झारखंड में वन नीति
(Jharkhand Me Van Niti)
➤1952 से 1988 के बीच वनों का इतना विनाश हुआ कि वनों और उनके उपयोग पर एक नई नीति बनाना आवश्यक हो गया।
➤पहले की वन नीतियों का केंद्र केवल राज्य का सृजन था।
➤1980 के दशक में स्पष्ट हो गया कि वनों का संरक्षण उनके अन्य कार्यों के लिए भी आवश्यक है, जैसे मृदा और जल व्यवस्थाओं के संरक्षण के लिए, जो पारितंत्र को सुरक्षित रखने में सहायक होते हैं।
➤इनमें स्थानीय निवासियों के लिए वनों से प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं के उपयोग की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
➤इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए 1988 ईस्वी में राष्ट्रीय वन नीति की घोषणा की गई।
➤भारत की राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुसार किसी प्रदेश के कुल क्षेत्रफल के 33 पॉइंट 33 प्रतिशत भाग पर वन का विस्तार होना चाहिए।
➤झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 29 पॉइंट 61 प्रतिशत भाग पर वन है।
➤राज्य में वन क्षेत्र को 33% से अधिक करने के लिए झारखंड सरकार ने वन नीति बनाई है।
1) प्रत्येक गांव में एक वन समिति होगी, जिसमें गांव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य होगा।
2) राज्य में 200 वन समितियों का गठन किया गया है।
3) ग्रामीणों की आवश्यकता अनुसार वृक्षारोपण किया जाएगा।
4) वन उत्पादों को सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीद की जाएगी।
5) वनों की सुरक्षा का भार ग्रामीण और वन विभाग दोनों के ऊपर होगा।
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