झारखंड के मेले
(Jharkhand Ke Mele)
झारखंड के कुछ प्रमुख मेले निम्नांकित हैं
हिजला मेला
➤यह मेला दुमका के निकट मयूराक्षी नदी के किनारे लगता है।
➤यह संथाल जनजाति का एक मुख्य ऐतिहासिक मेला है।
➤बसंत ऋतु के कदमों की आहट के साथ शुरू होने वाला यह मेला 1 सप्ताह तक चलता है।
➤संथाल परगना के तत्कालीन अंग्रेज उपायुक्त कास्टेयर्स ने 1890 ईसवी में इस मेले की शुरुआत की थी।
➤हिजला शब्द 'हिजलोपाइट' नामक खनिज का संक्षिप्त रूप है ,जो संथाल परगना की पहाड़ियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
श्रावणी मेला
➤प्रत्येक वर्ष श्रावण महीने में देवघर में लगने वाला यह मेला विश्व का सबसे बड़ा मानव मेला है।
➤प्रतिवर्ष श्रावण माह प्रारंभ होते ही 1 माह तक यहां भारत से ही नहीं बल्कि पड़ोसी देशों से भी शिव भक्त जल चढ़ाने आते हैं।
➤विश्व का एकमात्र ऐसा मेला है जहां सभी एक ही रंग के वस्त्र पहन कर आते हैं।
रथ यात्रा मेला
➤रांची शहर में स्थित स्वामी जगन्नाथ का ऐतिहासिक मंदिर है।
➤प्रतिवर्ष यहां आषाढ़ शुल्क द्वितीय को रथयात्रा व एकादशी को धुरती रथयात्रा मेला लगता है।
नरसिंह स्थान मेला
➤हजारीबाग से करीब 5 किलोमीटर दक्षिण में लगने वाला नरसिंह स्थान मेला के नाम से प्रसिद्ध यह मेला एक बहुआयामी मेला है।
➤यहां मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है।
➤यह ईश-दर्शन भी है, पिकनिक भी है, मनोरंजन भी है, प्रदर्शन भी है और मिलन-संपर्क का भी अवसर भी है।
➤यह मेला मुख्यत: शहरी मेला माना जाता है, क्योंकि इस मेले में इस मेले में प्रया: शहर की स्त्री-पुरुष युवा वर्ग के एवं बच्चों की उपस्थिति अधिक रहती है।
रामरेखा धाम मेला
➤सिमडेगा जिले में स्थित रामरेखा धाम में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर 3 दिनों का भव्य मेला लगता है।
➤किवदंती है कि भगवान श्रीराम ने दंडकारण्य जाने के क्रम में रामरेखा पहाड़ पर कुछ दिन बिताए थे।
➤इस मेले में झारखंड के अलावा मध्य प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से काफी संख्या में तीर्थ यात्रियों और दुकानदारों का आगमन होता है।
नवमी डोल मेला
➤रांची के नजदीक टाटीसिल्वे में हर वर्ष होली के ठीक 9 दिन बाद एक बहुत बड़ा मेला लगता है।
➤यह मेला नवमी डोल मेला के नाम से प्रसिद्ध है।
➤यहां भगवान कृष्ण और राधा की प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है।
➤धार्मिक परंपरा अनुसार राधा और कृष्ण की मूर्तियां को एक डोली में झुलाया जाता है।
➤झारखंड के आदिवासियों की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं का स्पष्ट रूप आज भी सैकड़ों वर्ष पुराने इस मेले में देखा जा सकता है।
सूर्य कुंड मेला
➤हजारीबाग जिले के बरकट्ठा प्रखंड के बगोदर से 2. 5 किलोमीटर दूर सूर्यकुंड नामक स्थान पर मकर संक्रांति के दिन लगने वाला यह मेला 10 दिनों तक चलता है।
➤जिसे सूर्य कुंड मेला के नाम से जाना जाता है।
➤सूर्यकुंड की विशेषता है कि भारत के सभी गर्म जल स्रोतों में किस का तापमान सर्वाधिक है।
बढ़ई मेला
➤देवघर जिला के दक्षिण-पश्चिम छोर पर बसे बुढ़ई ग्राम स्थित बुढ़ई पहाड़ पर सैकड़ों वर्षो से प्रत्येक वर्ष अगहन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मेला लगता है।
➤यह तिथि यहां नवान पर्व के रूप में मनाई जाती है।
➤नवान पर्व के अवसर पर नवान कर चुकाने के बाद लोग हजारों की तादाद में प्रसिद्ध बुढ़ई पहाड़ स्थित तालाब के पास बुढ़ेश्वरी देवी के मंदिर में जाते हैं। जहां 3 से 5 दिनों तक मेला लगता है।
गांधी मेला
➤प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस पर सिमडेगा जिले में 1 सप्ताह के लिए गांधी मेला लगता है
➤इस ऐतिहासिक मेले में विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी विभागों द्वारा सामूहिक रूप से एक मनमोहक प्रदर्शनी लगाई जाती है जिससे विकास मेला कहा जाता है।
मंडा मेला
➤प्रत्येक वर्ष वैशाख, जेष्ठ , एवं आषाढ़ महीने में हजारीबाग, बोकारो तथा रामगढ़ के आस-पास के गांव में आग पर चलने वाला यह पर्व मनाया जाता है।
➤अंगारों की आग पर लोग नंगे पांव श्रद्धापूर्वक चलते हैं और अपनी साधना को सफल बनाते हैं।
➤जिस रात आग पर चला जाता है उस रात को जागरण कहा जाता है दूसरे दिन सुबह मंडा मेला लगता है।
हथिमा पत्थर मेला
➤बोकारो जिले के फुसरो के निकट हाथी की आकृति वाला चट्टान है।
➤लोक आस्था की अभिव्यक्ति स्वरूप हर वर्ष मकर सक्रांति के अवसर पर यहां सामूहिक स्नान की परंपरा है इस कारण विशाल मेला लगता है।
बिंदु धाम मेला
➤साहिबगंज से 55 किलोमीटर दूर स्थित बिंदुधाम शक्तिपीठ में प्रत्येक वर्ष चैत महीने में रामनवमी के दिन 1 सप्ताह का आकर्षक मेला लगता है।
➤यहां मां विंध्यवासिनी का 3 शक्तिपीठ है।
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