Jharkhand Itihas Se Jude Aitihasik Srot
➧ किसी भी क्षेत्र के इतिहास एवं संस्कृति जानने का मुख्य साधन ऐतिहासिक स्रोत होते हैं।
➧ ऐतिहासिक स्रोतों को दो भागों में वर्गीकृत करते हैं
(I) पुरातात्विक स्रोत :- इसके के अंतर्गत उपकरण, हथियार, अभिलेख, शिलालेख, चित्रकला, सिक्के, स्थापत्य और मूर्तियों जैसे साधन आते हैं।
(II) साहित्यिक स्रोत :- इसके अंतर्गत समकालीन धार्मिक एवं धर्मेत्तर में साहित्यों के विवरण शामिल किये जाते हैं।
जिनका वर्णन निम्नवत है :-
पुरातात्विक सामग्री
(i) सिंहभूम : यहां से 1 लाख ईसा पूर्व के पाषाण उपकरण एवं औजार प्राप्त हुए हैं।
(ii) झरिया : यहां से पुरापाषाण कालीन पत्थर की कुल्हाड़ी एवं भाला जैसे औजार मिले हैं।
(iii) बोकारो : यहां से पुरापाषाण कालीन हस्त कुठार मिला है।
(iv) हजारीबाग : यहां से पूरापाषाण कालीन हस्त कुठार एवं खुरचनी अवशेष मिले हैं।
(v) चक्रधरपुर : यहां से नवपाषाण कालीन चाकूनुमा धारदार पत्थर मिला है।
(vi) बारूडीह : यहां से पॉलिशदार प्रस्तर की कुल्हाड़ी, कुदाल, छेनी जैसे औजार मिले हैं।
(vii) बसिया : गुमला के इस स्थान से तांबे की कुल्हाड़ी मिली है।
(viii) बूढ़ाडीह : तमाड़ के निकट इस स्थान से सुंदर कुलहाड़ा प्राप्त हुआ है।
अभिलेख एवं शिलालेख
(i) अशोक का 13वाँ शिलालेख : इस शिलालेख में झारखंड को आटविक क्षेत्र कहकर वर्णित किया गया है।
(ii) समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति :- इस अभिलेख में झारखंड का उल्लेख मुरुण्ड देश के रूप में किया गया है।
(iii) महेंद्रपाल का इटखोरी शिलालेख :- हजारीबाग में स्थित यह अभिलेख पाल वंश के प्रभाव को दर्शाता है।
(iv) ताम्रपत्र अभिलेख :- यह 13वीं सदी का है तथा इसका संबंध उड़ीसा के शासकों से है। इसी शिलालेख में पहली बार छोटानागपुर क्षेत्र के लिए झारखंड शब्द प्रयोग में लाया गया ।
(v) कवि गंगाधर का प्रस्तर अभिलेख :- यह धनबाद के गोविंदपुर में स्थित है तथा इस अभिलेख में धनबाद के मान राजवंश की चर्चा मिलती है।
(vi) गहड़वाल शासकों का शिलालेख :- यह पलामू क्षेत्र से प्राप्त हुआ है तथा मान राजा से संबंधित है।
(vii) हापामुनी मंदिर के अभिलेख :- गुमला के घाघरा में स्थित इस मंदिर के कुछ हिस्सों पर भी ऐतिहासिक वर्णन मिलता है।
(viii) बोड़ेया मंदिर अभिलेख :- रांची के बोड़ेया गांव में 1727 ईस्वी में निर्मित इस मंदिर के दीवारों पर भी ऐतिहासिक वर्णन प्राप्त होते हैं।
चित्रकला
(i) हजारीबाग के इस्को गांव से प्रागैतिहासिक काल की कई चित्रें प्राप्त होती है, जैसे:- आदिमानव का चित्र, भूल भुलैया जैसी आकृति आदि।
(ii) गढ़वा जिले के भवनाथपुर से भी प्रागैतिहासिक आखेट के चित्र मिले हैं, जिसकी तुलना सिंधु सभ्यता के पेंटिंग से की जा रही है।
स्थापत्य एवं मूर्तियां
(i) पारसनाथ पहाड़ी :- गिरिडीह जिले में स्थित इस पहाड़ी पर कई जैन तीर्थकर की मूर्तियां और मंदिर निर्मित है।
(ii) बाबूसराय :- सिंहभूम स्थित इस स्थान से सातवीं-आठवीं शताब्दी के कई हिंदू देवी, देवताओं और जैन तीर्थकरों की मूर्तियां प्राप्त होती हैं।
(iii) दुमदूमा :- हजारीबाग के इस स्थान से पालकालीन मूर्तियां मिले हैं।
(iv) खुखरागढ़ :- रांची के बेड़ो प्रखंड में स्थित इस स्थान से 14वीं शताब्दी के मिट्टी के बर्तन एवं ईटों द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष मिले हैं।
(v) प्रतापपुर :- चतरा जिले में स्थित इस स्थान से मुगलकालीन कुंपा किला के अवशेष मिले हैं।
(v) कोलुआ पहाड़ :- हंटरगंज स्थित इस स्थान से एक मध्यकालीन दुर्ग का अवशेष मिलता है जिसमें हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म की मूर्तियां भी प्राप्त हुई है।
सिक्के
(i) रांची : यहां से कुषाणकालीन सिक्के मिले हैं।
(ii) सिंहभूम : यहां से रोमन सम्राट के सिक्के मिले हैं।
(iii) चाईबासा : यहां से इंडो सिथियन राजाओं के सिक्के मिले हैं।
साहित्य स्रोत
(i) प्राचीन कालीन : -प्राचीन काल में ऋग्वेद, अर्थवेद, ऐतरेय ब्राह्मण, वायु पुराण, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, महाभारत, टॉलमी, फाह्यान, व्हेनसांग, राजपूत कालीन संस्कृति साहित्य में झारखंड की सभ्यता संस्कृति का वर्णन प्राप्त होता है।
(ii) मध्यकालीन :- इस काल में कबीर और मलिक मोहम्मद जायसी के रचनाओं में झारखंड का वर्णन है। इसके अलावे अफ्रीफ की शम्म-ए-सिराज, सलीमुल्ला की तारीख-ए-फिरोजशाही, गुलाम हुसैन की तारीख-ए-बांग्ला, जहांगीर की आत्मकथा सियार-उल-मुतखरीन, शाहबाज खाँ की तुजुक-ए-जहाँगीरी, अब्दुल की मथिरउल-उमरा एवं मिर्जा नाथ बहारिस्तान-ए-गैबो आदि रचनाएं झारखण्ड की समाजिक-सांस्कृतिक इतिहास का वर्णन प्रस्तुत करते हैं।
(iii) आधुनिक काल :- इस काल में डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर, डाल्टन, जैसे अधिकारियों के लेख मिश्नरी संस्थाओं के अभिलेखागार, विलियम इरविन व जॉन बैपटिस्ट विदेशी यात्रियों के विवरण इतिहास जानने के मुख्य स्रोत हैं।
महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल
स्थान जिला अवशेष
इस्को हजारीबाग विशाल पर्वत पर आदि मानव द्वारा निर्मित चित्र, शैल चित्र दीर्घा, भूल-भुलैया आकृति।
भवनाथपुर गढ़वा प्रागैतिहासिक आखेट का चित्र (शिकार का चित्र), जिसमें हिरण, भैंसा, आदि पशु है, प्राकृतिक गुफा आदि।
पलामू पलामू पाषाण काल के तीनों चरणों के पाषाण उपकरण मिलते हैं।
बारूडीह सिंहभूम हस्त-निर्मित मृदभांड, कुल्हाड़ी, पत्थर का रिंग।
बानाघाट सिंहभूम नवपाषाण कालीन पत्थर, मृदभांड।
नामकुम रांची तांबे एवं लोहे के औजार तथा बाण के फलक।
लोहरदगा लोहरदगा कांसे का प्याला ।
मुरद रांची तांबे की सिकड़ी, कांसे की अंगूठी।
लूपगढ़ी - प्राचीन कब्र के अवशेष ।
बारहगंडा हज़ारीबाग तांबे की खान।
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