Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-6
कोरवा जनजाति
➧ इस जनजाति कोलेरियन जनजाति समूह का जनक माना जाता है।
➧ यह जनजाति प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो आस्ट्रोलॉयड समूह से तथा भाषायी से ऑस्ट्रो-एशियाटिक समूह से सम्बंधित हैं।
➧ इन्हें झारखंड सरकार द्वारा शिकारी-संग्रहकर्ता माना जाता है।
➧ यह जनजाति मूलत: पलामू प्रमंडल में पायी जाती है तथा झारखंड में इनका आगमन मध्यप्रदेश में हुआ था।
सामाजिक एवं संस्कृति
➧ इनकी दो उपजातियां पहाड़ी कोरवा (पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले) तथा डीहा/डिहारिया कोरवा (नीचे गाँव में रहने वाले) हैं।
➧ इस जनजाति में 6 गोत्र पाए जाते हैं। जो हटरटियें, खरपो, सुइया, कासी, कोकट तथा बचुंग है।
➧ इस जनजाति में एकल विवाह का प्रचलन है तथा सम गोत्र विवाह निषिद्ध है।
➧ इस जनजाति में चढ़के विवाह में कन्या के यहां तथा डोला विवाह में वर के यहां विवाह होता है।
➧ इनका प्रमुख त्यौहार करमा है।
➧ इस जनजाति में सर्प पूजा का विशेष महत्व है।
➧ इस जनजाति की पंचायत को मायरी कहा जाता है।
आर्थिक व्यवस्था
➧ यह जनजाति की कृषि, शिकार, पशुपालन, शिल्प निर्माण, मजदूरी, आदि आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं।
➧ इस जनजाति में स्थानांतरणशील कृषि को 'बियाेड़ा' कहा जाता है।
धार्मिक व्यवस्था
➧ इसके प्रमुख देवता सिंगबोंगा, ग्रामरक्षक देवता 'गमेलह' तथा पशु रक्षक देवता 'रक्सेल' है।
➧ इनके पुजारी को बैगा कहा जाता है।
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