Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-8
सबर जनजाति
➧ सबर जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है।
➧ इनका संबंध मुंडा जनजातीय समूह से है।
➧ यह झारखंड की अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है।
➧ इनकी तीन प्रमुख शाखाएं हैं
(i) झारा
(ii) बासु
(iii) जायतापति
इसमें से केवल झारा सबर झारखंड में पाई जाती है, शेष सबर उड़ीसा में पाए जाते हैं।
➧ ब्रिटिश शासन काल में 'आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871' के तहत इन्हें आपराधिक जनजाति में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
➧ प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी ने विशेष रूप से सबर जनजाति पर काम किया है।
➧ झारखंड में इसका संकेन्द्रण मुख्यत:सिंहभूम क्षेत्र में है। इसके अतिरिक्त यह जनजाति रांची, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, पलामू तथा संथाल परगना में भी निवास करती हैं।
➧ इनकी भाषा उड़िया, बंगला तथा हिंदी है।
समाज एवं संस्कृति
➧ इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है।
➧ इस जनजाति में गोत्र एवं बहुविवाह की प्रथा नहीं पाई जाती है।
➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'पोटे' कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में युवागृह नहीं पाया जाता है।
➧ इस जनजाति में डोमकच तथा पंता साल्या नृत्य लोकप्रिय है।
➧ इनके परंपरागत पंचायत का प्रमुख 'प्रधान' कहलाता है।
➧ इनका प्रमुख त्यौहार मनसा पूजा, दुर्गा पूजा, काली पूजा आदि है।
आर्थिक व्यवस्था
➧ इनका प्रमुख पेशा कृषि कार्य, वनोत्पादों का संग्रह तथा मजदूरी है।
धार्मिक व्यवस्था
➧ इनके प्रमुख देवता काली है।
➧ इस जनजाति में पूर्वज पूजा का विशेष महत्व है।
➧ मृत पूर्वज को 'मसीहमान' या 'बूढ़ा-बूढ़ी' कहा जाता है तथा इन्हें मुर्गा की बलि चढ़ाई जाती है।
➧ इनके गांव का पुजारी देहुरी कहलाता है।
0 comments:
Post a Comment