Jharkhand Me Paryavaran Sambandhit Tathya
(झारखंड में पर्यावरण संबंधी तथ्य एवं परिवर्तन अपशमन एवं अनुकूल संबंधी विषय)
➧ पर्यावरण शब्द का शाब्दिक अर्थ :- आस-पास, मानव जंतुओं तथा पौधों की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले बाह्य दशाएं, कार्यप्रणाली तथा जीवन-यापन की परिस्तिथियां आदि होती है।
➧ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार, पर्यावरण किसी जीव के चारों तरफ घिरे भौतिक एवं जैविक दशाएं एवं उनके साथ अंत: क्रिया को सम्मिलित करता है।
➧ पर्यावरण के घटक
(i) अजैविक पर्यावरण
(ii) जैविक पर्यावरण
(ii) जैविक पर्यावरण
(i) अजैविक पर्यावरण
(i) स्थलमंडलीय पर्यावरण
(ii) वायुमंडलीय पर्यावरण
(ii) वायुमंडलीय पर्यावरण
(iii) जलमंडलीय पर्यावरण
(ii) जैविक पर्यावरण
(i) वनस्पति पर्यावरण
(ii) जंतु पर्यावरण
➧ सब जगह पाया जानेवाला अभिप्राय से है हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है।
➧ पर्यावरण हमारे चारों ओर फैला हुआ है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अंदर संपादित होती है तथा हम मनुष्य अपने समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण में प्रभाव डालते हैं।
➧ इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच एक दूसरे पर पारस्परिक आश्रित संबंध स्थापित करते हैं।
➧ पर्यावरण के जैविक संघटकों के सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों आ जाते हैं, और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ प्रक्रिया भी।
➧ अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती है :- जैसे चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि।
➧ पर्यावरण से जुड़े विषय
➧ वर्तमान में पर्यावरण से जुड़े विषयों में जैव विविधता एवं उनका संरक्षण, पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव अर्थात पर्यावरण प्रदूषण आदि को शामिल किया जाता है।
➧ पर्यावरण प्रदूषण का व्यापक प्रभाव जैव विविधता पर पड़ा है। जैव विविधता का अभिप्राय किसी स्थान-विशेष में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों की कुल संख्या और प्रत्येक प्रजाति में पाई जाने वाले अनुवांशिक भिन्नता से है।➧ पृथ्वी पर विभिन्न प्रजातियों के असंख्य जीव निवास करते हैं। ये भिन्न प्रकार के जीव एक-दूसरे से अनेक रूपों में भिन्न होते हुए एक-दूसरे पर निर्भर है।
➧ एक-दूसरे पर भोजन के लिए निर्भरता एवं जैव विविधता के कारण पर्यावरण में संतुलन स्थापित होता है।जितनी अधिक जैव विविधता होगी, उतना ही पर्यावरण में अधिक संतुलन होगा।
➧ जैव विविधता शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले डब्लू जी.रोजेन ने 1950 ईस्वी में किया था।
➧ प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। इसे विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस भी कहते हैं।
➧ झारखंड पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
➧ झारखंड की जलवायु तथा उसकी औद्योगिक स्थित झारखण्ड को जैव विविधता में काफी धनी राज्य बनाता है।
➧ झारखंड के जंगलों में कई तरह के पेड़, औषधीय पौधे, घास, फूल इत्यादि मौजूद है।
➧ प्रमुख जैव विविधता से पूर्ण स्थान पिठोरिया घाटी, नेतरहाट की पहाड़ी, सारंडा का जंगल, पारसनाथ की पहाड़ी, दलमा की पहाड़ी है।
➧ प्रमुख नदियों में कोयल, दामोदर और स्वर्ण रेखा के क्षेत्र के जंगल जैव विविधता में धनी है, लेकिन बढ़ता पर्यावरणीय प्रदूषण जैव विविधता के क्षरण का कारण बनता जा रहा है।
➧ झारखंड में पर्यावरण से जुड़े विषय
➧ वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार के अनुसार 2015 ईस्वी में 23605 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर वनावरण था, जो कि झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 26 पॉइंट 61 प्रतिशत था।
➧ झारखंड राज्य के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने हेतु व्यापक पैमाने पर वन रोपण अभियान चलाया जा रहा है।➧ वृक्षारोपण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में मुख्य हैं :- मुख्यमंत्री जन-वन योजना ।
➧ अफ्रीकी मूल का कल्पतरु वृक्ष, जो चिकित्सीय महत्व के लिए प्रसिद्ध है, पूरे भारत में इसकी संख्या 9 है जिसमें 4 रांची में है इस वृक्ष की खासियत अतिशुष्क वातावरण के समय जल भंडारण की अत्यधिक क्षमता होती है
तथा इसमें कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन और कैल्शियम
.
काफ़ी मात्रा में पाया जाता है।➧ प्रमुख विलुप्तप्राय प्रजाति के पौधों में से एक माखन कटोरी और शिवलिंगम फूल की प्रजाति है जिसे संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है।
➧ शिवलिंगम फूल काफी आकर्षक होता है। लाल और सफेद रंग के ये फूल मनमोहन खुशबू बिखरते हैं यह हिमाचल प्रदेश की तराई क्षेत्र में पाया जाता है। इसके फूल से आस-पास काफी दूर तक क्षेत्र सुगंधित हो जाता है देवघर में रूट काँवरिया पथ में इसे लगाया जा रहा है।
➧ इसके अलावा प्रदेश में रुद्राक्ष, हाथी कुंभी, सोला छाल और मेघ के पेड़ों पर रिसर्च किया जा रहा है।
➧ मेघ का पेड़ काफी संख्या में पाया जाता था, लेकिन इसकी संख्या घटती जा रही है। इसके छाल का उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाता है।
➧ सखुआ का पेड़, जो झारखंड का प्रमुख वृक्ष है। इससे पेड़ के आस-पास पौधों को प्राकृतिक रूप से जीव विविधता में सहयोग मिलता है। पर्यावरण के लिहाज से काफी बेहतर है। एशिया के सबसे घने जंगल सारंडा में काफी संख्या में पाया जाता है।
➧ विलुप्त प्राय होने वाले जीव-जंतु एवं पक्षियों की अनेक प्रजातियां पर्यावरण असंतुलन का कारण बन रही है पक्षियों में गिद्ध प्रमुख है।
➧ गिद्ध मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। इसलिए इन्हें प्राकृतिक सफाई कर्मी कहा जाता है।
➧ 9 प्रजातियां जातियां पाई जाती है, जिसमें से (IUCN) आईयूसीएन की सूची के अनुसार 3 प्रजातियां विलुप्त के कगार पर है।
झारखण्ड में गिध्दों की 3 प्रजातियाँ पायी जाती हैं।
➧ 1980 के दशक में इनकी संख्या हजारों में थी, परंतु पिछले 28 सालों में इनकी संख्या में 97% की कमी आई है।इनके विलुप्त का मुख्य कारण 'डाइक्लोफेनेक' दर्द निवारक दवा है।
➧ इनका प्रयोग पशुओं के इलाज में होता है। ये पशु जब मृतप्राय होते हैं तो इनके शरीर के अवशेषों को खा कर मर जाते हैं। गिद्धों की संख्या के कमी के दूसरे कारणों में प्रमुख है- पेड़ों की कटाई, जिस कारण घोंसले बर्बाद होते हैं और अगली पीढ़ी जन्म नहीं ले पाते हैं।
➧ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची- 1 में गिद्ध को संरक्षण प्राप्त है। इस एक्ट के अनुसार किसी भी तरह से गिद्ध का नुकसान पहुंचाना कानूनन जुर्म है।
➧ ऐसा करने पर कम-से-कम 3 से 7 साल की सजा या 25000 हज़ार रूपये जुर्माना या दोनों हो सकता है।
➧ डाइक्लोफेनेक दवा का इस्तेमाल भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है।
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