Jharkhand Ke Pramukh Udyan Aur Abhyaran
💥 झारखंड में एकमात्रा बेतला राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) है।
💥 11 वन्य प्राणी अभयारण्य या शरण स्थल है।
और कई जैविक उद्यान है।
➤ बेतला राष्ट्रीय उद्यान
💨बेतला झारखंड का विख्यात वन्य प्राणियों की आश्रय स्थल है।
💨यह राष्ट्रीय उद्यान लातेहार जिले में स्थित है।
💨इसकी स्थापना -1986 में की गयी थीं।
💨इसका क्षेत्रफल - 231. 67 वर्ग किलोमीटर है।
💨भारत सरकार द्वारा बाघ परियोजना मुहिम चलाया जा रहा है।
💨विश्व में पहली बार बाघों की गणना 1932 ईस्वी में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में कराई गयी थी।
💨रांची - डाल्टनगंज सड़क मार्ग पर रांची से लगभग 156 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित है।
💨इस अभयारण्य के मुख्य जीव-जंतु में से रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, चीता, हिरण आदि प्रधान रूप से पाये जाते है।
💨पर्यटकों के ठहरने के लिए वन विभाग के विश्राम गृह सहित निजी होटल एवं रेस्ट हाउस का भी यहाँ इंतज़ाम है।
💨इसकी स्थापना -1986 में की गयी थीं।
💨इसका क्षेत्रफल - 231. 67 वर्ग किलोमीटर है।
💨भारत सरकार द्वारा बाघ परियोजना मुहिम चलाया जा रहा है।
💨विश्व में पहली बार बाघों की गणना 1932 ईस्वी में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में कराई गयी थी।
💨रांची - डाल्टनगंज सड़क मार्ग पर रांची से लगभग 156 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित है।
💨इस अभयारण्य के मुख्य जीव-जंतु में से रॉयल बंगाल टाइगर, हाथी, चीता, हिरण आदि प्रधान रूप से पाये जाते है।
💨पर्यटकों के ठहरने के लिए वन विभाग के विश्राम गृह सहित निजी होटल एवं रेस्ट हाउस का भी यहाँ इंतज़ाम है।
➤पालकोट अभयारण्य
💨 रांची से पलकोट अभयारण्य की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है, यह गुमला जिले के पालकोट प्रखंड के अंतर्गत चैनपुर वन प्रमंडल में अवस्थित है।
💨इसकी स्थापना -1909 में की गयी थीं।
💨पलकोट अभयारण्य के चारों ओर से कई नदियां बहती हैं इन नदियों में शंख ,बाँकी, सिंजरा,पाईलमारा ,तोरपा है।
💨इस अभयारण्य में चीता, भालू, लकड़बग्घा, भेड़िया, सियार, बंदर, खरगोश आदि वन्य-पशु पाये जाते हैं ।
💨इसकी स्थापना -1909 में की गयी थीं।
💨पलकोट अभयारण्य के चारों ओर से कई नदियां बहती हैं इन नदियों में शंख ,बाँकी, सिंजरा,पाईलमारा ,तोरपा है।
💨इस अभयारण्य में चीता, भालू, लकड़बग्घा, भेड़िया, सियार, बंदर, खरगोश आदि वन्य-पशु पाये जाते हैं ।
💨पलकोट झारखंड के ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, जहां छोटानागपुर के राजा के महल के अवशेष भी मोहकता का केंद्र है।
➤तोपचांची अभयारण्य
💨 वन्य पशुओं के आश्रय श्रेणी के रूप में विकास किया गया है ,यह अभयारण्य धनबाद जिला के तोपचांची नामक स्थान में स्थित है।
💨 सड़क मार्ग धनबाद से इसकी दूरी 37 किलोमीटर है।
💨इसकी स्थापना -1978 में की गयी थीं।💨 सड़क मार्ग धनबाद से इसकी दूरी 37 किलोमीटर है।
💨 झारखंड के विभिन्न अभयारण्यों की तुलना में यह एक छोटा अभयारण्य है जो 8 पॉइंट 75 वर्ग किलोमीटर में प्रसारित है।
💨तोपचांची अभयारण्य के बीच में एक खूबसूरत झील है जिसका नाम हरी पहाड़ी है ।
💨 इस अभयारण्य में चीता, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण जैसे वन्य पशुओं को उनके प्राकृतिक रूप में देख सकते हैं ।
💨तोपचांची अभयारण्य के बीच में एक खूबसूरत झील है जिसका नाम हरी पहाड़ी है ।
💨 इस अभयारण्य में चीता, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण जैसे वन्य पशुओं को उनके प्राकृतिक रूप में देख सकते हैं ।
➤हजारीबाग अभयारण्य
💨हजारीबाग अभयारण्य वन्य-पशु अभयारण्य रांची-पटना मार्ग पर हजारीबाग के नजदीक स्थित है।
💨हजारीबाग से इसकी दूरी लगभग 22 किलोमीटर है, लगभग 186 पॉइंट 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक में इसका विस्तार है।
💨इसकी स्थापना -1976 में की गयी थीं।
💨यहाँ पर विभिन्न तरह की प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव जंतु पाए जाते हैं।
💨इसकी स्थापना -1976 में की गयी थीं।
💨यहाँ पर विभिन्न तरह की प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव जंतु पाए जाते हैं।
💨 इसमें सांभर, चीता, नीलगाय, भालू, बाघ, गैंडा, जंगली सूअर,लंगूर, हिरण आदि वन्य पशु पाये जाते हैं।💨वन्य पशुओं एवं अभयारण्य का देख-रेख करने के लिए चार ऊंचे वॉच टावर बनाए गए हैं जिनकी ऊंचाई 200 फीट है।
➤कोडरमा अभयारण्य
💨कोडरमा अभयारण्य रांची-पटना मार्ग पर हजारीबाग से आगे कोडरमा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर यह अभयारण्य स्थित है।
💨इसकी स्थापना -1976 में की गयी थीं।
💨177 पॉइंट 5 वर्ग किलोमीटर में घने साल वन में फैले इस अभयारण्य में सांभर, चीता , नीलगाय, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण, खरगोश, मोर इत्यादि वन प्राणी प्रधान रूप से पाये जाते हैं ।
💨इसकी स्थापना -1976 में की गयी थीं।
💨177 पॉइंट 5 वर्ग किलोमीटर में घने साल वन में फैले इस अभयारण्य में सांभर, चीता , नीलगाय, जंगली सूअर, लंगूर, हिरण, खरगोश, मोर इत्यादि वन प्राणी प्रधान रूप से पाये जाते हैं ।
➤दलमा अभयारण्य
💨दलमा अभयारण्य पूर्वी सिंहभूम जिले में टाटानगर के पास यह अभयारण्य लगभग 195 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में प्रसारित है।
💨इसकी स्थापना -1976 में की गयी थीं।
💨भारत सरकार द्वारा देश का पहला हाथी आरक्षय सिंहभूम जिले में दिनांक -26 -09 -2001 को अधिसूचित किया गया।
💨 दलमा अभयारण्य पर हिरण, बंदर, नीलगाय, हाथी इत्यादि वन्य प्राणी देखने को मिलते है,यहाँ के आकर्षण का केंद्र हाथी है।
➤बिरसा जैविक उद्यान
💨बिरसा जैविक उद्यान रांची-रामगढ़ मार्ग पर रांची से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ओरमांझी प्रखंड के अंतर्गत चकला नामक गाँव के निकट स्थित है।
💨इसकी स्थापना -1994 में की गयी थीं।
💨इसमें विभिन्न प्रजातियों के जीव-जंतु, पशु-पक्षी एक बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हुए, साल पेड़ों के वन के बीच प्राकृतिक अवस्था में रखे गए हैं ।
💨विशाल एकड़ क्षेत्र में फैले उद्यान भ्रमण करने के लिए वर्त्तमान में पर्यटन विभाग द्वारा इको - फ्रेंडली गाड़ी भी प्रबंध कराई गई है, जिस पर सवार होकर जीव-जंतु को देखने का मजा ही कुछ और लगता है।
💨बच्चों के मनोरंजन के लिए यहाँ नौका-विहार भी है।
💨बिरसा जैविक उद्यान के निकट ही मुटा मगर प्रजनन केंद्र हैं, जिस जगह पर वैज्ञानिकों की देख-रेख में मगर प्रजनन कराया जाता है।
💨इसमें विभिन्न प्रजातियों के जीव-जंतु, पशु-पक्षी एक बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हुए, साल पेड़ों के वन के बीच प्राकृतिक अवस्था में रखे गए हैं ।
💨विशाल एकड़ क्षेत्र में फैले उद्यान भ्रमण करने के लिए वर्त्तमान में पर्यटन विभाग द्वारा इको - फ्रेंडली गाड़ी भी प्रबंध कराई गई है, जिस पर सवार होकर जीव-जंतु को देखने का मजा ही कुछ और लगता है।
💨बच्चों के मनोरंजन के लिए यहाँ नौका-विहार भी है।
💨बिरसा जैविक उद्यान के निकट ही मुटा मगर प्रजनन केंद्र हैं, जिस जगह पर वैज्ञानिकों की देख-रेख में मगर प्रजनन कराया जाता है।
💨 मगर प्रजनन केंद्र रुक्का राँची में है ।
➤ बिरसा मृग विहार
💨रांची खूंटी के मार्ग पर जोड़ा पुल नामक स्थान के नजदीक काला माटी में बिरसा मृग विहार अवस्थित है, रांची से इसकी दूरी मुख्य सड़क मार्ग से 20 किलोमीटर है जो सड़क के पास ही मिलता है।
💨इसकी स्थापना -1982 में की गयी थीं।
💨मृग विहार के पास ही से एक पहाड़ी नदी निकलती है, जो उस जगह को वनभोज के लिए उपयुक्त बनाती है।
💨इस नदी पर एक के बाद एक दो पुल बना हुआ है यही कारण है की यह स्थान जोड़ा पुल के नाम से विख्यात है।
💨मृग विहार को विभिन्न प्रकार के हिरणों की आश्रय स्थली के रूप में विकास किया गया है।
💨मृग विहार के पास ही से एक पहाड़ी नदी निकलती है, जो उस जगह को वनभोज के लिए उपयुक्त बनाती है।
💨इस नदी पर एक के बाद एक दो पुल बना हुआ है यही कारण है की यह स्थान जोड़ा पुल के नाम से विख्यात है।
💨मृग विहार को विभिन्न प्रकार के हिरणों की आश्रय स्थली के रूप में विकास किया गया है।
➤उधवा पक्षी अभयारण्य
💨संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज जिले से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अभयारण्य विभिन्न प्रकार के विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के कारण विख्यात है।
💨इसकी स्थापना -1991 में की गयी थीं।
💨यह लगभग 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तरित है।
💨यहां एक विस्तृत विशाल झील भी है, जो प्रवासी पक्षियों के निवास के लिए उपयुक्त है शरद ऋतु में इन प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए पुरे देश से पर्यटक एवं पक्षी प्रेमी यहां आते हैं।
💨यहां पर कबूतर, चन्दुल, वनमुर्गी, खंजन, बुलबुल, नीलकंठ पक्षी अधिक पाए जाते हैं।
💨राजमहल जीवाश्म अभयारण्य साहिबगंज जिले में है।
💨इसकी स्थापना -1991 में की गयी थीं।
💨यह लगभग 650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तरित है।
💨यहां एक विस्तृत विशाल झील भी है, जो प्रवासी पक्षियों के निवास के लिए उपयुक्त है शरद ऋतु में इन प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए पुरे देश से पर्यटक एवं पक्षी प्रेमी यहां आते हैं।
💨यहां पर कबूतर, चन्दुल, वनमुर्गी, खंजन, बुलबुल, नीलकंठ पक्षी अधिक पाए जाते हैं।
💨राजमहल जीवाश्म अभयारण्य साहिबगंज जिले में है।
0 comments:
Post a Comment