➤छऊ नृत्य
➤यह झारखंड का सबसे महत्वपूर्ण लोक नृत्य है।
➤युद्ध भूमि से संबंधित यह लोक-नृत्य शारीरिक भाव-भंगिमाओं, ओजस्वी स्वरो तथा पगो की धीमी व तीव्र गति द्वारा संचालित होता है।
➤इस नृत्य की दो श्रेणियां हैं
1) हातियार श्रेणी तथा
2) काली भंग श्रेणी
➤सरायकेला राज-घराने में पल्लवित हुआ, इस नृत्य का विदेश में (यूरोप में) सबसे पहले प्रदर्शन 1938 में सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह ने करवाया था।
➤यह ओजपूर्ण नृत्य शैली है, जिसमें पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाओं के मंचन के लिए पात्र तरह-तरह के मुखोटे धारण करते हैं।
➤झारखंड की लोक शैली के नृत्यों में यह पहला नृत्य है, जो सिर्फ दर्शकों के लिए प्रदर्शित होता है।
➤झारखंड के अन्य सभी लोक नृत्यों में सिर्फ भावभिव्यक्ति ही होती है। उनके साथ कोई प्रसंग या कथानक नहीं होता।
➤छऊ में प्रसंग या कथानक हमेशा मौजूद रहता है।
➤अन्य लोक नृत्यों के संचालन में किसी गुरु या प्रशिक्षित शिक्षक की उपस्थिति नहीं होती, किंतु छाऊ नृत्य में उस्ताद या गुरु की उपस्थिति आवश्यक होती है।
➤पाइका नृत्य
➤यह एक ओजपूर्ण नृत्य है, जिसमें नर्तक सैनिक वेश में नृत्य करते हैं।
➤इसमें नर्तक रंग-बिरंगे झिलमिलाती कलगी लगी या मोर पंख लगी पगड़ी बांधते हैं।
➤यह एक प्रकार का युद्ध से संबंधित नृत्य है और
➤मुंडा जनजातियों का एक प्रमुख नृत्य है।
➤नटुआ नृत्य
➤यह पुरुष प्रधान नृत्य है यह पाइका नृत्य का एकल रूप जैसा है।
इसमें भी कलगी रह सकती है, परंतु यह अनिवार्य नहीं है।
➤करिया झूमर नृत्य
महिला प्रधान इस नृत्य में महिलाएं अपनी सहेलियों के हाथों में हाथ डालकर घूम- घूम कर नाचती-गाती है।
➤करम नृत्य
यह नृत्य करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है यह नृत्य झुककर होता है करम के दो भेद हैं :-खेमटा और झीनसारी।
➤खेमटा में गति अत्यंत धीमी किंतु अत्यंत कमनिया होती है।
झीनसारी रात के तीसरे पहर से सुबह मुर्गे की बांग देने तक चलने वाला नृत्य है।
➤जतरा नृत्य
➤यह एक सामूहिक नृत्य है इसमें स्त्री-पुरुष एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं।
इसमें युवक-युवतियां कभी वृत्ताकार और कभी अर्द्ध-वृत्ताकार रूप में नृत्य करते हैं।
➤नचनी नृत्य
➤यह एक पेशेवर नृत्य है नचनी (स्त्री) और रसिक (पुरुष नर्तक) कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।
➤अंगनाई नृत्य
➤यह एक धार्मिक नृत्य है, जो पूजा के अवसर पर किया जाता है।
➤यह सदनों के आंगन का नृत्य है, जिसे उरांवों ने भी अपना लिया है।
➤इसके प्रमुख भेदों में शामिल है:- पहिलसाझा, अधरतिया, विहनिया, लहसुआ, उदासी,लुझकी आदि।
➤मुण्डारी नृत्य
➤मुंडा जनजातियों का रंग-बिरंगी पोशाक में यह एक सामूहिक नृत्य है।
➤इस समाज के प्रमुख नृत्य है -जदुर, ओर जदुर, नीर जदुर,जापी,गेना,चीटिद,छव, करम ,खेमटा,जरगा,ओरजरगा, जतरा,पाइका, बरु,जाली नृत्य आदि।
➤कठोरवा नृत्य
➤यह मुखौटे पहनकर पुरुषों द्वारा लिया जाने वाला नृत्य है।
➤मागे नृत्य
➤यह नृत्य मुख्य रूप से हो जनजाति में प्रचलित है।
➤यह महिला-पुरुषों का सामूहिक नृत्य है, जो माघ मास की पूर्णिमा में किया जाता है,इसमें बजाने, नाचने और गाने वाले नाचने वालियों के मध्य घिरे होते हैं।
➤बा नृत्य
➤हो जनजातियों का यह एक प्रमुख नृत्य है।
➤सरहुल के अवसर पर इस नृत्य में स्त्री-पुरुष सम्मिलित होकर नाचते-गाते तथा बजाते हैं।
➤एक साथ नृत्य तथा गीत वाले इस नृत्य में पुरुषों तथा महिलाओं का अलग दल होता है।
➤हेरो नृत्य
➤इस नृत्य में धान बोने की समाप्ति के उपरांत महिला-पुरुष सम्मिलित रूप से पारंपरिक वादियों के साथ नृत्य करते हैं।
➤जोमनमा नृत्य
➤नया अन्न ग्रहण करने की खुशी में मनाए जाने वाले इस नृत्य में महिला-पुरुष सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। इसमें मादर, नगाड़े, बनम आदि बजाए जाते हैं।
➤दसाई नृत्य
➤यह दशहरे के समय का पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें हाथों में छोटे-छोटे डंडे नृतक पकड़े होते हैं।
➤नाचने वाले घर-घर जाकर लोगों के आंगनों में नाचते हैं और हर घर से अनाज प्राप्त करते हैं।
➤सोहराई नृत्य
➤यह नृत्य पालतू पशुओं के लिए बनाए जाने वाला उत्सव में होता है।
➤इस नृत्य में महिला चुम्मावड़ी गीत गाती है।
➤गेना और जपिद नृत्य
➤इसमें महिलाएं नृत्य करती है और पुरुष वाद्य संभालते हैं।
➤महिलाएं जहां कतार में जुड़कर नृत्य करती हैं, वहीं पुरुष गीतों के भावनानुरूप स्वतंत्र रूप से निर्णय करते हैं।
➤जदुर नृत्य
➤यह एक महिला प्रधान नृत्य है, जो सरहुल के समय किया जाता है अन्य ऋतु या अवसर पर यह नृत्य वर्जित है।
➤इस तीव्र गति वाले नृत्य में महिलाएं झूमर की तरह जुड़ी हुई नृत्य करते हुए गीत गाती है।
➤जिसके मध्य में पुरुष नर्तक और वादक घिरे रहते हैं।
➤इसमें लय- ताल तथा राग के अनुरूप वृत्ताकार में दौड़ते हुए महिलाएं नृत्य करती हैं।
➤टुसु नृत्य
➤यह नृत्य मकर संक्रांति के अवसर पर महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है जिसमें वे टुसु के प्रतीक चौढ़ाल को प्रवाहित करने हेतु जाते समय करती हैं।
➤रास नृत्य
➤कार्तिक पूर्णिमा में एक या अधिक नचनी द्वारा किया जाने वाला एक मनमोहक नृत्य है,इसमें पुरुष नर्तक, वादक एवं गायक होते हैं, जिनके मध्य नर्तिकाएँ नृत्य करती हैं।
➤जरगा नृत्य
➤यह माघ त्योहार से संबंधित नृत्य है इसमें बालाये एक-दूसरे की कमर पकड़कर जुड़ती है और दाएं-बाएं फिर दाहिनी और बढ़ती हुई नृत्य करती है।
➤यह मध्य गति का नृत्य है इसमें पैरों की चाल् या पद संचालन की अपनी विशिष्टता है।
➤ओर जरगा नृत्य
➤यह नृत्य जरगा नृत्य के साथ-साथ चलता है इसमें महिलाओं का एक ही दल होता है।
➤तीव्र गति से ने नृत्य करती हुई महिलाएं वृत्ताकार घूमती हैं।
➤इनके मध्य गायक, वादक नर्तक पुरुषों की मंडली होती हैं।
➤फगुवा नृत्य
➤यह फगुआ (फरवरी) और चैत (अप्रैल) के संधिकाल का पुरुष प्रधान नृत्य है।
➤फगुआ चढ़ते ही फगुआ नृत्य की तैयारी शुरू हो जाती है।
➤इसमें एक दल गाने वालों का तो दूसरा दल लोकने (दोहराने) वालों का होता है।
➤घोड़ा नृत्य
➤यह नर्तकों द्वारा बिना पैर के घोड़े की आकृति बनाकर किया जाता है। विशेष, मेलों ,त्योहारों ,उत्सवों एवं बारात के स्वागत के समय का यह नृत्य है।
➤इसे मुखड़े पर बांस के पहियों से बिना पैर के घोड़े का आकार दिया जाता है।
➤बैठने के स्थान पर नर्तक इस तरह खड़ा रहता है जैसे वह घोड़े पर सवार है।
➤नर्तक बाएं हाथ से घोड़े की लगाम और दाहिने हाथ से दोधारी तलवार चमकाते रहता है।
➤मुस्कुराता हुआ युद्धरत विजयी राजा या सेनापति की तरह सीना ताने या नर्तक नृत्य करता है।
➤नागपुरी क्षेत्र में घोड़ा नृत्य के लिए पांडे दुर्गानाथ राय मैसूर थे।
➤जापी नृत्य
➤यह शिकार से विजयी होकर लौटने का प्रतीक नृत्य है, इसमें स्त्री-पुरुष सामूहिक रूप से निर्णय करते हैं।
➤यह मध्य गति का नृत्य है, इसके वादक , गायक, नर्तक पुरुष और महिलाओं से घिरे रहते हैं।
➤इस नृत्य में महिलाएं एक-दूसरे की कमर पकड़कर जुड़ी रहती है।
➤पुरुषों का एक दल बजाता है दूसरे दल वाले अपने लय-ताल से नाचते-गाते हैं।
➤महिलाएं पुरुष नायक के गीतों की अंतिम कड़ी को गाती है।
➤राचा नृत्य
➤यह नृत्य खूटी के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में प्रचलित है।
➤इसे बरया खेलना या नाचना भी कहते हैं कहीं-कहीं इसे खड़िया नाच भी कहते हैं।
➤इसमें मादर तथा घंटी का विशेष महत्व रहता है।
➤इस नृत्य में, पुरुष महिलाओं को आगे अपनी ओर आते देख पीछे हटते हैं।
➤दूसरे दौर में, पुरुष गीत गाते हुए बालाओं को नृत्य शैली से पीछे धकेलते हैं।
➤धुड़िया नृत्य
➤सरहुल के उपरांत उरांव लोग खेत जोत लेते हैं और बीज बो देते है। मौसम के अनुरूप इसमें जूते खेतों से धूल उड़ती है।
➤धूल उड़ाते हैं इससे इस काल के नृत्य को धुड़िया नृत्य कहते हैं ।
➤इसे मांदर के ताल पर नाचा जाता है।