Jatiya Panchayat ShasanVyavastha
(जातीय पंचायत शासन व्यवस्था)
➤इन सभी जातियों का जातिगत पंचायत होता है और पंचायत का निर्णय सभी को मानना आवश्यक होता है। शादी-ब्याह मरनी-जननी या किसी विवाद का निपटारा जातिगत पंचायत में किया जाता है।
➤जातिगत पंचायत में एक अध्यक्ष होता है, जो सचिव और कार्यकारिणी के सदस्यों के सहायता से अपने कामों को पूरा करता है। जातिगत निर्णय को नहीं मानने वाले को दंड स्वरूप जाति से निष्कासन कर दिया जाता है, जिसे 'सामाजिक बहिष्कार' कहते हैं।
➤जातीय पंचायत शासन व्यवस्था झारखंड की एक अद्भुत शासन व्यवस्था का प्रतीक है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था मुख्यत: उसी क्षेत्र में देखने को मिलती है, जहां जनजातीय और गैर जनजातीय लोग एक साथ एक ही गांव में या अगल-बगल के गांव में निवास करते हैं।
➤यह एक प्रशासकीय व्यवस्था कम और सामाजिक व्यवस्था ज्यादा नजर आती है।
➤जब जनजातियों एवं गैर जनजातियों के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो विवाद को सुलझाने के लिए जनजातियां समाज के मुंडा, मानकी, मांझी, परगनेत आदि में से कोई स्थिति अनुसार गैर जनजातीय समुदाय के जातीय पंचायत के प्रमुख या सदनों के सामाजिक प्रमुख के साथ मिलकर समस्या का निदान करते हैं।
➤जिस पक्ष की गलती पकड़ में आती है, उसे उसी के समाज के रीति-रिवाज, परंपरा, रूढ़िवादिता के अनुसार आदेश निर्गत किया जाता है। आदेश नहीं मानने पर समाज से बहिष्कृत भी किया जा सकता है।
➤जातीय पंचायत शासन व्यवस्था में दो जनजातीय समाज जैसे मुंडा एवं उरांव समाज या संथाल और हो समाज या किसी भी प्रकार के अंतर जनजातीय विवाद का निपटारा किया जाता है।
➤यहाँ विशेष बात ध्यान में रखी जाती है कि किसी भी प्रकार से एक ही क्षेत्र विशेष में रहने वाले अलग-अलग जनजातीय समाज या गैर जनजातीय लोगों के बीच सामाजिक ताना-बुना नहीं बिगड़े, क्योंकि जनजातीय समाज और गैर जनजातीय समाज दोनों एक-दूसरे पर आश्रित है।
➤सदान लोग मुंडा समाज को अपने बड़े भाई के समान आदर देते हैं।
➤अंतरजातीय पंचायत को बाला पंचायत 84 (चौरासी) पंचायत कहते हैं।
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