All Jharkhand Competitive Exam JSSC, JPSC, Current Affairs, SSC CGL, K-12, NEET-Medical (Botany+Zoology), CSIR-NET(Life Science)

Monday, June 7, 2021

Jharkhand Ke Sadan (झारखंड के सदान)

Jharkhand Ke Sadan

➧ झारखंड राज्य में सामान्यत: गैर-जनजातियों को सदान कहा जाता है परंतु ऐसा नहीं है : सभी गैर-जनजातियां सदान नहीं है वास्तव में सदान झारखंड की मूल गैर जनजातीय लोग है

 व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'सदन' शब्द का एक तद्धित शब्द है जो सद+आन से बना है

➧ सद का कोषगत अर्थ है :- बैठना, विश्राम करना, बस जाना इस प्रकार 'सदान' शब्द का अर्थ होगा ऐसे लोग जो यहां बैठे हुए थे या बसे हुए थे 

झारखंड के सदान

➧ सदानी भाषा नागपुरी में घर में बसने वाले कबूतर को 'सदपरेवां ' कहा जाता है और जंगली कबूतर को या घर में नहीं रहने वाले कबूतर को 'बनया कबूतर' कहा जाता है ठीक इसी प्रकार 'सदपरेवा' की तरह सदानों को समझना चाहिए और 'बनया कबूतर' की तरह वनवासी या आदिवासियों को समझना चाहिए

➧ दोनों के लक्षण और चरित्र कुछ अलग है अतः इसे समझने के लिए तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता है।(i) आदिवासी कबीलाई होते हैं, जबकि सदान समुदायी होते हैं

(ii) आदिवासी घुमंतू स्वाभाव के लोग हैं किंतु कुछ कबीलाई लोग अब स्थायित्व प्राप्त करने लगे है जबकि सदन स्वभावतः घुमंतू नहीं है, इनका स्वभाव स्थायी रहा है

(iii) कई आदिवासी अनुसूचित नहीं है जबकि कई सदान जनजाति के रूप में अनुसूचित है

भाषाई दृष्टि से

➧ भाषाई दृष्टि से वह गैर जनजनजातीय व्यक्ति जिसकी भाषा मौलिक रूप से (मातृभाषा की तरह) खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया और कुरमाली है वही सदान हैं 

➧ डॉक्टर बी.पी. केसरी मानते हैं कि इन भाषाओं का मूल रूप नागजाति के विभिन्न कबीलों में विकसित हुआ होगा

➧ किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि भाषा केवल एक जाति तक सीमित नहीं रहती है अतः नाग दिसुम में नागराजा होंगे तो प्रजा के रूप में केवल नाग लोग ही तो नहीं रहे होंगे अन्य जातियां भी रही होंगी और ये भाषाएं उनकी भी भाषा ही रही होंगी

धार्मिक दृष्टि से

➧ धार्मिक दृस्टि से हिंदू ही प्राचीन सदान हैं इस्लाम का उदभव 600 ईसवी पूर्व में हुआ लेकिन इनका झारखंड आगमन सोलवीं सदी में ही हो सका इनसे पहले के जैन धर्मालम्बी भी सदान है

➧ इस प्रकार आज इन सभी धर्मालम्बियों की मातृभाषा जैनी और उर्दू या अरबी फारसी न होकर खोरठा, नागपुरी, पंचपरगानिया, कुरमाली आदि ही है चाहे वह किसी भी धर्म का हो और तभी वह सदान है। जिसकी मातृभाषा सादरी नहीं है वह सदान कैसे हो सकता है?

प्रजातीय दृष्टि से 

➧ प्रजातीय दृस्टि से सदान आर्य माने जाते हैं कुछ द्रविड़ वंशी भी सदान है और यहां तक कि कुछ आग्नेय कुल के लोग भी सदान हैं 

➧ आग्नेय कुल के लोग  सदान इसलिए हैं क्योंकि इनकी भाषा आदि सादरी रही है तथा  आग्नेय कुल के होते हुए भी अनुसूचित नहीं किया गया है

➧ ठीक उसी तरह जैसे कि कुछ अनुसूचित लोग स्वयं को आग्नेय कुल का नहीं मानते है  न ही प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड मानते हैं वे अपने को राजपूत कहते हैं

पुरातात्विक अवशेषों से

➧ पुरातात्विक अवशेषों से पता होता है कि असुर से पहले भी कोई एक सभ्य प्रजाति यहां आयी थी अतः ऐसा प्रतीत होता है कि वह सभ्य प्रजाति सदानों की होगी जो यहां की मूलवासी थी 

➧ आखिर असुरों का लोहा गलाना क्या अपने लिए ही था? इतनी  अधिक मात्रा में लोहा का उत्पादन कोई अपने लिए ही नहीं करता है

➧ असुरों के बाद मुंडा और उसके बहुत बाद उरांव आते हैं तो ऐसा लगता है कि सदान उनके यहां आने से पहले से ही बसे हुए थे मुंडा और उरांवों का स्वागत सदानों ने किया होगा 

 इसी प्राचीनता की दृष्टि से सदान को कई कालों में विभाजित किया जा सकता है:-

(i) असुर से पहले वास करने वाले एक सभ्य प्रजाति जिसकी चर्चा इतिहासकार/मानव शास्त्री करते हैं, संभवत: वे सदन ही हों   

(ii) असुरों के काल के सदान तथा मुंडाओं से पहले आकर बसे हुए सदान या अपने पूर्वजों से उत्पन्न हुए सदान की सामान्य जनसंख्या

(iii) मुंडाओं के साथ या उनके बाद आये सदान जो उरांव से पहले काल के थे

(iv) उरांवों  के साथ या उनके बाद आये सदान और पूर्वजों से विकसित सदान जनसंख्या

(v) मुगल काल और ब्रिटिश काल के आये लोग

(vi) आजादी के बाद आकर बसे हुए गैर आदिवासी जिनमें सदानों के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं। स्मरणीय है आजकल अंग्रेजों के साथ-साथ उनके द्वारा लाये गए अन्य शोषकों को (ठेकेदार आदि) तथा आजादी के बाद आये  गैर जनजातीय लोगों को दिकू कहा जाने लगा

जातीय दृष्टि से सदनों के प्रकार

(i) वैसे जातियां जो देश के अन्य हिस्सों में है और झारखंड क्षेत्र में भी है - ब्राह्मण, राजपूत, तेली, माली, कुम्हार, सोनार, कोयरी, अहीर, बनिया, डोम, चमार, दुसाध, ठाकुर और नाग जाति आदि

(ii) वैसे जातियां जो केवल छोटानागपुर में ही मिलते हैं - बड़ाईक, देसावली, पाइक, धानुक, राउतिया, गोडािईत, घासी, भइयां, पान, प्रमाणिक, तांती, स्वांसी, कोस्टा, झोरा, रक्सेल, गोसाई, बरगाह, बाउरी, भाँट, बिंद, कंदु, लोहड़िया, खंडत, सराक, मलार आदि 

(iii) कई सदान जातियां ऐसी है जिनका गोत्र अवधिया, कनौजिया, तिरहुतिया, गोड़ , पुर्विया, पछिमाहा, दखिनाहा आदि है। जिसे पता चलता है कि इनका मूल स्थान यहां न होकर कहीं बाहर है 

(iv) परंतु कुछ जातियां ऐसी हैं जिनका गोत्र है स्थानीय आदिवासी समुदायों की तरह हैं जिससे इनका मूल स्थान छोटानागपुर ही होगा यह माना जा सकता है

सदानों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूपरेखा 

➧ सदान और आदिवासी दोनों झारखंड के मूल निवासी हैं और उनकी संस्कृति साझा एवं एक-दूसरे से मिलजुल कर रहने की संस्कृति है

धर्म  :- सदानों  में सराक नामक एक छोटे क्षेत्र में अवस्थित जाति जैन धर्म से प्रभावित हैं। वे सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते हैं तथा मांस, मछली का सेवन नहीं करते हैं

➧ यह लोग सूर्य एवं मानसा के उपासक हैं कुछ सदान वैष्णव परंपरा से प्रभावित हैं

➧ सोलवीं सदी के बाद से इस्लाम धर्मावलम्बी  भी यहां बस गए जो कालांतर में सदान कहे गये

➧ हिंदुओं में देवी-देवता की पूजा-अर्चना ही धार्मिक परम्परा है इसके अतिरिक्त प्रत्येक सदान कुल देवी-देवता की पूजा- अर्चना करते हैं

➧ हिंदू, मुस्लिम, जैन, वैष्णव, कबीरपंथी जैसे विविध धर्मावलम्बियों के कारण एक और गुरु पुरोहित की परंपरा है तो दूसरी और मुल्ला-मौलवियों की प्रथा भी है

 यह कहना आप्रासंगिक कतई नहीं है कि सदानों की धार्मिक परम्परा में कही पुरोहित और कर्मकांड भी व्याप्त है तो किसी अन्य क्षेत्र के सदानों में इस कर्मकांड का लेशमात्र भी नहीं दिखाई देता है 

शारीरिक गठन :- सदानों के शारीरिक गठन में आर्य, द्रविड़ एवं आस्ट्रिक तीनों के कमोवेश लक्षण दिखाई पड़ते हैंफिर भी ये आदिवासियों से बिल्कुल भिन्न दिखाई पड़ते हैं। सदानों में गोरे, काले और साँवले तीनों रंग दिखाई पड़ते हैं ऊंचाई भी नाटे, मध्यम एवं लंबे तीनों इनमें दिखाई पड़ते हैं 

वेशभूषा  :-सदानों में धोती, कुर्ता, गमछा, चादर प्रचलित थे किंतु वर्तमान समय में उपयुक्त वस्त्रों के अतिरिक्त पैंट, शर्ट, कोट, टाई, पायजामा, सलवार, कुर्ता, साड़ी आदि प्राय: सभी तरह के बिहार और बंगाल के प्रचलित वस्त्र धारण करते दिखाई पड़ते हैं 

आभूषण :- बंगाल, बिहार में प्रचलित आभूषण सदानों में खूब प्रचलित है यही नहीं आदिवासियों में प्रचलित कुछ आभूषण सदानों में भी प्रचलित है। पोला, साखा, कंगन, बिछिया, हार, पाइरी, हंसली, कंगना, सिकरी, छूछी, बुलाक, बेसर, नथिया, तरकी, करन फूल, मांगटीका, पटवासी, खोंगसो आदि आभूषण महिलाओं में प्रचलित हैसदानों में आदिवासियों की तरह गोदना का भी प्रचलित है

गृहस्थी के सामान :- आजकल स्टील, प्लास्टिक, हेंडालियम एवं अल्मुनियम के समान प्राय: गांव से शहर तक सभी सदानों के घरों में दिखाई पड़ते हैं किंतु गांव में अभी भी 60% सदान आदिवासी मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग करते हैं घरों में हड़िया, गगरी, चुका, ढकनी अवश्य दिखाई पड़ते हैं 

➧ सदानों में पीतल और कांसा के बर्तन रखना समृद्धि का  घोतक माना जाता है सामूहिक भोज में पत्तल, दोना का ही प्रचलन है 

 खेती बारी के सामानों में सदान और आदिवासियों के उपकरणों का नाम एक ही है

शिकार के औजार :- सदानों में भी शिकार वैसे ही प्रचलित है जैसे आदिवासियों में मछली मारने के लिए जाल, कुमनी, बंसी डांग, पोलई, आदि  औजार हैं तो तीर-धनुष और तलवार, भाला, लाठाचोंगी, गुलेल आदि भी औजार होते हैं सदानों में बंदूक रखने की प्रथा जमीनदारी के कारण रही है अब यह प्रचलन कम हुआ है 

नातेदारी :- सदान समाज पितृ सत्तात्मक होता है अतः पिता के बड़े भाई को बड़ा या बड़का बाबूजी कहते हैं। माता की बहन मौसी है पिता का छोटा भाई काका या पितिया पिता के पिता दादा, पिता की मां दादी। मातृकुल में माँ का भाई मामा,माँ के पिता नाना कहे जाते हैं। मातृकुल में वैवाहिक संबंध वर्जित है 

 मजाक वाले रिश्ते में बड़े भाई की पत्नी भौजी, बहन के पति बहनोई या भाटु, पति के छोटे भाई देवर, पत्नी की छोटी बहन साली के साथ-साथ दादा-दादी, नाना-नानी भी मजाक वाले संबंध है

पर्व त्यौहार :- पर्व-त्योहारों सदानों की पहचान के लिए बहुत बड़ा आधार है सदानों के त्यौहार वही है जो आदिवासियों के लिए भी हैं होली, दीपावली, दशहरा, काली पूजा के अतिरिक्त जितिया, सोहराय, कर्मा, सरहुल मकर सक्रांति, टुसु, तीज आदि सदानों के प्रमुख पर्व-त्यौहार है मुसलमान ईद, मुहर्रम आदि मनाते हैं 

नृत्य एवं गीत :- सदानों के गांवों की पहचान अखरा से होती है अखरा आदिवासियों की तरह सदानों के गांवों में भी होते हैं मधुकर पुर गांव (जिला बोकारो) में नृत्य गीत संबंधी जो सूचना मिलती है उसके आधार पर यह स्पष्ट है कि कर्म उत्सव में लड़कियों का सामूहिक नृत्य अखरा में होता है 

➧ जावा जगाने के लिए प्रति रात नृत्य होता है इसके अतिरिक्त शादी विवाह में भी महिलाएं नृत्य करती हैं डमकच, झुमटा, झूमर आदि सामूहिक नृत्य है जो आम महिलाएं अखरा में या घर-आंगन में करती हैं 

➧ इसके अतिरिक्त छऊ नृत्य, नटुआ, नृत्य, नचनी नृत्य, घटवारी नृत्य, महराई आदि विविध प्रकार के नृत्य होते हैं 

सदानों के गीत कई प्रकार के होते हैं जिसके राग भी उन्हीं के नाम अथवा सूर के नाम पर नामित है

गीतों के प्रकार निम्नलिखित हैं डमकच, झुमटा, अंगनाई, या जनानी झूमर, सोहर, विवाह गीत, मदारनी झूमर, रंग, फगुआ, पावस, उदासी, सोहराय आदि

निष्कर्षत: सदान, आदिवासियों के समकालीन, कहीं उनसे भी प्राचीन समुदाय है जो इसका जनसमुदाय हैं जो झारखंड का मूल निवासी है यह समुदाय स्वदेशी संस्कृति से आवृत विभिन्न जातियों, धर्मों का समूह है जो खोरठा, नागपुरी, पंचपरगानिया और कुरमाली भाषाएं बोलता है

➧ अंग्रेजों ने आदिवासियों और सदानों की आपसी मित्रता देखकर इनमें कई तरह के दरार उत्पन्न करने की चेष्टा की उन्हें इसमें आंशिक सफलता भी मिली आज समय की जरूरत है झारखंड के निवासी यह समझे की यहाँ का इतिहास क्या है? आदिवासियों का इतिहास क्या रहा है? सदानों की सहभगिता झारखण्ड में क्या रही है? की सही परिभाषा क्या हो सकता है ?

👉 Previous Page:झारखंड के आदिवासी

                                                                                   👉 Next Page:झारखंड जलवायु के प्रकार

Share:

0 comments:

Post a Comment

Unordered List

Search This Blog

Powered by Blogger.

About Me

My photo
Education marks proper humanity.

Text Widget

Featured Posts

Popular Posts

Blog Archive