आर्थिक भूगोल(Economic Geography)
➤अनेक भूगोलवेत्ता आर्थिक भूगोल को मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण आरंभिक शाखा मानते हैं जिसका आज के संदर्भ में भूगोल में अपना एक विशिष्ट अधिकार क्षेत्र है।
➤भूगोल की यह शाखा मानव की आर्थिक क्रियाओं के स्थानिक प्रारूपों का अध्ययन करती है।
➤इसके अतिरिक्त यह शाखा विभिन्न आर्थिक क्रियाओं के विकास में भौतिक तथ्यों के प्रभाव एवं भूमिका के अध्ययन तथा प्रादेशिक विशिष्ट करण और आर्थिक क्रियाओं और व्यापार आदि की वृद्धि का अध्ययन भी करती है।
➤भूगोल की इस शाखा ने कई अन्य उपशाखाओं को जन्म दिया है जिसमें से कुछ उपशाखाऐ निम्नलिखित हैं।
➤कृषि भूगोल :- भूगोल की यह शाखा कृषि के विकास में प्राकृतिक एवं भौगोलिक तत्वों के प्रभाव का अध्ययन करती है।
➤कृषि कार्यकलापों, भूमि उपयोग एवं फसलों के स्थानिक प्रारूपों का अध्ययन भी इस शाखा के अध्ययन क्षेत्र के अंग हैं।
➤औद्योगिक भूगोल :- कृषि भूगोल के समान ही औद्योगिक भूगोल भी आर्थिक भूगोल की एक शाखा है
जो कि औद्योगिक गतिविधियों के स्थानिक प्रारूपों का अध्ययन करती है।
➤औद्योगिक भूगोल के कार्य क्षेत्र में औद्योगिक अवस्थित के सिद्धांतों को भी सम्मिलित किया जाता है।
➤किसी क्षेत्र के उपस्थित परिवहन तंत्रों के अध्ययन के अतिरिक्त परिवहन भूगोलवेत्ता भविष्य के लिए इन तंत्रों के विकास की रूपरेखा भी सुझाते हैं।
➤संसाधन भूगोल :- यह आर्थिक भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है जो की संसाधनों के स्थानिक वितरण के अध्ययन से संबंधित है।
➤संभावित संसाधनों का आकलन और उनके संरक्षण की आवश्यकता तथा इसके उपाय संसाधन भूगोलवेत्ताओं के आकर्षण एवं रुचि के विषय है।
➤विकास का भूगोल :- भूगोल की यह नई शाखा आर्थिक विकास के अन्वेषण से संबंधित है।
➤उक्त के अतिरिक्त अन्य शाखाएं भी है जिसमें ऐतिहासिक भूगोल, सैनिक भूगोल,प्रादेशिक भूगोल, मौलिक भूगोल,चिकित्सा भूगोल, लिंग अध्ययन आदि को शामिल किया जाता है।
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