All Jharkhand Competitive Exam JSSC, JPSC, Current Affairs, SSC CGL, K-12, NEET-Medical (Botany+Zoology), CSIR-NET(Life Science)

SIMOTI CLASSES

Education Marks Proper Humanity

SIMOTI CLASSES

Education Marks Proper Humanity

SIMOTI CLASSES

Education Marks Proper Humanity

SIMOTI CLASSES

Education Marks Proper Humanity

SIMOTI CLASSES

Education Marks Proper Humanity

Tuesday, June 1, 2021

Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-2 (झारखंड की आदिम जनजातियां Part-2)

Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-2

सौरिया पहाड़िया 

➧ सौरिया पहाड़िया प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड प्रजाति समूह से संबंधित है 
➧ इन्हे संथाल परगना का आदि निवासी माना जाता है 
➧ इनका प्रमुख संकेन्द्रण राजमहल क्षेत्र के 'दामिन-ए-कोह' में है  

झारखंड की आदिम जनजातियां Part-2

➧ इस जनजाति ने अंग्रेजी शासन के पूर्व कभी भी अपनी स्वतंत्रता को मुगलों या मराठों के हाथ में नहीं सौंपा।
➧ यह जनजाति स्वयं को मलेर कहती है 
➧ इनकी भाषा मालतो है जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है
➧ यह जनजाति बोलचाल हेतु बंगला भाषा का भी प्रयोग करती हैं

समाज और संस्कृति 

 यह जनजाति मुख्यत: पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती है तथा इनके आवाज को 'अड्डा' कहा जाता है
➧ इस जनजाति की सामाजिक व्यवस्था पितृसत्तात्मक है
➧ इस जनजाति में विवाह में लड़की की सहमति आवश्यक मानी जाती है
➧ इस जनजाति में आयोजित विवाह सर्वाधिक प्रचलित विवाह है 
➧ इनमें विवाह संस्कार संपन्न कराने वाले व्यक्ति को 'वेद सीढू' कहा जाता है
➧ इसमें बहिजार्तीय विवाह निषिद्ध है 
➧ इस जनजाति में विवाह विच्छेद तथा पुनर्विवाह की प्रथा पायी जाती है 
➧ इस जनजाति में वधू मूल्य को 'पोन' कहा जाता है
➧ इस जनजाति में गोत्र नहीं पाया जाता है
➧ इनके गांव का मुखिया व पुजारी माँझी कहलाता है 
➧ यह ग्राम पंचायत की अध्यक्षता भी करता है
➧ इनके गांव के प्रमुख अधिकारी सियनार (मुखिया), भंडारी, (संवेशवाहक), गिरि कोतवर है
➧ इस जनजाति के प्रमुख त्योहार फसलों पर आधारित होते है जिसे आड़या कहा जाता है 

इन के प्रमुख त्यौहार निम्न इस प्रकार हैं 

गांगी आड़या -  भादो में नई फसल कटने पर
ओसरा आड़या - कार्तिक में घघरा फसल कटने पर
पुनु आड़या - पूस में बाजरे की फसल कटने पर 
सलियानी पूजा - माघ या चैत में होती है

➧ इस जनजाति में पिता की मृत्यु हो जाने पर बड़ा पुत्र का संपत्ति का अधिकार होता है
➧ यदि कोई पुत्र नहीं है तो संपत्ति पर परिवार के साथ रहने वाले घर जमाई का अधिकार होता है 

आर्थिक व्यवस्था 

➧ ललित प्रसाद विद्यार्थी ने सांस्कृतिक आधार पर झारखंड की जनजातियों का वर्गीकरण किया है
➧ पहाड़ी ढाल पर रहने वाले लोग जोत को कोड़कर कृषि कार्य करते हैं, जिसे 'भीठा' या 'धामी' कहा जाता है

धार्मिक व्यवस्था 

➧ इस जनजाति के प्रमुख देवता लैहु गोसाई हैं
➧ इस जनजाति में 
सूर्य देवता को 'बैरु गोसाई' 
चाँद देवता को 'विल्प गोसाई' 
काल देवता को 'काल गोसाई' 
राजमार्ग देवता को 'पो गोसाई' 
सत्य देवता को 'दरमारे गोसाई' 
जन्म देवता को 'जरमात्रे गोसाई' तथा शिकार के देवता को 'औटगा' कहा जाता है
➧ इस जनजाति में पूर्वज पूजा का विशेष महत्व है
➧ धार्मिक कार्यों का संपादन 'कांदा मांझी' द्वारा किया जाता है तथा इसके सहायक को 'कोतवार' व चालवे कहा जाता है
 रिजले के अनुसार इस जनजाति का धार्मिक संबंध जीववाद से है

                                                                                   👉 Next Page:झारखंड की आदिम जनजातियां Part-3
Share:

Net Domestic Product (NDP) - Indian Economy

Net Domestic Product (NDP) 

Net Domestic Product (NDP) is the GDP calculated after adjusting the weight of the value of 'depreciation'. This is, basically, a net form of the GDP, i.e., GDP minus the total value of 'wear and tear' (depreciation) that happened in the assets while the goods and services were being produced. All assets (except human beings) go for depreciation in the process of their uses, which means they are 'wear and tear'. The government of the economies decides and announces the rates by which assets depreciate (done in India by the Ministry of Commerce and Industry). A list is published, which is used by different sections of the economy to determine the real levels of depreciation in different assets. For example, a residential house in India has a rate of 1% per annum depreciation, an electric fan has 10% per annum, etc., calculated in terms of the asset's price.

Net Domestic Product (NDP) - Indian Economy

 
This is one way how depreciation is used in economics. 

The second way it is used in the external sector while the domestic currency floats freely as against the foreign currencies. 

If the value of the domestic currency falls following the market mechanism in comparison to a foreign currency, it is a situation of 'depreciation' in the domestic currency, calculated in terms of loss in value of the domestic currency.

Thus, NDP = GDP - Depreciation.

This way, the NDP of an economy has to be always lower than its GDP for the same year, since there is no way to cut the depreciation to zero. But mankind has developed several techniques and tools such as 'ball-bearings, 'lubricants', etc. to cut the loss due to depreciation.

The different uses of concepts of NDP are as given below:

  • For domestic use only: to understand the historical situation of the loss due to depreciation to the economy. Also used to understand and analyze the sectoral situation of depreciation in industry and trade in comparative periods.

However, NDP is not used in comparative economics, i.e., to compare the economies of the world. This is due to different rates of depreciation which are set by different economies of the world. Rates of depreciation may be based on logic (as it is in the case of houses in India-the cement, bricks, sand and iron rods which are sued to build houses in India can sustain it for the coming 100 years, thus the rate of depreciation is fixed at 1% annum). But it may not be logical all the time, for example, up to February 2000 the rate of depreciation for heavy vehicles was 20% while it was raised to 40% afterward- to boost the sales of heavy vehicles in the country. There was no logic in doubling the rate. Basically, depreciation and its rates are also used by modern governments as a tool of economic policymaking, which is the third way how depreciation is used in economics. 

👉 Previous Page:Gross Domestic Product (GDP) - Indian Economy

👉 Next Page:Direct Benefit Transfer (DBT) - Indian Economy

Share:

Monday, May 31, 2021

Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-1 (झारखंड की आदिम जनजातियां Part-1)

Jharkhand Ki Aadim Janjatiyan Part-1

Mal Paharia

➧ माल पहाड़िया एक आदिम जनजाति है जिसका संबंध प्रोटो और ऑस्ट्रोलॉयड समूह से है
➧ रिजले के अनुसार इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह से है
 रसेल और हीरालाल के अनुसार यह जनजाति पहाड़ों में रहने वाले सकरा जाति के वंशज हैं

झारखंड की आदिम जनजातियां Part-1

➧ बुचानन हेमिल्टन ने इस जनजाति का सम्बन्ध मलेर से बताया है 
इनका संकेन्द्रण मुख्यत संथाल परगना क्षेत्र में पाया जाता  है परन्तु यह जनजाति संथाल क्षेत्र के साहेबगंज को छोड़कर शेष क्षेत्रों में पायी जाती है 
➧ इनकी भाषा मालतो है जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित है 

➧ समाज एवं संस्कृति

➧ इस जनजाति में पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय सामाजिक व्यवस्था पाई जाती है 
 इस जनजाति में गोत्र नहीं होता है
➧ इस जनजाति में अंतर विवाह की व्यवस्था पाई जाती है
इस जनजाति में वधु -मूल्य (पोन या बंदी)  के रूप में सूअर देने की प्रथा है क्योंकि सुअर इनके आर्थिक और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है 
➧ इस जनजाति में अगुवा (विवाह हेतु कन्या ढूंढने वाला व्यक्ति) को सिथ सिद्धू या सिथूदार कहा जाता है
➧ इस जनजाति में वर द्वारा सभी वैवाहिक खर्चों का भुगतान किया जाता है
➧ इनके गांव का मुख्य मांझी कहलाता है, जो ग्राम पंचायत का प्रधान भी होता है
➧ इस जनजाति ने माघ माह में माघी पूजा तथा अगहन माह में घंघरा पूजा की जाती है
➧ यह जनजाति कृषि कार्य के दौरान खेतों में बीज बोते समय बीचे आड़या नामक पूजा (ज्येष्ठ माह में) तथा फसल की कटाई के समय गांगी आड़या पूजा करती है
➧ बाजरा के फसल की कटाई के समय पुनु आड़या पूजा की जाती है 
➧ करमा, फगु और नवाखानी इस जनजाति के प्रमुख त्यौहार है    

आर्थिक व्यवस्था

➧ इनका मुख्य पेशा झूम कृषि, खाद्य संग्रहण एवं शिकार करना है 
➧ इस जनजाति में झूम खेती को कुरवा कहा जाता है  
➧ इस जनजाति में भूमि को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है 
➧ ये हैं - सेम भूमि (सर्वाधिक उपजाऊ), टिकुर भूमि (सबसे कम उपजाऊ), डेम भूमि (सेम व् टिकुर के बीच) तथा बाड़ी भूमि (सब्जी उगते हेतु प्रयुक्त)
➧ इस जनजाति में उपजाऊ भूमि को सेम कहा जाता है

धार्मिक व्यवस्था

➧ इनके प्रमुख देवता सूर्य एवं धरती गोरासी गोसाईं है 
➧ धरती गोरासी गोसाईं को वसुमति गोसाई या वीरू गोसाईं भी कहा जाता है
➧ इस जनजाति में पूर्वजों की पूजा का विशेष महत्व दिया जाता है 
➧ इनके गांव का पुजारी देहरी कहलाता है

                                                                             👉 Next Page:झारखंड की आदिम जनजातियां Part-2
Share:

Sunday, May 30, 2021

Gross Domestic Product (GDP) - Indian Economy

Gross Domestic Product (GDP) 

Gross Domestic Product (GDP) is the value of all final goods and services produced within the boundary of a nation during one year period. For India, this calendar year is from 1st April to 31st March.

It is also calculated by adding;

Gross Domestic Product (GDP) - Indian Economy

The use of the exports-minus-imports factor removes expenditures on imports not produced in the nation and adds expenditures on goods and services produced which are exported but not sold within the country.


The different uses of the concept of GDP are given below:

  • Per annum percentage change in it is the 'growth rate' of an economy. For example, if a country has a GDP of Rs.107 which is 7 rupees higher than the last year, it has a growth rate of 7%. When we use the term ' a growing ' economy, it means that the economy is adding up its income.


  • This is the most commonly used data in comparative economics. The GDPs of the member nations are ranked by the IMF at purchasing power parity (PPP). India's GDP is today 3rd largest in the world at PPP (after China and the USA). While at the prevailing exchange rate of Rupee (into the US dollars) India's GDP is ranked 6th largest in the world.

Share:

Saturday, May 29, 2021

Santali Grammar (Noun) संज्ञा (ञुनुम)

Santali Grammar (Noun) संज्ञा (ञुनुम)

किसी व्यक्ति ,वस्तु, स्थान, भाव आदि के नाम को संज्ञा कहते है। 
अर्थ के आधार पर संताली में संज्ञाएँ निम्नलिखित है।  
1) जातिवाचक संज्ञा -(Common Noun) जा़त ञुनुम :- जिस संज्ञा शब्दों से जाति का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे गाय (डंगरी), नदी (गाडा)  इत्यादि।

Santali Grammar (Noun) संज्ञा (ञुनुम)

2) व्यक्तिवाचक संज्ञा -(Proper Noun) ञुतूम ञुनुम
 :- जिस संज्ञा शब्दों से किसी खास व्यक्ति, वस्तु या स्थान का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं 
। जैसे :-राम, कृष्ण, हिमालय, (स्थान का नाम) चंपा फूल इत्यादि।

3) समूह वाचक संज्ञा (Collective Noun) गादेल ञुनुम :- जिस संज्ञा शब्दों से समूह का बोध होता है, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे -मेला (पाता), सेना (फाद) आदि। 


5) भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) गुनान ञुनुम :- जिस संज्ञा शब्दों से किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण या धर्म, दशा, स्वभाव, आदि का बोध होता है, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे :- बलवान (दाड़ेयान), कसैलापन (कासा), बुढ़ापा (हड़ाम) आदि।


Share:

Jharkhand Me Paryavaran Sanrakshan (झारखंड में पर्यावरण संरक्षण)

Jharkhand Me Paryavaran Sanrakshan 

झारखंड में पर्यावरण को संरक्षित करने हेतु लिए गए महत्वपूर्ण कार्य

 PMIS : प्लांटेशन मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम

 NMIS :नर्सरी मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम

➧ वन और इसके आसपास रहने वाले लोगों को वृक्षारोपण से जोड़ने के लिए वन पट्टा का नियम सरल बनाया जा रहा है 
➧ वन विभाग में वन-पट्टा प्राप्त करने वालों का नाम रजिस्टर-2 में दर्ज करने का आदेश दिया है इसमें पट्टा पाने वाले की पूरी विवरण दर्ज रहेगा।
➧ ऐसे भूमि का दाखिल खारिज नहीं होगा, क्योंकि वनभूमि का लगान तय करने का अधिकार सरकार के पास है
➧ जंगलों के विस्तार एवं वृक्षारोपण को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए वन विभाग के अधिकारियों को इलाके में भ्रमण कर रिपोर्ट देने के लिए तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है 
➧ इसी का काम के लिए (PMIS)प्लांटेशन मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम और (NMIS) नर्सरी मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम एप्लीकेशन उपलब्ध कराए गए हैं

झारखंड में पर्यावरण संरक्षण

मुख्यमंत्री जन-वन योजना-2015

➧ इस योजना के तहत निजी भूमि पर वृक्षारोपण प्रोत्साहन की एक महत्वकांक्षी योजना है
➧ इस योजना के अंतर्गत प्रति एकड़ काष्ठ प्रजाति के 445 पौधों तथा फलदार प्रजाति के 160 पौधों का रोपण किया जा सकेगा
➧ मेड़ पर काष्ठ प्रजाति के 445 पौधे लगाने पर इसे 1 एकड़ के समतुल्य समझा जाएगा
➧ लाभुक के लिए वृक्षारोपण की न्यूनतम सीमा 1 एकड़ और अधिकतम सीमा 50 एकड़ होगी
➧ प्रोत्साहन स्वरूप वृक्षारोपण एवं उसके रख-रखाव पर हुए व्यय के 75% अंक की प्रतिपूर्ति विभाग द्वारा की जाएगी


झारखंड इको-टूरिज्म नीति-2015 

स्थान                 जिला
पारसनाथ         :    गिरिडीह
कैनहरी हिल     :    हजारीबाग 
फॉसिल पार्क     :   साहिबगंज
त्रिकूट पर्वत      :    देवघर
पलामू व्याघ्र परियोजना : लातेहार
तिलैया डैम       :   कोडरमा
नेतरहाट          :     लातेहार
दलमा गज अभयारण्य  : जमशेदपुर

मूलभूत संरचनाएं

(i) राज्य में इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने हेतु स्थानीय गांवों  में लोगों को 'नेचर गाइड' के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आय में भी वृद्धि की जा सके
(ii) सड़क, बिजली, पानी की व्यवस्था और पर्यटकों के ठहरने हेतु आवासीय सुविधाएं और मनोरंजन हेतु साधन विकसित करना
(iii) वन पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना

डोभा निर्माण

➧ राज्य सरकार ने सूखे की समस्या से निपटने हेतु 2016  में मनरेगा के तहत डोभा निर्माण कार्य प्रारंभ किया है, जिसमें वर्षा जल को संचित किया जा सके
➧ पुरे राज्य में 6 लाख डोभा निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है। 
➧ 2016-17 में डोभा निर्माण हेतु 200 करोड़ रूपये प्रस्तावित था 
➧ पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए जल प्रोतों को प्राकृतिक स्वरुप में बनाए रखना-मुख्य उद्देश्य है 

प्रधानमंत्री कृषि कृषि सिंचाई 

 योजना के तहत केंद्र एवं राज्य सरकार की हिस्सेदारी 60:40 का है
➧ इसके तहत झारखंड में सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए जलछाजन का कार्य किया जा रहा है राज्य के ऊबड़ खाबड़  स्थलाकृति होने के कारण वर्षा जल का 70% भूमिगत हो जाता है
➧ राज्य में सिंचित भूमि का प्रतिशत 12 पॉइंट 1 प्रतिशत है, अतः 88% भूमि पर वर्षा जल का संरक्षण आवश्यक है
➧ देश में झारखंड पहला राज्य है, जहां जलछाजन विषय पर (Diploma in water Shed Management) "डिप्लोमा इन वॉटर शेड मैनेजमेंट" पाठ्यक्रम झारखंड राज्य जलछाजन मिशन के सहयोग से इग्नू द्वारा संचालित किया जा रहा है

समेकित जल छाजन प्रबंध कार्यक्रम

 नवंबर 2016 ईस्वी तक इस योजना के अंतर्गत 5744 वर्षा जलछाजन योजना प्रारंभ किया जा चुका है
➧ यह पांच 5 वर्षों का कार्यक्रम है
➧ विश्व बैंक एवं राज्य सरकार के 60:40 के अनुपात में नीरांचल-निरंजन राष्ट्रीय जलछाजन योजना द्वारा राज्य में चल रहे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की तकनीकी दृष्टिकोण से मजबूत बनाना है
➧ 2 जिलों रांची और धनबाद में शहरी जलछाजन कार्य के लिए पायलट परियोजना चलाई जा रही है

जापान इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी (JICA)

➧ इसका उद्देश्य है बागवानी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से माईक्रोड्रीप नामक योजना 30 प्रखंडों में प्रारंभ किया जा रहा है
➧ इस योजना के तहत जापान सरकार 282 पॉइंट 20 करोड़ की स्वीकृति मिल चुकी है

झारखंड में वनीकरण हेतु कार्य 

 झारखंड राज्य के शहरी क्षेत्र में पर्यावरण के संरक्षण तथा पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के प्रति नागरिकों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से छोटे मनोरंजन उद्यान आदि का निर्माण वन विभाग द्वारा किया जा रहा है
➧ ग्रामीणों को लाह की खेती से स्वरोजगार एवं सिंहभूम, लातेहार, सिमडेगा, गुमला, पलामू, सरायकेला, गढ़वा, गिरिडीह, दुमका, देवघर, आदि में 1750 संयुक्त वन प्रबंधन समिति, स्वयं सहायता समूह के माध्यम से 1,75,000 लाह पोषक वृक्षों पर लाह की खेती की गई है

CAMPA (Compensatory Afforestation Fund of Management and Planning)

➧ प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण का गठन 2002 ईस्वी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया गया है 
➧ 2 जुलाई, 2009 ईस्वी में राज्य कैम्पा का गठन किया गया है
➧ कैम्पा कोष से सम्बंधित कैम्पा कानून 2016 ईस्वी में संसद द्वारा पारित किया गया है 

वनबंधु योजना 

➧ जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार से वर्ष 2015-16 में दो करोड़ की राशि की स्वीकृति प्रदान की गई है 
➧ पाकुड़ जिले के लिट्टीपड़ा प्रखंड को पायलट प्रखंड के रूप में चयन किया गया है, जिसमें आवश्यक मानव संपदा एवं कार्यालय संरचना, जल संचयन संरचना के अंतर्गत नया तालाब एवं चेक डैम तथा स्वास्थ्य क्षेत्र के आजीविका संवर्धन स्वास्थ केंद्र एवं एंबुलेंस क्रय की योजनाएं शामिल की गई
➧ वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन्य निवासी, जो वर्ष 2006 से पूर्व से वनों में निवास कर रहे हैं एवं जीवन यापन हेतु वनोत्पाद पर निर्भर है, को वन भूमि का पट्टा वितरण किया जाता है

कचरों  के प्रबंधन हेतु राज्य सरकार के कार्य

➧ पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले करणों में एक प्रमुख कारण महानगरों एवं नगरों से निकलने वाला कचड़ा (सॉलि़ड वेस्ट) है अतः कचड़ा कचरा प्रबंधन पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक हो गया है
➧ झारखंड में रांची, धनबाद, चाकुलिया और पाकुड़ में पी.पी.पी मोड पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट योजना की मंजूरी सरकार द्वारा हो गई है
➧ स्वच्छ भारत मिशन जो 2015 में केंद्र सरकार द्वारा प्रारंभ किया गया है 
➧ इसके तहत शहरी क्षेत्रों में कचरे का आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थापन करते हुए 2 अक्टूबर, 2019 तक पूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करना है 
➧ इसी उद्देश्य से रांची नगर निगम की सफाई व्यवस्था का काम अगले 25 साल तक के लिए निजी कंपनी 'एक्सेल इंफ्रा' को सौंपा गया है 
➧ 'एक्सेल इंफ्रा' की ज्वाइंट वेंचर जापानी कंपनी 'हिताची' रांची से निकलने वाले कचरे पर आधारित बिजली उत्पादन प्लांट लगाएगी 

JSPCB (Jharkhad State Pollution Control Board)

➧ राज्य में प्रदूषण नियंत्रण तथा इससे सम्बंधित मामलों पर नियंत्रण रखने हेतु झारखण्ड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना 2001 में की गई है 
➧ यह एक नियामक निकाय है जो उद्योगों को पर्यावरण संरक्षण हेतु उच्च तकनीकों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करता है 

पर्यावरण से जुड़े दिवस

➧ प्रमुख दिवस                     दिनांक 
विश्व वानिकी दिवस     -     21 मार्च
विश्व जल दिवस          -     22 मार्च 
विश्व स्वास्थ्य दिवस       07 अप्रैल 
पृथ्वी दिवस                     22 अप्रैल
विश्व ओजोन दिवस         16 सितंबर
विश्व वन्यजीव दिवस       03 मार्च 
विश्व जैव विविधता दिवस 22 मई 
तंबाकू मुक्ति दिवस           31 मई 
विश्व पर्यावरण दिवस        05 जून
विश्व जनसंख्या दिवस       11 जून 
विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस - 26 नवंबर
राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस - 02 दिसंबर

Share:

Friday, May 28, 2021

Jharkhand Me Paryavaran Sambandhit Tathya (झारखंड में पर्यावरण संबंधित तथ्य)

Jharkhand Me Paryavaran Sambandhit Tathya  

(झारखंड में पर्यावरण संबंधी तथ्य एवं परिवर्तन अपशमन एवं अनुकूल संबंधी विषय)

पर्यावरण शब्द का शाब्दिक अर्थ :- आस-पास, मानव जंतुओं तथा पौधों की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले बाह्य दशाएं, कार्यप्रणाली तथा जीवन-यापन की परिस्तिथियां आदि होती है। 

➧ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार, पर्यावरण किसी जीव के चारों तरफ घिरे भौतिक एवं जैविक दशाएं एवं उनके साथ अंत: क्रिया को सम्मिलित करता है। 

झारखंड में पर्यावरण संबंधित तथ्य

➧ पर्यावरण के घटक 

(i) अजैविक पर्यावरण
(ii) जैविक पर्यावरण

(i) अजैविक पर्यावरण

(i) स्थलमंडलीय पर्यावरण
(ii) वायुमंडलीय पर्यावरण
(iii) जलमंडलीय पर्यावरण 

(ii) जैविक पर्यावरण

(i) वनस्पति पर्यावरण
(ii) जंतु पर्यावरण 

➧ सब जगह पाया जानेवाला अभिप्राय से है हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। 
 
➧ पर्यावरण हमारे चारों ओर फैला हुआ है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अंदर संपादित होती है तथा हम मनुष्य अपने समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण में प्रभाव डालते हैं। 
 इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच एक दूसरे पर पारस्परिक आश्रित संबंध स्थापित करते हैं
➧ पर्यावरण के जैविक संघटकों के सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों आ जाते हैं, और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ प्रक्रिया भी
➧ अजैविक संघटकों  में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती है :- जैसे चट्टानें, पर्वत,  नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि 

 पर्यावरण से जुड़े विषय

➧ वर्तमान में पर्यावरण से जुड़े विषयों में जैव विविधता एवं उनका संरक्षण, पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव अर्थात पर्यावरण प्रदूषण आदि को शामिल किया जाता है 
➧ पर्यावरण प्रदूषण का व्यापक प्रभाव जैव विविधता पर पड़ा है जैव विविधता का अभिप्राय किसी स्थान-विशेष में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों की कुल संख्या और प्रत्येक प्रजाति में पाई जाने वाले अनुवांशिक भिन्नता से है➧ पृथ्वी पर विभिन्न प्रजातियों के असंख्य जीव निवास करते हैं ये भिन्न प्रकार के जीव एक-दूसरे से अनेक रूपों में भिन्न होते हुए एक-दूसरे पर निर्भर है 
➧ एक-दूसरे पर भोजन के लिए निर्भरता एवं जैव विविधता के कारण पर्यावरण में संतुलन स्थापित होता हैजितनी अधिक जैव विविधता होगी, उतना ही पर्यावरण में अधिक संतुलन होगा
➧ जैव विविधता शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले डब्लू जी.रोजेन ने 1950 ईस्वी में किया था
➧ प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है इसे विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस भी कहते हैं 

 झारखंड पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य 

➧ झारखंड की जलवायु तथा उसकी औद्योगिक स्थित झारखण्ड को जैव विविधता में काफी धनी राज्य बनाता है 
➧ झारखंड के जंगलों में कई तरह के पेड़, औषधीय पौधे, घास, फूल इत्यादि मौजूद है
 प्रमुख जैव विविधता से पूर्ण स्थान पिठोरिया घाटी, नेतरहाट की पहाड़ी, सारंडा का जंगल, पारसनाथ की पहाड़ी, दलमा की पहाड़ी है 
➧ प्रमुख नदियों में कोयल, दामोदर और स्वर्ण रेखा के क्षेत्र के जंगल जैव विविधता में धनी है, लेकिन बढ़ता पर्यावरणीय  प्रदूषण जैव विविधता के क्षरण का कारण बनता जा रहा है 

➧ झारखंड में पर्यावरण से जुड़े विषय 

वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड सरकार के अनुसार 2015 ईस्वी में 23605 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर वनावरण था, जो कि झारखंड के कुल क्षेत्रफल का 26 पॉइंट 61 प्रतिशत था 
➧ झारखंड राज्य के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने हेतु व्यापक पैमाने पर वन रोपण अभियान चलाया जा रहा है➧ वृक्षारोपण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों में मुख्य हैं :- मुख्यमंत्री जन-वन योजना 
➧ अफ्रीकी मूल का कल्पतरु वृक्ष, जो चिकित्सीय महत्व के लिए प्रसिद्ध है, पूरे भारत में इसकी संख्या 9 है जिसमें 4 रांची में है इस वृक्ष की खासियत अतिशुष्क वातावरण के समय जल भंडारण की अत्यधिक क्षमता होती है 
तथा इसमें कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन और कैल्शियम 
.
काफ़ी मात्रा में पाया जाता है
➧ शिवलिंगम फूल काफी आकर्षक होता है लाल और सफेद रंग के ये फूल मनमोहन खुशबू बिखरते हैं यह हिमाचल प्रदेश की तराई क्षेत्र में पाया जाता है इसके फूल से आस-पास काफी दूर तक क्षेत्र सुगंधित हो जाता है देवघर में रूट काँवरिया पथ में इसे लगाया जा रहा है
➧ इसके अलावा प्रदेश में रुद्राक्ष, हाथी कुंभी, सोला छाल और मेघ के पेड़ों पर रिसर्च किया जा रहा है 
➧ मेघ का पेड़ काफी संख्या में पाया जाता था, लेकिन इसकी संख्या घटती जा रही है इसके छाल का उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाता है 
➧ सखुआ का पेड़, जो झारखंड का प्रमुख वृक्ष है इससे पेड़ के आस-पास पौधों को प्राकृतिक रूप से जीव विविधता में सहयोग मिलता है पर्यावरण के लिहाज से काफी बेहतर है एशिया के सबसे घने जंगल सारंडा में काफी संख्या में पाया जाता है
➧ गिद्ध मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। इसलिए इन्हें प्राकृतिक सफाई कर्मी कहा जाता है
➧ 9 प्रजातियां जातियां पाई जाती है, जिसमें से (IUCN) आईयूसीएन की सूची के अनुसार 3 प्रजातियां विलुप्त के कगार पर है 
झारखण्ड में गिध्दों की 3 प्रजातियाँ पायी जाती हैं 

➧ 1980 के दशक में इनकी संख्या हजारों में थी, परंतु पिछले 28 सालों में इनकी संख्या में 97% की कमी आई हैइनके विलुप्त का मुख्य कारण 'डाइक्लोफेनेक' दर्द निवारक दवा है 
➧ इनका प्रयोग पशुओं के इलाज में होता है ये  पशु जब मृतप्राय होते हैं तो इनके शरीर के अवशेषों को खा कर मर जाते हैं गिद्धों की संख्या के कमी के दूसरे कारणों में प्रमुख है- पेड़ों की कटाई, जिस कारण घोंसले बर्बाद होते हैं और अगली पीढ़ी जन्म नहीं ले पाते हैं
 
➧ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची- 1 में गिद्ध को संरक्षण प्राप्त है इस एक्ट के अनुसार किसी भी तरह से गिद्ध का नुकसान पहुंचाना कानूनन जुर्म है

➧ ऐसा करने पर कम-से-कम 3 से 7 साल की सजा या 25000 हज़ार रूपये जुर्माना या दोनों हो सकता है

➧ डाइक्लोफेनेक दवा का इस्तेमाल भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है


                                                                                     👉 Next Page:झारखंड में पर्यावरण संरक्षण

 
Share:

Unordered List

Search This Blog

Powered by Blogger.

About Me

My photo
Education marks proper humanity.

Text Widget

Featured Posts

Popular Posts