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Sunday, June 6, 2021

Jharkhand Ke Adivasi (झारखंड के आदिवासी)

Jharkhand Ke Adivasi 

➧ आदिवासी / जनजातीय जनसंख्या यहां के मूल निवासी और उसी अर्थ में 'आदिवासी' कहे जाते हैं किंतु इनका जातिगत इतिहास परंपरा और परंपरागत कथा कहानियों के अर्थ तथा गीतों में छिपे भाव स्पष्ट करते हैं कि ये लोग निश्चय ही कहीं बाहर से आकर इस धरती पर बसे हैं

झारखंड के आदिवासी

➧ यह क्षेत्र पूर्व पाषाण काल और पाषाण काल में भी बसा हुआ था इसका प्रमाण मिलता है खुदाई में पाए गए उस काल के उपकरणों व हथियारों से तथा सिक्कों से जो प्रमाणित करते हैं कि कोई अत्यंत सभ्य प्रजाति यहां कोलारियन जनजातियों के आने के पहले निवास करती थी

➧ कोलारियन जनजातियों के इस पठारी भू-खण्ड में प्रवेश के पहले जो प्रजाति यहां रहती थी उनके बारे में कुछ अधिक कहना मुश्किल है परंतु यह कहा जा सकता है कि वे लोग लोहा गलाकर काम करना जानते थे तथा अन्य धातुओं जैसे :- तांबा , पीतल का भी प्रयोग करते थे

➧ उनकी कला विकसित थी तथा एक निश्चित अर्थव्यवस्था थी वे किसी स्थायी गांव में रहते थे जो किसी नदी के किनारे बसा हुआ होता था वर्तमान लोहरदगा जिले में पाट क्षेत्रों में रहने वाले असुरों को उन्हीं लोगों की अवशेष  संख्या माना जाता है इन्हीं असुरों को हराकर या उन्हें जीतकर मुंडाओं ने अपना अधिपत्य इस पठारी भू-खंड पर सबसे पहले जमाया था 

➧ वर्तमान में जितनी जनजातियां झारखंड क्षेत्र में है उनमें असुर और मुंडा निश्चित तौर पर आरंभिक वाशिन्दे हैं मुंडारी लोक कथाओं में लगातार प्रव्रजन की पुष्टि होती है ऐसा उल्लेख है कि जब भारत में आर्यों का आगमन हुआ उसे काल में यहां जिन जातियों का अधिपत्य था वे वर्तमान मुंडा जनजाति के संभवतः पूर्वज थे

➧ आर्यों द्वारा परास्त होकर मुंडाओं ने गंगा का अनुसरण करते हुए पूर्व की ओर आगे बढ़ना जारी रखा आर्यों का विस्तार होता गया और मुंडाओं की सुरक्षात्मक प्रवृति स्वयं को सिकुड़ती गयी

➧ यह लंबे समय तक चलता रहा। आर्यों और गैर आर्यों के बीच युद्ध की परंपरा ऋग्वेद काल से महाभारत काल तक लगभग 4000 वर्षों तक चलती रही

मुख्य बिंदु झारखंड की आदिवासी 

(i) भारतीय राष्ट्रीयता की आत्मा जिन विभिन्न सामाजिक तत्वों पर आधारित है, उनमें सर्वदेशीय प्रमुख तत्वों के अतिरिक्त झारखंड का एक विशिष्ट तत्व है - जनजाति सभ्यता एवं संस्कृति 

(ii) झारखंड की पहचान जनजातियों की सांस्कृतिक विशिष्टता का परिणाम है

(iii) पुरापाषाण काल से ही झारखंड जनजातियों का प्रमुख अधिवास स्थल रहा है

(iv) झारखंड की अनेक जनजातियों का उल्लेख हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है 

(v) झारखंड की जनजातियों को आदिवासी, आदिम जाति, वनवासी, गिरिजन, सहित अन्य कई नामों से पुकारा जाता है, किंतु आदिवासी शब्द जिसका शाब्दिक अर्थ आदिकाल से रहने वाले लोग होता है, सबसे अधिक प्रचलित है 

(vi) झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियां पाई जाती है जो संविधान के अनुच्छेद- 342 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित है 

(vii) झारखंड में 24 जनजातियां प्रमुख जनजातियां की श्रेणी में आती है, जबकि अन्य 8 (बिरहोर, कोरवा, असुर , परहिया, बिरजिया, सौरिया पहाड़िया, मॉल पहाड़िया, तथा सबर ) को आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा गया है

➧ 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनजातियों की कुल जनसंख्या का प्रतिशत 26 पॉइंट 2 है इसमें आदिम जनजातियों का प्रतिशत 0.72 प्रतिशत है

➧ आदिम जनजातियां, अनुसूचित जनजातियों के अंतर्गत आने वाले वैसे जनजातियां है, जिनकी अर्थव्यवस्था कृषि पूर्वकालीन है, यानी जो अपना जीवनयापन इन दिनों भी आखेट तथा कंद-मूल संग्रह करने के साथ-साथ झूम खेती (स्थानांतरित कृषि) से करते हैं

 यहां की कुल जनजातियां आबादी का 92 पॉइंट 86 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में और 7.14% आबादी शहरों में निवास करती हैं

प्रजातीय तत्वों के आधार पर

(i)  झारखंड की सभी जनजातियों को 'प्रोटो-आस्ट्रोलॉयड' वर्ग में रखा गया है

(ii) ग्रियर्सन ने झारखंड क्षेत्र की जनजातीय भाषाओं को आस्ट्रिक (मुंडा भाषा) और द्रविड़ियन समूहों में बांटा है

(iii) अधिकांश जनजातियां भाषाएं आस्ट्रिक समूह की है सिर्फ उरांव जनजाति को 'कुड़ुख' भाषा और माल पहाड़िया एवं सौरिया पहाड़िया की मालतो भाषा द्रविड़ समूह की मानी जाती है

(iv) झारखंड की जनजातियां श्रीलंका की बेड्डा तथा ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों से काफी हद तक मिलती-जुलती है

समाज और संस्कृति 

(i) झारखंड की प्रत्येक जनजाति के अपने-अपने धार्मिक कर्मकांड, सामाजिक, आचार-विचार, विधि-विधान, परिवार-गोत्र, जन्म- मृत्यु, संस्कार आदि होते हैं, जो अन्य जनजातियों से उनकी अलग पहचान तय करते हैं

(ii) जनजातियां गांव में कुछ विशिष्ट संस्थाएं होती हैं, जो इनकी संस्कृति को विलक्षणता प्रदान करती है गांव के बीच में 'अखड़ा' (नाच का मैदान एवं पंचायत स्थल) होता है गांव में सरना (पूजा स्थल) भी होता है

(iii) जनजातियां गांव की एक अन्य प्रमुख विशेषता युवागृह (शिक्षण-प्रशिक्षण संस्था) है उरांव जनजाति में इसे घुमकुड़िया  और मुंडा, असुर,  कोरा जनजातियों में गितिओड़ा के नाम से जाना जाता है

(iv) जनजातियों में गोत्र को किली, पारी, कुंदा आदि के नामों से जाना जाता है 

(v) जनजातीय परिवार प्राय: एकल होते हैं संयुक्त परिवार बहुत कम पाए जाते हैं

(vi) झारखंड का जनजातीय समाज पितृसत्तात्मक है 

(vii) उत्तराधिकार पुरुष पंक्ति में चलता है पिता की संपत्ति में पुत्र को समान हिस्सा मिलता है, उसमें लड़की का हक नहीं होता

(viii) जनजातीयसमाज में पुरुष-महिला का सम्मानजनक स्थान है इनका समाज लिंग-भेद की इजाजत नहीं देता

विवाह संस्कार परम्परा

(i) जनजातीय परिवार साधारणत: एक विवाही होता है, लेकिन विशेष परिस्थिति में दूसरी-तीसरी पत्नी रखने की मान्यता है 

(ii) बाल विवाह की प्रथा प्रया: नहीं है दहेज प्रथा भी नहीं है, बल्कि 'वधू मूल्य' की परंपरा है 

(iii) वधु-मूल्य विभिन्न जातियों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है  जैसे :- 'पोन' (संथाल, हो, करमाली, सौरिया पहाड़िया) 'गोनोंग' (मुंडा) 'पोटे' (सबर),  'डाली' (किसान, परहिया), 'हरजी' (बनजारा), 'सुकदम'(कवर) आदि  

(iv) विवाह के पूर्व सगाई का रस्म केवल बनजारा जनजाति के लोग करते हैं तथा दहेज लेते और वधू-मूल्य देते हैं

(v) वैवाहिक रस्म-रिवाज में सिंदूर लगाने की प्रथा प्राय: सभी जनजातियों में है केवल खोंड जनजाति में जयमाला का रिवाज है

 (vi) जनजातियों में विवाह के रस्म पुजारी, यथा पाहन, दउरी, नाये आदि द्वारा संपन्न कराए जाते हैं कुछ जनजातियों में विवाह ब्राह्मण कराते हैं

अर्थव्यवस्था

➧ कृषि जनजातीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार है, किंतु जीवकोपार्जन के अन्य साधन जैसे:- वनोवत्पाद संग्रह, शिकार करना, शिल्पकारी, पशुपालन और मजदूरी को भी अपनाया जाता है

➧ जनजातियों का प्राचीन धर्म सरना धर्म है इसमें प्रकृति पूजा प्रमुख है

➧ इनके अधिकांश पर्व कृषि और प्रकृति से जुड़े होते हैं सरहुल, करमा और सोहराय यहां के मुख्य पर्व है

धार्मिक व्यवस्था

➧ अधिकांश जनजातियों के सर्वोच्च देवता सूर्य है, जिससे संथाल, मुंडा, असुर, भूमिज आदि सिंगबोंगा, हो सिंगी, माल पहाड़िया बेरु, महली सुरजी देवी, सबर यूडिंग सूम, खोंड बेलापुन  नाम से पुकारते हैं 

➧ उरांव अपने सर्वोच्च देवता को धर्मेश और सौरिया पहाड़ियां बोड़ो गोसाईं, गोंड बुढादेव, बिंझिया विध्यवासिनी देवी, बंजारा बंजारा देवी, गोड़ैत पुरबिया, बिरहोर वीर, बूथड़ी पोलाठाकुर, खड़िया गिरिंग, खरवार मुचुकरनी,  भूमिज गोराई ठाकुर, लोहरा विश्वकर्मा तथा परहिया धरती कहते हैं

➧ जनजातियों का अपना धार्मिक विशेषज्ञ (पुजारी) होता है जैसे:- पाहन (मुंडा , उरांव आदि) में बैगा (खरवार, खड़िया, असुर बिंझिया, किसान आदि) देउरी ( परहिया, सबर, बूथड़ी आदि) देहुरी (माल पहाड़िया), नायके (संथाल), नाये (बिरहोर) , लाया (भूमिज) , गोसाई (चेरो) देवोनवा (हो) आदि 

नृत्य-संगीत और खानपान

➧ यहां की जनजातियां लोक सांस्कृतिक विरासत भी समृद्ध है
➧ शास्त्रीय नृत्य-संगीत का झारखंड में भले अभाव हो लेकिन लोक संगीत और लोक नृत्यों की यहां भरमार है
➧ वही जीवन है यहां के लोगों का झारखंडी भाषाओं में एक लोकप्रिय कहावत है :- यहां बोलना ही संगीत और चलना ही नृत्य है
➧ सरहुल, जदूर, करम, जतरा, झूमर, ब्रोया, माठा, डोमकच, सोहराय, अंगनई, चाली, फगुडांड़ी, आदि यहां के प्रमुख राग/गीत-नृत्य है
➧ नृत्य में परंपरागत परिधान, फूल-पत्तों, पंखों, आभुषणों से श्रृंगार करने और सजने-संवरने परंपरा है
➧ जनजातीय परिवार प्राय: मांसाहारी होते हैं केवल टाना भगत और साफहोड़ समूह मांस-मदिरा से परहेज करते हैं 
➧ जनजातियों में शराब पीना सार्वलौकिक प्रथा है चावल से बनी शराब (हड़िया) इनका प्रिय पेय है
➧ जनजातियों में मृत्यु के बाद शव को गाड़ने और जलाने की दोनों प्रथाएं है, दाह-संस्कार कम होता है
➧ जनजातियों के ग्रामीण जीवन में 'हाट' का भी काफी महत्व है, हाट सप्ताहिक, अर्थ साप्ताहिक या पाक्षिक लगता है
➧ यहां क्रय-विक्रय के अलावे मिलना-जुलना, समाचार-विनिमय, वैवाहिक-संबंधों आदि की चर्चा भी होती है
➧ राजनीतिक क्षेत्र में भी यहां के जनजातियों की विशेष भूमिका रही है
➧ जनसंख्या की दृष्टि से झारखंड के प्रमुख जनजातियों में पहले स्थान पर संथाल तथा दूसरे स्थान पर उरांव और तीसरे स्थान पर मुंडा तथा चौथे स्थान पर हो है

                                                                                                            👉 Next Page:झारखंड के सदान
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