Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-7
परहिया जनजाति
➧ परहिया जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड प्रजातीय समूह से है।
➧ रिजले ने इस जनजाति को लघु द्रविड़ जनजाति कहा है।
➧ ये मूलत: पलामू प्रमंडल में निवास करते हैं।
➧ इसके अतिरिक्त रांची, चतरा, हजारीबाग और संथाल परगना क्षेत्र में भी यह निवास करते हैं।
समाज एवं संस्कृति
➧ इस जनजाति में नातेदारी प्रथा बिल्कुल हिंदुओं की तरह है।
➧ इस जनजाति में नातेदारी की व्यवस्था 'धैयानिया' तथा 'सनाही' में विभाजित होता है।
➧ इस जनजाति में गोत्र नहीं पाया जाता है।
➧ इस जनजाति में साक्षी प्रथा का प्रचलन पाया जाता है।
➧ इस जनजाति में मां के वंशज को प्राथमिकता दी जाती है।
➧ इस जनजाति में 'आयोजित विवाह' सबसे अधिक प्रचलित है।
➧ इनके घर को 'सासन' के नाम से जाना जाता है तथा इनके द्वारा निर्मित झोपड़ीनुमा घर को 'झाला' कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में वधु मूल्य को 'डाली' कहा जाता है।
➧ इसमें परिवार की गिनती क़ुराला (चूल्हे) से होती है।
➧ इनकी पंचायत को भैयारी या जातिगोढ़ तथा ग्राम पंचायत का मुखिया महतो/प्रधान कहलाता है।
➧ इनका प्रमुख त्योहार सरहुल, करमा, धरती पूजा, सोहराय आदि हैं।
आर्थिक व्यवस्था
➧ इस जनजाति का मुख्य पेशा बांस की टोकरी बनाना तथा ढोल बनाना है।
➧ पारंपरिक रूप से यह जनजाति स्थानांतरणशील कृषि करती थी जिससे 'बियोड़ा' या 'झूम' कहा जाता है।
धार्मिक व्यवस्था
➧ इनके सर्वाधिक प्रमुख देवता 'धरती' है।
➧ इस जनजाति में 'मुआ पूजा' (पूर्वजों की पूजा) का सबसे अधिक महत्व है।
➧ इस जनजाति में अलौकिक शक्तियों पर अत्यधिक बल दिया जाता है।
➧ इनके धार्मिक प्रधान को 'दिहुरी' कहा जाता है।
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