Kora Janjati Ka Samanya Parichay
➧ कोरा जनजाति प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो- आस्ट्रोलॉयड समूह से संबंधित है परंतु रिजले ने इन्हें द्रविड़ प्रजाति समूह में वर्गीकृत किया है।
➧ इस जनजाति को कई स्थानों पर दांगर भी कहा जाता है।
➧ इस जनजाति की बोली का नाम भी कोरा है जो मुंडारी परिवार(ऑस्ट्रो-एशियाटिक) से संबंधित है।
➧ इस जनजाति का संकेन्द्रण मुख्यत: हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, सिंहभूम एवं संथाल परगना क्षेत्र में है।
➧ समाज एवं संस्कृति
➧ इस जनजाति का परिवार पितृसत्तात्मक व पितृवंशीय होता है।
➧ रिजले के अनुसार इस जनजाति की 7 उपजातियां है।
➧ यह जनजाति मुख्यत: ठोलो, मोलो , सिखरिया और बादमिया नामक वर्गों में विभाजित है।
➧ कोरा लोग अपने घर को ओड़ा तथा गोत्र को गुस्टी कहते हैं।
➧ इस जनजाति के युवागृह को 'गीतिओड़ा' कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में समगोत्रीया विवाह निषिद्ध माना जाता है।
➧ इस जनजाति में गोदना की प्रथा पाई जाती है तथा ये गोदना को स्वर्ग या नरक में अपने संबंधियों को पहचानने हेतु आवश्यक चिन्ह मानते हैं।
➧ इनके गांव के प्रधान को महतो कहा जाता है।
➧ कोरा जनजाति के प्रमुख गोत्र है :-मागडू , कच, चीखेल, मेरोय, बुटकोई।
➧ इनके गोत्रों में सबसे ऊपर 'कच' तथा सबसे नीचे 'बूटकोई' है।
➧ जनजाति के प्रमुख नृत्य खेमटा, गोलवारी, दोहरी, झिंगफुलिया आदि है।
➧ आर्थिक व्यवस्था
➧ इस जनजाति का परंपरागत पेशा मिट्टी कोड़ना था. जिसके कारण ही इनका नाम 'कोड़ा' पड़ा।
➧ धार्मिक व्यवस्था
➧ इनके पुजारी को बैगा कहा जाता है।
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