Jharkhand Ke Apwah Pranali
➧ जल संसाधन राज्य के जैव मंडल के विकास हेतु महत्वपूर्ण साधन है, जो प्रकृति प्रदत है।
➧ वर्षा के जल एवं दूसरे स्रोत से प्राप्त जल के बहाव की समग्र व्यवस्था अपवाह प्रणाली के नाम से जानी जाती है।
➧ झारखंड के अपवाह प्रणाली के अंतर्गत नदियां, जलप्रपात एवं गर्म जलकुंड शामिल किए जाते हैं।
➧ झारखंड के अपवाह तंत्र में बड़ी आकार वाली नदियां नहीं है, यहां की अधिकांश नदियां छोटे आकार की है।
➧ ये नदियां सदानीरा भी नहीं है क्योंकि इनका स्रोत अमरकंटक के पहाड़ी या छोटानागपुर के पठार द्रोणी है।
➧ जल संसाधन का संरक्षण झारखंड जैसे राज्य के लिए अति-आवश्यक है, क्योंकि राज्य में आर्कियन ग्रेनाइट तथा नीस जैसे चट्टाने पायी जाती है।
➧ इस प्रकार की चट्टानों की छिद्रता कम होती है, फलत: भूमिगत जल ठहर नहीं पाता । अतः राज्य में भूमिगत भंडार जल सीमित है।
➧ झारखंड के नदियों की उपयोगिता
(i) यहां की नदियां उद्योगों की स्थापना में सहायक है।
(ii) ये नदियां शिक्षाएं, मत्स्यपालन, पन-बिजली की प्राप्ति का साधन है।
(iii) ये नदियां पेयजल का मुख्य स्रोत उपलब्ध कराती है।
➧ ये नदियों की विशेषता
(i) झारखंड की अधिकांश नदियां उत्तर की ओर प्रवाहित होकर गंगा में मिल जाती है या फिर स्वतंत्र रूप से पूर्व की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
(ii) झारखंड की नदियों में मार्ग बदलने की प्रवृत्ति नहीं के बराबर होती है, क्योंकि ये कठोर चट्टानों से होकर प्रवाहित होती है।
(iv) झारखंड की नदियां मानसून पर निर्भर है अर्थात बरसात के मौसम में इनमें बाढ़ आती है, परन्तु गर्मी के मौसम पर यह सूख जाती हैं। सोन इसका अपवाद है।
(v) यहां की नदियां जलप्रपात के लिए विशिष्ट स्थिति प्रदान करती है, परंतु नौकाचालन के लिए उपयोगी नहीं होती।
➧ नदियों से जुड़े विशिष्ट तथ्य
➧ सोन नदी को छोड़कर झारखंड की सभी नदियां बरसाती है, अर्थात मौनसून पर निर्भर है।
➧ मोर/ मयूराक्षी एकमात्र झारखंड की नदी है, जिसमें नौकायान किया जा सकता है।
➧ गंगा नदी झारखंड की एकमात्र जिले साहबगंज से होकर गुजरती है। इसके संरक्षण के लिए 2009 में झारखंड राज्य गंगा नदी संरक्षण प्राधिकरण गठित किया गया है।
➧ दामोदर और स्वर्णरेखा नदियों की आकारिकी अध्ययन से पता चलता है कि नदियां नवोन्मेषण (पुनर्योवन) की प्रकिया से गुजरी है।
➧ झारखंड की वार्षिक औसत वर्षा 125 से 150 सेंटीमीटर है। जबकि यहां की नदियों की क्षमता 18 पॉइंट 18 बिलियन क्यूबिक मीटर है।
➧ झारखंड में 8 नदी बेसिन है - उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, शंख, दामोदर, स्वर्णरेखा, खैरकई, अजय, मयूराक्षी।
➧ नदी अपवाह तंत्र का विभाजन
उत्तर-पश्चिम अपवाह :- सोन, पुनपुन, सकरी, फल्गु, करमनासा, पांचने, कियूल।
उत्तरी-पश्चिम अपवाह :- उत्तरी कोयल, औरंगा, अमानत।
पूर्वी अपवाह :- दामोदर, बराबर, अजय, मयूराक्षी, ब्रम्हाणी।
दक्षिण अपवाह :- दक्षिणी कोयल, शंख।
दक्षिण-पूर्वी अपवाह :- स्वर्णरेखा, खरकई, काँची, राढू कसाई, संजय।
➧ उत्तरी अपवाह तंत्र
➧ यह अपवाह तंत्र झारखंड के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह बिहार के मध्य भाग में अपना प्रवाह तंत्र विकसित करती है। ➧ इस प्रवाह तंत्र का विकास हजारीबाग (प्रखंड-चौपारण) और उत्तरी चतरा, उत्तरी कोडरमा जिला क्षेत्र भू-भाग में विकसित है। इसके अंतर्गत सोन, कर्मनासा,पुनपुन, फल्गु, सकरी, पंचाने, कियूल आदि नदियां बहती है।
(i) सोन नदी :- इसका उद्गम स्थल मैकाल श्रेणी का अमरकंटक पहाड़ी है।
➧ इसे सोनभद्र एवं हिरण्यवाह भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें सुनहरी रेत पाई जाती है।
➧ गढ़वा-पलामू की सीमा को छूते हुए यह नदी सीधे पूर्व की ओर बहते हुए गंगा नदी में मिल जाती मिल जाती हैं।
(ii) पुनपुन नदी :- इसका उद्गम स्थल मध्यप्रदेश की पठारी भाग एवं इसका मुहाना गंगा नदी है।
➧ इस नदी की कुल लंबाई 200 किलोमीटर है।
➧ इसकी सहायक नदियों में दरधा और मोरहर है।
➧ यह झारखंड के चतरा से होते हुए बिहार के औरंगाबाद, गया, पटना में प्रवेश करते हुए गंगा नदी से मिल जाती है।
➧ इससे कीकट एवं बमागधी के नाम से जाना जाता है।
(iii) सकरी नदी :- यह उत्तरी छोटानागपुर के पठार से निकलकर गंगा के ताल क्षेत्र में अपना मुहाना बनाती है।➧ इसकी सहायक नदियों में किउल प्रमुख है।
➧ इस नदी की विशेषता यह है कि यह मार्ग बदलने हेतु कुख्यात हैं।
(iv) फल्गु नदी :- इसे अंतः सलिला के नाम से भी जाना जाता है।
➧ इसकी सहायक नदी निरंजना एवं मोहना है।
➧ यह छोटा नागपुर पठार का उत्तरी भाग हजारीबाग के पठार (चतरा जिले) से निकलकर बिहार में पुनपुन से मिल जाती है।
➧ इस नदी के पौराणिक विशेषता है।
➧ पितृपक्ष के समय स्नान एवं पिंडदान हेतु लोग यहां आते हैं।
➧ इस नदी का झारखंड में केवल उद्गम स्थल है।
➧ उत्तर-पश्चिमी अपवाह तंत्र
➧ इस अपवाह तंत्र का विस्तार पलामू प्रमंडल में है। इस अफवाह तंत्र की प्रमुख नदियां इस प्रकार हैं :-
(i) उत्तरी कोयल नदी :- इस नदी का उद्गम स्थल रांची पठार के मध्य भाग में स्थित है।
➧ यह गढ़वा, पलामू, लातेहार होते हुए सोन नदी में जाकर गिरती है।
➧ इसकी कुल लंबाई 260 किलोमीटर है।
➧ इसकी सहायक नदियों में औरंगा एवं अमानत है।
➧ झारखंड के लातेहार जिले में बूढ़ाघाघ जलप्रपात, जो झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात है और जिसकी ऊंचाई 450 फीट है इसी नदी पर स्थित है।
(ii) औरंगा नदी :- यह लोहरदगा जिले के किसको प्रखंड के उत्तरी सीमा से निकलती है।
➧ इसकी सहायक नदियां घाघरी, गोवा नाला, धाधरी, सुकरी आदि है।
➧ यह आगे चलकर लेस्लीगंज और बरवाडीह की सीमा बनाते हुए कोयल नदी में जाकर गिरती है।
(iii) अमानत नदी :- यह चतरा जिले से निकलकर बालूमाथ होते हुए पांकी प्रखंड में प्रवेश करती है।
➧ इसकी प्रमुख सहायक नदियां जिजोई, माईला, जमुनियाँ, खैरा, चाको, सलाही, पाटम आदि है।
➧ पूर्वी अपवाह तंत्र
(i) दामोदर नदी :- यह झारखंड स्थित छोटा नागपुर पठार के टोरी (लातेहार) से निकलकर हुगली नदी में मिलती है।
➧ इसकी कुल लंबाई 592 किलोमीटर है, जबकि यह नदी झारखंड में 290 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
➧ इसकी सहायक नदियों में बराकर, बोकारो, कोनार, जमुनिया, कतरी आदि हैं।
➧ यह झारखंड के हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, लातेहार, रांची, लोहरदगा आदि जिले में प्रवाहित होती है।
➧ इसे देवनदी, बंगाल का शोक आदि नामों से भी जाना जाता है।
➧ यह झारखंड की सबसे प्रदूषित नदी है।
➧ यह झारखंड की सबसे लंबी और बड़ी नदी है।
(ii) बराकर नदी :- इसका उद्गम स्थल छोटा नागपुर का पठार है।
➧ यह 225 किलोमीटर की दूरी तय कर दामोदर नदी में जाकर गिरती है।
➧ यह झारखंड के हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद आदि जिले में अपना अपवाह क्षेत्र बनाती हैं।
(iii) अजय नदी :- यह बिहार के मुंगेर जिले से निकलकर लगभग 288 किलोमीटर की यात्रा करते हुए भागीरथ नदी पश्चिम बंगाल में अपना मुहाना बनाती है।
➧ इसकी सहायक नदियों में पथरो एवं जयंती का नाम आता है।
(iv) मयूराक्षी नदी :-इस नदी का उद्गम स्थल त्रिकूट पहाड़ी (देवघर) में स्थित है।
➧ यह कुल 250 किलोमीटर की दूरी तय कर पश्चिम बंगाल के हुगली में जाकर मिलती है।
➧ इस नदी की सहायक नदियों में धोवाइ, टिपरा, भामरी है।
➧ झारखंड में इस नदी की विशेषता यह है कि यह नौगाम्य नदी है।
(v) ब्राह्मणी नदी :- इस नदी का उद्गम स्थल दुमका जिले के उत्तर में स्थित दुधवा पहाड़ी से है।
➧ इसकी सहायक नदियों में गुमरो और ऐरो मुख्य हैं।
➧ यह पश्चिम बंगाल के हुगली में अपना मुहाना बनाती है।
➧ इसका अपवाह क्षेत्र दुमका, साहिबगंज, देवघर, गोड्डा है।
(vi) गुमानी नदी :- इस नदी का उद्गम स्थल राजमहल की पहाड़ी है।
➧ यह अपना मुहाना गंगा नदी (पश्चिम बंगाल) में बनाती है।
➧ यह राजमहल की पहाड़ियों से निकलकर उत्तरी-पूर्वी खंड का निर्माण करती है।
➧ इस नदी के दो प्रमुख सहायक नदियां है जिसमें मेरेल नदी उत्तर की ओर से आकर बुढ़ेत के पास मिलती है।
➧अन्य सहायक नदियों में दक्षिण की ओर से छोटी नदियां आकर मिलती है, जो छोटे मैदानी क्षेत्र का निर्माण करते हैं।
(vii) बंसोलोई :- इस नदी का उद्गम स्थल गोड्डा जिले के बांस पहाड़ी से हुआ है।
➧ यह दुमका के पचावारा के नजदीक प्रवेश करती है तथा मुराराई रेलवे स्टेशन के पास गंगा में मिल जाती है।
➧ दक्षिणी-पूर्वी अपवाह तंत्र
➧ इस अपवाह तंत्र में स्वर्ण रेखा, राढू, खरकई, कांची, संजय, कसाई आदि नदियां शामिल है।
(i) स्वर्णरेखा नदी :- यह रांची के नगड़ी (प्रखंड) से निकलकर करीब 470 किलोमीटर की दूरी तय कर स्वतंत्र रूप से बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
➧ यह झारखंड की एकमात्र नदी है जो स्वतंत्र रूप से बंगाल की खाड़ी में गिरती है, अन्यथा सभी नदियां किसी ना किसी नदी में जाकर मिल जाती है।
➧ इसकी सहायक नदियों में काकरो, कांची, खरकई, जामरू, राढू, संजय आदि शामिल है।
➧ इसे स्वर्णरेखा नदी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस नदी की रेत में सोने का अंश पाया जाता है।
➧ इसी नदी पर हुंडरू जलप्रपात का निर्माण होता है।
(ii) खरकई नदी :- झारखंड और उड़ीसा के मध्य सीमा का निर्माण खरकई नदी द्वारा किया जाता है।
➧ इस नदी पर खरकई जलाशय परियोजना स्थित है।
➧ यह स्वर्णरेखा के सहायक नदी है।
➧ इसके किनारे लौहनगरी जमशेदपुर स्थित है।
(iii) काँची :- इस नदी पर झारखंड का दशम जलप्रपात स्थित है, जिसकी ऊंचाई 144 फीट हैहै।
➧ यह राढू नदी की सहायक नदी है।
➧ दक्षिणी अपवाह तंत्र
➧ इस अपवाह तंत्र में दक्षिणी कोयल एवं और शंख नदी को शामिल किया जाता है। (i) दक्षिणी कोयल :- यह रांची के नगड़ी प्रखंड से निकलकर शंख नदी (उड़ीसा) में गिरती है।
➧ इसकी कुल लंबाई 470 किलोमीटर है।
➧ इसकी सहायक नदी कारो है।
➧ इसका अपवाह क्षेत्र लोहरदगा, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम और रांची में है। ➧ शंख नदी के साथ मिलकर यह उड़ीसा में ब्राह्मणी नदी के नाम से भी जानी जाती है।
(ii) शंख नदी :- यह गुमला के चैनपुर से निकलकर लगभग 240 किलोमीटर की दूरी तय कर दक्षिणी कोयल में मिलती है।
➧ इसके अपवाह क्षेत्र में झारखंड का गुमला जिला आता है।