Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-5
बिरजिया जनजाति
➧ बिरजिया जनजाति सदान समुदाय की आदिम जनजाति हैं, जिनका प्रजातीय संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है।
➧ इस जनजाति के लोग स्वयं को पुंडरीक नाग के वंशज मानते हैं।
➧ इस जनजाति को असुर जनजाति का हिस्सा माना जाता है।
➧ झारखंड के लातेहार, गुमला और लोहरदगा जिले में इस जनजाति का सबसे अधिक संकेन्द्रण है।
➧ बिरजिया शब्द का अर्थ 'जंगल की मछली' (बिरहोर का अर्थ है-जंगल का आदमी) होता है।
समाज एवं संस्कृति
➧ इनका परिवार पितृसत्तात्मक पितृवंशीय होता है।
➧ यह जनजाति सिंदुरिया तथा तेलिया नामक वर्गों में विभाजित है।
➧ विवाह के दौरान 'सिंदुरिया' द्वारा सिंदूर का तथा 'तेलिया' द्वारा तेल का उपयोग किया जाता है।
➧ तेलिया वर्ग पुनः दूध बिरजिया तथा रस बिरजिया नामक उपवर्गों में विभाजित हैं। दूध बिरजिया गाय का दूध पीते हैं व मांस नहीं खाते हैं जबकि रस बिरजिया दूध पीने के साथ-साथ मांस भी खाते हैं।
➧ इस जनजाति में बहु विवाह की प्रथा पायी जाती है।
➧ इस जनजाति में सुबह के खाना को 'लुक़मा', दोपहर के भोजन को 'बियारी' तथा रात के खाने को 'कलेबा' कहा जाता है।
➧ इन के प्रमुख त्यौहार सरहुल, सोहराई, आषाढ़ी पूजा, करम, फगुआ आदि हैं।
➧ इनके पंचायत का प्रमुख बैगा कहलाता है।
आर्थिक व्यवस्था
➧ इनका प्रमुख पेशा कृषि कार्य है।
➧ पाट क्षेत्र में रहने वाले बिरजिया स्थानांतरणशील कृषि करते हैं।
धार्मिक व्यवस्था
➧ इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा, मरांग बुरु आदि हैं।
0 comments:
Post a Comment