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Monday, February 15, 2021

Jharkhand Janjatiya Vidroh Se Sambandhit Vyakti (झारखंड जनजातीय विद्रोह से संबंद्ध व्यक्ति)

झारखंड जनजातीय विद्रोह से संबंद्ध व्यक्ति

(Jharkhand Janjatiya Vidroh Se Sambandhit Vyakti)


बिरसा मुंडा

➤बिरसा मुंडा का जन्म एक मुंडा परिवार में 15 नवंबर, 1875 को वर्तमान खूंटी जिला अंतर्गत तमाड़ थाना के उलीहातू गांव में हुआ था।  

इन्होंने उलगुलान (महान हलचल) विद्रोह का नेतृत्व किया 

इन्होंने अपने अनुयायियों को अनेक देवताओं के स्थान पर एक  देवता सिंगबोंगा की आराधना का उपदेश दिया  

1895 में इन्होंने अपने को सिंगबोंगा का दूध घोषित कर एक नए पंथ बिरसाइल की स्थापना की 

यह  धार्मिक आंदोलन आगे चलकर मुंडा जनजाति के राजनीतिक आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया

1899 ईस्वी में इन्होंने ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेजों के विरुद्ध खूंटी, तोरपा, तमाड़, कर्रा आदि क्षेत्रों में विद्रोह भड़काया

3 फरवरी 1900 को अंग्रेजी  प्रशासन ने उन्हें पकड़ कर जेल में बंद कर दिया, जहां 9 जून 1900 को रांची जेल में हैजे से उनकी मृत्यु हो गई 

बिरसा मुंडा आज भगवान के रूप में पूजे जाते हैं 

सिद्धू-कान्हू 

इन दोनों भाइयों का जन्म एक संथाल परिवार में संथाल परगना के अंतर्गत भगनाडीह नामक ग्राम में हुआ था  

उन्होंने 1855 में ब्रिटिश सत्ता, साहूकारों, व्यापारियों और जमींदारों के खिलाफ प्रसिद्ध संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया था

30 जून 1855 ईस्वी को अंग्रेज जनरल लॉयड के नेतृत्व में अंग्रेजों और संथालों के बीच में मुठभेड़ 

 हुआ इस मुठभेड़ में संथालों की हार हुई और सिद्धू और कान्हू को फाँसी दे  दी गयी  
 
सिद्धू को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर 1855 में पंचकठियाँ नामक स्थान पर बरगद पेड़ पर फाँसी दिया गया था।जो आज भी शहीद स्मारक के रूप में  है  

कान्हू मुर्मू को भोगनाडीह में फाँसी दे दी गयी थी  हर  साल  यहाँ 30 जून को हुल दिवस पर वीर शहीद सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू को याद किया जाता है 
 
कार्ल मार्क ने इस विद्रोह को "भारत का प्रथम जनक्रान्ति कहा था  

बुधु भगत 

➤बुद्धू भगत का जन्म एक उरांव परिवार में 17 फरवरी 1792 को रांची जिले के चांहो प्रखंड  के अंतर्गत सिलागाई  ग्राम में हुआ था 

उन्होंने ब्रिटिश शासन,उनके समर्थकों और जमींदारों के विरुद्ध 1831-32 के प्रसिद्ध कोल विद्रोह का नेतृत्व किया  

इस दौरान उन्होंने असीम वीरता, धैर्य, और साहस का परिचय दिया।

उन्होंने पिठौरिया, बुंडू, तमाड़ आदि स्थानों पर अंग्रेजो के खिलाफ घमासान लड़ाईयां लड़ी 

➤कप्तान इम्पे के नेतृत्व में आए सैनिकों के खिलाफ लड़ते हुए वे 14 फरवरी 1832 को मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो गए 

➤बुधु भगत झारखण्ड के प्रथम आंदोलनकारी थे, जिनके सिर के लिए अंग्रेज सरकार ने 1000/- रूपये के पुरस्कार की घोषणा की थी

तिलकामांझी

तिलका मांझी का जन्म एक संथाल परिवार में 11 फरवरी 1750 ईस्वी को सुल्तानगंज थाने के तिलकपुर गांव में हुआ था

1771 ईस्वी से 1784 ईस्वी तक ये अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध संघर्षरत रहे 

उन्होंने कर वसूली के विरोध में विद्रोह का नेतृत्व किया

इस दौरान इन्होंने ब्रिटिश दमन का कड़ा प्रतिरोध करते हुए 13 जनवरी 1784 को तीर चलाकर क्लीवलैंड की हत्या कर दी

संसाधनों की कमी के कारण इन्हें अंग्रेजी सेना द्वारा पकड़ लिया गया और भागलपुर में एक बरगद पेड़ से लटकाकर 1785 ईस्वी में उन्हें फांसी दे दी गयी

अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले ये पहले आदिवासी थे, इसलिए इन्हें आदि विद्रोह भी कहा जाता है 


रानी सर्वेश्वरी

संथाल परगना जिला के महेशपुर राज की रानी सर्वेश्वरी ने पहाड़िया सरदारों के सहयोग से कंपनी शासन के विरुद्ध 1782-82 ईस्वी में विद्रोह किया 

यह विद्रोह इनकी जमीन को दामिन-ए-कोह बनाये जाने के विरोध में था, लेकिन इन्हें इसमें सफलता  नहीं मिली

इनकी जमीन को छीनकर दामिन-ए-कोह में शामिल कर लिया गया और उसे सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया गया 

इन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी दिन भागलपुर जेल में बिताए और वहीं पर 6 मई, 1807 ई0 में इनकी मृत्यु हो गयी 

रघुनाथ महतो 

रघुनाथ महतो का जन्म वर्तमान सरायकेला खरसावां जिले में नीलडीह प्रखंड में घुटियाडीह गांव में हुआ था 

इन्होंने चुआर विद्रोह का प्रथम दौर का नेतृत्व किया था 

जमीन और घर की बेदखली के कारण ये विद्रोही बन गये  

➤इन्होने 1769 ई0 में 'अपना गांव अपना राज, दूर भगाओ विदेशी राज' का नारा दिया था 

इन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध छापामार पद्धति से विद्रोही अभियान चलाया

1778 ई0 में लोटा गांव के समीप एक सभा के दौरान अंग्रेज सैनिकों की गोलीबारी में मारे गये 

तेलंगा खड़िया 

तेलंगा खड़िया का जन्म 1806 ईसवी में मुरगु में हुआ था, मुरगु नागफेनी के समीप कोयल नदी के समीप बसा है 

सन 1850-60 के आस-पास तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में जमींदारों, महाजनों तथा अंग्रेजी राज्य के खिलाफ जुझारू आंदोलन हुआ

➤यह आंदोलन मूलत: जमीन वापसी और जमीन पर झारखंडी समुदाय के परंपरागत हक़ की बहाली के लिए था 

➤23 अप्रैल, 1880 को जब तेलंगा अपने साथियों के साथ एक बैठक में व्यस्त थे, उसी वक्त अंग्रेजों के  दलाल बोधन सिंह ने उन्हें पीछे से गोली मार दी

जतरा भगत 

टाना भगत आंदोलन के प्रणेता जतरा भगत का जन्म 2 अक्टूबर 1888 ई0 में गुमला जिला अंतर्गत बिशुनपुर प्रखंड के चिंगरी नामक गांव में एक साधारण उरांव परिवार में हुआ था

➤1914 में इन्होंने टाना भगत आंदोलन चलाया जो एक प्रकार का संस्कृतिकरण आंदोलन था

जतरा भगत ने उरांव लोगों के बीच मंदिरा पान न करने, मांस न खाने, जीव हत्या नहीं करने, यज्ञोपवीत   धारण करने, अपने-अपने घरों के आंगन में तुलसी चौरा स्थापित करने, भूत-प्रेत का अस्तित्व ना मानने, गो- सेवा करने, सभी से प्रेम करने, बैठ-बेगारी प्रथा समाप्त करने तथा अंग्रेजों के आदेशों को ना मानने, खेतों में गुरुवार को हल चलाना बंद करने का उपदेश दिया 

1916 में जतरा भगत को गिरफ्तार कर रांची जेल भेज दिया गया। 1917 ई0 में जेल से रिहा होने के पश्चात 2 माह के भीतर ही इनकी मृत्यु हो गयी  

भागीरथ मांझी

भागीरथ मांझी एक महान जनजातीय नेता थे

यह खरवार जाति से थे 

इनका जन्म गोड्डा जिले के तलडीह नामक गांव में हुआ था

1874 ई0 के खरवार आंदोलन का उन्होंने नेतृत्व किया

इन्होंने स्वयं को राजा घोषित किया और जनता से अपील किया कि वे अंग्रेजों और महाजनों को लगान न देकर इन्हें दे 

1879 में इनकी मृत्यु हो गयी  लोग इन्हें श्रद्धावश बाबाजी कहते थे 

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