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Sunday, January 17, 2021

jharkhand ke lokgeet (झारखंड के लोकगीत)

झारखंड के लोकगीत

Jharkhand Ke Lokgeet


जनजातियों का लोकगीत उनके जीवन पद्धति और सांस्कृतिक धारा का दर्पण है

जनजातीय लोकगीतों में सुख-दुख, हर्ष-विषाद और खुशी-निराशा की झलक मिलती है 

आकर्षक, उत्कंठा, वेदना, आनंद, सुनहरे अतीत की याद, जातीय आदर्श के पालन का आह्वान आदि इनके गीतों के मुख्य विषय होते हैं
 
जनजातियों लोकगीतों को दो भागों में विभाजित किया जाता है

पहला :-महिलाओं के द्वारा गाए जाने वाले लोकगीत, जैसे:-  जनानी , झूमर,  डोमकच, झूमता, अंगनई,  वियाह , झांझइन इत्यादि

दूसरा :- पुरुषों का लोकगीत जिसमें सभी प्रकार के गीत सम्मिलित हैं 

अन्य लोकगीतों में संस्कारगीत, गाथागीत, बीजमैल, सलहेस, दोना  भदरी, पर्वगीत , ऋतुगीत, पेशागीत, जातीयगीत आदि प्रमुख हैं 

संथालों  लोकगीतों  की संख्या बहुत अधिक है 

मौसम के अनुसार संथाली गीतों में दोड, लागेड़े ,सोहराई, मिनसार , बाहा , दसाय ,पतवार आदि प्रमुख है


जनजाति       
लोकगीत 

संथाल:-                           ⧪दोड (विवाहित संबंधी लोकगीत)

                                        विर सेरेन (जंगल लोकगीत) 

                                         सोहराय, लगड़े ,मिनसार, बाहा, दसाय, 

                                         पतवार, रिजा, डाटा, डाहार,मातवार

                                         भिनसार, गोलवारी, धुरु मजाक, रिंजो, झिका आदि                                                                     

मुंडा:-                               जदुर, (सरहुल/बाहा पर्व से संबंधित लोकगीत)

                                         गेना व ओर  जदुर( जदुर लोकगीत के पूरक)

                                        ⧪अडन्दी (विवाहित संबंधी लोकगीत)

                                        ⧪जापी (शिकार संबंधी लोकगीत)

                                        ⧪जरगा, करमा  

हो:-                                 वा (बसंत लोक गीत)

                                       ⧪ हैरो (धान की बुवाई के समय गाया जाने वाला लोकगीत)

                                       नोम नामा ( नया अन्न खाने के अवसर पर 

                                          गाया जाने वाला लोकगीत)

उरांव:-                             सरहुल (बसंत लोक गीत)

                                        जतरा  (सरहुल के बाद गाया जाने वाला लोकगीत)

                                         करमा (जतरा के बाद गाया जाने वाला लोकगीत)

                                        धुरिया, अषाढ़ी, जदुरा , मट्ठा आदि 

प्रमुख लोकगीत व उनके गाए जाने के अवसर 

लोकगीत             गाए जाने का असर 

झांझइन :-                        जन्म  संबंधी संस्कार के अवसर पर स्त्रियों  

                                         द्वारा गाया जाता है 


डइड़धरा :-                      वर्षा ऋतु में देवस्थानों में गाया जाता है 


प्रातकली :-                      इसका प्रदर्शन प्रात:काल किया जाता है 


अधरतिया:-                     इसका प्रदर्शन मध्य रात्रि में किया जाता है


कजली :-                        इसका गायन वर्षा ऋतु में किया जाता है

                                       टुनमुनिया , बारहमास  तथा  झूलागीत 

                                      स्थानीय संगीत के प्रकार है जो कजली की

                                       ही श्रेणी में आते हैं

औंदी:-                           यह गीत विवाह के समय गाया जाता है


अँगनई :-                       यह  स्त्रियों द्वारा गाया जाता है


झूमर:-                           इस गीत को विभिन्न त्योहारों

                                      (जैसे :- जितिया, सोहराई, करमा आदि) के अवसर   

                                      पर झूमर राग में गाया जाता है                         


उदासी तथा पावस :-    यह नृत्यहीन गीत है उदासी गर्मी के समय तथा

                                     पावस  वर्षा  के शुरू में गाया जाता  है                                                              

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Friday, January 15, 2021

Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1(छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908)

Chotanagpur Kashtkari Adhiniyam 1908 Part-1


छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908

'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम', का प्रारूप 1903 तक तैयार हो गया था

जिसमें संशोधन एवं परिवर्तन करते हुए 11 नवंबर 1908 को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 लागू कर दिया गया

इस अधिनियम को भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 की धारा-5 के अधीन गवर्नर जनरल की मंजूरी से अधिनियमित किया गया
 
इस अधिनियम का ब्लू प्रिंट जॉन एच हॉफमैन ने तैयार किया था

इस अधिनियम में कुल 19 अध्याय और 271 धाराएं हैं

अध्यायों का संक्षिप्त विवरण :- 

💥अध्याय-1 में (धारा -1 से धारा-3 तक) 

➤धारा -1  संक्षिप्त नाम तथा प्रसार:-इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम 'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम', 1908 है।
  
इसका प्रसार उत्तरी छोटानागपुर और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में होगा । 

जिसमें वे क्षेत्र या उन क्षेत्रों के भाग भी शामिल होंगे, जिनमें उड़ीसा, बिहार नगर पालिका अधिनियम, 1922 के अधीन कोई नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र समिति गठित हो या किसी छावनी के भीतर पड़ते  हो। 

➤धारा -2 निरसन:-  अनुसूची 'क' में निर्दिष्ट अधिनियमों  और अधिसूचना को छोटानागपुर प्रमंडल में निरसित किया जाता है
 
अनुसूचित 'ख'  में निर्दिष्ट अधिनियमों  को धनबाद जिले में तथा सिंहभूम में पटमदा, ईचागढ़ , और चांडिल  थानाओ में निरसित किया जाता है 

➤धारा -3 परिभाषाएं :- 

कृषि वर्ष :- वह वर्ष जो किसी स्थानीय क्षेत्र में कृषि कार्य हेतु प्रचलित हो। 

➤भुगुतबन्ध बंधक :-किसी काश्तकार  के हित का उसके काश्तकारी  से -उधार स्वरूप दिए गए धन के भुगतान को बंधक रखने हेतु इस शर्त पर अंतरण, कि उस पर के ब्याजों के साथ उधार- बंधक की कालावधि के दौरान कश्तकारी से होने वाले लाभों से वंचित समझा जाएगा

➤जोत :- रैयत  द्वारा धारित एक या अनेक भूखंड

➤कोड़कर/ कोरकर:- ऐसी बंजर भूमि या जंगली भूमि जिसे भूस्वामी के अतिरिक्त किसी कृषक द्वारा बनाई गयी हो 

भूस्वामी :- वह व्यक्ति जिसने किसी काश्तकार को अपनी जमीन दिया हो 

काश्तकार:- वह व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन भूमि धारण करता हो तथा उसका लगान चुकाने  का दायी हो। 

काश्तकार के अंतर्गत भूधारक, रैयत तथा खुंटकट्टीदार तीनों को शामिल किया गया है  

लगान :- रैयत द्वारा धारित भूमि के उपयोग या अधिभोग के बदले अपने स्वामी को दिया जाने वाला धन या  वस्तु 

➤जंगल संपत्ति :- के अंतर्गत खड़ी फसल भी आती है

मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी से अभिप्रेत है, मुंडारी-खुंटकट्टीदार का  हित 

➤भूघृति (TENURES):-भूधारक का हित इसके अंतर्गत मुंडारी-खुंटकट्टीदारी कश्तकारी नहीं आती है 

➤स्थायी भूघृति :- वंशगत भूघृति 

पुनग्रार्हय भूघृति :- वैसे भूघृति जो परिवार के नर वारिस नहीं होने पर, रैयत के निधन के बाद पुनः भूस्वामी को वापस हो जाए 

ग्राम मुखिया :- किसी ग्राम या ग्राम समूह का मुखिया। चाहे इसे मानकी,  प्रधान, माँझी  या अन्य किसी भी नाम से जाना जाता हो 

स्थायी  बंदोबस्त (परमानेंट सेटेलमेंट):- 1793 इसमें बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संबंध में किया गया स्थायी बंदोबस्त 

डिक्री (DECREE) :- सिविल न्यायालय का आदेश

💥अध्याय-2 में कश्तकारों के वर्ग (धारा- 4 से धारा- 8 तक)

➤धारा - 4 कश्तकारों के वर्ग 

कश्तका के अंतर्गत भूधारक (TENURE HOLDERS), रैयत (RAIYAT), दर रैयत तथा मुंडारी खुंटकट्टीदार  को शामिल किया गया है

➤अधिभोगी रैयत (OCCUPANCY RAIYAT) :- वह व्यक्ति जिसे धारित भूमि पर अधिभोग का अधिकार प्राप्त हो 

➤अनधिभोगी रैयत (NON-OCCUPANCY RAIYAT) :-वह व्यक्ति जिसे धारित भूमि पर अधिभोग का अधिकार प्राप्त ना हो 

खुंटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत OCCUPANCY RAIYAT)

धारा - 5  भूधारक :- ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी या दूसरे की जमीन खेती कार्य के लिए धारण किए हुए हैं एवं उसका लगान चुकाता हो

धारा -6 रैयत :- रैयत के अंतर्गत वैसे व्यक्ति शामिल है, जिन्हें खेती करने के लिए भूमि धारण करने का अधिकार प्राप्त हो

धारा -7  खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत :- वैसे रैयत जो वैसे भूमि पर अधिभोग का अधिकार रखते हों, जिसे उसके मूल प्रवर्तकों या उसकी नर परंपरा के वंशजों द्वारा जंगल में कृषि योग्य भूमि बनाई गई है, उसे खुंटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत कहा जाता है 

धारा -8 मुंडारी-खुंटकट्टीदार :-वह मुंडारी जो जंगल भूमि के भागो को जोत में लाने के लिए भूमि का धारण करने का अधिकार अर्जित किया हो, उसे मुंडारी-खुंटकट्टीदा कहा जाता है 

Next page: छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 Part- 2

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Thursday, January 14, 2021

Pragaitihasik Kal Me Jharkhand (प्रागैतिहासिक काल में झारखंड)

प्रागैतिहासिक काल में झारखंड

(Pragaitihasik Kal Me Jharkhand)



➤वह काल जिसके लिए कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है ,बल्कि पूरी तरह पुरातात्विक साक्ष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है उससे प्रागैतिहासिक इतिहासिक काल कहते हैं

प्रागैतिहासिक इतिहासिक

प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है

1) पुरापाषाण काल 

2) मध्य पाषाण काल

3) नवपाषाण काल

1) पुरापाषाण काल:-

इसका कालक्रम 25 लाख ईस्वी पूर्व से 10 हजार ईस्वी पूर्व माना जाता है


➤इस काल में कृषि का ज्ञान नहीं था तथा पशुपालन का शुरू नहीं हुआ था

➤इस काल में आग की जानकारी हो चुकी थी,किंतु उसके उपयोग करने का ज्ञान नहीं था 
 
झारखंड में इस काल के अवशेष हजारीबाग, बोकारो ,रांची, देवघर, पश्चिमी सिंहभूम, 

पूर्वी सिंहभूम इत्यादि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं

हजारीबाग से पाषाण कालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औजार मिले हैं

2) मध्य पाषाण काल:-

मध्य पाषाण काल का कालक्रम 10,000 ईसवी पूर्व से 4000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है


झारखंड में इस काल के अवशेष दुमका, पलामू, धनबाद , रांची, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से मिले हैं

3) नवपाषाण काल:-

नवपाषाण काल का कालक्रम 10,000 ईसवी पूर्व से 1,000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है

 इस काल में कृषि की शुरुआत हो चुकी थी 

इस काल में आग के उपयोग करना प्रारंभ कर चुके थे 

झारखंड में इस काल में अवशेष रांची, लोहरदगा, पश्चिमी  सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं 

छोटानागपुर प्रदेश में इस साल के 12 हस्त कुठार पाए गए हैं

नवपाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है

1) ताम्र पाषाण काल

2) कांस्य युग 

3) लौह युग

1) ताम्र पाषाण काल:- 

➤इसका कालक्रम 4,000 ईस्वी पूर्व  से 1000 ईसवी पूर्व तक माना जाता है

➤यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल तथा हड़प्पा पश्चात काल तीनों से संबंधित है 

पत्थर के साथ-साथ तांबे का उपयोग होने के कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा जाता है

मानव द्वारा प्रयोग की गई प्रथम धातु तांबा ही थी 

झारखंड में इस काल का केंद्र बिंदु सिंहभूम था  

इस काल में असुर,बिरजिया तथा बिरहोर जनजातियां तांबा गलाने तथा उससे संबंधित उपकरण बनाने की कला से परिचित थे 

झारखंड के कई स्थानों से तांबा की कुल्हाड़ी तथा हजारीबाग के बाहरगंडा से तांबे की 49 खानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं 

2) कांस्य युग:-

इस युग में तांबे में टिन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था तथा उससे बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था  

छोटानागपुर क्षेत्र के असुर (झारखंड की प्राचीनतम जनजाति) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्य युगीन औजारों का प्रारंभकर्ता  माना जाता है 

3) लौह युग:- 

इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।  

झारखंड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को लौह  युग से निर्मित औजारों का प्रारम्भकर्ता  माना जाता है। 

असुर तथा बिरजिया  जनजातियों के जनजातियों ने  उत्कृस्ट लौह तकनीकी का विकास किया। 

इस युग में झारखंड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्यों से भी था। 

झारखंड में निर्मित लोहे को इस युग में मेसोपोटामिया तक भेजा जाता था,जहां दश्मिक  में इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था। 

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Jharkhand Me Sanchar Vyavastha (झारखंड में संचार व्यवस्था)

Jharkhand Me Sanchar Vyavastha

(झारखंड में संचार व्यवस्था)

झारखंड में संचार के मुख्य साधन:- डाक तार, रेडियो,  दूरभाष, दूरदर्शन तथा समाचार पत्र-पत्रिकाएं हैं 

राज्य में आकाशवाणी के पास केंद्र है :- रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर, मेदिनीनगर व चाईबासा

इसके मुख्य केंद्र - रांची और जमशेदपुर में है

झारखंड में अभी ऑल इंडिया रेलवे स्टेशन के 13 केंद्र हैं। इसके मुख्य केंद्र - रांची एवं जमशेदपुर में  अन्य आकाशवाणी के स्थानीय रेडियो स्टेशन (एल आर सी) है :-  हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, मेदनीनगर ,चाईबासा, चतरा ,देवघर,गढ़वा, घाटशिला, गुमला

राज्य में दूरदर्शन का प्रथम केंद्र 1974 (छठी पंचवर्षीय योजना) रांची में स्थापित किया गया

वर्तमान में मेदनीनगर (डालटेनगंज) तथा जमशेदपुर में भी दूरदर्शन केंद्र कार्यरत हैं। 

राज्य में केवल 26 पॉइंट 8% (जनगणना 2011) घरों में टीवी है यह अखिल भारतीय औसत (47. 2%) से बहुत कम है

झारखंड में टीवी कवरेज पूरे भारत के औसत कवरेज का आधा है

राज्य में इंटरनेट का प्रचलन भी बहुत कम है। यहां प्रति एक लाख आबादी पर इंटरनेट कनेक्शनो की संख्या 151 है, जो कि राष्ट्रीय औसत 1919 से काफी कम है

राज्य में आधुनिक पत्रकारिता का आरंभ जी0 एल0 चर्च, रांची के द्वारा 1 दिसंबर 1872 से 'घर-बंधु' नामक पत्रिका प्रकाशित होने के साथ हुआ

झारखंड का पहला दैनिक 'राष्ट्रीय भाषा' 1950 से प्रकाशित होना शुरू हुआ

15 अगस्त 1963  से सप्ताहिक रांची एक्सप्रेस का प्रकाशन आरंभ हुआ

वर्तमान झारखंड में कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रहे हैं

झारखंड में कुल डाकघरों की संख्या 3094 है, जो प्रति एक लाख लोगों पर डाकघरों की संख्या 1 पॉइंट 06  है, जबकि भारत में यह संख्या 1.50 है

आधारभूत संरचना के क्षेत्र में संचार सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है

राज्य प्रशासन ने संचार व्यवस्था के महत्व को देखते हुए इसे सुदृढ़ करने के लिए कई कदम उठाए हैं

झारनेट:-

झारनेट :- सरकार द्वारा 'झारखंड स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क' (Jharkhand State Wide Area Network) की स्थापना 2005-06 में की गई 

वर्तमान में झारनेट से सभी जिला मुख्यालयों, 45 अनुमंडल एवं 264 प्रखंडों में कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई गई है 

ई-ऑफिस:-

➤ई-ऑफिस:-  झारखंड सरकार ऑफिस को पेपरलेस  करने के उद्देश्य से ई-ऑफिस web-application झारखंड के सरकारी विभागों में कार्यों के अनुरूप कस्टमाइज तथा विकसित किया गया है 

इस परियोजना हेतु सूचना प्रौद्योगिकी एवं ई-गवर्नेंस विभाग नोडल विभाग है तथा जैप -आई टी क्रियान्वयन अभिकर्त्ता (Implementing Agency) है 

जैप -आई टी का गठन 29 मार्च 2004 को किया गया है 

ई-मुलाकात :- 

ई-मुलाकात :- यातायात के  लागत, ईंधन, व्यय  शुल्क इत्यादि में व्यय  को कम करने के लिए ई-मुलाकात की प्रणाली विकसित की गई है

इसमें वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई की जाती है

ई-प्रोक्योरमेंट :- 

ई-प्रोक्योरमेंट:- राज्य में विभिन्न प्रकार की निविदाओं की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने  के लिए पांच लाख और इससे ऊपर की  निविदाओं के लिए वर्तमान में 39 विभागों द्वारा प्रोक्योरमेंट की व्यवस्था अपनाई गई है

झारखण्ड स्टेट डाटा सेंटर:-

इसका निर्माण त्रिस्तरीय संरचनात्मक और क्लाउड आधारित है 

राज्य में स्टेट डाटा सेंटर 1 अगस्त 2016  से कार्यरत है मेसर्स ऑरेंज को सौंपा गया है  

इसके संचालन की देख-रेख एन.आई.सी. द्वारा गठित दल द्वारा की जाती है, जबकि ऑडिट का कार्य डेलोंइट द्वारा किया जाता है 

सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया(STPI):-

सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया:- झारखंड राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में  सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री को उत्कृष्ट स्तर की आधारभूत संरचना प्रदान करने के लिए इस पार्क की स्थापना की जा रही है

इसके उद्देश्यों को पूरा करने हेतु जमशेदपुर एवं सिंदरी में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ़ इंडिया का निर्माण कार्य शुरू हो गया है

इस कार्य के लिए 'जफ्रा' को परामर्शी (Consultant) के रूप में नियुक्त किया गया है

एम्.एस.डी.जी.

एम्.एस.डी.जी.:- राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार की सहायता से इस परियोजना की शुरुआत की गई है। 

इसमें आम नागरिकों की सुविधा के लिए दस्तावेजों को अपलोड किया गया है तथा आठ प्रकार के ई-फॉर्म्स  को शामिल किया गया है

कॉमन सर्विस सेंटर

कॉमन सर्विस सेंटर :- राज्य में 4460 ग्रामीण क्षेत्र एवं 233 शहरी क्षेत्र में कॉमन सर्विस सेंटर की स्थापना की गई है 

राज्य की 4562 ग्राम पंचायतों में एक-एक प्रज्ञा केंद्र स्थापित एवं संचालित किए जा रहे हैं 

पेमेंट गेटवे

पेमेंट गेटवे :- झारखंड सरकार द्वारा नागरिकों को सुगम, संवेदनशील, पारदर्शी और कठिनाई रहित सेवा उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था वर्ष 2013 से की गई है

इसका मुख्य उद्देश्य है कि नागरिक अपना कर, शुल्क अथवा सेवाओं के लिए उपेक्षित भुगतान भी घर बैठे या निकटतम प्रज्ञा केंद्रों इत्यादि के माध्यम से कर पाएं

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Wednesday, January 13, 2021

Jharkhand Ki Parivahan Vyavastha(झारखंड की परिवहन व्यवस्था)

Jharkhand Ki Parivahan Vyavastha


झारखंड की परिवहन व्यवस्था

➤किसी भी राज्य की आर्थिक जीवन में परिवहन के साधनों का काफी महत्व होता है
 

परिवहन के साधन राज्य की आर्थिक प्रगति तथा विकास के प्रतीक होते हैं

परिवहन के साधनों का महत्व न केवल उत्पादन के समुचित प्रादेशिक वितरण एवं क्षेत्रीय उत्पादनों  के लिए बाजार की सुविधा के संदर्भ में है, परंतु यह उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था के लिए भी अनिवार्य है

परिवहन के साधन

1) सड़क परिवहन 

2) रेल परिवहन 

3) वायु परिवहन 

1) सड़क परिवहन

सड़क परिवहन :- यह झारखंड में परिवहन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है 

झारखंड में कुल सड़क मार्ग की लंबाई 26,277 किलोमीटर है 

झारखंड राज्य में सड़क का घनत्व (सड़क किलोमीटर /1000 वर्ग किलोमीटर) 122 पॉइंट 33 है, जो राष्ट्रीय घनत्व 182 पॉइंट 40 से कम है 

झारखंड की सड़कों को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है :-

I) राष्ट्रीय राजमार्ग 
II) राजकीय राजमार्ग
III) लोक निर्माण विभाग की सड़कें 
IV) ग्रामीण सड़कें 

I) राष्ट्रीय राजमार्ग:-

राष्ट्रीय राजमार्ग :- ऐसे प्रमुख मार्ग जो 1 से अधिक राज्यों को मिलाते हुए गुजरते हैं, राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाते हैं 

राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 2678 पॉइंट 83 किलोमीटर है

राज्य से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल संख्या 23 है 

राज्य से गुजरने वाले प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग हैं :- राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 2, 6, 23, 31, 32, 33, 43, 75, 78,  80, 98, 99,100, 103B, 114A, 133A, 143A, 220, 333, 333A, 343 और 419  

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 32 और 33 राज्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजमार्ग हैं 

ये  बिहार और अन्य राज्यों के औद्योगिक क्षेत्रों को जोड़ते हैं 

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 33 झारखंड का सबसे लंबा (333 पॉइंट 5 किलोमीटर) राष्ट्रीय राजमार्ग है 

भारत के प्रमुख एक्सप्रेस मार्गो में से एक ग्राण्ड ट्रंक रोड (राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -2 ) झारखंड से होकर गुजरता है 

II) राजकीय राजमार्ग:-

राजकीय राजमार्ग :- इस श्रेणी में वैसे प्रमुख सड़कें आती हैं ,जो राज्य की राजधानी को जिला मुख्यालय से जोड़ते हैं

झारखंड में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 1777 पॉइंट 2 किलोमीटर है 

राजकीय राजमार्ग की देख-रेख, मरम्मत और निर्माण की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है  

यह सरकार के पी0 डब्ल्यू0 डी0  विभाग के जिम्मे है  

III) लोक निर्माण विभाग की सड़कें :-

लोक निर्माण विभाग की सड़कें:-  झारखंड में 5880 पॉइंट 89  किलोमीटर सड़कें लोक निर्माण विभाग की है। यह विभाग इसका निर्माण और रख-रखाव करता है

IV) ग्रामीण सड़कें

ग्रामीण सड़क :- ये प्रायः कच्ची सड़कें होती हैं, जिनका निर्माण स्थानीय पंचायत के सहयोग से किया जाता है

इनकी व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य के ग्रामीण अभियंत्रण संगठन की है। 

झारखंड के मात्र 50% गांव पक्की सड़कों से जुड़े हैं

2) रेल परिवहन:-

रेल परिवहन:- ईस्ट इंडिया रेल कंपनी द्वारा कोलकाता से राजमहल तक बनाए गए प्रथम रेल मार्ग के साथ ही झारखंड में सन 1860 -62 से रेल परिवहन का विकास शुरू हुआ था 

राज्य में प्रारंभिक रेल मार्गों का विकास उन्हीं क्षेत्रों में किया गया था, जहां कोयला, लोहा, आदि खनिजों को ढ़ोने  की आवश्यकता थी

राज्य में रेल मार्ग की कुल लंबाई 1,943 किलोमीटर है

राज्य में कुल 252 रेलवे स्टेशन हैं,जिनमे 97 बड़े स्टेशन हैं। 

धनबाद रेलवे स्टेशन राज्य का सबसे बड़ा स्टेशन है,जहां से सबसे अधिक राजस्व की प्राप्ति होती है

राज्य के कई जिले अभी भी रेल सुविधा से वंचित है

वर्तमान में झारखंड में दो रेलवे परिक्षेत्र है:- पूर्वी-रेलवे एवं दक्षिण-पूर्व रेलवे

राज्य में छ: नए रेलवे परियोजना का काम प्रगति पर है। जिसकी कुल लंबाई 565 किलोमीटर है

3) वायु परिवहन:- 

वायु परिवहन झारखंड में सबसे पहले हवाई अड्डे का निर्माण 1941 ईस्वी में हुआ था।                     

रांची स्थित हवाई अड्डे का नाम बिरसा मुंडा हवाई अड्डा है

रांची से नियमित वायु सेवा मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, कोलकाता,अहमदाबाद, भुवनेश्वर, हैदराबाद, जयपुर और पटना के लिए उपलब्ध है

राज्य में एयर इंडिया, इंडिगो, गो एयर, जेट एयरवेज, विस्तारा तथा एयर एशिया की एयर लाइनस  सुविधाएं बिरसा मुंडा हवाई अड्डा से उपलब्ध है

राज्य में रांची के अतिरिक्त जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो ,हजारीबाग, मोदीनगर, नोवामुंडी , चाकुलिया, गिरिडीह, देवघर, मैथन , दुमका आदि जगहों में हवाई पट्टियां बनाई गई हैं 

इन हवाओं की घेराबंदी,रनवे को बेहतर बनाने तथा टर्मिनल भवन स्थापित करने हेतु सरकार कदम उठाए जा रहे हैं 

➤अन्तर्राज्यीय नियमित उड़ान हेतु जमशेदपुर से 50 किलोमीटर की दूरी पर धालभूमगढ़ में हवाई पट्टी का निर्माण कराए जाने का कार्य प्रगति पर है 

राज्य में अभी भी प्रतिदिन विमान से यात्रा करने वाले यात्रियों की औसत संख्या बहुत कम है

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Wednesday, January 6, 2021

Jharkhand Ke Pramukh Lok Nritya (झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य)

Jharkhand Ke Pramukh Lok Nritya


झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य


छऊ नृत्य

यह झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण लोक नृत्य है
युद्ध भूमि से संबंधित यह लोक-नृत्य शारीरिक भाव-भंगिमाओं, ओजस्वी स्वरो  तथा पगो की धीमी व तीव्र गति द्वारा संचालित होता है

इस नृत्य की दो श्रेणियां हैं

1) हातियार श्रेणी तथा 
2) काली भंग श्रेणी 

सरायकेला राज-घराने में पल्लवित हुआ, इस नृत्य का विदेश में (यूरोप में) सबसे पहले प्रदर्शन 1938 में सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह ने करवाया था

यह ओजपूर्ण नृत्य शैली है, जिसमें पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाओं के मंचन के लिए पात्र तरह-तरह के मुखोटे धारण करते हैं


झारखंड की लोक शैली के नृत्यों में यह  पहला नृत्य है, जो सिर्फ दर्शकों के लिए प्रदर्शित होता है 

झारखंड के अन्य सभी लोक नृत्यों में सिर्फ भावभिव्यक्ति ही होती है। उनके साथ कोई प्रसंग या कथानक नहीं होता। 
छऊ में प्रसंग या कथानक हमेशा मौजूद रहता है
 
अन्य लोक नृत्यों के संचालन में किसी गुरु या प्रशिक्षित शिक्षक की उपस्थिति नहीं होती, किंतु छाऊ नृत्य में उस्ताद या गुरु की उपस्थिति आवश्यक होती है 

पाइका नृत्य 

यह एक ओजपूर्ण नृत्य है, जिसमें नर्तक  सैनिक वेश में नृत्य करते हैं। 
 
इसमें नर्तक  रंग-बिरंगे झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी बांधते हैं। 
यह एक प्रकार का युद्ध से संबंधित नृत्य है और 
मुंडा जनजातियों का एक प्रमुख नृत्य है। 

नटुआ नृत्य

यह  पुरुष प्रधान नृत्य है यह पाइका नृत्य का एकल रूप जैसा है।  
इसमें भी कलगी रह सकती है, परंतु यह अनिवार्य नहीं है।  


करिया झूमर नृत्य

महिला प्रधान इस नृत्य में महिलाएं अपनी सहेलियों के हाथों में हाथ डालकर घूम- घूम कर नाचती-गाती है।  

करम नृत्य 

यह नृत्य करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है यह नृत्य झुककर होता है करम के दो भेद हैं :-खेमटा  और झीनसारी।  

खेमटा में गति अत्यंत धीमी किंतु अत्यंत कमनिया होती है। 
झीनसारी रात के तीसरे पहर से सुबह मुर्गे की बांग देने तक चलने वाला नृत्य है। 


जतरा
 नृत्य

यह एक सामूहिक नृत्य है इसमें स्त्री-पुरुष एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं। 
इसमें युवक-युवतियां कभी वृत्ताकार और कभी अर्द्ध-वृत्ताकार रूप में नृत्य करते हैं। 

नचनी नृत्य 

यह एक पेशेवर नृत्य है नचनी (स्त्री) और रसिक (पुरुष नर्तक) कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। 

अंगनाई नृत्य 

यह एक धार्मिक नृत्य है, जो पूजा के अवसर पर किया जाता है। 
यह सदनों के आंगन का नृत्य है, जिसे उरांवों ने भी अपना लिया है। 
इसके प्रमुख भेदों  में शामिल है:- पहिलसाझा, अधरतिया, विहनिया, लहसुआ, उदासी,लुझकी आदि।  

मुण्डारी नृत्य 

मुंडा जनजातियों  का रंग-बिरंगी पोशाक में यह एक  सामूहिक नृत्य है।  
इस समाज के प्रमुख नृत्य है -जदुर, ओर जदुर, नीर जदुर,जापी,गेना,चीटिद,छव, करम ,खेमटा,जरगा,ओरजरगा, जतरा,पाइका, बरु,जाली  नृत्य आदि।  

कठोरवा नृत्य

यह मुखौटे  पहनकर पुरुषों द्वारा लिया जाने वाला नृत्य है।  

मागे नृत्य

यह  नृत्य मुख्य रूप से हो जनजाति में प्रचलित है
यह महिला-पुरुषों का सामूहिक नृत्य है, जो माघ मास की पूर्णिमा में किया जाता है,इसमें बजाने, नाचने और गाने वाले नाचने वालियों के मध्य घिरे होते हैं

बा नृत्य

हो जनजातियों का यह एक प्रमुख नृत्य है
सरहुल के अवसर पर इस नृत्य में स्त्री-पुरुष सम्मिलित होकर नाचते-गाते तथा बजाते हैं 
एक साथ नृत्य तथा गीत वाले इस नृत्य में पुरुषों तथा महिलाओं का अलग दल होता है

हेरो नृत्य 

इस नृत्य में धान बोने की समाप्ति के उपरांत महिला-पुरुष सम्मिलित रूप से पारंपरिक वादियों के साथ नृत्य करते हैं

जोमनमा नृत्य

नया अन्न ग्रहण करने की खुशी में मनाए जाने वाले इस नृत्य में महिला-पुरुष सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। इसमें मादर, नगाड़े, बनम आदि बजाए जाते हैं

दसाई नृत्य

यह दशहरे के समय का पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें हाथों में छोटे-छोटे डंडे नृतक पकड़े होते हैं 
नाचने वाले घर-घर जाकर लोगों के आंगनों में नाचते हैं और हर घर से अनाज प्राप्त करते हैं

सोहराई  नृत्य

यह नृत्य पालतू पशुओं के लिए बनाए जाने वाला उत्सव में होता है
इस नृत्य में महिला चुम्मावड़ी गीत गाती है


गेना और जपिद नृत्य

इसमें महिलाएं नृत्य करती है और पुरुष वाद्य संभालते हैं 
महिलाएं जहां कतार में जुड़कर नृत्य करती हैं, वहीं पुरुष गीतों के भावनानुरूप स्वतंत्र रूप से निर्णय करते हैं

जदुर नृत्य 

यह एक महिला प्रधान नृत्य है, जो सरहुल के समय किया जाता है अन्य  ऋतु या अवसर पर यह नृत्य वर्जित है 
इस तीव्र गति वाले नृत्य में महिलाएं झूमर की तरह जुड़ी हुई नृत्य करते हुए गीत गाती है 
जिसके मध्य में पुरुष नर्तक और वादक घिरे रहते हैं 
इसमें लय- ताल तथा राग के अनुरूप वृत्ताकार में दौड़ते हुए महिलाएं नृत्य करती हैं 


टुसु नृत्य

यह नृत्य मकर संक्रांति के अवसर पर महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है जिसमें वे टुसु के प्रतीक चौढ़ाल  को प्रवाहित करने हेतु जाते समय करती हैं 

रास नृत्य

कार्तिक पूर्णिमा में एक या अधिक नचनी द्वारा किया जाने वाला एक मनमोहक नृत्य है,इसमें पुरुष नर्तक, वादक एवं गायक होते हैं, जिनके मध्य नर्तिकाएँ नृत्य करती हैं 

जरगा नृत्य 

यह माघ त्योहार से संबंधित नृत्य है इसमें बालाये  एक-दूसरे की कमर पकड़कर जुड़ती है और दाएं-बाएं फिर दाहिनी और बढ़ती हुई नृत्य करती है  
यह मध्य गति का नृत्य है इसमें पैरों की चाल् या पद संचालन की अपनी विशिष्टता  है 


ओर जरगा नृत्य 

यह  नृत्य जरगा नृत्य के साथ-साथ चलता है  इसमें महिलाओं का एक ही दल होता है 
तीव्र गति से ने नृत्य  करती हुई महिलाएं वृत्ताकार घूमती हैं 
इनके मध्य गायक, वादक नर्तक पुरुषों की मंडली होती हैं

फगुवा  नृत्य

यह फगुआ (फरवरी) और चैत (अप्रैल) के संधिकाल का पुरुष प्रधान नृत्य है 
फगुआ चढ़ते ही फगुआ नृत्य की तैयारी शुरू हो जाती है
इसमें एक दल गाने वालों का तो दूसरा दल लोकने (दोहराने) वालों का होता है

घोड़ा नृत्य

यह नर्तकों द्वारा बिना पैर के घोड़े की आकृति बनाकर किया जाता है विशेष, मेलों ,त्योहारों ,उत्सवों  एवं बारात के स्वागत के समय का यह नृत्य है 
इसे  मुखड़े पर बांस के पहियों से बिना पैर के घोड़े का आकार दिया जाता है
बैठने के स्थान पर नर्तक इस तरह खड़ा रहता है जैसे वह घोड़े पर सवार है 
नर्तक बाएं हाथ से घोड़े की लगाम और दाहिने हाथ से दोधारी तलवार चमकाते रहता है
मुस्कुराता हुआ युद्धरत  विजयी राजा या सेनापति की तरह सीना ताने या नर्तक नृत्य करता है
नागपुरी क्षेत्र में घोड़ा नृत्य के लिए पांडे दुर्गानाथ राय मैसूर थे

जापी नृत्य

यह शिकार से विजयी  होकर लौटने का प्रतीक नृत्य है, इसमें स्त्री-पुरुष सामूहिक रूप से निर्णय करते हैं
यह मध्य गति का नृत्य है, इसके वादक , गायक, नर्तक पुरुष और महिलाओं से घिरे रहते हैं 
इस नृत्य में महिलाएं एक-दूसरे की कमर पकड़कर जुड़ी रहती है
पुरुषों का एक दल बजाता है दूसरे दल वाले अपने लय-ताल से नाचते-गाते हैं 
महिलाएं पुरुष नायक के गीतों की अंतिम कड़ी को गाती है

राचा नृत्य

यह नृत्य खूटी के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में प्रचलित है 
इसे बरया खेलना या नाचना भी कहते हैं कहीं-कहीं इसे खड़िया नाच भी कहते हैं 
इसमें मादर तथा घंटी का विशेष महत्व रहता है
इस नृत्य में, पुरुष महिलाओं को आगे अपनी ओर आते देख पीछे हटते हैं 
दूसरे दौर में, पुरुष गीत गाते हुए बालाओं को नृत्य शैली से पीछे धकेलते हैं

➤धुड़िया नृत्य

सरहुल के उपरांत उरांव लोग खेत जोत लेते हैं और बीज बो देते  है। मौसम के अनुरूप इसमें जूते खेतों से धूल उड़ती है 
धूल उड़ाते हैं इससे इस काल के नृत्य  को धुड़िया  नृत्य कहते हैं 
इसे मांदर के ताल पर नाचा जाता है
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Wednesday, December 30, 2020

Jharkhand Ki Bhasha Aur Boli(झारखण्ड की भाषा और बोली)

Jharkhand Ki Bhasha Aur Boli

झारखण्ड की भाषा और बोली

➤भाषा और बोली के बीच विभाजन की रेखा बहुत ही पतली होती है

भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है, जिसमें साहित्यिक रचनाएं होती है

जबकि बोली का क्षेत्र छोटा होता है इसमें साहित्यिक रचनाएं नहीं होती

भाषा के आधार पर झारखंड की भाषाओं एवं बोलियों  को 3 वर्गों में बांटा जा सकता है

1) मुंडारी भाषा (आस्ट्रो एशियाटिक) परिवार

2) द्रविढ़ (द्रविड़ियन) भाषा परिवार और

3) इंडो-आर्यन भाषा परिवार

1) मुंडारी भाषा (आस्ट्रो एशियाटिक) परिवार

इस भाषा परिवार में संताली, मुंडारी, हो, खड़िया, करमाली, भूमिज,  महाली, बिरजिया, असुरी, कोरबा आदि भाषाएं शामिल है 

मुंडा भाषा परिवार की ये  बोलियां रांची,सिंहभूम , हजारीबाग आदि क्षेत्र में यहां की जनजातियां द्वारा बोली जाती है

 संथाली भाषा को होड़ -रोड़ अर्थात होड़  लोगों की बोली भी कहा जाता है 

➤यह भाषा संख्या की दृस्टि से झारखण्ड में बोली जाने वाली द्वितीय भाषा है 

➤42 वें संविधान संशोधन 2003 के द्वारा सविंधान की आठवीं अनुसूची में इस भाषा को स्थान दिया गया है 

➤यह भाषा सविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पाने वाली  झारखंड की एकमात्र क्षेत्रीय भाषा है 

इसके दो रूप मिलते हैं:- शुद्ध संथाली एवं मिश्रित संथाली 

मिश्रित संथाली में बांग्ला, उड़िया, मैथिली आदि का मिश्रण मिलता है

मुंडारी :- मुंडा जनजाति की भाषा का नाम मुण्डारी है ,जिसके चार रूप मिलते हैं 

➤खूटी और मुरहू क्षेत्र के पूर्वी अंचलों में बोली जाने वाली मुंडारी को हसद मुंडारी कहा जाता हैं 

➤तामड़ के आस-पास के क्षेत्र में बोली जाने वाली मुंडारी तमड़िया मुंडारी कहलाती है

➤केर मुण्डारी राँच के आस-पास के के क्षेत्रों में बोली जाने वाली मुंडारी भाषा है 

नागपुरी भाषा मिश्रित मुंडारी को नगूरी मुंडारी कहा जाता है

➤यह तोरपा,कर्रा ,कोलेबिरा  वानों आदि क्षेत्रों में बोली जाती हैं

हो :-यह हो जनजाति की भाषा का नाम है इस भाषा की अपनी शब्दावली एवं उच्चारण पद्धति है। अपने में ही सीमित रहने के कारण इस भाषा का विकास अधिक नहीं हो सका है 

खगड़िया :- खगड़िया जनजाति की भाषा का नाम खड़िया ही है

2) द्रविड़ (द्रविड़ियन) भाषा परिवार

इस भाषा परिवार में मुख्यतः कुड़ुख (उरांव ) ,मालतो (सौरिया , पहाड़िया, व माल पहाड़िया) आदि शामिल है 

➤द्रविड़ भाषा परिवार की कुड़ुख बोली उरांव जनजाति के लोगों में प्रचलित है इस भाषा ने बड़ी उदारता से अन्य भाषाओं के शब्दों को ग्रहण किया है

कुड़ुख भाषा का ही  एक अन्य रूप मालतो है

➤मालतो को सौरिया  पहाड़ियां,गोंडी  तथा माल पहाड़िया आदि जनजातियां बोलचाल के रूप में प्रयोग करती हैं 

3) इंडो-आर्यन भाषा परिवार

हिंदी, खोरठा, नागपुरी,कुड़माली, पंचपरगनिया,आदि इस भाषा परिवार में आती है। इसे सदानी भाषा भी कहते हैं

हिंदी :- झारखंड की सर्वप्रमुख भाषा हिंदी है इससे झारखंड की राजभाषा होने का गौरव प्राप्त है यहां हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है

खोरठा :- इसका  संबंध प्राचीनी खरोष्ठी लिपि से जोड़ा जाता है यह मागधी  प्राकृत से विकसित एक भाषा है 

➤यह हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, रांची जिले के उत्तरी भाग, संथाल परगना, एवं पलामू के उत्तर -पूर्वी भागों में बोली जाती है

इस भाषा के अंतर्गत रंगड़िया ,देसवाली, खटाही, खटाई,खोटहि और गोलवारी बोलियां आती है

पंचपरगनिया:- पंचपरगना क्षेत्र जिसके अन्तर्गत तमाड़ ,बुंडू ,राहे ,सोनाहातु और सिल्ली क्षेत्र आते हैं में प्रचलित भाषा पंच परगनिया कहलाती है 

कुड़माली :- मूल रूप से कुर्मी जाति की भाषा होने के कारण इसका नाम कुड़माली पड़ा 

यह रांची, हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, सिंहभूम एवं संथाल परगना में बोली जाती है 

नागपुरी :- यह भी मागधी  प्राकृत  से विकसित एक भाषा है संपर्क भाषा के रूप में पूरे झारखंड में यह प्रचलित है 

इसे नागवंशी राजाओं की मातृभाषा होने का गौरव प्राप्त है इसे सादरी /गवारी  के नाम से भी जाना जाता है

इन भाषाओं के अतिरिक्त झारखंड में भोजपुरी, मैथिली,मगही ,अंगिका ,बांग्ला, उर्दू, उड़िया, जिप्सी,   आदि भाषाएं बोली जाती हैं 

➤राज्य के राँची तथा पलामू क्षेत्र के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भोजपुरी में बात-चीत करने वाले झारखंड- वासियों तथा बिहारियों की एक बड़ी संख्या विद्यमान है

झारखंड राज्य में प्रचलित भोजपुरी को दो वर्गों में विभाजित किया गया है

1)आदर्श भोजपुरी :- यह मुख्यत: पलामू के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है 

2) नागपुरिया, सादरी एवं सदानी, भोजपुरी :- इसका व्यवहार छोटानागपुर के गैर आदिवासी क्षेत्रों में होता है 

झारखंड राज्य के हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, पूर्वी पलामू, रांची एवं सिंहभूम  में बोल-चाल की भाषा के रूप में मगही का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है

भाषा विज्ञानी डॉ जॉर्ज ग्रियर्सन ने मगही बोली को दो श्रेणी में विभक्त किया है

1)आदर्श मगही :- यह मुख्य रूप से हजारीबाग एवं पूर्वी पलामू में बोली जाती है 

2) पूर्वी मगही :- यह रांची, हजारीबाग आदि क्षेत्रों में बोली जाती है 

रांची के कुछ क्षेत्रों में बोली जाने वाली पूर्वी मगही के रूप को पचपरगनिया भी कहा जाता है

अंगिका प्राचीन मैथिली का वर्तमान स्वरूप समझी जाने वाली भाषा है

यह मुख्यत: गोड्डा, दुमका, साहिबगंज, देवघर आदि क्षेत्रों में प्रचलित है छठी शताब्दी के ग्रंथ ललित विस्तार की रचना इसी भाषा में की गई थी

जिप्सी झारखंड में छिट-पुट बोली जाने वाली बोली है या नट, मलाट तथा गुलगुलिया जातियों की संपर्क बोली है

उर्दू को झारखंड के द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया है

बांग्ला झारखंड राज्य की तीसरी जाने वाली भाषा हैउत्तरी 

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Tuesday, December 29, 2020

Jharkhand Ke Pramukh Patra Patrikaye (झारखंड के प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं)

Jharkhand Ke Pramukh Patra Patrikaye

झारखंड के प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं

घर बंधु:
1880 में  एनाट रॉड के संपादन में जर्मन मिशन रांची द्वारा ईसाईं दर्शन व समाचार के प्रचार के उद्देश्य से प्रकाशित

आर्यावर्त :- बालकृष्ण सहाय के संपादन में आर्य प्रतिनिधि सभा, रांची द्वारा झारखंड पर केंद्रित 1 अप्रैल 1898 से 11 नवंबर 1950 तक प्रकाशित


सोशल सर्जन :- 1918 में सुकुमार हलधर के संपादन में रांची से समाज सुधार, राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं समाचार के प्रसार के लिए आरंभ किया गया 

मैन  इन इंडिया :- 1929 में शरतचंद्र राय के संपादन में चर्च रोड रांची से मुंडा, उरांव ,खड़िया,असुर, बिरहोर आदि आदिवासी समुदायों के मानविकी अध्ययन पर प्रकाशित इसका प्रकाशन आज भी जारी है 

छोटानागपुर पत्रिका :- 1924 में  संपादक रामराज  शर्मा द्वारा अपर बाजार रांची से प्रकाशित  

इस पत्रिका में झारखंड की समस्याओं एवं आदिवासी भाषाओं में आदिवासी लेखकों द्वारा लिखे आलेखों को प्रमुखता दी गई

झारखंड :- बड़ाईक ईश्वरी प्रसाद सिंह के संपादन में गुमला से नवंबर 1937 में प्रकाशित झारखंड आंदोलन की भूमिका महत्वपूर्ण पत्रिका

सत्संग :- मुलत:ईसाई धर्म पत्रिका, 1937 से 1954 तक फादर पीटर शांति नवरंगी के संपादन में निकली, जिसमें छोटानागपुर का इतिहास धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ

आदिवासी पाक्षिक:-बंदीराम उरांव और जुलियस तिग्गा के संयुक्त संपादन में आदिवासी महासभा द्वारा प्रकाशित (जयपाल सिंह मुंडा के आदिवासी महासभा में प्रवेश के अवसर पर प्रकाशित)

आदिवासी सकाम :- जयपाल सिंह मुंडा के संपादन में प्रकाशित महासभा का मुख्य पत्र। हिंदी, बंगला और अंग्रेजी सहित सभी झारखंडी भाषाओं के आलेखों को इसमें प्रमुख स्थान मिला

अबुआ झारखंड :- 14 दिसंबर 1947 से इग्नेस कुजूर एवं आगे चलकर  इग्नेस बैक के संपादन में दासों  प्रेस ,पत्थरकुदवा, रांची से निकलना शुरू हुआ, जो 1950 से झारखंड पार्टी का मुख्यपत्र बन गया

आदिवासी :- पहले चार अंक नागपुरी में निकले बाद में यह हिंदी में प्रकाशित होने लगा, परंतु इसमें लगातार झारखंडी  भाषाओं की रचनाएँ  छपती रही

संपादक -राधाकृष्ण फिलहाल यह जनसंपर्क विभाग झारखंड सरकार की पत्रिका है (प्रकाशन वर्ष- 1947)

होड़ संवाद :- डोमन साहू समीर के संपादन में 1947 से निरंतर प्रकाशित संथाली भाषा साहित्य की पत्रिका 

संप्रति इसका संपादन बाबूलाल मुर्मू कर रहे हैं 

राष्ट्रीय भाषा :- झारखंड का प्रथम हिंदी दैनिक पत्र राष्ट्रीय भाषा का प्रकाशन 1950 में रांची से हुआ प्रकाशक- देवी प्रसाद मित्र, संपादक बटुक देव शर्मा 

जगर साड़ा :- सुशील कुमार बागे द्वारा 1953 में रांची से संपादित-प्रकाशित मुंडारी पत्रिका 

नागपुरी :- अप्रैल 1961 में प्रकाशित नागपुरी पत्रिका, संपादक जोगेंद्र नाथ तिवारी

धरैया गुइठ:-   ईसाई धर्म तथा सादरी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आदिवासी स्टूडेंट शिलांग की ओर से 1961 में बाखला जेफ और जोंस क्रिकेटर के संपादन में इसका प्रकाशन हुआ

रांची एक्सप्रेस :- यह समाचार पत्र बलवीर दत्त के संपादन में पहले सप्ताहिक और बाद में दैनिक (अगस्त 1976 में) रूप में प्रकाशित, प्रकाशन वर्ष 15 अगस्त, 1963 

तितकी :-  1963 में बीएन ओहदार एवं झारपात के संपादन में खोरठा भाषा साहित्य की निरंतर प्रकाशित पत्रिका 

नागपुरी महिनवारी कागज :- नागपुरी भाषा परिषद रांची द्वारा 1964 में योगेंद्र नाथ तिवारी के संपादन में प्रकाशित

नागपुरिया समाचार :- नागपुरी भाषा की पत्रिका 1966 में स्थापना, संपादक लक्ष्मी नारायण थे 

झारखंड समाचार:- अबुआ झारखंड की तरह ही झारखंड आंदोलन की पत्रिका 9 जून, 1968 से, इग्नेस कुजूर के संपादन में प्रकाशित

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Monday, December 28, 2020

Jharkhand Ke Mele (झारखंड के मेले)

झारखंड के मेले

(Jharkhand Ke Mele)

झारखंड के मेले

➤झारखंड में मेलों का काफी महत्व है यहां प्राय: मेले किसी ना किसी पर्व या त्योहार के अवसर पर तीर्थ स्थानों पर लगते हैं
 

झारखंड के कुछ प्रमुख मेले निम्नांकित हैं

हिजला मेला

यह मेला दुमका के निकट मयूराक्षी नदी के किनारे लगता है

यह संथाल जनजाति का एक मुख्य ऐतिहासिक मेला है 

बसंत ऋतु के कदमों की आहट के साथ शुरू होने वाला यह मेला 1 सप्ताह तक चलता है

संथाल परगना के तत्कालीन अंग्रेज उपायुक्त कास्टेयर्स ने 1890 ईसवी में इस मेले की शुरुआत की थी

हिजला शब्द 'हिजलोपाइट' नामक खनिज का संक्षिप्त  रूप है ,जो संथाल परगना की पहाड़ियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है 

श्रावणी मेला

प्रत्येक वर्ष श्रावण महीने में देवघर में लगने वाला यह मेला विश्व का सबसे बड़ा मानव मेला है

प्रतिवर्ष श्रावण माह प्रारंभ होते ही 1 माह तक यहां भारत से ही नहीं बल्कि पड़ोसी देशों से भी शिव भक्त जल चढ़ाने आते हैं

विश्व का एकमात्र ऐसा मेला है जहां सभी एक ही रंग के वस्त्र पहन कर आते हैं

रथ यात्रा मेला 

रांची शहर में स्थित स्वामी जगन्नाथ का ऐतिहासिक मंदिर है 

प्रतिवर्ष यहां आषाढ़ शुल्क द्वितीय को रथयात्रा व एकादशी को धुरती रथयात्रा मेला लगता है

नरसिंह स्थान मेला 

हजारीबाग से करीब 5 किलोमीटर दक्षिण में लगने वाला नरसिंह स्थान मेला के नाम से प्रसिद्ध यह मेला एक बहुआयामी मेला है

यहां मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है

यह ईश-दर्शन भी है, पिकनिक भी है, मनोरंजन भी है, प्रदर्शन भी है और मिलन-संपर्क का भी अवसर भी  है 

यह मेला मुख्यत: शहरी मेला माना जाता है, क्योंकि इस मेले में इस मेले में प्रया: शहर की स्त्री-पुरुष युवा वर्ग के एवं बच्चों की उपस्थिति अधिक रहती है

रामरेखा धाम मेला

सिमडेगा जिले में स्थित रामरेखा धाम में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर 3 दिनों का भव्य मेला लगता है 

➤किवदंती है कि भगवान श्रीराम ने दंडकारण्य जाने के क्रम में रामरेखा पहाड़ पर कुछ दिन बिताए थे  

इस मेले में झारखंड के अलावा मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से काफी संख्या में तीर्थ यात्रियों और दुकानदारों का आगमन होता है  

नवमी डोल मेला 

रांची के नजदीक टाटीसिल्वे में हर वर्ष होली के ठीक 9 दिन बाद एक बहुत बड़ा मेला लगता है 

यह मेला नवमी डोल मेला के नाम से प्रसिद्ध है  

यहां भगवान कृष्ण और राधा की प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है  

धार्मिक परंपरा अनुसार राधा और कृष्ण की मूर्तियां को एक डोली में झुलाया जाता है 

झारखंड के आदिवासियों की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं का स्पष्ट रूप आज भी सैकड़ों वर्ष पुराने इस मेले में देखा जा सकता है 

सूर्य कुंड मेला  

हजारीबाग जिले के बरकट्ठा प्रखंड के बगोदर से 2. 5  किलोमीटर दूर सूर्यकुंड नामक स्थान पर मकर संक्रांति के दिन लगने वाला यह मेला 10 दिनों तक चलता है  

जिसे सूर्य कुंड मेला के नाम से जाना जाता है 

सूर्यकुंड की विशेषता है कि भारत के सभी गर्म जल स्रोतों में किस का तापमान सर्वाधिक है 

बढ़ई मेला  

देवघर जिला के दक्षिण-पश्चिम छोर पर बसे बुढ़ई ग्राम स्थित  बुढ़ई  पहाड़ पर सैकड़ों वर्षो से प्रत्येक वर्ष अगहन  माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मेला लगता है  

यह तिथि यहां नवान पर्व के रूप में मनाई जाती है 

नवान पर्व के अवसर पर नवान कर चुकाने के बाद लोग हजारों की तादाद में प्रसिद्ध बुढ़ई पहाड़ स्थित तालाब के पास बुढ़ेश्वरी देवी के मंदिर में जाते हैं। जहां 3 से 5 दिनों तक मेला लगता है 

गांधी मेला

प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस पर सिमडेगा जिले में 1 सप्ताह के लिए गांधी मेला लगता है

इस ऐतिहासिक मेले में विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी विभागों द्वारा सामूहिक रूप से एक मनमोहक प्रदर्शनी लगाई जाती है जिससे विकास मेला कहा जाता है 

मंडा मेला

प्रत्येक वर्ष वैशाख, जेष्ठ , एवं आषाढ़  महीने में हजारीबाग, बोकारो तथा रामगढ़ के आस-पास के गांव में आग पर चलने वाला यह पर्व मनाया जाता है

अंगारों की आग पर लोग नंगे पांव श्रद्धापूर्वक चलते हैं और अपनी साधना को सफल बनाते हैं 

जिस रात आग पर चला जाता है उस रात को जागरण कहा जाता है दूसरे दिन सुबह मंडा मेला लगता है

हथिमा पत्थर मेला 

बोकारो जिले के फुसरो  के निकट हाथी की आकृति वाला चट्टान है 

लोक आस्था की अभिव्यक्ति स्वरूप हर वर्ष मकर सक्रांति के अवसर पर यहां सामूहिक स्नान की परंपरा है इस कारण विशाल मेला लगता है

बिंदु धाम मेला

साहिबगंज से 55 किलोमीटर दूर स्थित बिंदुधाम शक्तिपीठ में प्रत्येक वर्ष चैत महीने में रामनवमी के दिन 1 सप्ताह का आकर्षक मेला लगता है 

यहां मां विंध्यवासिनी का 3 शक्तिपीठ है


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Thursday, December 10, 2020

Jharkhand Ke Khanij Sansadhan(झारखण्ड के खनिज संसाधन)

 Jharkhand Ke Khanij 


झारखण्ड के खनिज संसाधन

➤खनिज संसाधन की दृष्टि से  झारखण्ड भारत का सबसे आमिर राज्य है  

➤भारत में झारखंड एकमात्र ऐसा प्रदेश है, जहां इतने प्रकार के खनिज एक साथ एक ही क्षेत्र में पाए जाते हैं 

➤यही कारण है कि झारखंड की तुलना जर्मनी रुर घाटी से की जाती है एवं झारखंड को भारत का रूर प्रदेश कहा जाता है 

➤इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में उपलब्ध खनिजों के संचित भंडार का लगभग 30 से 35% झारखंड की पठारी भाग में केंद्रित है 

पूरे भारत में जितने खनिजों का उत्पादन होता है उसका लगभग 40% झारखंड में होता है  

झारखंड क्षेत्र भारत का 95% पायराइट ,58% अभ्रक, 33% कोयला, 33% तांबा, 33% ग्रेफाइट, 32% बॉक्साइट, 30% कायनाइट एवं 19% लौह अयस्क उत्पादन करता है 

पायराइट अभ्रक, कोयला, तांबा,  ग्रेफाइट, बॉक्साइट, चीनी मिट्टी के उत्पादन में यह क्षेत्र भारत में प्रथम स्थान पर है तथा फास्फेट में द्वितीय, लौह अयस्क में पांचवें  एवं चूना पत्थर और मैग्नीज में सातवें स्थान पर है  

मूल्य की दृष्टि से भारत के कुल खनिजों के लगभग 32 % का हिस्सेदार झारखंड है  

झारखंड की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार खनिज और उन पर आधारित उद्योग है 

झारखंड के खनिजों को तीन वर्गों में बांटा जाता है 

1-धात्विक खनिज 

2-अधात्विक खनिज और

3-ऊर्जा खनिज

1-धात्विक खनिज (Metallic Minerals)

धात्विक खनिज को दो उप वर्गों में बांटा जाता है

1-लौह धात्विक खनिज 

2-अलौह अधात्विक खनिज 
  
1-लौह धात्विक खनिज  का विवरण इस प्रकार है  

1 - लौह अयस्क :- झारखण्ड में लौह अयस्क का प्राप्ति क्षेत्र सिंहभूम जिला का दक्षिणी भाग है।

➤सिंहभूम के दक्षिणी भाग में लौह अयस्क की पेटी है जो 48 किलोमीटर लंबी पट्टी के रूप में उड़ीसा के मयूरभंज एवं क्योंझर तक विस्तृत है ,यह पट्टी विश्व के सबसे बड़े लौह भंडार के रूप में मानी जाती है।

➤सिंहभूम के दक्षिणी भाग में स्थित नोवामुंडी ,गुआ ,पानसिरा बुरु ,बादाम पहाड़ ,जामदा, गुरुमहिसानी,किरी बुरू आदि लोहे के प्रमुख खान है।

➤पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित नोवामुंडी की खान  एशिया की सबसे बड़ी  लोहे की खान है। इन खानों से उच्च कोटि का हेमेटाइट वर्ग का लौह अयस्क उत्पादित किया जाता है।

➤हेमेटाइट वर्ग के लौह अयस्क में लोहे के अंश 60% से 68 %तक होता है। 

➤झारखण्ड में उपलब्ध  लौह अयस्कों  में 99% भाग हेमेटाइट वर्ग का लौह अयस्कों का है। 

2 - मैंगनीज :- मैंगनीज का उपयोग इस्पात बनाने में एवं सुखी बैटरी और रसायन उद्योगों में होता है। 

➤झारखंड में मैंगनीज भंडार राज्य की आवश्यकता से बहुत कम है इसलिए राज्य को इसका आयात करना पड़ता है

➤यहां मैंगनीज के तीन प्रमुख क्षेत्र है :- गुवा से लिमटू, चाईबासा से बरजामुण्डा एवं बड़ा जामदा से नोवामुडी

➤कालेन्दा, बंसाडेरा, पन्सारीबुरु, एवं पहाड़पुर आदि मैगनीज की प्रमुख खान है

3-क्रोमाइट :- क्रोमाइट का उपयोग इस्पात बनाने में होता है। 

➤झारखंड में क्रोमाइट का मुख्य जमाव सिंहभूम  के जोजोहातू एवं सरायकेला क्षेत्राे  में है। 

➤यहाँ देश के कुल क्रोमाइट भंडार का लगभग 5.3 प्रतिशत भाग पाया जाता है

4 -जस्ता :- यह संथाल परगना, हजारीबाग, पलामू, रांची और सिंहभूम जिले में पाया जाता है। 

5 -टीन  :- यह हजारीबाग एवं रांची जिले में पाया जाता है


2 -लौह धात्विक खनिज  का विवरण इस प्रकार है 

1 - तांबा :- तांबा का उपयोग बिजली उपकरण, घरेलू बर्तन, धातु मिश्रण आदि में किया जाता है

➤इस खनिज के उत्पादन में झारखंड भारत का अग्रणी राज्य है

➤सिंहभूम के मुसाबनी, धोबनी, सुरादा, केन्दाडीह, पथरगोडा एवं घाटशिला में तांबे की खाने हैं

➤हजारीबाग एवं संथाल परगना के कुछ हिस्सों में भी तांबा मिलता है।

2 -बॉक्साइट :-बॉक्साइट से एलुमिनियम निकाला जाता है। 

➤इसके क्षेत्र है :- पलामू के आस-पास के पाट  क्षेत्र, रांची पठार, लोहरदगा के आस-पास का क्षेत्र, हजारीबाग और राजमहल का पहाड़ी क्षेत्र

➤यहां उच्च कोटि का बॉक्साइट पाया जाता है जिसमें 52% से 55% तक  एलुमिनियम होता है। 

3 -टंगस्टन :- इसका उपयोग बिजली उद्योग आदि में किया जाता है। यह हजारीबाग में पाया जाता है।

4 -वैनेडियम :- यह सिंहभूम के दुलपारा एवं दुबलावेटन  में पाया जाता है। 

5 -सोना :- स्वर्णरेखा नदी के बालू  को छानकर सोने के कण  प्राप्त किए जाते थे इसलिए नदी का नाम स्वर्ण रेखा नदी पड़ा।  

➤ये सोने के कण छोटा नागपुर के पठारों के अपक्षयण से आते थे जिसमें कोयले के प्राचीनतम भंडार है।

➤इसके क्षेत्र सिंहभूम  की  स्वर्ण रेखा नदी घाटी ,पलामू की सोन नदी की घाटी, हजारीबाग के दामोदर नदी की घाटी में थे। 

➤अब यह सोना उपलब्ध नहीं होता है लेकिन उपलब्धि के प्रमाण मिलते हैं। 

➤वर्तमान में करीब 350 किलोग्राम सोना का औसत उत्पादन हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के मऊ कॉपर प्लांट (घाटशिला) में प्रति वर्ष होता है जो तांबा अयस्क से उपउत्पाद के रूप में निकाला जाता है।

6 -चांदी :- चांदी हजारीबाग पलामू राज्य सिंहभूम आदि जिलों में मिलती है लेकिन अल्प मात्रा में और कच्चे में रूप में पाया जाता है

2-अधात्विक खनिज (Non-Metallic Minerals)

 
अधात्विक खनिजों का विवरण इस प्रकार है

1 - अभ्रख (MICA ):- इसका उपयोग बिजली के सामान, औषधि, शीशा, सजावटी सामान, अग्निरोधक  सामग्री, संचार संयंत्र आदि में किया जाता है

➤कोडरमा जिले में स्थित कोडरमा एवं झुमरी तलैया अभ्रक के प्रमुख क्षेत्र हैं। 

➤कोडरमा को भारत की अभ्रख राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। 

➤झारखंड में उच्च कोटि का सफेद अभ्रक मिलता है जिससे रूबी अभ्रख कहा जाता है। इसकी गुणवत्ता के कारण विश्व बाजार में इसकी अधिक मांग है। यही कारण है कि झारखंड के कुल उत्पादन का 90% भाग निर्यात किया जाता है। 

2 -काईनाइट (KYANITE):- यह ताप सहन करने वाला खनिज है। इसलिए इसका उपयोग ताप सहायता सामग्री के निर्माण में किया जाता है।  

➤लोहा गलाने की भट्टियों  में इसका स्तर दिया  जाता है।  

➤काईनाइट का सबसे बड़ा भंडार सिंहभूम क्षेत्र के लिप्साबुरु क्षेत्र में है। 

➤सिंहभूम के निकट राजखरसावां के निकट इसका उत्पादन भारतीय तांबा निगम द्वारा किया जाता है।
 
3 -ग्रेफाइट (GRAPHITE) :-यह कार्बन का एक रूप है जिससे काला सीसा भी कहा जाता है।  

➤इसका उपयोग उच्चतापसह्य  उद्योग में  उच्चतापसह्य  सामग्रियों के निर्माण में किया जाता है।  

➤यह  पलामू के बारेसनट , नारोमार ,कोजरूम और लाट क्षेत्र में मिलता है। 

4 -अग्नि मृतिका/ अग्निसह्य (FIRE CLAY) :- यह ताप की कुचालक होती है इसलिए इस मिट्टी से बनी  ईटो का उपयोग ताप भट्टियों  के निर्माण में किया जाता है

➤ यह दामोदर घाटी, पलामू, राँची  आदि स्थानों पर मिलती है

5 -चीनी मिट्टी (CHINA CLAY OR KAOLIN ) :- यह  मिट्टी फेल्सपार नामक खनिज के अपरदन के फल- स्वरुप बनाती है। 

➤ चीनी मिट्टी से बिजली के उपकरण, घरेलू बर्तन आदि बनाए जाते हैं। 

➤यह सिंहभूम, रांची ,धनबाद , हजारीबाग, संथाल परगना आदि  क्षेत्रों  में पाया जाता है।

6-चुना पत्थर (LIME STONE):-  इस से सीमेंट बनता है जिसका उपयोग इमारत बनाने में किया जाता है।इस्पात भट्टी में यह  कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है। हजारीबाग, रांची, सिंहभूम  एवं पलामू  इसके प्रमुख क्षेत्र हैं।

7-डोलोमाइट (DOLAMITE):-  इसका उपयोग कागज, सीसा ,लौह- इस्पात, सीमेंट और गृह सामग्री के उद्योगों में होता है पलामू जिला का डाल्टेनगंज क्षेत्र इसका प्रमुख क्षेत्र है

8- एस्बेस्टस (ASBESTOS) :- इसका उपयोग छत बनाने एवं रासायनिक उद्योग में होता है यह रांची और सिंहभूम जिले में प्राप्त होता  प्राप्त होता है। 

9-सॉपस्टोन (SHOP STONE) :- इसका उपयोग पेंसिल, वार्निस  एवं पाउडर बनाने में होता है यह सिंहभूम एवं हजारीबाग में पाया जाता है

3-खनिज (Energy Minerals)

ऊर्जा खनिजों का विवरण इस प्रकार है

1- कोयला (COAL)


 कोयला(COAL) :- कोयला के मामले में झारखंड देश का अग्रणी राज्य है पूरे देश के उत्पादन का एक तिहाई उत्पादन यहां होता है।

झारखंड में कोयला उत्पादन के पांच प्रमुख क्षेत्र हैं

दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र :- झरिया ,चंद्रपुर, रामगढ़, बोकारो ,कर्णपूरा आदि। 

बराकर बेसिन क्षेत्र :- हजारीबाग का इटखोरी, कुजू , और चोप,  गिरिडीह आदि। 

अजय बेसिन क्षेत्र :-  हजारीबाग जिला का जयंती, सहगौरी, कुंडित ,करैया इत्यादि। 

राजमहल पहाड़ी क्षेत्र :- ब्राह्मणी,  पंचवारा, छप्परविट्टा, गिलवाड़ी,हैना आदि। 

उत्तरी कोयल बेसिन क्षेत्र :- डाल्टेनगंज, हुटार, औरंगा नदी एवं अमानत नदी  क्षेत्र आदि। 

नोट :- 

1-दामोदर घाटी क्षेत्र राज्य के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 95% उत्पादित करता है। साथ ही यह कोकिंग कोल का शत-प्रतिशत उत्पादक क्षेत्र है।  

2- झारखंड में सर्वप्रथम कोयला खनन का काम दामोदर घाटी निगम क्षेत्र के अंतर्गत झरिया में शुरू हुआ। 

3-धनबाद जिले में स्थित झरिया भंडार एवं उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का सर्वप्रथम कोयला केंद्र है।  झरिया  पूरे झारखंड के कोयला उत्पादन का 60% भाग उत्पादन करता है। झरिया कोयला क्षेत्र भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अंतर्गत आता है। 

4- झरिया में उत्तम किस्म का कोकिंग कोल पाया जाता है। 

5- झरिया कोयला क्षेत्र में आग लगी हुई है और भीतर- ही -भीतर कोयला जलकर खाक हो रहा है।  

6- बोकारो, बोकारो जिला में स्थित है राऊरकेला का इस्पात कारखाना  यहीं से कोयला प्राप्त करता है। 

7- हजारीबाग, गिरिडीह ,रांची, चतरा, लातेहार एवं पलामू के कोयला क्षेत्र सेंट्रल कोकिंग कोल लिमिटेड के कमान के अंतर्गत आते हैं।  

➤झारखंड में उच्च कोटि का कोयला पाया जाता है। यहाँ बिटुमिनस और एन्थ्रासाइट दोनों ही उपयोगी प्रकार के कोयले उपलब्ध है। 

➤बिटुमिनस कोयले में 78 से 86% तक कार्बन का अंश होता है तथा इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है। 

➤एन्थ्रासाइट कोयले में 94% से 98% तक कार्बन का अंश होता है। 

➤यह राज्य के आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। झारखंड को खनिजों से होने वाली कुल आय का 75% कोयले से प्राप्त होता है। 

झारखंड में उपलब्ध कोयले के तीन प्रकार है।

 1-कोकिंग
2-अर्द्ध कोकिंग और 
3-गैर-कोकिंग 

➤कोकिंग और अर्द्ध कोकिंग कोयले का उपयोग भारी उद्योगों में विशेषकर धात्विक उद्योगों में धोक भट्टी में होता है। 

➤गैर-कोकिंग कोयले का उपयोग स्पॉन्ज लोहा, ताप शक्ति, रेलवे, सीमेंट, खाद, ईट भट्टी, घरेलू इंधन आदि में होता है। 

➤कम लागत में अधिक उत्पादन के उद्देश्य से झारखंड के कोयला क्षेत्रों में परियोजना चलाई जा रही है।

सोवियत रूस की सहायता से चलने वाली दो  परियोजनाएं हैं :-

1 -झरिया क्षेत्र से कुमारी ओ0 सी0 पी0  कोयला क्षेत्र का विकास। 
2 - झरिया क्षेत्र के सीतानाला का विकास। 

वर्ल्ड बैंक की सहायता से चलने वाले 5 परियोजनाएं हैं 

1-झरिया कोकिंग कोयला परियोजना
2-रजरप्पा परियोजना
3-राजमहल परियोजना 
4-दामोदर परियोजना 
5-कतरास परियोजना 

2-यूरेनियम

➤यूरेनियम :- यह एक आण्विक खनिज है इसका विस्तार जादूगोड़ा, धालभूमगढ़, जुरमाडीह,नरवा ,बागजत, कन्यालूका,केरुवा डुमरी आदि क्षेत्रों में है। 

पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित जादूगोड़ा की यूरेनियम खदान से खुदाई यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया की देख रेख में होता है।

3-थोरियम 

➤थोरियम :- यह एक आण्विक खनिज है इसका विस्तार रांची पठार और धनबाद में है। 

4-इल्मेनाईट

➤इल्मेनाईट :- यह एक आण्विक खनिज है इसका उपयोग अंतरिक्ष यान और अणुशक्ति वाले अंत:यान में काम आने वाले धातु टाइटेनिक बनाने में होता है रांची जिला क्षेत्र में मिलता है।

 
  

 

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