Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-2
➤धारा -11 :-भूघृत्तियों के कतिपय अंतरणों का रजिस्ट्रीकरण
➤किसी भूघृति या उसके भाग का अंतरण उत्तराधिकारी, विरासत, विक्रय, दान,या विनिमय द्वारा किया जाय तो अंतरिती को उस भूस्वामी के कार्यालय में रजिस्ट्रीकृत कराया जायेगा।
➤तथा इसमें उपबंधों में भूघृति के अंतरण की रजिस्ट्री की प्रक्रिया का वर्णन है।
➤धारा -12 :- भूघृति के अंतरण का रजिस्ट्रीकरण आदेशप्राप्त भू-स्वामी द्वारा इनकार करने की प्रक्रिया
➤यदि कोई भूस्वामी धारा-11 से जमीन की रजिस्ट्री करने से इनकार करता हो तो अंतरीति उपायुक्त के पास आवेदन कर सकेगा और उचित जांच के बाद उपायुक्त अंतरण रजिस्ट्री होने का आदेश दे सकता है।
➤धारा -13 :-भूघृति का विभाजन या लगान का विवरण
➤किसी भूघृति के विभाजन या विवरण की सूचना रजिस्ट्रीकृत डाक से भूस्वामी को भेज दिया गया हो तो उस भूमि का लगान भूस्वामी द्वारा देय होगा।
➤यदि भूस्वामी ऐसे विभाजन या वितरण के लगान पर आपत्ति करता है, तो इसके लिए उपायुक्त के पास आवेदन कर सकता है।
➤धारा -14 :-पुनर्ग्रहणीय भूघृति के पुनग्रहण पर विलंगमों का वातिलीकरण (खारिज)
➤कोई पुन: ग्रहण योग्य जमीन, जिनको जमीन दे दी गई हो, उसे पुन:ग्रहण की स्थिति आने पर, पुन:ग्रहित हो जाएगी।
➤निम्न परिस्थितियों में पट्टे पर दी गयी भूमि का पुन:ग्रहण नहीं किया जा सकेगा।
➤जहां निवासगृह, निर्माणशाला या अन्य स्थायी भवन निर्मित किया गया हो ।
➤जिस पर स्थाई उद्यान, बागान, नहर पूजास्थल या श्मशान या कब्रिस्तान स्थापित गया हो।
➤और जहां किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्राधिकृत खदान बनाया गया हो।
➤कोई भी मुंडारी-खुंटकट्टीदारी काश्तकारी की कोई भुईहरी भूघृति हो तो पुनः ग्रहण पाने वाले का पुनः ग्रहण करने का अधिकार नहीं होगा।
➤धारा -15 :- अध्याय 11 से किसी जमीन की रजिस्ट्री होने पर भी भूस्वामी उस पुन: ग्रहणीय जमीन को वापस ले सकेगा।
➤अध्याय 4 रैयत (धारा-16 से 36 तक)
➤धारा -16 :- विद्यमान अधिभोगाधिकार का बना रहना।
➤यदि किसी रैयत को इस अधिनियम के शुरू होने के पहले कानूनी रूप से किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा भूमि में अधिभोगाधिकार प्राप्त हो।
➤तो इस बात के होते हुए भी कि उसने 12 वर्षों तक भूमि पर ना तो खेती की है और ना ही उसे धारित किया है, भूमि पर उसका अधिभोगाधिकार समाप्त नहीं होगा।
➤धारा -17 :- बंदोबस्त रैयत की परिभाषा
➤इस धारा के अंतर्गत बंदोबस्त रैयत को परिभाषित किया गया है इसके अंतर्गत :-
➤वह व्यक्ति जिसने इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात किसी ग्राम में स्थित भूमि को पूर्णत:या अंशत: पट्टे पर या रैयत के रूप में धारित किया हो।
➤12 वर्ष की अवधि समाप्त होने पर भी उस ग्राम का बंदोबस्त रैयत समझा जाएगा।
➤कोई व्यक्ति जब तक रैयत के रूप में भूमि धारण करता है, वह रैयत की अवधि के 3 वर्ष पश्चात तक ग्राम का बंदोबस्त रैयत समझा जाएगा।
➤यदि कोई रैयत धारा-74 के अधीन या बाद के जरिए भूमि का कब्जा वापस लेता है, तो जमीन के 3 वर्ष से अधिक समय तक का वेकब्जा रहने के बावजूद वह बंदोबस्त समझा जाएगा।
➤धारा -18 :- भुईहरों तथा मुंडारी-खुंटकट्टीदारों का बंदोबस्त रैयत होना
➤इस धारा में भुईहरों तथा मुंडारी-खुंटकट्टीदारों के बंदोबस्त रैयत होने से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है इसके अंतर्गत :-
(क) यदि किसी ग्राम में मंझिहस या बढखेता के रूप में ज्ञात भूमि के अतिरिक्त कोई भूमि 'छोटानागपुर भू-घृति अधिनियम, 1869' के तहत तैयार रजिस्टर में शामिल हो और वहां किसी भुईहर परिवार के सदस्य लगातार 12 वर्षों तक भूमि धारण करते आए हों, तो वे बंदोबस्त रैयत समझे जाएंगे।
(ख) किसी गांव की ऐसी भूमि जो मुंडारी-खुंटकट्टीदारों काश्तकारी का भाग ना हो, फिर भी इस अधिनियम या इसके प्रारंभ से पहले प्रवृत किसी विधि के अधीन किसी अभिलेख में मुंडारी-खुंटकट्टीदारों के रूप में दर्ज कर दी गई हो, ऐसे ग्राम के मुंडारी-खुंटकट्टीदारी काश्तकारी परिवार के सभी पुरुष सदस्य जो उस गांव में लगातार 12 वर्षों से भूमि धारण करते हो, बंदोबस्त रैयत समझा जायेगें।
➤धारा -19 :- बंदोबस्त रैयतों के अधिभोगाधिकार
➤वैसे व्यक्ति जो धारा-17 या धारा-18 के अंतर्गत किसी गांव का बंदोबस्त रैयत हो, उस गांव में उसके द्वारा रैयत के रूप में धारित सभी भूमि में अधिभोगाधिकार होगा।
➤धारा -20 :-जब किसी अधिभोग जोत का भूस्वामी रैयत के सम्पूर्ण हित अंतरण में अधिभोगाधिकार के अर्जन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
➤धारा -21 :- भूमि के उपयोग के संबंध में अधिभोगी रैयत के अधिकार
➤कोई रैयत अपनी अधिकारित भूमि को स्थानीय नीति से कश्तकारी के लिए उपयोग में ला सकता है।
➤वह अपने भूमि का प्रयोग कृषि कार्य हेतु, ईट और खपड़ों के विनिर्माण हेतु, पेयजल, कृषि कार्य या मत्स्य पालन हेतु, कुआं की खुदाई या बांध या आहारों के निर्माण हेतु तथा व्यापार व कुटीर उद्योगों के संचालन के लिए भवन बनाने के संदर्भ में कर सकता है।
➤धारा -22 :- बेदखली
➤अगर कोई अधिभोगी रैयत ,अपनी जोत में उस समय के सामाजिक रीति से खेती करते आया हो तो उसे किसी विनिर्दिष्ट आधारों के सिवाय बेदखल नहीं किया जाएगा।
➤धारा -23 :- अधिभोगी जोतों के कतिपय अंतरणों का रजिस्ट्रीकरण
➤यदि कोई अधिभोग जोत विक्रय, दान, वसीयत या विनिमय द्वारा अंतरित कर दिया जाए तो अंतरीति उसको भूस्वामी के कार्यालय में रजिस्ट्री करवाएगा।
➤धारा -24 से 36 :- धारा-24 से धारा-36 तक लगान का निर्धारण, जोत के बंटवारा के बाद जमीन के लगान का निर्धारण, लगान वृद्धि या कमी का कारण, वृद्धि या कमी करने का उपायुक्त का अधिकार आदि के बारे में वर्णन किया गया है।
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