Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-3
बिरहोर जनजाति
➧ बिरहोह जनजाति घुमन्तु जीवन व्यतीत करते हैं।
➧ प्रजाति रूप से यह जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह से संबंधित है, जबकि भाषायी रूप से इनका संबंध ऑस्ट्रो -ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है।
➧ इनकी भाषा बिरहारी है।
➧ प्रजाति रूप से यह जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड समूह से संबंधित है, जबकि भाषायी रूप से इनका संबंध ऑस्ट्रो -ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है।
➧ इनकी भाषा बिरहारी है।
➧ झारखंड में इनका संकेन्द्रण मुख्यत: हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, गढ़वा, पलामू, लातेहार और सिंहभूम क्षेत्र में है।
समाज और संस्कृति
➧ इनका परिवार पितृसत्तात्मक और पितृवंशीय होता है।
➧ इनके बस्ती को टंडा तथा इनकी झोपड़ी को कुम्बा/कुरहर कहा जाता है।
➧ इनमें भी बड़ी झोपड़ी को 'ओड़ा कुम्बा' व छोटी झोपड़ी को 'चु कुम्बा' कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में 13 गोत्र पाए जाते हैं।
➧ इस जनजाति में युवागृह को 'गितिजोरी, गत्योरा या गितिओड़ा' कहा जाता है।
➧ लड़कों के गितिओड़ा' को 'डोंडा कांठा' तथा लड़कियों के गितिओड़ा' को डिंडी कुंडी कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में 10 प्रकार के विवाहों का प्रचलन है।
➧ क्रय विवाह इस जनजाति में सबसे अधिक प्रचलित है, जिसे 'सदर बापला' कहा जाता है।
➧ इनका प्रमुख त्योहार करमा, सोहराई, नवाजोम, जितिया, दलई आदि है।
➧ इस जनजाति में डंग , लांगरी, मुतकर नामक नृत्य अत्यंत प्रचलित है।
➧ तुमदा (मांदर या ढोल), तमक (नगाड़ा) तथा तिरियों (बांस की बांसुरी) इनके प्रमुख वाद्य यंत्र है।
आर्थिक व्यवस्था
➧ इस जनजाति का प्रमुख पेशा लकड़ी काटना, शिकार करना एवं खाद्य संग्रहण करना है।
➧ घुमंतू जीवन जीने वाले बिरहोरों को उलथू या भूलियास तथा स्थायी जीवन जीने वाले बिरहोरों को जांघी या थानिया कहा जाता है।
➧ इस जनजाति में भूमि को सामुदायिक संपत्ति माना जाता है जिसे बेचना निषिद्ध होता है।
➧ बिरहोर जनजाति के लोग पीतल, तांबे और कांसे के कार्य में दक्ष होते हैं।
धार्मिक व्यवस्था
➧ इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा, ओरा, बोंगा, कान्दो बाेंगा, होपरोम बोंगा, टण्डा बोंगा, एवं देवी माई हैं।
➧ इनके धार्मिक प्रधान को 'नाये' कहते हैं।
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