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Tuesday, October 27, 2020

भूमिज विद्रोह 1832-33 (Bhumij Vidroh-1832-33)

भूमिज विद्रोह 1832-33 (Bhumij Vidroh-1833-33)


➤भूमिज विद्रोह का आरंभ 1832 ईसवी में गंगा नारायण के नेतृत्व में हुआ।  

इसका प्रभाव बीरभूम और सिंहभूम  के क्षेत्र में रहा। 

यह विद्रोह बीरभूम राजा, पुलिस अधिकारियों, मुंसिफ नामक दरोगा तथा अन्य दिकुओ के खिलाफ 
भूमिजो की शिकायतों की देन था। 


साथ ही, इसके पीछे अंग्रेजों की दमनकारी लगान व्यवस्था से उत्पन्न असंतोष भी काम कर रहा था।  

भूमिज विद्रोह की विधिवत शुरुआत 26 अप्रैल 1832 ईस्वी को वीरभूम परगाना के जमींदार के सौतेले 
भाई और दीवान माधव सिंह की हत्या के साथ हुई।  

यह हत्या गंगा नारायण सिंह के द्वारा की गई। 

गंगा नारायण के जमींदार का चचेरा भाई था। 

दीवान के रूप में माधव सिंह काफी बदनाम हो चुका था। 

उसने कई तरह के करों को लगाकर जनता को तबाह कर दिया था।  

माधव का सिंह के खिलाफ गांगा नारायण ने भूमिजो को एक अभूतपूर्व नेतृत्व प्रदान किया।  

माधव सिंह का अंत करने के पश्चात गंगा नारायण की टक्कर कंपनी के फौज के साथ हुई। 
कंपनी की फौज का नेतृत्व ब्रैंडन एवं लेटिनेंट  तिमर के हाथों में था। 

कोल  एवं हो जनजातियों ने इस विद्रोह में गंगा नारायण का खुलकर साथ दिया।  

7 फरवरी 1833  को खरसावां के ठाकुर चेतन सिंह के खिलाफ लड़ते हुए गंगा नारायण मारा गया।  

खरसावां के ठाकुर ने उसका सर काटकर अंग्रेजी अधिकारी कैप्टन विलकिंग्सन के पास भेज दिया। 

गंगा नारायण के मारे जाने से कैप्टन विलकिंग्सन ने राहत की सांस ली। 


यद्यपि इस विद्रोह में गंगा नारायण के अन्तः पराय हुई ,किन्तु इसने यह स्पष्ट कर दिया था कि जंगल में परिवर्तन की आवश्यकता है। 

कोल की ही भांति भूमिज विद्रोह के बाद के बाद भी कई प्रशासनिक परिवर्तन लाने हेतु अंग्रेज विवश हुए। 

1833 ईस्वी की रेगुलेशन XIII  के तहत शासन प्रणाली में व्यापक परिवर्तन किया गया है।  

राजस्व नीति में परिवर्तन हुआ एवं छोटानागपुर को दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी का एक भाग मान लिया गया। 
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