झारखण्ड में पंचायती राज व्यवस्था PART-4
(Panchayati Raj system in Jharkhand)
➤जिला परिषद
➤जिला परिषद पंचायती राज व्यवस्था का तृतीय एवं सर्वोच्च स्तर है।
➤जिला परिषद की स्थापना जिला स्तर पर होती है।
➤गठन
➤झारखंड में जिला का गठन जिला परिषद के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचित सदस्यों (प्रति 50000 की जनसंख्या पर एक सदस्य का चुनाव), जिला क्षेत्र से निर्वाचित सभी प्रमुखों, विधायकों (विधान सभा के सदस्य) एवं सांसदों (लोक सभा एवं राज्य सभा के सदस्य) से की जाती है।
➤जिला परिषद का प्रधान 'अध्यक्ष' कहलाता है।
➤ उसकी सहायता के लिए एक 'उपाध्यक्ष' होता है।
➤अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष के उम्मीदवार प्रत्यक्ष निर्वाचित सदस्यों में से होते हैं, तथा उन्हीं के मतों से बनाए जाते हैं।
➤ उप विकास आयुक्त (डिप्टी डेवलपमेंट कमिश्नर-डी0 डी0 सी0 ) जिला परिषद का पदेन सचिव होता है।
➤पदाधिकारी
➤ जिनका निर्वाचन जिला परिषद के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से करते हैं।
➤अध्यक्ष राज्य सरकार द्वारा भी पदच्युत किया जा सकता है।
➤अध्यक्ष जिला परिषद का प्रधान अधिकारी होता है।
➤ वह जिला परिषद की बैठक बुलाता है और उसकी अध्यक्षता करता है।
➤वह राज्य सरकार को जिला परिषद के कार्यों के संबंध में सूचित करता है तथा हर वर्ष जिला परिषद के सचिव के कार्यों का प्रतिवेदन जिला अधिकारी के पास भेजता है।
➤वह प्रखंड एवं पंचायत समिति के कार्यों पर भी निगरानी रखता है।
➤ अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उसके सभी दायित्वों का निर्वहन करता है।
➤सचिव उप विकास आयुक्त :- उप विकास आयुक्त जिला परिषद का पदेन सचिव होता है।
➤ वह अध्यक्ष के आदेश पर जिला परिषद की बैठक बुलाता है तथा सभा की कार्यवाही का प्रलेख रखता है।
➤वह जिला परिषद का प्रमुख परामर्शदाता होता है और सभी समितियों में समन्वय स्थापित करता है।
➤जिला परिषद के कार्य
➤जिला परिषद के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं।
1- परामर्शकारी कार्य :- जिले में विकास कार्यों और सरकार द्वारा जिला परिषद को सौपे गए कार्यों के क्रियान्वयन संबंधी मसलों पर सरकार को परामर्श देना।
2- वित्तीय कार्य :- पंचायत समितियों के बजटों का परीक्षण करना और उनको स्वीकृति देना तथा संघ व राज्य सरकार द्वारा आवंटित निधियों को पंचायत समितियों में वितरित करना।
3- समन्वय और पर्यवेक्षण कार्य :- जिले के प्रखंडों द्वारा तैयार विकास योजनाओं का समन्वय और पर्यवेक्षण करना।
4- नागरिक सुविधा संबंधी कार्य :- सड़कें, पुल, पुलिया, पार्क, जलापूर्ति और सर्वाजानिक भवन इत्यादि का निर्माण तथा उनका रख-रखाव करना।
➤आकाशवाणी से ग्रामीण प्रसारण व सामुदायिक केंद्रों की देखभाल करना।
➤स्थानीय प्राधिकरण से संबंधित आवश्यक सांख्यिकीय आंकड़ों का संग्रहं करना इत्यादि।
5- कल्याण सम्बन्धी कार्य :- हटो की स्थापना, मेले तथा त्यौहारों का आयोजन, पुस्तकालय, दवाखाना, सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार नियोजन केंद्र की स्थापना और उसका संचालन, अकाल और विपदा के समय राहत कार्य की व्यवस्था करना।
➤सभी स्तर के विद्यालयों तथा तकनीकी व औद्योगिक विद्यालयों की स्थापना, विस्तार, निरीक्षण और उनका रखरखाव सुनिश्चित करना।
6- विकास संबंधी कार्य :- पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों के कार्यों की देखभाल करना और प्रखंडों में विकास योजनाओं, परियोजनाओं तथा अन्य कार्यक्रमों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
➤जिला परिषद की आय के स्रोत
➤जिला परिषद की आय के तीन प्रमुख स्रोत है।
1- राज्य सरकार से प्राप्त सहायता अनुदान-निधि।
2- विकास कार्यों के लिए राज्य सरकार द्वारा आवंटित निधि तथा।
3- भूमिकार और अन्य उपकर स्थानीय करों में हिस्सा।
➤जिला परिषद जिला स्तर पर
➤सर्वप्रमुख अधिकारी :- अध्यक्ष / उपाध्यक्ष
➤सचिव :- उप विकास आयुक्त (डी0 डी0 सी0)।
➤सदस्य
➤निर्वाचित सदस्य :- प्रति 50 हजार की आबादी पर एक सदस्य का चुनाव।
➤पदेन सदस्य :- जिला स्तर से जिला क्षेत्र से निर्वाचित सभी प्रमुख।
➤सह सदस्य :- जिला क्षेत्र से निर्वाचित विधायक (विधानसभा के सदस्य) तथा जिला क्षेत्र से निर्वाचित संसद (लोक सभा एवं राज्य सभा के सदस्य)।
➤स्थाई समितियां
➤स्थाई समिति (अध्यक्ष-अध्यक्ष)
➤वित्त,अंकेक्षण व योजना समिति (अध्यक्ष-अध्यक्ष)
➤सामाजिक न्याय समिति (अध्यक्ष-उपाध्यक्ष)
➤शिक्षण एवं स्वास्थ्य समिति (अध्यक्ष-कोई एक सदस्य)
➤कृषि एवं उद्योग समिति (अध्यक्ष -कोई एक सदस्य)।
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