनुसंधान केंद्र धनबाद में स्थित है इसकी स्थापना 1926 में लॉर्ड इरविन के समय की गई थीयह भारत का सबसे प्राचीन खनन शोध केंद्र है तथा वर्तमान में आई.आई.टी. का दर्जा प्राप्त है

10- इंजीनियरिंग उद्योग 

➧ झारखंड में मुख्य रूप से रांची और जमशेदपुर में इंजीनियरिंग उद्योग कार्यरत है 

हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन-एच.ई.सी. (Heavy Engineering Corporation)

➧ हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन की स्थापना वर्ष 1958 (31 दिसंबर) में भारत सरकार ने रूस और चेकोस्लोवाकिया की सहायता से रांची, (झारखंड) में की थी

➧ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने रांची यात्रा के दौरान 15 नवम्बर, 1963 को एच.ई.सी. को आधुनिक उद्योगों का मंदिर कहा था 

➧ यह एशिया का सबसे बड़ा हैवी इंजीनियरिंग करखाना था

➧ इस संयंत्र में 1964 ई.में उत्पादन शुरू हुआ 

➧ एच.ई.सी. स्टील, खनन, रेलवे, बिजली, रक्षा, अंतरिक्ष अनुसंधान, परमाणु और रणनीति क्षेत्रों के लिए भारत में पूंजी उपकरणों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक हैं

➧ एच.ई.सी. की कुल 3 शाखाएँ हैं

➧ जो रांची के समीप हटिया नामक स्थान पर कार्यरत हैं

(i) भारी मशीन निर्माण संयंत्र (Heavy Machine Building Plan-HMBP) :- यह रूस के सहयोग से स्थापित की गई है

➧ यह संयंत्र किसी भी उद्योग की संरचना डिजाइन करने का छमता रखता है 

➧ यह इस प्लांट में लौह-इस्पात संबंधी भारी उपकरण जैसे एस्केवेटर, क्रेन, ऑयल, ड्रिलिंग, उपकरण आदि  बनाते हैं साथ ही सीमेंट, खाद्य तेल, खनन, ड्रिलिंग मशीन आदि का भी कार्य होता है

(ii) फाउंड्री फ़ार्ज़ संयंत्र (Foundry Forge Plant-FFT) - इस सयंत्र की स्थापना की चेकोस्लोवाकिया की सहायता से की गई है यह एक ढलाई भट्टी है 

➧ यहां भारी मशीनों एवं उपकरणों के निर्माण के लिए बड़े-बड़े उच्चता तापीय बॉयलोरो में गलाकर आवश्यक आकृतियों में ढाला जा रहा है। यह अन्य दो शाखाओं की मांग को पूरा करने का काम करता है

(iii) हैवी मशीन टूल प्लांट (Heavy Machine Tools Plants-HMTP) - इसकी स्थापना रूस की सहायता से की गई है यहां विभिन्न प्रकार के मशीन के पुर्जे बनाए जाते थे बोकारो लौह-इस्पात कंपनी के लिए आवश्यक मशीन और उपकरण की आपूर्ति यहीं से की जाती है

11- यूरेनियम उद्योग 

➧ झारखंड में यूरेनियम प्रोसेसिंग प्लांट पूर्वी सिंहभूम जिले में घाटशिला के निकट बादूंहुडांग गांव में लगाया जाना है
➧ इसका इसका औपचारिक नाम तुरामडीह यूरेनियम प्रोजेक्ट होगा
➧ राज्य सरकार ने इस कारखाने के निर्माण की मंजूरी दे दी है परंतु यह कारखाना अभी आरंभ नहीं हुआ है 
➧ एक अनुमान के तहत झारखंड में 40 लाख  टन यूरेनियम का भंडार है

12- विस्फोटक उद्योग 

➧ झारखंड में विस्फोटक उद्योग की स्थापना आई.सी.आई द्वारा गोमिया (बोकारो) में किया गया

13- कोयला धोवन उद्योग(Coal Washeries Industry)

➧ कोयला धोवन गृहों के द्वारा कोयले से शेल,फायरक्ले आदि अशुद्धियों को दूर किया जाता है 
➧ झारखंड में जामादोबा, बोकारो, लोदला, करगाली, दुगदा, पाथरडीह, कर्णपुरा आदि प्रमुख कोयला धोवन केंद्र हैं
➧ करगाली कोल वाशरी (बोकारो) एशिया की सबसे बड़ी कॉल वाशरी है 

14- रिफैक्ट्री उद्योग (Refractory Industry) 

➧ इस उद्योग के अंतर्गत उच्च ताप सहन करने वाले धमन भट्टियों का निर्माण किया जाता है जिसका प्रयोग लौह-इस्पात उद्योग सहित विभिन्न उद्योगों में किया जाता है
➧ झारखंड में चिरकुंडा, कुमारधुबी, धनबाद, रांची रोड, मुग्मा आदि में इस प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है
➧ दामोदर घाटी क्षेत्र में पायी जाने वाली मिट्टी इस उद्योग की स्थापना हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है

15- उर्वरक उद्योग (Fertilizer Industry)

➧ भारत का प्रथम उर्वरक कारखाना 1951 ईस्वी में सिंदरी (धनबाद) में फर्टिलाइज़र कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया दवारा स्थापित किया गया है
➧ यह पूर्वी भारत का सबसे बड़ा उर्वरक कारखाना है  
➧ यहाँ से अमोनियम सल्फेट, नाइट्रेट एवं यूरिया का उत्पादन किया जाता है 

अन्य करखाने

 भारत सरकार ने झारखंड में केंद्रीय प्रबंधन के अंतर्गत कुछ बड़े कारखाने खाले हैं

(i) सी.सी.एल. (रांची)

(ii) बोकारो इस्पात लिमिटेड (बोकारो)

(iii) ई.सी.एल. (संथाल परगना)

(iv) बी.सी.सी.एल. (धनबाद)

(v) हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (पूर्वी सिंहभूम)

(vi) एच.ई.सी. (रांची)

➧ राज्य में बिरला समूह के दो कारखाने स्थित है

(i) 'हिंडालको' (मुरी) - एलुमिनियम उत्पादन हेतु 
(ii) बिहार कास्टिक सोडा एवं केमिकल्स फैक्ट्री रेहला (पलामू) है
➧ झारखंड राज्य के 12 जिलों में जिला उद्योग केंद्र (District Industry Center) कार्यरत हैं 
 झारखंड में वृहद उद्योग की संख्या 167 है, जो राज्य के 15 जिला में स्थापित है  
 पूर्वी सिंहभूम जिले में सबसे अधिक 85 उद्योगों की स्थापना हुई है  

झारखंड में वन आधारित उद्योग 

(1) लाह उद्योग

➧ लाह उत्पादन की दृष्टि से भारत में झारखंड का स्थान प्रथम है यहां भारत के कुल उत्पादन का 60% उत्पादन होता है
➧ लाह  के कीड़ों को पालने का कार्य कुसुम, पलास, बेर के पौधों पर किया जाता है 
➧ झारखंड अपने कुल लाह उत्पादन का 90% निर्यात करता है 
 लातेहार टोरी लाह निर्यात की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान रखता है
 सबसे अधिक लाह का उत्पादन खूंटी जिले में किया जाता है
 भारतीय लाह अनुसंधान संस्थान रांची जिले के नामकुम में 1925 में स्थापित किया गया था

(2) रेशम उद्योग 

➧ भारत में 70% तसर रेशम का उत्पादन अकेले झारखंड करता है
➧ राज्य में 40% रेशम उत्पादन सिंहभूम क्षेत्र में तथा 26% रेशम उत्पादन संथाल परगना क्षेत्र में होता है
➧ तसर अनुसंधान केंद्र राँची के नगड़ी में स्थापित किया गया है 

(3) तंबाकू उद्योग

➧ झारखंड में तंबाकू उद्योग का मुख्य उत्पाद बीड़ी उद्योग में है 
➧ बीड़ी का निर्माण एवं केन्दु पत्ता एवं तंबाकू से किया जाता है 
➧ राज्य में बीड़ी निर्माण का कार्य सरायकेला, जमशेदपुर, चक्रधरपुर, संथाल परगना क्षेत्र में किया जाता है 

                                                                                             👉 Next Page:झारखंड के औद्योगिक प्रदेश
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