Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-4
असुर जनजाति
➧ असुर जनजाति झारखंड की प्राचीनतम एवं आदिम जनजाति है जिनका प्रजातीय संबंध प्रोटो और ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है।
➧ इस जनजाति को 'पूर्वादेवी' भी कहा जाता है।
➧ इस जनजाति को सिंधु घाटी सभ्यता का प्रतिष्ठापक माना जाता है।
➧ झारखंड में इस जनजाति का प्रवेश मध्यप्रदेश में से हुआ था।
➧ इस जनजाति को 'पूर्वादेवी' भी कहा जाता है।
➧ इस जनजाति को सिंधु घाटी सभ्यता का प्रतिष्ठापक माना जाता है।
➧ झारखंड में इस जनजाति का प्रवेश मध्यप्रदेश में से हुआ था।
➧ इनकी भाषा को मालेय भाषा भी कहा जाता है।
➧ ऋग्वेद में इनका वर्णन निम्न नामों से किया जाता है :-
अनासह: चिपटी नाक वाले
अव्रत : भिन्न आचरण करने वाले
मृध: वाच: अस्पष्ट बोलने वाले
सुदृढ़ - लौह दुर्ग अथवा अटूट दुर्ग निवासी
➧ झारखंड में इनका संकेन्द्रण मुख्यत: लातेहार (नेतरहाट के पाट क्षेत्र में सबसे अधिक) गुमला तथा लोहरदगा जिला में है।
समाज एवं संस्कृति
➧ असुर गोत्र को पारस कहते हैं।
➧ इनके युवागृह को 'गीतिओड़ा' कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में बहिगोत्रीय विवाह का प्रचलन पाया जाता है।
➧ असुर जनजाति के प्रमुख गोत्र केरकेट्टा, बघना, बेंग, अईद, बरवा।
➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'डाली टका' कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में 'इदी मी' नामक एक विशेष परंपरा है, जिसके तहत बिना विवाह किए लड़का-लड़की पति- पत्नी की भांति साथ में रहते हैं। परंतु इन्हें कभी-न-कभी आपस में विवाह करना अनिवार्य होता है।
➧ इनका परिवार मातृसत्तात्मक होता है तथा इसमें संयुक्त परिवार की प्रणाली पायी जाती है।
➧ इस जनजाति में कुंवारे लड़के या लड़कियों द्वारा केले का पौधा लगाना वर्जित होता है।
➧ इस जनजाति में गर्भवती स्त्री द्वारा ग्रहण देखना निषिद्ध है।
➧ इस जनजाति में दिन के भोजन को 'लोलोघेटू जोमेकू' तथा रात के भोजन को 'छोटू जोमेकु' कहा जाता है।
➧ हड़िया इनका प्रमुख पेय है जिसे 'बोथा' या 'झरनुई' भी कहा जाता है।
➧ इनके प्रमुख त्योहार सरहुल, सोहराई , कथडेली, सरही, कुटसी (लोहा गलाने के उद्योग की उन्नति हेतु) , नवाखानी आदि है।
➧ इनकी संस्कृति को 'मय संस्कृति' कहा जाता है।
➧ इनके नृत्य स्थल को अखरा कहा जाता है।
आर्थिक व्यवस्था
➧ इस जनजाति का प्रमुख पेशा परंपरागत रूप से लोहा गलाना है।
धार्मिक व्यवस्था
➧ इस जनजाति के सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा है तथा इनके धार्मिक प्रधान को बैगा कहा जाता है।
➧ बैगा का सहायक 'सुबारी' कहलाता है
➧ इस जनजाति में जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को माटी कहा जाता है।
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