Chuar Vidroh 1769-1805
➧ अंग्रेज जंगल महल के भूमिजों को चुआर /चुआड़ (नीची जाति के लोग) कहते थे जिसके कारण इनके विद्रोह का नाम चुआर विद्रोह पड़ा।
➧ सामान्यत: चुआर लोग पशु-पक्षियों के शिकार, जंगलों में खेती व वनोत्पादों के व्यापार द्वारा अपना भरण-पोषण करते थे।
➧ इसके अलावा ये लोग स्थानीय जमींदारों के यहां सिपाही (पाइक) के रूप में कार्यरत थे।
➧ अंग्रेजों द्वारा चुआरों की भूमि पर अवैध कब्जा कर जमींदारों को बिक्री करने, जमींदारों के लगान में अप्रत्याशित वृद्धि व लगान नहीं देने पर जमीन की नीलामी करने, बाहरी लोगों को इनके इलाके में बसाने, स्थानीय चुआरों के स्थान पर बाहरी पुलिस को उनके स्थान पर नियुक्त करने तथा अन्य आर्थिक मुद्दों के विरुद्ध यह विद्रोह किया गया।
➧ यह विद्रोह सिंहभूम, मानभूम, बाड़भूम और पंचायत राज्य में हुआ।
➧ घटवाल, पाइक एवं जमींदार समुदायों के समर्थन के कारण इस विद्रोह ने व्यापक रूप धारण कर लिया।
➧ इस विद्रोह में भूमिज जनजाति ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
➧ इस विद्रोह में श्याम गंजम, रघुनाथ महतो, सबल सिंह, जगन्नाथ पतवार (1769-71 तक), मंगल सिंह (1782- 84 तक), लाल सिंह, दुर्जन सिंह और मनोहर सिंह (1798-99 तक) ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
➧ दुर्जन सिंह मानभूम तथा बाड़भूम में इस विद्रोह के प्रमुख नेता थे
➧ इस विद्रोह का प्रमुख नारा था- 'अपना गांव अपना राज, दूर भगाओ विदेशी राज'।
➧ ले गुडयार, कैप्टन फोब्स एवं मेजर क्रॉफ्ड को इस विद्रोह के दमन हेतु भेजा गया था।
➧ लगभग 30 वर्ष से अधिक समय तक इस अशांत क्षेत्र में शांति बहाल करने हेतु अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के लोगों को कुछ सुविधाएं देने का निर्णय लिया।
➧ 6 मार्च, 1800 ईस्वी को एक प्रस्ताव द्वारा जमीनदारी-घटवारी पुलिस व्यवस्था को पुनर्स्थापित किया गया जिसके तहत स्थानीय लोगों को पुलिस अधिकारियों के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था की गई।
➧ साथ ही पाइको की जब्त भूमि की वापसी व जमींदारों की भूमि की अवैध नीलामी पर रोक का भी निर्णय लिया गया।
➧ 1805 ईसवी में जंगलमहल जिला के निर्माण के बाद इस क्षेत्र में पुनः शांति व्यवस्था बहाल हुई।
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