भूमिज विद्रोह 1832-33 (Bhumij Vidroh-1833-33)
➤भूमिज विद्रोह का आरंभ 1832 ईसवी में गंगा नारायण के नेतृत्व में हुआ।
➤इसका प्रभाव बीरभूम और सिंहभूम के क्षेत्र में रहा।
➤यह विद्रोह बीरभूम राजा, पुलिस अधिकारियों, मुंसिफ नामक दरोगा तथा अन्य दिकुओ के खिलाफ
भूमिजो की शिकायतों की देन था।
➤साथ ही, इसके पीछे अंग्रेजों की दमनकारी लगान व्यवस्था से उत्पन्न असंतोष भी काम कर रहा था।
➤भूमिज विद्रोह की विधिवत शुरुआत 26 अप्रैल 1832 ईस्वी को वीरभूम परगाना के जमींदार के सौतेले
भाई और दीवान माधव सिंह की हत्या के साथ हुई।
➤यह हत्या गंगा नारायण सिंह के द्वारा की गई।
➤गंगा नारायण के जमींदार का चचेरा भाई था।
➤दीवान के रूप में माधव सिंह काफी बदनाम हो चुका था।
➤उसने कई तरह के करों को लगाकर जनता को तबाह कर दिया था।
➤माधव का सिंह के खिलाफ गांगा नारायण ने भूमिजो को एक अभूतपूर्व नेतृत्व प्रदान किया।
➤माधव सिंह का अंत करने के पश्चात गंगा नारायण की टक्कर कंपनी के फौज के साथ हुई।
कंपनी की फौज का नेतृत्व ब्रैंडन एवं लेटिनेंट तिमर के हाथों में था।
➤कोल एवं हो जनजातियों ने इस विद्रोह में गंगा नारायण का खुलकर साथ दिया।
➤7 फरवरी 1833 को खरसावां के ठाकुर चेतन सिंह के खिलाफ लड़ते हुए गंगा नारायण मारा गया।
➤खरसावां के ठाकुर ने उसका सर काटकर अंग्रेजी अधिकारी कैप्टन विलकिंग्सन के पास भेज दिया।
➤गंगा नारायण के मारे जाने से कैप्टन विलकिंग्सन ने राहत की सांस ली।
➤यद्यपि इस विद्रोह में गंगा नारायण के अन्तः पराय हुई ,किन्तु इसने यह स्पष्ट कर दिया था कि जंगल में परिवर्तन की आवश्यकता है।
➤कोल की ही भांति भूमिज विद्रोह के बाद के बाद भी कई प्रशासनिक परिवर्तन लाने हेतु अंग्रेज विवश हुए।
➤1833 ईस्वी की रेगुलेशन XIII के तहत शासन प्रणाली में व्यापक परिवर्तन किया गया है।
➤राजस्व नीति में परिवर्तन हुआ एवं छोटानागपुर को दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी का एक भाग मान लिया गया।
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