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Saturday, December 26, 2020

Jharkhand Ke Pramukh Parv Tyohar (झारखंड के प्रमुख पर्व त्यौहार)

Jharkhand Ke Pramukh Parv Tyohar

झारखंड के प्रमुख पर्व त्यौहार

➤प्राचीन समय से ही झारखंड में पर्व और त्योहार की परंपरा रही है ये पर्व त्यौहार अलग-अलग ऋतु में किसी न किसी उपलक्ष्य में अत्यंत उल्लास और श्रद्धा से मनाया जाता है

झारखंड में मनाया जाने वाले कुछ प्रमुख पर्व और त्योहार निम्नलिखित हैं 

सरहुल

यह आदिवासी का सबसे बड़ा त्यौहार है 

यह पर्व  कृषि कार्य शुरू करने से पहले मनाया जाता है 

यह पर्व चैत शुक्ल की तृतीय को मनाया जाता है

इसमें पाहन (पुरोहित)  सरना (सखुए का कुंज) की पूजा करता है 

सरहुल फूल का विसर्जन स्थल गिड़ीवा  कहलाता है 

➤खड़िया लोग इसे जंकारे सोहराई के नाम से मानते हैं 

मुंडा, उरांव, एवं संथाल जनजातियों में यह पर्व क्रमशः सरहुल, खद्दी , एवं बाहा  के नाम से जाना जाता है

करमा 

यह आदिवासियों का एक प्रमुख त्योहार है, जो पूरे झारखंड में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है

इस पर्व को मुख्य रूप से उरांव जनजाति के लोग मनाते हैं

यह पर्व भादो शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है

कर्मा और धर्मा नामक दो भाइयों पर आधारित इस त्यौहार में करम  डाली की पूजा की जाती है

इसमें पूरे 24 घंटे का उपवास रखा जाता है

इस त्यौहार में नृत्य के मैदान (अखाड़ा) में करम  वृक्ष की एक डाल गाड़  दी जाती है और रात भर नृत्य- गान का कार्यक्रम चलता  रहता है

➤हिन्दुओं के रक्षाबंधन से मिलता जुलता यह पर्व एकता ,सदभाव ,के साथ कर्म को धर्म और धर्म को कर्म बनाने का सन्देश देता है 

फगुआ

यह होली का झारखंडी रूप है

यह हिन्दुओं की होली या फ़ाग के सामान होती है,लेकिन इसमें क्षेत्रीय या स्थानीय रंगत देखने को मिलती है  

➤यह फागुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है 

➤फगुआ में गैर-आदिवासी संबत  काटने के लिए बलि नहीं चढ़ाते हैं, किंतु आदिवासी लोग सेमल की डाली गाड़ कर उसे काटते हैं, तापन और मुर्गे की बलि चढ़ाते हैं

➤उरांव, मुंडा, खरवाल, भूमिज, महाली, बेतिया, चिक बढ़ईक, करमाली, चेरो, बैगा ,

बिरजिया आदि जनजातियों की इस त्यौहार में विशेष रूचि होती है

अषाढ़ी पूजा

➤यह सदनों एवं आदिवासियों दोनों में प्रचलित है

इसमें आषाढ़ माह में किसी दिन अखड़ा में या घर-आंगन में काले रंग की बकरी की बलि दी जाती है और तपान चढ़ाई जाती है 

ऐसी मान्यता है कि इस पूजा को करने से गांव में चेचक जैसे भयानक बीमारी नहीं होती है

धान बुनी  

आदिवासी तथा सदन इसे त्योहार के रूप में मनाते हैं

इसमें हड़िया का तपान तथा प्रसाद चलता है

मंडा के दिन ही नए बांस की टोकरी तथा धोती में धान ले जाकर खेत जोत कर बोया जाता है

वस्तुत :एक-दो मुट्ठी बोकर शुभ मुहूर्त में धान बुआई का शुरुवात किया जाता है इसे ही धान बुनी कहा जाता है 

मंडा

यह पर्व अक्षय तृतीय वैशाख माह में शुरू होता है  

इसमें महादेव शिव की पूजा महादेव मंडा में होती है 

यह त्यौहार सदन और आदिवासियों दोनों में सामान्य रूप से प्रचलित है  

इस त्यौहार में घर का एक सदस्य जो व्रती होता है, भागता कहलाता है उसकी मां या बहन उपवास रखती है जिससे सोख्ताईन कहा जाता है  

इसमें भगताओं को रात्रि में धूप-धवन की अग्नि शिखाओ  के ऊपर उल्टा लटकाकर झुलाया जाता है जिससे धुवांसी से कहते हैं फिर अंगारों पर उन्हें चलना होता है, जिससे फूल-खुदी  ही कहा जाता है 

इस पर्व  में  सिर की आराधना की जाती है 

चांडी पर्व

चंडी पर्व माघ पूर्णिमा के दिन उरांवों  के द्वारा मनाया जाता है 

इसमें महिलाएं भाग नहीं लेती हैं 

युवक की चंडी स्थल में देवी की पूजा करते हैं  

यहां एक सफेद और एक लाल मुर्गा तथा सफेद बकरा बलि के रूप में चढ़ाया जाता है 

जिस परिवार में कोई गर्भवती महिला होती है, उस परिवार का कोई भी सदस्य इस पूजा में भाग नहीं लगता है 

जनी शिकार 

यह प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला महिलाओं का सामूहिक त्यौहार है  

इसमें महिलाएं पुरुष वेश धारण कर परंपरागत हथियार लेकर शिकार खेलने निकलती है  

➤वे रास्ते में मिलने वाले सभी जानवरों का शिकार करती हैं 

शाम में अखाड़ा में सभी इकट्ठा होते हैं, जहां पाहन  द्वारा सभी को मास बांटा जाता है 

देशाउली

 यह 12 वर्षों में एक बार मनाया जाने वाला त्यौहार है

 इस में पूरे गांव के लोग भैंसा की बलि बढ़ पहाडी या मरांग बुरु के नाम पर चढ़ाते हैं 

यह बलि भूयहरदारी  की ओर से दी जाती है 

इस बली को वहीं जमीन में गाड़ दिया जाता है

सोहराय

 यह पशुओं का एक श्रद्धा अर्पित करने वाला त्यौहार है, अर्थात उसके साथ नाचने-गाने और खुशियां मनाने का त्योहार है

इसमें कार्तिक अमावस्या के दिन पशुओं को नदी-तालाब में नहाला कर उनका सिंगार किया जाता है

➤सींगों  में घी और सिंदूर लगाकर उन्हें सुंदर बनाया जाता है 

दूसरे दिन गाजे-बाजे के साथ पशुओं को सड़कों और मैदान में दौड़ाया जाता है 

माघे पर्व 

➤यह पर्व माघ महीने में मनाया जाता है  

➤इसी दिन धांगर (कृषि श्रमिक) की अवधि पूरी होती है 

इस पर्व माघ महीने  के साथ ही कृषि वर्ष का अंत समझा जाता है 

इसके बाद नया कृषि वर्ष आरंभ होता है  

यह धांगरों  की विदाई का पर्व है  

ईरो-अंगा पर्व

➤हेरो  का शाब्दिक अर्थ होता है छटनी, बुआई करना   

➤मागे व् बाहा के बाद कोल्हान में एरो पर्व का आयोजन किया गया  

हेरो पर्व में बोये गए बीज  की सलामती के लिए मनाया जाता है  

मान्यता है कि एरो पर पूजा नहीं करने की स्थिति में कृषि कार्य बाधित होती है   

यह पर्व हो जनजाति द्वारा मनाई जाती है  

टुसू

यह पर्व झारखंड के आदिवासियों विशेषकर कुर्मी (महतो) जाति के लोगों का प्रमुख त्योहार है  

यह त्यौहार सूर्य पूजा से संबंधित है तथा मकर सक्रांति के दिन मनाया जाता है 

यह टूसू  नाम की कन्या की स्मृति में मनाया जाता है 

➤सिंहभूम,रांची जिले के पूर्वी क्षेत्र ,हज़ारीबाग के दक्षिणी क्षेत्र  एवं  पंचपरगना के क्षेत्र में यह पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है 

➤टुसु त्यौहार के अवसर पर पंचपरगना के क्षेत्र में  लगने वाले टुसू मेला काफी प्रसिद्ध है 

बहुरा

यह पर्व भादो के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन अच्छी वर्षा एवं संतान प्राप्ति के लिए स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है  

यह राजा राइज  बहरलक  के नाम से भी जाना जाता  जाता है 

जावा पर्व

अविवाहित आदिवासी युवतियों द्वारा अच्छी प्रजनन क्षमता की उम्मीद और बेहतरीन कुटुमब  के लिए भादो माह में मनाया जाता है 

भागता  पर्व

तमाड़ के आस-पास के क्षेत्रों में अधिक लोकप्रिय है 

यह बसंत ऋतु एवं गर्मी के मौसम के बीच में मनाया जाता है 

इस दिन लोग उपवास रखते हैं और गांव के पुजारी पाहन को कंधों पर उठाकर सरना मंदिर ले जाते हैं

यह पर्व बूढ़ा बाबा की पूजा के रूप में जाना जाता है

सेंदरा 

➤सेंदरा उरॉवो  की संस्कृति और परंपरा इतिहास का जीवित साक्ष्य है

सेंदरा का शाब्दिक अर्थ शिकार होता है 

यह एक ऐसा पर्व है, जो उनकी आत्मरक्षा, युद्ध विद्या, भोजन और अन्य जरूरतों को पूरा करता है 

उरॉवो के बीच महिलाओं द्वारा भी शिकार खेलने की परंपरा है

इसे उरॉवो अपने कुरुख भाषा में मुक्का सेंदरा भी कहते हैं

सेंदरा कई प्रकार के होते हैं इस पर्व का आयोजन अलग-अलग समय और अवसरों पर होता है 

➤फग्गू सेंदरा  का आयोजन फागुन महीने में होता है

विशु सेंदरा वैशाख महीने में होता है 

सेंदरा पर निकलने के पूर्व गांव का पाहन  पूजा पाठ करता है

बंदना

बंदना कार्तिक महीने की अमावस्या के दौरान मनाया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है

यह त्यौहार मुख्य रूप से पालतू जानवरों से संबंधित है

इसमें लोग अपनी-अपनी गायों और बैलों को धो -पोंछकर अच्छे-अच्छे कपड़ों तथा गहनों से सजाते हैं और उनके जीवन में पशुओं द्वारा दी गई योगदान के लिए समर्पण गीत गाते हैं 

सप्ताह भर तक मनाया जाने वाला इस पर्व का आखिरी दिन काफी रोमांच होता है

आमतौर पर लोग जानवरों को सजाने के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं और उस पर लोग कलाकृति अंकित करते हैं

इसके अलावा झारखण्ड में और भी बहुत सारे त्यौहार मनाये जाते है जैसे :- होली ,दिवाली ,छठ ,दुर्गापूजा, क्रिसमस , ईद , बकरीद, मोहर्रम इत्यादि 




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