Ramgarh Vidroh
➧ हजारीबाग क्षेत्र में कंपनी को सबसे अधिक विरोध का सामना रामगढ़ राज्य की ओर से करना पड़ा।
➧ रामगढ़ का राजा मुकुंद सिंह शुरू से अंत तक अंग्रेजों का विरोध करता रहा।
➧ 25 अक्टूबर, 1772 को रामगढ़ राज्य पर दो दिशा की ओर से हमला कर दिया गया।
➧ छोटानागपुर खास की ओर से कैप्टेन जैकब कैमक और इवांस दूसरी ओर से तेज सिंह ने मिलकर आक्रमण किया।
➧ 27-28 अक्टूबर को दोनों की सेना रामगढ़ पहुंची। रामगढ़ राजा मुकुंद सिंह को भागना पड़ा कमजोर स्थिति होने के कारण ।
➧ 1774 ईस्वी में तेज सिंह को रामगढ़ का राजा घोषित किया गया।
➧ मुकुंद सिंह के निष्कासन एवं तेजसिंह को राजा बनाए जाने के बाद भी वहां की स्थिति सामान्य नहीं हुई।मुकुंद सिंह के अतिरिक्त उसके अनेक संबंधी भी अपनी खोई हुई शक्ति प्राप्त करने के लिए सक्रिय थे।
➧ सितंबर 1774 ईसवी में तेज सिंह की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उसका पुत्र पारसनाथ सिंह गद्दी पर बैठा।
➧ मुकुंद सिंह अपने समर्थकों के साथ उस पर हमला करने की तैयारी में लगा हुआ था, परंतु अंग्रेजों के कारण उसे सफलता नहीं मिल रही थी।
➧ 18 मार्च, 1778 ईस्वी को अंग्रेजी फौज ने मुकुंद सिंह की रानी सहित उसके सभी प्रमुख संबंधियों को पलामू में पकड़ लिया।
➧ 1778 ईसवी के अंत तक पूरे रामगढ़ राज्य में अशांति की स्थिति बनी रही।
➧ रामगढ़ राजा पारसनाथ सिंह बढ़ी हुई राजस्व की राशि ₹71,000 वार्षिक देने में सक्षम ना था। इसके बावजूद रामगढ़ के कलेक्टर ने राजस्व की राशि 1778 ईस्वी में ₹81,000 वार्षिक कर दी।
➧ मुकुंद सिंह के समर्थक ठाकुर रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में विद्रोही तत्व विद्रोह पर उतारू थे। रघुनाथ सिंह ने 4 परगनों पर कब्जा कर लिया वहां से पारसनाथ सिंह द्वारा नियुक्त जागीरदारों को खदेड़ दिया।
➧ विद्रोहियों के दमन के लिए कैप्टन एकरसन की बटालियन को बुलाना पड़ा। एकरसन और ले. डेनियल के संयुक्त प्रयास से रघुनाथ सिंह को उसके प्रमुख अनुयायियों के साथ बंदी बना लिया गया। रघुनाथ सिंह को चटगांव भेज दिया गया।
➧ रामगढ़ की सुरक्षा का जिम्मा कैप्टन क्रॉफर्ड को सौंप दिया गया।
➧ अंग्रेजी कंपनी के निरंतर बढ़ते शिकंजे तथा करों में बेतहाशा वृद्धि से रामगढ़ के राजा पारसनाथ अब स्वयं अंग्रेजों के चंगुल से निकलने का उपाय सोचने लगे।
➧ 1781 ईस्वी में उसने बनारस के विद्रोही राजा चेतसिंह को सहायता प्रदान की।
➧ राजा अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सालाना कर का कुछ भाग बचाकर अपने सैन्य शक्ति को मजबूत करने के अभियान में जुट गया।
➧ 1781 ईस्वी के अंत तक संपूर्ण रामगढ़ में विद्रोह की आग सुलगने लगी। विद्रोह की तीव्रता को देख रामगढ़ के कलेक्टर ने स्थिति को काबू में लाने के लिए सरकार से सैन्य सहायता की मांग की।
➧ 1782 ईस्वी तक रामगढ़ के अनेक क्षेत्र उजड़ गये और रैयत पलायन कर गये। स्थिति की भयावहता को देखते हुए उप कलेक्टर जी.डालमा ने सरकार से आग्रह किया कि रामगढ़ के राजा को राजस्व वसूली से मुक्त कर दिया जाए और राजस्व वसूली के लिए सीधा बंदोबस्त किया जाये।
➧ रामगढ़ के राजा द्वारा इस नयी व्यवस्था के पुरजोर विरोध के बावजूद डलास ने जागीरदारों के साथ खास बंदोबस्त कर राजा द्वारा उनकी जागीर को जब्त किये जाने पर रोक लगा दी। अर्थात रामगढ़ का राजा अब सिर्फ मुखौटा बन कर रह गया।
➧ 1776 ईस्वी में फौजदारी तथा 1799 ईस्वी में दीवानी अदालत की स्थापना से राजा की स्थिति और भी कमजोर हो गयी।
➧ स्थिति का लाभ उठाते हुए तमाड़ के जमींदारों ने रामगढ़ राज्य पर निरंतर हमले किये। राजा पूरी तरह अंग्रेजों पर आश्रित हो गया। यह स्थिति 19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक बनी रही।
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