Pesa Adhiniyam 1996
➦ पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों के विस्तार) अधिनियम, 1996
➦ पेसा का पूरा नाम 'पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) कानून (The Provisions on the Panchayats Extension to the Scheduled Area Act.) है।
➦ यह कानून संविधान के पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले अनुसूचित क्षेत्र में ही प्रभावी होती है। याद रहे कि झारखंड राज्य के 13 जिले और कुछ सीमित क्षेत्र संविधान के पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं।
➦ कांतिलाल भूरिया समिति की सिफारिश पर यह सहमति बनी कि अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक केंद्रीय कानून बनाना ठीक रहेगा, जिसके दायरे में राज्य विधानमंडल अपने-अपने कानून बना सकें।
➦ इसी दृष्टिकोण से दिसंबर, 1996 में संसद में विधेयक प्रस्तुत किया गया दिसंबर, 1996 में ही यह दोनों सदनों से पारित हो गया तथा 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त कर लागू हो गया।
➦ इसका अन्य उद्देश्य जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना, पारंपारिक परिपार्टियों की सुसंगता में उपयुक्त प्रशासनिक ढांचा विकसित करना तथा ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना भी है।
➦ वर्तमान में यह कानून झारखंड सहित 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान) में लागू होता है।
पेसा कानून के प्रमुख प्रावधान एवं विशेषताएं
➦ इस अधिनियम की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें जनजातीय समाजों की ग्राम सभाओं को अत्यधिक ताकत दी गई है।
➦ प्रत्येक ग्राम में 1 ग्राम सभा होगी, जिसमें वे सभी व्यक्ति शामिल होंगे जिनका नाम ग्राम स्तर पर पंचायत के लिए तैयार की गई मतदाता सूची में शामिल है।
➦ ग्राम सभा नागरिकों के परंपराओं तथा सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने का कार्य करेगी साथ ही सामुदायिक संसाधनों के संरक्षण और विवादों के पारंपरिक निपटारे में मुख्य भूमिका निभाएगी।
➦ ग्राम सभा अपने क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं अनुमोदित करेगी।
➦ ग्राम सभा अपने क्षेत्र में क्रियान्वित गरीबी उन्मूलन तथा दूसरे लोकहित कार्यक्रमों हेतु लाभार्थियों की पहचान और चयन करेगी।
➦ ग्राम सभा अपने क्षेत्र में चालू विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के पश्चात संबंधित ग्राम से उपयोगिता प्रमाण- पत्र प्राप्त करेगी। जिसमें यह वर्णित होगा कि इस योजना में धन का उचित उपयोग हुआ है।
➦ संविधान के भाग 9 के अंतर्गत जिन समुदायों के संबंध में आरक्षण के प्रावधान है उन्हें अनुसूचित क्षेत्रों में प्रत्येक पंचायत में उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा साथ ही यह शर्त भी है कि अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण कुल स्थानों के 50% से कम नहीं होगा तथा पंचायतों के सभी स्तरों पर अध्यक्षों के पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहेंगे।
➦ मध्यवर्ती तथा जिला स्तर की पंचायतों में राज्य सरकार उन अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों को भी मनोनीत कर सकेगी जिनका उन पंचायतों में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, किंतु ऐसे मनोनीत प्रतिनिधियों की संख्या चुने जाने वाले कुल प्रतिनिधियों के 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
➦ ग्राम सभा या समुचित स्तर पर पंचायतों से विकास योजनाओं के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में अर्जन करने से पूर्व सहमति ली जाएगी साथ ही ऐसी परियोजनाओं द्वारा प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास हेतु विस्थापन से पूर्व परामर्श किया जाएगा।
➦ अनुसूचित क्षेत्रों में लघु खनिज के उत्खनन के लिए लाइसेंस देने, लघु खनिज वाले क्षेत्र को लीज पर देने से पहले ग्राम सभा या पंचायत के समुचित स्तर पर पूर्व अनुमति आवश्यक है। साथ ही लघु खनिज के उपयोग में किसी भी प्रकार के रियायत देने से के पहले पंचायतों से अनुमति लेनी आवश्यक होगी।
➦ अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के तौर पर कार्य करने के लायक बनाने के लिए अपेक्षित शक्तियां और अधिकार देते हुए राज्यों के विधानमंडल यह सुनिश्चित करेंगे कि ग्रामसभा और पंचायतों को निश्चित रूप से शक्तियां प्रदान की गई हो, जो निम्नलिखित हैं-
(i) किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों के विक्रय और सेवन के विनियमन एवं नियंत्रण करने का अधिकार।
(ii) लघु वनोउत्पाद का स्वामित्व।
(iii) अनुसूचित क्षेत्र में भूमि हस्तांतरण को रोकने की शक्ति और किसी अनुसूचित जनजातियों की अवैध रूप से हस्तांतरित की गई भूमि की पुनर्वापसी के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार।
(iv) ग्राम स्तरीय हाटों/ बाजारों के प्रबंधन का अधिकार।
(v) अनुसूचित जनजातियों को ऋण देने पर नियंत्रण का अधिकार।
(vi) सामाजिक संस्थाओं और कार्यकर्ताओं के कार्यकलापों पर नियंत्रण का अधिकार।
(viii) स्थानीय योजनाओं (जनजातीय उप योजना सहित)और स्रोतों पर नियंत्रण का अधिकार।
पेसा अधिनियम से जुड़ी समस्याएं
➦ पेसा के अंतर्गत प्रत्येक गांव में 1 ग्राम सभा का प्रावधान किया गया है, जबकि कई स्थितियों में 1 ग्राम पंचायत एक से अधिक ग्राम सभाओं द्वारा चुनी जाती है। ऐसी स्थिति में समस्या यह आती है कि अगर पंचायत के किसी निर्णय पर अलग-अलग ग्राम सभाओं की पृथक राय हो तो अंतिम निर्णय कैसा होगा।
➦ लघु वन उत्पादों को लेकर ग्राम सभाओं के अधिकार संबंधी व्याख्या पर भी विवाद है प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि कोई ग्राम सभा उतने ही वन क्षेत्र के उत्पादों पर अपने अधिकार का दावा कर सकती है जो उसकी राजस्व सीमाओं के अंदर आता है।
➦ यह अधिनियम सिर्फ उन क्षेत्रों पर लागू होता है जिन्हें पांचवी अनुसूची के तहत क्षेत्र माना गया है ऐसे क्षेत्र जिसमें जनजातियों की काफी संख्या है किंतु व अनुसूचित क्षेत्र नहीं है, इस कानून का लाभ नहीं ले पाते हैं।
➦ कानून के पालन में राजनीति इच्छाशक्ति की कमी, नक्सलवाद जैसी समस्याओं की बाधाएं, भू हस्तांतरण में के नियमों में स्पष्टता न होना भी समस्याएं हैं।
पेसा अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव
➦ पेसा अधिनियम के क्रियान्वयन में आई समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2013 में उसमें संशोधन करने के लिए एक विधेयक तैयार किया था जो अभी पारित नहीं हो सका है।
➦ यह संशोधन विधेयक अपनी प्रकृति में काफी प्रगतिशील है जिसमें कई उपबंध किए गए थे, जैसे :-
(i) अधिग्रहण या पुनर्वास से जुड़े उक्त मामलों के लिए ग्राम सभा या पंचायत की जानकारी पूर्ण सहमति ली जाएगी।
(ii) संशोधन विधेयक में पुनर्वास के साथ धारणीय आजीविका शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
(iii) पैसा संशोधन विधेयक में गौण खनिजों के साथ-साथ महत्वपूर्ण खनिजों को भी शामिल कर लिया गया है।
(iv) पेसा संशोधन विधेयक में यह व्यवस्था भी की गई है कि केंद्र सरकार इस अधिनियम तथा इसके तहत बनाए गए नियमों के प्रभावी प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकारों को सामान्य तथा विशेष निर्देश जारी कर सकेगी।
पेसा के संदर्भ में अन्य सुझाव
(i) पेसा कानून के लागू करते वक्त एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाए, ताकि नागरिकों की आवश्यकता के अनुरूप इसे लागू किया जा सके।
(ii) ग्राम सभा और पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाये।
(iii) पेसा के तहत आने वाले क्षेत्रों में योजना बनाते समय राज्य सरकार, पंचायती राज मंत्रालय एवं जनजातीय कार्य मंत्रालय आपस में मशविरा अवश्य करें।
पेसा का महत्व
पेसा कानून को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो यह न केवल विकास बल्कि लोकतंत्र को भी विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इस कानून की महता निम्न बातों में निहित है।
(i) इससे निर्णय प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी।
(ii) आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना कम होगी।
(iii) सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग पर बेहतर नियंत्रण संभव होगा।
(iv) जनजातीय आबादी में गरीबी और पलायन कम हो जाएगा।
(v) जनजातीय समाज के आजीविका और आय में सुधार होगा।
(vi) आदिवासी समाज का शोषण कम होगा
(vii) ग्राम सभा द्वारा ऋण देने, शराब की बिक्री खपत एवं गांव बाजारों का प्रबंधन करने से कई सामाजिक कुरीतियों पर विराम लगेगा।
(viii) भूमि के अवैध हस्तांतरण पर रोक लगेगी तथा आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तांतरित जमीन की पुनः प्राप्ति संभव हो सकेगी।
(ix) इससे जनजातीय परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के संरक्षण में मदद मिलेगी।